Palayan - 2 in Hindi Classic Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | पलायन - 2

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पलायन - 2

कोरोना की पहली लहर से सबक न लेते हुए सरकार ने इस बीमारी से लड़ने का कोई कारगर उपाय नहीं किया जिसका नतीजा यह निकला कि गंगा का पानी लाशों से पट गया। गंगा किनारे रेत में गड़े इंसानी जिस्मों को कुत्तों द्वारा नोचने का शर्मनाक दृश्य पूरी दुनिया ने देखा। सभ्यता, संस्कृति व धर्म की दुहाई देनेवाली यह सरकार जीते जी अपने नागरिकों को इलाज की सुविधा तो नहीं ही उपलब्ध करा पाई, मरने के बाद कइयों को चिता की अग्नि भी नसीब ना हुई। सब कुछ ठीक होने जा ही रहा था कि कोरोना का नया दौर फिर शुरू हो गया।
रोजगार की माँग करते युवाओं पर सरकारी जुल्म देखकर मन बहुत दुःखी था। उन्हें उनके हॉस्टल से निकालकर पीटा गया। क्या कसूर था उनका ?
और एक दिन अचानक मुझपर ईश्वर का कहर टूट पड़ा। मेरे पिताजी इस भयानक संक्रमण का शिकार हो गए। उनके इलाज के लिए मैंने पिताजी को बताए बिना दुकान भी पड़ोस के दुकानदार को औने पौने दाम में बेच दी। मजबूरी थी, क्योंकि और कोई खरीदता भी तो नहीं उस हालत में जबकि पिताजी अस्पताल में थे। पूरा प्रयास करने के बाद भी आखिर पिताजी हमें रोता बिलखता छोड़ गए। मैं अनाथ हो गया था। पिताजी मेरा कितना बड़ा सहारा थे इसका अनुभव मुझे उनके जाने के बाद ही हुआ। घर में अब माँ अकेली रह गई हैं क्यूँकि पिताजी की देखभाल और इलाज के चलते मैं भी कोरोना संक्रमित हो गया हूँ। नहीं चाहता कि यह भयानक बीमारी मेरी माँ या अन्य किसी को अपनी चपेट में ले। माँ मुझे अपनी जान से भी अधिक प्यारी है और अपने जीते जी उन्हें कोई तकलीफ हो यह मुझे गवारा नहीं। कहीं कोई सहारा नहीं बचा है और न ही अब मेरे अंदर परिस्थितियों से लड़ने की कोई क्षमता बची है। बहुत कुछ सोच समझकर मैंने यह फैसला कर लिया है कि अब मुझे जीने का कोई हक नहीं। मैं गंगा में जल समाधि लेने जा रहा हूँ, आखिर मरने के बाद मुझे भी तो यहीं फेंक दिया जाएगा अन्य लावारिस लाशों की तरह ! यह मेरा अपराध बोध है जिसने मुझे जीने नहीं दिया। मुझे लगता है देश के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी इस देश की दुर्दशा और साथ ही अपनी बरबादी के लिए खुद जिम्मेदार हूँ। मैं अपनी तरह के उन तमाम युवा साथियों से कहना चाहता हूँ कि कभी भी किसी भी नेता पर विश्वास न करो, अपनी अक्ल का इस्तेमाल करो। जाति धर्म व अगड़े पिछड़े की बात करनेवाली कोई भी सरकार तुम्हें रोजी रोटी और रोजगार नहीं देगी, जिसकी हमें सबसे अधिक जरूरत है। जाति धर्म के नाम पर सिर्फ तुम्हें बहकाया जाएगा और अपना उल्लू सीधा किया जाएगा। सोच समझकर अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करो, उम्मीदवार की जाति धर्म के बदले जनता के लिए उसकी भावनाओं को देखो, उसके चरित्र को देखो, यही तुम सबके लिए और देश की बेहतरी के लिए अति आवश्यक है। कहने के लिए बहुत कुछ है लेकिन बस... बहुत लंबा भाषण हो गया ..अब अलविदा !"
पत्र समाप्त करके उस युवा ने अपना हाथ अपनी आँखों पर फेरा, शायद आँखें भर आईं थीं उसकी। कुछ पल वह खामोश रहा और फिर कहना शुरू किया, "साथियों, अभी हमने परसों ही उत्तर प्रदेश के एक युवा दुकानदार और उनकी पत्नी की दर्दनाक आत्महत्या की वीडियो देखी, और आज यह दिल दहला देनेवाला खत। इन सभी दिवंगत आत्माओं को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि लेकिन क्या आप लोग जिंदगी से पलायन कर जाने के इस युवक के फैसले को सही मानते हैं ? आप लोग अपने विचार कॉमेंट बॉक्स में अवश्य लिखिएगा लेकिन वीडियो अंत तक जरूर देखिएगा जिसमें आगे है इस घटना को लेकर मेरा नजरिया। मेरा मानना है कि उस युवा का जिंदगी से पलायन का यह कृत्य उसके बेहद कमजोर होने की निशानी है।
पहले चर्चा कर लेते हैं फेसबुक पर लाइव आत्महत्या करने वाले युवा दुकानदार की। बताया जाता है कि कारोबारी समस्या की वजह से वह काफी आर्थिक संकट का सामना कर रहे थे। कर्ज काफी बढ़ गया था। अरे भई व्यापार जब कर रहे हो तो आपको पता होना चाहिए कि लाभ के साथ ही हानि भी इसका दूसरा पक्ष होता है और अगर आप ईमानदारी और अपनी पूरी क्षमता से अपना कार्य करते रहे तो एक दिन जरूर आप हानि को लाभ में बदलते देखेंगे। इसी समाज में हमारे आसपास ऐसे ढेरों उदाहरण हैं जब व्यवसायी बर्बादी की कगार पर पहुँच कर फिर से बुलंदियों तक पहुँचे हैं। अगर कर्ज अधिक बढ़ गया था और अदायगी इतनी ही जरूरी थी तो इन्हें अपनी संपत्ति बेचकर कर्ज चुका देना चाहिए था। और कोई संपत्ति नहीं थी तो वह दुकान बेचकर ही कर्ज चुका देते और जुट जाते जीवनयापन के दूसरे तरीकों की ओर। मेहनत मजदूरी करके भी सम्मान से गुजरबसर करते हैं लोग। बिना संपत्ति के हमारे देश में क्या नहीं हैं लोग ? आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं।
अब आते हैं आज की खबर पर ! माना कि इन्हें पश्चात्ताप है गलत सरकार चुनने का, हो सकता है और भी बहुत से लोगों को यह शिकायत हो अपनेआप से लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि आप खुद को ही समाप्त कर लें। सरकारें आती जाती रहती हैं और उसी के अनुसार नीतियाँ बदलती हैं जिसका व्यापक असर देश व आम जनों पर पड़ता है। पढ़े लिखे युवा को क्या इतना भी नहीं पता कि हम एक लोकतंत्र में रहते हैं जहाँ अन्ततः जनता की ही चलती है ? कोई भी सत्ता स्थायी नहीं होती। यदि सरकार आपकी अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती तो उसके लिए खुद को मिटा लेना कहाँ की समझदारी है ? क्या इन पढ़े लिखे जिंदगी के सफर में सुख दुःख रूपी धूप छाँव आते जाते रहते हैं लेकिन जिंदगी का सफर कभी भी थमता नहीं। यह पल पल चलता रहता है अपनी मंजिल की तरफ।
जीवन, फिर वह चाहे किसी का भी हो, बेहद संघर्षपूर्ण होता है। कहा भी गया है, 'जीवन - एक संघर्ष ' ! और इसी संघर्ष से दो दो हाथ करते हुए ईश्वर की इच्छा अनुसार जिंदगी जीना ही सही मायने में पुरुषार्थ है जिसका प्रयास सभी करते हैं व जिंदगी के इस विशाल रंगमंच पर अपना अपना किरदार निभाकर ईश्वर की मर्जी से इस नश्वर शरीर रूपी पात्र का परित्याग करते हैं।
प्रिय दर्शकों ! अंत में मेरी आप सभी से हाथ जोड़कर गुजारिश है कि ऐसी नकारात्मक खबरों का असर अपने दिल और दिमाग पर बिल्कुल भी न होने दें और इनसे सबक लेते हुए हमेशा अपनी बेहतरी के बारे में सोचें। निराशा को कभी अपने पास न फटकने दें। जिंदगी आपकी है, आप ही इसके निर्णायक हैं और हमेशा यह याद रखें कि जिंदगी अनमोल है , फिर कभी न मिलेगी दुबारा ! बस इतना ही, खुश रहें और देखते रहें 'जन की बात !' नमस्कार !'