Maa ko kon samajhta hai in Hindi Moral Stories by Shalini Gautam books and stories PDF | माँ को कौन समझता है...

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माँ को कौन समझता है...

ये कहानी है उस मां की जिसने अपने बच्चों को पाल पोसकर इतना बड़ा तो कर दिया ताकि वो अपने कदमो पर खड़े हो पाए , फिर शायद वो उन बच्चों को दुनियादारी नहीं सिखा पाई की बुढापे में मां का ख्याल भी रखना होता है जैसे बचपन में माँ बच्चों का ख्याल रखती है।

बचपन में जो मां आपको भगवान का रूप लगती है, शादी होते ही वो न जाने कैसे आपको घर में भी बोझ लगती है....
शायद इन पंक्तियों में उस माँ का दर्द आप महसूस कर पाओ। अपनी पूरी जिंदगी जो मां अपने बच्चों के नाम के लिए खर्चा कर देती है, बुढापे में उसी मां के लिए दो पेसे खर्च करना भी कितना बड़ा खर्चा हो जाता है..
तुम्हारी पसंद को प्राथमिकता देकर अपनी पसंद को मान नहीं देती, ये बच्चे बड़े होते उसी मां को कोई सम्मान नहीं देते...
आपकी मुस्कान के लिए जो उलटे सिद्धे मुंह बना कर आपको हंसाती है, एक वक्त आता है जब आप उसकी खुशी को ही नजरंदाज कर देते हो...

देवकला की मां भी कुछ ऐसी ही है, जिसके बच्चे तो हैं, लेकिन अपने साथ होकर भी वह अकेली रहती है। जिस उमर में उस बूढी मां को हाथो में भोजन से सजी थाली मिलना चाहिए उस उम्र में वो भोजन बनाकर खिलाती है।
कोई उसे मान नहीं देता, देता भी है तो बस अपने काम की औंट में, काम निकले के बाद कौन मां, कैसी मां....
एक दिन देवकला की मां बहुत बीमार थी, बहू-बेटो के होते हुए भी किसी ने नहीं पुछा की उसकी तबियत कैसी है। बस पूरा दिन रोकर गुजार देती । कमरे में अकेली पड़ी रहती है।कही मन नहीं लगता , कहीं आना जाना भी न था। शाम होते ही जब बच्चे सामने होते तो उनके सामने हँसने का अभिनय करती। ताकी उन्हे ये न लगे की बीमार होकर भी मां की दवाई हमे ही खरीदनी पड़ जाएगी।

कैसी विषम परिस्थितियों में लाकर खड़ा कर देता है भगवान, जब भीड में खड़ा होकर भी अकेला महसूस करे इंसान ...
सोचने मात्र से ही आँखों में आंसू नहीं थमते। तो उस मां की तो ये विस्तविक अनुभूति थी। सब खुश थे, अपने कमो में व्यस्त थे, मां कभी किसी से कोई शिकायत नहीं करती। फरमाइश तो दूर की बात थी।
माँ को कौन समझाता है , माँ ही समझे सब कुछ,
ना मान है ना सम्मान है दुनिया होगी कितनी तुच्छ
एक तरफ तो माँ का दिल है , समाये जिसमे वासुदेव कुटुंब,
आज जमाना है कुछ और जो देख ना पाए अपना प्रतिबिंब
आप लोग सोच रहे होंगे की उस मां के लिए मुझे इतनी हमदर्दी क्यो हो रही है...तो मैं आपको बता दू की ये आपबिती मैंने खुद उनकी जुबाबी सुनी है।
मेरे सामने बेह रही थी उस माँ की आँखों से दरिया। मैं उस दरिया में डूबती चली गयी, पोंछ न पाई उसका एक भी आंसू अगर हाथ उठाती तो उसका दर्द कागज़ पर न उतार पाती। ।उसके चेहरे को देखती तो मैं खो जाती उसकी उदासी में, और मेरी फाइल का एक पन्ना भीग जाता, मुझसे कहती की चल ले चल घर वापस , नहीं सह पाऊंगी मैं मां के दर्द भरे आंसू का भार।
मेरी औकात नहीं की मैं उस माँ का दर्द को ब्यान कर पाऊँ , पर उम्मीद करती हूं की आप सभी अपनी मां को प्यार करे , मां को सम्मान के साथ देखभाल भी करेंगे।
इस दुनिया में माँ के बराबर कोई नहीं.......