Antim Safar - 4 in Hindi Anything by Parveen Negi books and stories PDF | अंतिम सफर - 4

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अंतिम सफर - 4

मैं रात के समय सोने की कोशिश कर रहा था कमरे की जलती लाइट के साथ मुझे अब नींद नहीं आ रही थी मेरा ध्यान छत की तरफ ही था और मैं फिर से उस पहाड़ी पर हुए घटनाक्रम के बारे में सोचने लगा था।

क्या था वहां ,कुछ तो था ,और उस समय से ही मुझे हर चीज अजीब सी महसूस हो रही हैंज़ मैं खुद को स्थिर नहीं कर पा रहा हुँ।

मैं घर की छत पर बिना पलक झपकाए देख रहा था और तभी मुझे महसूस होने लगा जैसे मेरी छत का किस्सा गायब होने लगा हो,,, पर वह तो वाकई में गायब हो गया था , अब मुझे एक काली परत नजर आने लगी थी और उस काली परत में मेरी छत को गायब कर दिया ,मैं खुले आकाश के नीचे सो रहा था,

,,अब तो मैं इतना डर गया था ,मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं ,मेरे दोनों हाथ मेरे सिर के नीचे थे, गले तक मैंने रजाई ओढ़ ली थी और अब ऐसा फील हो रहा था जैसे मैं छत पर सो रहा हूं, ठंडी हवा चारों तरफ से मेरे ऊपर प्रहार करने लगी थी, मेरी रजाई पल भर में हद से ज्यादा शीतल होती चली गई थी, पर मेरे अंदर अब हिम्मत नहीं की कि मैं उठकर यहां से निकल जाऊं,,,,

मेरी नजरें जो छत को देख रही थी, अब वह आकाश के तारों को देख रही हैं,, आकाश के तारे जो एक ही जगह पर स्थिर रहे थे उन से निकली हुई रोशनी अब मेरी ही तरफ बढ़ने लगी थी,,,,,

"क्या मुझे उठ जाना चाहिए, क्या जो मैं देख रहा हूं ,यह सच ,है या फिर मैं इस वक्त खुद को धोखे में रख रहा हूं, मुझे क्या करना चाहिए,,,"

आकाश से मेरी तरफ बढ़ती रोशनी अब कई तरह के आकार लेती हुई मेरी तरफ बढ़ रही थी ,ऐसे में अब मेरा लेटा रहना मुझे बेहद डरा रहा था,,

और फिर अभी तक सितारों से निकली रोशनी जो मुझे चमकदार लग रही थी, जिन से मुझे डर नहीं लग रहा था और मैं लेटा ही रहा था,, अब एकदम से वे काली होती चली गई थी और उनके आकार जो बन रहे थे वे इतने डरावने थे कि,, अब मैं लेटा हुआ नहीं रह सकता था,,,,

मुझे अपने आप को बचाना था,, इससे पहले कि यह सभी काली आकृतियां मुझसे आकर टकरा जाती,,,,

मैं तेजी से उठ बैठा था और अपने कमरे को देख रहा था मेरी छत अपनी जगह पर थी,,,,,

""मैं नींद में सपना देख रहा था,",, अब जल्दी से इस बार मैंने लाइट ऑन की थी।

""मैं भी कैसा इंसान हूं सपने में देख रहा हूं कि मैं कमरे की लाइट जली छोड़ कर सो रहा हूं"",,, दीवार पर लटकी घड़ी की तरफ मेरी नजर गई थी 4:00 बज रहे थे,,,,

""क्या क्या देख डाला मैंने गहरी नींद में,, और फिर एकदम से मेरा ध्यान खिड़की की तरफ चला गया था,, मेरी खिड़की वाकई में बंद थी,,,

""अरे यह बंद कैसे हैं मैं तो आकाश को देखते हुए ही गहरी नींद में गया था ,फिर यह कैसे बंद हो गई,,",,

मैं जो सपने की वजह से डरा बैठा था अब अपने कमरे की बंद खिड़की को देखकर फिर एक डर मेरे अंदर आ गया था,,

एक लंबी सांस लेकर में खिड़की के पास आया था और मैंने खिड़की को खोल दिया था,,, बाहर तेज ठंडी हवा बह रही थी और हल्की बूंदाबांदी हो रही थी ,,"" लगता है हवा की वजह से खिड़की बंद हो गई""

ठंड की एक तेज लहर मेरे मुंह पर आकर लगी थी, मेरे मेरे चेहरे में सुई सी चुभ गई थी,, मैंने जल्दी से खिड़की को वापस थोड़ा सा बंद कर दिया था,,,,

दूर मुझे सियार के रोने की आवाज सुनाई देने लगी थी,,, आमतौर पर सियार के रोने की आवाज रात के वक्त और वह भी ठंड के मौसम में ज्यादा सुनाई देती है,, पर इसके रोने की आवाज मुझे कुछ अजीब सी लगी थी,, ऐसा लग रहा था जैसे,,, सियार नहीं,,, ऊंची आवाज में दूर जंगल में कोई इंसान बैठा रो रहा हो,,,,,

पर तेज हवा और बारिश के हल्के शोर की वजह से मैं स्पष्ट नहीं पहचान पा रहा था की है यह आवाज असल में है किसकी,,,,

इसलिए मैंने अपना थोड़ी सी खुली खिड़की के एरिया में आपने कान लगाया था ताकि मैं स्पष्ट सुन सकूं ,,पर मुझे एहसास होने लगा जैसे कोई मेरी खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया हो,, मुझे गर्म सांसों का एहसास एकदम से हो गया था,,,,, और मैंने एक दम से पीछे हटते हुए ,,बाहर देखा था,,,, पर वहां मुझे कोई नजर नहीं आया,,,,

एक तरफ रखी लेजर टॉर्च उठाकर मैंने खिड़की के बाहर उस की रोशनी को डालना शुरू किया था,,, ""मुझे जो एहसास हुआ वह वास्तविकता ,,,, कोई तो था कोई बिल्कुल मेरे कान के पास आ गया था,,क्या घर के बाहर कोई है,,,,"

लेजर लाइट टॉर्च जिसकी तेज बीम जैसी रोशनी ने एक किलोमीटर दूर तक सीधा उजाला मुझे दिखा दिया था,, पर मुझे उस रोशनी में कोई भी नजर नहीं आ रहा था तेजी से खिड़की से मैं हर तरफ रोशनी डालने की कोशिश कर रहा था ,,, दूर पहाड़ी पर फैले खेतों तक मेरी रोशनी घूम रही थी ,,,पर मुझे कोई भी नजर नहीं आया था,,,

खिड़की से आती ठंड ने मुझे बेहाल कर दिया था ,,मुझे फिर से खिड़की बंद करनी पड़ी ,,और तभी मुझे एकदम से कुछ एहसास हुआ था,,, मैंने एकदम से खिड़की को खोल कर अकाश की तरफ टॉर्च की रोशनी को फेंका था,,, तेज रिमझिम बारिश और आकाश की तरफ जाती व टोर्च की रोशनी बीच रास्ते में ही धुंधली पड़ती चली गई थी ,,,पर मुझे अब एहसास हुआ था,,,, जैसे कोई उड़कर वहां से गया हो,,,,,

कुछ समय ऐसे ही इधर-उधर टॉर्च की रोशनी घुमाने के बाद जब कोई फायदा नजर नहीं आया तो मैंने लाइट बंद कर दी थी ,,,और खिड़की को टाइट करके चिटकिनी लगा दी थी,,,,,

,,मुझे अब तेज ठंड का एहसास पूरे बदन में महसूस होने लगा था ,, इस कारण अब मैं जल्दी से रजाई के अंदर चला गया था,, फिर रजाई से अपने चेहरे को भी अच्छी तरह ढकते हुए मैंने गहरी और लंबी सांसे लेना शुरू किया था ताकि मैं नींद के आगोश में जल्दी से चला जाऊं,,

पर आप मुझे बार-बार ,मेरे कान के पास हुए, उस एहसास की याद आने लगी थी ,जिस की महक अब मुझे अपनी सांसो में और अपने चेहरे पर फिर से महसूस होने लगी थी,,

क्रमशः