Anokhi Dulhan - 41 in Hindi Love Stories by Veena books and stories PDF | अनोखी दुल्हन - (साथ और साथी) 41

The Author
Featured Books
Categories
Share

अनोखी दुल्हन - (साथ और साथी) 41

वीर प्रताप अपने कमरे में बैठा था।
" अजीब है। या तो वह पागल है ? या तो मैं पागल हो रहा हूं ? मेरे साथ हंसती है। मेरे साथ रोती है। उसे फिक्र है मेरी। लेकिन जब कभी भी तलवार कर कर करता हूं। हमेशा मना कर देती है। और क्या कहा था उसमें मैं मेजर जो था इसलिए भावनाएं नहीं है। आर्मी में होना बुरी बात है क्या ? फिर मैं भी गवर्नमेंट सर्वेंट था। आज के जमाने में गवर्नमेंट जॉब मिलना कितनी बड़ी बात है।"
वह कुर्सी पर से खड़ा हुआ।
" प्रेसिडेंट यहां।" उसने हाथ पैर में दिखी 28 साल की जूही याद आ गई।
" यही कहा था उसने। उसे क्या फर्क पड़ता है जिसे मरना था वह तो मर गया था। ‌ वह तो खुश थी ना उस प्रेसिडेंट के साथ। आ................" वीर प्रताप ने गुस्से और चिढ़ में अपने सर के बाल खींचे। उसे कौन समझाए 900 साल की जिंदगी में फिलहाल जो वह महसूस कर रहा है उसे जलन कहते हैं।

दूसरी तरफ,
राज और यमदूत सनी से मिलने के लिए घर से निकले।
" वहां कहां जा रहे हैं आप ?" राज में गेट से बाहर जा रहे यमदूत को आवाज लगाई।

" हमें उसी तरफ तो जाना है।" यमदूत ने कहा।

" साधारण लोग गाड़ी में जाते हैं। कोई भी इतनी दूर तक चल कर नहीं जा सकता। इसीलिए हम इसमें से जा रहे हैं।" राज ने अपनी लाल कलर की मर्सिडीज़ की ओर इशारा करते हुए कहा।

एक ओह के साथ यमदूत चुपचाप राज की गाड़ी में बैठ गया।

सनी पहले ही अपने दोस्त के साथ कैफे में मौजूद थी।
" अगर वह लड़का अच्छा नहीं हुआ। तो हम दोनों यहां से निकल जाएंगे। तुम्हें पहले ही बता रही हूं, मैं किसी बोरिंग बंदे के साथ यहां पर अपना वक्त नहीं बिताने वाली।" उसकी दोस्त ने कहा।

" एक बात याद रखना वह यहां मेरे लिए आ रहा है। उसके दोस्त के साथ तुम्हें जो करना हो करना। लेकिन मेरे बंदे पर नजर डाली तो तुम मुझे जानती हो।" सनी ने उसकी दोस्त को धमकाते हुए कहा।

" रिलैक्स। मुझे लगा हम बस यहां बात करने आए हैं तुम कब से किसी लड़के के लिए इतनी सीरियस हो गई ?" उसकी दोस्त ने पूछा।

" सीरियस हूं। क्योंकि वह कोई लड़का नहीं है। खास है।" सनी ने अपने दिल की धड़कनों को संभालते हुए कहा जो तेजी से बढ़ने लगी थी।

राज और यमदूत वक्त पर सनी ने बताए हुए होटल के बाहर पहुंच गए। जैसे ही गाड़ी रोककर दोनों गाड़ी से बाहर निकले। सनी की दोस्त की नजर उन पर पड़ी। " वाह यार। सामने तो देख। कितने खूबसूरत है ना। न जाने ऐसे लड़कों को कैसी लड़कियां पसंद आती होगी ?" उसकी दोस्त ने कहा।

सनी ने एक नजर खिड़की से बाहर डाली। उसे अपनी पसंद पर घमंड महसूस हो रहा था।

" हाय।" राज और यमदूत में सनी के सामने बैठते हुए कहा।

" हेलो। तो आखिरकार हम वापस मिल ही गए।" सनी ने यमदूत की तरफ देखते हुए कहा। " दोस्त को साथ लाए हो तो मिलाओगे नहीं ?" सनी की दोस्त बस अच्छा में से दोनों को देख रही थी।

" मै इनका कोई दोस्त नहीं हूं। देखा जाए तो मैं इनसे उम्र में कई साला छोटा हूं। पर खैर जाने देते हैं। आखिर किसी अमीर परिवार का इकलौता वारिस होने का भी अपना ही मजा है। खैर मेरा नाम है राज कपूर। हेलो।" राज ने अपना कार्ड आगे करते हुए कहा। सनी की दोस्त ने तुरंत उस कार्ड को ले लिया।

" तो आज तुम्हारा कोई नाम है ?" सनी ने यमदूत की तरफ देखते हुए कहा।

" हां। मेरा नाम है ईशान सिंग कपूर।" यमदूत ने कहा।

" और काम ?" सनी ने पूछा। यमदूत के चेहरे पर कन्फ्यूजन देखकर उसने कहा ‌‌‌। " काम वाम तो करते हो ना ?"

यमदूत के पास उसे अपना काम बताने के लिए शब्द नहीं थे। कैसे कह पाता वह कि लोगों को मारना उसका काम है। क्या एक आम इंसान उसके इस काम को समझ पाता खैर उसने अपने तरीके से समझाने की कोशिश तो की। " असल में मेरा काम सर्विस इंडस्ट्री में है। थोड़ा गोपनीय है। सबको नहीं बता सकता। आशा करूंगा कि तुम समझ पाओगी।"

" लगता है यह होटल बिजनेस में होगा। अच्छे से जांच पड़ताल कर लेना कहीं वेटर ना निकले।" सनी के दोस्त ने उसके कान में कहा। लेकिन यमदूत के कानों तक बात पहुंच ही गई।

" अच्छा तो कार्ड लाए हो ?" सनी ने उसका हाथ आगे करते हुए पूछा।

" हर मुलाकात में क्या-क्या लाना है यह पहले बता देती तो अच्छा होता।" यमदूत ने कहा। लेकिन वह आगे कुछ कह पाए। उससे पहले सनी की दोस्त ने सनी को अपना मोबाइल दिखाया।

कुछ देर मोबाइल में दिए गए इंफॉर्मेशन देखने के बाद सनी ने आज की तरफ देखा। " तुम तो सच में काफी अमीर हो।"

" गूगल के मुताबिक तुम कपूर इंडस्ट्री के इकलौते वारिस हो। तुम्हारी लंदन में खींची हुई कुछ तस्वीरें इंटरनेट पर।" सनी की दोस्त ने उत्सुकता से कहा।

" अब मैं इतना भी कुछ खास नहीं।" राज ने अपने बालों पर हाथ फेरते हुए कहा। "देखो अगर तुम जानना ही चाहती हो। तो मैं बता दूं कि मुझे शो ऑफ करना पसंद नहीं है और खासकर पैसों का।"

सनी का राज की तरफ बढ़ता हुआ इंटरेस्ट रामदूत को कुछ खास पसंद नहीं आया। उसकी दोस्त पर तो पहले ही उसे गुस्सा आ रहा था। राज ने यमदूत की तरफ देखा यमदूत ने राज की आंखों में देखा। " उसे कभी तुम्हें कहीं जाना है।" यमदूत ने कहा।

" मुझे कहीं जाना है।" राज ने लड़कियों को बताया और फिर यमदूत की तरफ देखा।

" यहां से चले जाओ।" यमदूत ने राज की तरफ देखते हुए कहा। फिर वह सनी की तो उसकी तरफ मुड़ा। " इसे अलविदा कहो और यहां से चली जाओ।"

" अलविदा।" सनी की दोस्त ने उससे कहा और वहां से उठ कर चली गईं।

सनी यह सब अचंभे से देख रही थी। उसकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। यमदूत ने सनी की तरफ देखा। " अभी तुमने जो कुछ भी देखा भूल जाओ।"

सनी 5 मिनट के लिए चुप हो गई। फिर उसने अपने आसपास देखा। " अरे यह दोनों कहां चले गए ?"

" उन्हें कुछ काम याद आ गया।" यमदूत ने अच्छा बहाना बनाया।

" लेकिन उसे तो कोई काम नहीं था।" सनी अपनी दोस्त के बारे में सोच रही थी पर यमदूत उसे घुरे जा रहा था। " अच्छा बताओ। क्या वह सच में कपूर खानदान का इकलौता वारिस राज कपूर था ?"

यमदूत को गुस्सा आ रहा था। लेकिन फिर भी उसने अपना सर हा में हिलाया। " क्या मुझे उसका नंबर मिल सकता है ? मेरे दोस्त उसका कार्ड ले गई और मुझे नहीं लगता वह मुझे देगी ?" सनी ने पूछा।

" क्या मैं जान सकता हूं कि तुम्हें उससे क्या काम है ? " अमाने ढंग से हां में सर हिलाते हुए यमदूत ने पूछा।

सनी ने अपनी नशीली नज़रों से यमदूत को देखा । वह यमदूत की तरफ आगे झुकी। " वह क्या है ना वह मेरा धरती पर भगवान है।" यमदूत उसकी बातों को समझ नहीं पाया लेकिन यमदूत की आंखें भी सनी से नहीं हट रही थी। " नहीं समझे।" सनी ने अपने नशीले अंदाज में पूछा और यमदूत में ना में सर हिलाया। " जिस बिल्डिंग में मेरा होटल है यह वहां की लैंडलॉर्ड थे।" अब यमदूत को बात समझ आई के आखिर सनी राज में इतना इंटरेस्टेड क्यों थी। उसने अपनी जेब से अपना मोबाइल निकाला।

सनी के उस आकर्षक अंदाज की वजह से यमदूत नर्वस हो चुका था। जिंदगी में या फिर यूं कह लीजिए कि उसने जबसे यमदूत के रूप में आंखें खुली होंगी तब से आज पहली बार उसके हाथ कांप रहे थे। जिसकी खुबसूरत वजह उसके सामने बैठ उसे घुरे जा रही थी। यमदूत की हिचकिचाहट देख सनी ने उसके हाथ से मोबाइल लेने की कोशिश की। लेकिन तुरंत यमदूत ने मोबाइल छोड़ दिया और वह टेबल पर गिर गया। " माफ कर देना वह मेरे हाथों से छूट गया।"

सनी में मोबाइल उठाया। " क्या कोई पासवर्ड है ?" यमदूत ने ना में सर हिलाया। सनी अचंभित भी थी और इंप्रेस भी कौन आज के जमाने में अपने मोबाइल में पासवर्ड नहीं लगाता। पर लड़का यकीनन भरोसे के लायक है। उसने यमदूत की कांटेक्ट लिस्ट खोली। कांटेक्ट नंबर देख उसकी हंसी छूट पड़ी। " तो तुम किसी पिशाच को जानते हो ?"

" हां। ऐसा वैसा नहीं। काफी शक्तिशाली पिशाच है वह।" यमदूत ने कहा।

" और गुमशुदा आत्मा भला कैसा नाम हुआ ?" सनी ने हंसते हुए पूछा।

" वह मेरे काम से रिलेटेड है। मैं तुम्हें नहीं बता सकता। माफ कर देना।" यमदूत।
सनी उसे देखे जा रही थी। उसकी नजरों में सवाल थे। अनोखा है। अलग है। अजीब भी है। लेकिन फिर भी वह उसकी तरफ खींची चली जा रही थी।

वीर प्रताप अपने घर के अंदर बने छोटे से गार्डन में कंबल ओढ़े बैठा था। उसने दवाइयों की शीशी में से ३ दवाइयां ली और एक झटके में गटक गया। यमदूत कर के अंदर से हाथ में बीयर की बोतल लेकर आया और उसके पास बैठ गया। उसने बोतल से एक घूंट लिया।

" डिप्रेशन या सच में बिमार हो ? " यमदूत ने पूछा।

" डिप्रेशन।" वीर प्रताप ने बिना उसकी तरफ देखे जवाब दिया।

" क्या इन दवाइयों से कोई फर्क पड़ता है ?" यमदूत ने बहुत ऐसे ही घुट लेते हुए पूछा।

" इनसे ना फर्क पड़े तो शराब है ही। तुम्हारी डेट कैसी रही ?" वीर प्रताप ने पूछा।

" देख नहीं रहे हो। शराब की बोतल साथ लेकर बैठा हूं। वह कहती है मैं एक अजीब इंसान हूं। मेरे पास ज्यादा कुछ नहीं है। खास कर एक बिजनेस कार्ड। " यमदूत ने पूछा।

" मुबारक हो आखिरकार उस लड़की को इंसान बन मूर्ख बनाने में तुम कामयाब रहे।" यमदूत को चिढ़ाते हुए वीर प्रताप ने कहा।

" मेरी छोड़ो अपने बताओ आखिर दवाइयां क्यों ले रहे थे ?" यमदूत ने पूछा।

" मेरे मुंह से निकले हुए शब्द कभी इस तरह मेरे पास लौटेंगे मैंने सोचा भी नहीं था।" जुही के साथ कि हुई हर बत्तमिजी को याद करते हुए वीर प्रताप ने कहा। " इतने साल इंसानों के बीच रहकर भी मैं यह समझ नहीं पाया कि कुछ बातें हमें नहीं बोलनी चाहिए और वही सारी बातें मैंने उस लड़की से कहीं मैं सच में मरने के ही लायक हूं।"

" कोई मौत ऐसी नहीं जो मरने के लायक हो। तुम्हें भी जीने का पूरा पूरा हक है। जाओ और अपनी मर्जी से जिंदगी जियो।" अपने दोस्त को तसल्ली देने के लिए यमदूत ने कहा। आखिरकार हुए इंसानों की भावनाएं सीख रहा था।

" सच में ?" मौत के दूत के मुंह से यह बात सुन वीर प्रताप चौक गया। उसकी हम सवाल पर यमदूत नेहा में गर्दन हिलाई।

" हालांकि कभी कबार एक्सेप्शन होते हैं। अरे तुम हंसी में ही मुझे लगा तुम हंसोगे। खैर यह सारी बातें जाने दो और बताओ आखिर तुम्हें दवाई क्यों ली ? क्या हमारी छोडी हुई आत्मा ने कुछ किया ?" यमदूत ने पूछा।

" हम लोग बात कर रहे थे। फिर वह मेरी बातें सुन रोने लगी। मुझे लगा काम बन जाएगा। मैंने तलवार निकालने के लिए कहा। लेकिन उसने कहा कि वह रो रही है क्योंकि वह उदास है और वह तलवार नहीं निकालेगी। और फिर उसने मुझसे कुछ बातें कहीं और मैं भी रोने लगा।" वीर प्रताप कुछ कह रहा था लेकिन यमदूत ने उसे बीच में टोक दिया।

" तुम एक इंसान के सामने रोएं ?" यमदूत ने अचंभित होते हुए पूछा।

" ज्यादा नहीं बस एकाध आंसू ही टपका होगा।" वीर प्रताप ने कहा।

" शर्म आनी चाहिए तुम्हें। अब तुम्हारा खेल खत्म हो चुका है। आजकल की लड़कियों को रूखे, घमंडी और थोड़े अलग टाइप के मत पसंद है। तुम वहां पर रो कैसे सकते हो। श...... " यमदूत ने मुंह बनाते हुए कहा।

" क्या इसीलिए तुम अपने पहली डेट पर रो दिए थे ? " वीर प्रताप ने यमदूत को पास्ट याद याद दिलाया। यमदूत ने उसे कुछ जवाब नहीं दिया। " अब बस शराब का सहारा है।"

" बेहतर होगा अगर तुम जल्दी तय कर लो। इस तरफ या उस तरफ, अच्छा या बुरा। ऐसा तो है नहीं कि तुम हैमलेट हो।" यमदूत ने शराब की बोतल को मुंह से लगाते हुए कहा।

" यह शेक्सपियर भी ना। करे या ना करे की बात चल रही थी और उसने पूरा महान उपन्यास लिख डाला।" वीर प्रताप के मुंह से बात सुन यमदूत ने शराब बाहर फेंक दी।

" अगर तुम अच्छा महसूस नहीं कर रहे हो तो डॉक्टर के पास चले ?" यमदूत में वीर प्रताप की ओर देखते हुए कहा।

" क्या हुआ मुझे ठीक कर देगा ?" वीर प्रताप।

" तुमने परामर्श के बारे में नहीं सुना। हम कुछ सलाह तो ले ही सकते हैं।" यमदूत ने अपनी बात रखी।

" पर यह दर्द तो कब से हो रहा है। अगर भगवान तुम्हें सच में सिर्फ वही देते हैं जो तुम सहन कर सको। तो मुझे लगता है उन्होंने मुझे कुछ ज्यादा ही भांप लिया।" वीर प्रताप में उदास मुंह बनाते हुए कहा।

" तुम्हें जादू की झप्पी चाहिए।" यमदूत ने अपनी बाहें फैलाई। वीर प्रताप ने एक नजर उसे देखा, और जादू से अपनी तलवार बुलाइ। मानो वह किसी जंग के लिए तैयार हो रहा हो। उसकी तैयारियां देखो यमदूत ने कहा, " खैर जाने दो।"


जूही रेस्टोरेंट में अपना पार्ट टाइम काम कर रही थी। जब सनी यमदूत के साथ अपनी मुलाकात पूरी कर वहां पहुंची। वह बस‌ अपनी अंगूठी को घुरे जा रही थी। उसका अंगूठी के प्रति लगाव देख जूही ने उससे पूछा। " कैसी रही मुलाकात? कैसा था वह ?"

" दोनों ही बिल्कुल अजीब थे।" सनी ने अंगूठी की तरफ देखते हुए कहा।

" तो क्या अब आप उससे नहीं मिलेंगी ?" जूही ने पूछा।

" पता नहीं। वह अजीब है। उसके आसपास की चीजें भी अजीब ही होती है। लेकिन जब भी उससे मिलती हूं, बात करती हू। उसकी तरफ खींची चली जाती हूं। अभी मिल कर आई हूं। लेकिन फिर भी मिलने का दिल कर रहा है। उसके साथ रहकर मैं भी अजीब होती जा रही हूं।" सनी ने कहा।

जूही आगे कुछ बोलें उससे पहले टेबल के नीचे से आवाज आई। "उसने पूछा अंगूठी देखो लेकिन आप देखो शरीर के साथ-साथ अंगूठी भी चले गई।"

जूही को पता था यह उसके आसपास रहने वाली आत्मा की आवाज है लेकिन उसने उसे जवाब देना जरूरी नहीं समझा वह वापस अपने काम में लग गई।

" ए अनोखी दुल्हन। हमें पता है तुम सब सुन सकती हो। हमें यह भी पता है कि तुमने उस लड़की की मदद की। अब हमारी और भी देख लो।" दूसरी आत्मा ने कहा।

जूही फिर भी कोई जवाब नहीं दिया।
" हटो तुम दोनों यहां से। मैं तुम दोनों से बड़ी हूं। अगर कुछ मांगना होगा तो सबसे पहले मैं मांगूंगी।" एक बूढ़ी दादी की आत्मा ने उन दोनों को जूही से दूर करते हुए कहा। " सुनो अनोखी दुल्हन। जाकर पिशाच से इस हफ्ते की विनिंग लॉटरी का नंबर पूछ लो। मैं अपने बेटे के सपने में जाकर उसे वह बता दूंगी। उसका जीवन सुखी हो जाएगा और मैं भी चिंता मुक्त हो जाऊंगी। उसमें से कुछ पैसे चाहिए तो तुम भी रख लेना।" यह बात सुनकर जूही के कान खड़े हो गए।