Gyarah Amavas - 54 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 54

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

ग्यारह अमावस - 54



(54)

गुरुनूर के बारे में सुनकर दीपांकर दास सर झुकाए बैठा था। उसका कहना था कि उसने गुरुनूर को नहीं मारा। उसे तो यह भी नहीं पता था कि उसका अपहरण हुआ था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ध्यान से उसके हाव भाव को देख रहा था। दीपांकर दास बहुत ही परेशान था। एक विभ्रम की स्थिति में था। उसकी यह स्थिति सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को परेशान कर रही थी। दीपांकर दास का बार बार हर चीज़ से इंकार करना उसे खिझा रहा था। उसने गुस्से से कहा,
"मुझे तो लगता है कि तुम इस तरह की हरकत करके गुमराह करने की कोशिश कर रहे हो। लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होने वाला है। हाँ अगर तुम पुलिस की मदद करो तो तुम्हारे साथ नरमी बरती जा सकती है। नहीं तो जो तुमने किया है उसके लिए फांसी पर चढ़ोगे।"
दीपांकर दास ने अपने हाथों से अपना सर पकड़ लिया। ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका दिमाग बहुत परेशान हो। वह भी गुस्से में बोला,
"चढ़ा दो.... मुझे अभी ले जाकर फांसी पर चढ़ा दो। हर पल मेरा दिमाग परेशान रहता है। जीना मुश्किल हो रहा है...."
यह कहते हुए वह रोने लगा। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने ध्यान दिया कि उसकी आवाज़ में एक दर्द था। उसका रोना दिखावा नहीं था। दीपांकर दास को इस तरह रोते हुए देखकर उसे बुरा लगा। दीपांकर दास ने खुद को काबू में करके कहा,
"तुम पुलिस वाले हो। सोचकर देखो... अगर मैं उस सब के पीछे होता तो क्या अपने आप को गिरफ्तार करवाने के लिए उस जगह पर मौजूद रहता। मैं नहीं कोई और है जो पुलिस को गुमराह कर रहा है। इससे पहले तो कभी पुलिस मुझ तक नहीं पहुंँच पाई। फिर अचानक उस दिन कैसे मुझ तक पहुंँच गई। क्योंकी असली अपराधी की यह चाल थी। मैंने अपनी बेटी की गुनहगारों की हत्या की है। उसे मैं पहले ही कबूल कर चुका हूंँ। लेकिन बाकी जो कुछ है उससे मेरा कोई लेना देना नहीं है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे जब भी दीपांकर दास के सामने होता था तो वह उसे एक निरीह सा इंसान लगता था। इस समय भी वह ऐसा ही दिख रहा था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे खुद विभ्रम की स्थिति में आ गया था। वह सही गलत समझ नहीं पा रहा था। उसने कहा,
"कोई तो है इस सबके पीछे। वो जो भी है उसका तुमसे कोई संबंध तो है। तुम्हारे सबसे करीब शुबेंदु ही था। पर तुम उसके बारे में भी कुछ नहीं कह पा रहे हो।"
दीपांकर दास यह सुनकर बोला,
"उस दिन तुमने पूछा था कि क्या जो हो रहा था उसके ‌पीछे शुबेंदु हो सकता है ? तब मैं कुछ कह नहीं पाया था। उसके बाद मैंने शांत होकर सोचा तो मुझे लगता है कि इस सबके पीछे शुबेंदु है।"
"ऐसा क्यों लगा तुम्हें ?"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के इस सवाल के जवाब में दीपांकर दास ने उसे बताया कि किस तरह अपनी बेटी और पत्नी के जाने के बाद वह पूरी तरह शुबेंदु पर आश्रित हो गया था। उसने बताया कि शुबेंदु ही उसे कर्नाटक के कोटागिरी ले गया था। जहाँ वह शैतान की पूजा करता था। सब जानकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"इससे पहले जब मैंने तुमसे पूछताछ की थी तब तुमने ऐसा कुछ नहीं बताया था।"
"मैं बहुत परेशान था। कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि मेरे साथ यह सब क्या हो रहा है। कोटागिरी में ही शुबेंदु ने मेरे दिमाग पर कब्ज़ा कर लिया था। शांति कुटीर में भी कहने को सबकुछ मेरा था। लेकिन मैं बस एक मोहरा था। शुबेंदु ही सबकुछ करता था।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को याद आया कि शिवराम हेगड़े ने भी कहा था कि दीपांकर दास शुबेंदु के प्रभाव में रहता ‌है। वह सोच में पड़ गया। उसे इस तरह चुप देखकर दीपांकर दास ने कहा,
"तुम्हें शायद मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा। लेकिन मेरी बात मानकर ही तुम सच्चाई तक पहुँच सकते हो।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे अभी भी ढीला नहीं पड़ना चाहता था। उसने कहा,
"तुम सच कह रहे हो इसकी क्या गारंटी है। अपने आप को सज़ा से बचाने के लिए भी यह सब कह सकते हो।"
यह सुनकर दीपांकर दास फिर उसी तरह तड़प उठा जैसे पहले अपना सर पकड़ कर बैठ गया था। उसने कहा,
"मैं फिर कहता हूँ कि इस स्तिथि में जीने की कोई इच्छा नहीं है मेरी। मेरा बस चले तो अभी अपनी जान दे दूँ। सब सह पाना बहुत मुश्किल है। पर मन में एक बात आती है कि उस चीज़ के लिए क्यों गुनहगार ठहराया जाऊँ जो मैंने नहीं की है। मैं झूठ नहीं बोल रहा। यकीन करना या ना करना तुम पर है।"
यह कहकर वह फिर सर पकड़ कर रोने लगा। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के मन में यह डर आ गया था कि दीपांकर दास कहीं खुद को नुकसान ना पहुँचा ले। उसने थोड़ा नरम पड़ते हुए कहा,
"मैं सच्चाई तक पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ। उस तक पहुँचूँगा भी। अगर तुम सच्चे साबित हुए तो कानून तुम्हारी पूरी मदद करेगा।"
यह कहकर वह बाहर निकल गया। उसने दीपांकर दास की सुरक्षा में तैनात गार्ड से कहा कि वह दीपांकर दास पर पैनी नज़र रखे।

दीपांकर दास से मुलाकात करने के बाद सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे एसीपी मंदार पात्रा से मिलने गया था। वह चाहता था कि उसके मन में जो सवाल हैं उनके बारे में चर्चा करे। एसीपी मंदार पात्रा ने कहा,
"तो क्या कहा दीपांकर दास ने ?"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने गंभीरता के साथ कहा,
"सर मैं उसके बारे में आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि वह सही मानसिक स्थिति में नहीं है।"
यह सुनकर एसीपी मंदार पात्रा ने कहा,
"मुझे मालूम है। जो इंसान इतनी बेरहमी से किशोर उम्र के बच्चों की बलि चढ़ा सकता है वह मानसिक रूप से बीमार इंसान ही हो सकता है।"
"नहीं सर.... मेरे कहने का वो मतलब नहीं था।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे यह कहकर चुप हो गया। एसीपी मंदार पात्रा ने कहा,
"तो और क्या मतलब है तुम्हारा ?"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने संकोच के साथ कहा,
"सर.... मुझे लगता है कि वह निर्दोष है। हमने बसरपुर वाले केस के लिए गलत व्यक्ति को पकड़ा है। असली गुनहगार कोई और है।"
एसीपी मंदार पात्रा ने तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह कुछ समय तक उसके चेहरे की तरफ देखते रहे। फिर कुछ गुस्से से बोले,
"सब कुछ इतना साफ है। तुमने खुद दीपांकर दास को उस जगह से गिरफ्तार किया था जहांँ बलि दी गई थी। अब तुम कह रहे हो कि वह निर्दोष है। तुमने क्या इस सबको मज़ाक समझ रखा है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को यह बात अच्छी नहीं लगी। पर खुद पर नियंत्रण रखते हुए उसने बड़ी शांति से कहा,
"सर.... मैं बिना किसी आधार के कोई बात नहीं कह रहा हूँ। यह बात सिर्फ मेरे ही नहीं शिवराम हेगड़े के मन में भी आई थी। तभी उसने वापस जाने की जगह यहांँ रुकने का फैसला किया। मुझे लगा था कि मैं सच तक पहुंँच कर पूरे सबूत के साथ आपसे बात करूंँगा। लेकिन अभी जब मैं दीपांकर दास से मिलकर आया हूंँ तो मुझे ऐसा लगा कि वह मानसिक दबाव में है। ऐसे में अपने आप को नुकसान भी पहुंँचा सकता है। इसलिए आपसे यह बात कही।"
एसीपी मंदार पात्रा कुछ सोचकर बोले,
"तुमने कहा कि तुम किसी आधार पर यह बात कह रहे हो। मुझे भी बताओ तुम्हारे ऐसे सोचने का आधार क्या है ?"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने उन्हें उन सभी सवालों के बारे में बताया जो उसके और शिवराम हेगड़े के मन में उठे थे। अपनी बात कहकर उसने कहा,
"सर मेरा पुलिस की नौकरी का अनुभव आप जितना नहीं है। लेकिन इतना समझ सकता हूँ कि कौन सच कह रहा है और कौन बचने के लिए झूठ बोल रहा है। जिस तरह की गतिविधियां चल रही थीं वो किसी एक इंसान के लिए अकेले करना नामुमकिन है। सोचकर देखिए अगर उस सबके पीछे दीपांकर दास का दिमाग होता तो वह अपने आप को पकड़े जाने की स्थिति में क्यों छोड़ता। सबसे पहले तो वह उस जगह से भाग जाता। वह सिर्फ एक मोहरा है। हमें सच तक पहुंँचना होगा।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे चुप होकर एसीपी मंदार पात्रा के कुछ कहने का इंतज़ार करने लगा। एसीपी मंदार पात्रा उसकी बात सुनकर एकदम शांत हो गए थे। वो कुछ सोच रहे थे। कुछ देर बाद उन्होंने कहा,
"बड़ी मुश्किल से दीपांकर दास को पकड़ कर केस सॉल्व हुआ था। लोगों का पुलिस पर भरोसा कायम हुआ था। अब अगर हम यह कहेंगे कि हमने गलती की थी तो पुलिस की स्थिति पहले से अधिक बुरी हो जाएगी। लोगों का भरोसा पूरी तरह टूट जाएगा।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"सर आप जो कह रहे हैं वो सच है। लेकिन हमारा काम जनता को झूठा दिलासा देना नहीं है। उनके सामने सही अपराधी को लाना हमारा फर्ज़ है। अगर हम चुप बैठ गए तो असली अपराधी बेधड़क अपना काम करता रहेगा।"
एसीपी मंदार पात्रा ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"मैं कब कह रहा हूँ कि हम सच को दबा दें। मैं यह कह रहा हूँ कि सच सामने लाने के लिए हमें सावधानी से काम लेना होगा। इस तरह से अपना काम करना है कि बात मीडिया तक ना पहुंँचे। सच सामने आने पर सबके लिए उसे समझना आसान हो जाएगा।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को उनकी बात सही लगी। उसने कहा,
"सर आप फ़िक्र ना करें। मेरी टीम पूरी सावधानी से काम करेगी।"
"तो फिर ऐसा करो कि अपनी टीम में केवल विश्वास योग्य चुनिंदा लोगों को ही रखो। जो भी करना है उसके लिए अधिक समय नहीं है।"
"ठीक है सर.... मैं अपने काम पर लगता हूँ।"
एसीपी मंदार पात्रा ने उसे जाने की इजाज़त दे दी थी। पर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे एसपी गुरुनूर कौर की हत्या के बारे में भी बात करना चाहता था। वह सोच रहा था कि अपनी बात कैसे कहे।