Gyarah Amavas - 52 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 52

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ग्यारह अमावस - 52



(52)

एसीपी मंदार पात्रा ने दो महत्वपूर्ण बातें बताने के लिए फोन किया था। एक तो यह कि दीपांकर दास को बसरपुर से पालमगढ़ ले जाने का फैसला किया गया था। लोगों में दीपांकर दास को लेकर बहुत गुस्सा था। पुलिस विभाग को ऐसा लगता था कि उसे बसरपुर से हटाना ही सही होगा। बसरपुर में दीपांकर दास की सुरक्षा के इंतज़ाम करना कठिन था। इसलिए उसे पालमगगढ़ ले जाने के आदेश दिए गए ‌थे।
दूसरी बात एसपी गुरुनूर कौर के पिता से संबंधित थी। अभी तक उन्होंने उसके गायब होने पर चुप्पी साध रखी थी।‌ लेकिन जब मीडिया में खबरें आईं कि बसरपुर में सरकटी लाशें मिलने का केस सॉल्व हो गया है तो उनसे रहा नहीं गया। उन्हें लग रहा था कि पुलिस ने केस तो सॉल्व कर लिया पर उनकी बेटी की अभी तक कोई सूचना नहीं है। इससे नाराज़ होकर उन्होंने मीडिया से इस बारे में बात की। मीडिया में भी अब एसपी गुरुनूर कौर के अभी तक लापता रहने पर चर्चा हो रही थी।

सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने आदेश के ‌अनुसार दीपांकर दास को पालमगढ़ भिजवा दिया था। दीपांकर दास के खिलाफ पुलिस चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी कर रही थी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे परेशान था। क्योंकी वह समझ गया था कि दीपांकर दास महज़ एक मोहरा है। जिसे बड़ी चालाकी के साथ उस जगह रखकर केस को भटकाने की कोशिश की गई थी। वह सोच रहा था कि चार्जशीट दाखिल होने से पहले ही कुछ करना ज़रूरी है। बसरपुर थाने के इंचार्ज विलायत खान का सस्पेंशन वापस हो गया था। विलायत खान ने फिर से काम संभाल लिया था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को परेशान देखकर उसने उसे बुलाकर इस विषय में सवाल किया,
"आकाश इतना बड़ा केस सॉल्व हुआ है। तुम्हें तो खुश होना चाहिए। लेकिन तुम परेशान दिखाई पड़ रहे हो। बात क्या है ?"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने सारी बात बता दी। उसने कहा,
"जो सवाल मेरे और शिवराम हेगड़े ‌के मन में उठे हैं वो इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि केस सॉल्व नहीं हुआ है। जो असली गुनहगार है उसने केस को एक डेड ऐंड की तरफ ढकेल दिया है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की बात सुनकर विलायत खान भी सोच में पड़ गया। कुछ सोचकर उसने कहा,
"मतलब अभी लड़ाई बाकी है। हमें उन अनसुलझे सवालों के जवाब तलाश करने हैं।"
"साथ ही एसपी मैडम का पता भी करना है। ये हमारी बहुत बड़ी ‌नाकामयाबी है कि ‌हम अपनी ऑफिसर का पता नहीं कर पाए। अब हमको नए सिरे से आगे बढ़ना होगा।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की बात सुनकर विलायत खान ने कहा,
"अगर उस शैतान ने हमें गुमराह करने की कोशिश की है तो उसे यकीन दिलाओ कि हम गुमराह हो गए हैं।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने आश्चर्य से कहा,
"मतलब ? कैसे यकीन दिलाएं ?"
"कुछ अखबार वाले तुम्हारा इंटरव्यू लेना चाहते हैं। उन्हें इंटरव्यू दो। यह दिखाओ कि तुम उस झांसे में आ गए हो जो शैतान तुम्हें देना चाहता था।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कुछ देर इस सुझाव पर विचार करने के बाद कहा,
"इससे हो सकता है कि वो ढीला पड़े और कोई गलती करे। मैं उन अखबार वालों को इंटरव्यू के लिए बुलाता हूंँ।"
यह कहकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे उठकर खड़ा हो गया। विलायत खान से इजाज़त लेकर वह चला गया।

कई सारे अखबार सामने पड़े थे। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे का बयान था कि दीपांकर दास की गिरफ्तारी से बसरपुर में मिलने वाली सरकटी लाशों का केस सॉल्व हो गया है। बयान में वह इसे पुलिस की एक बड़ी उपलब्धि बता रहा था। उन बयानों को पढ़कर जांबूर बहुत खुश हो रहा था। उसने अपने पास खड़े शुबेंदु से कहा,
"देखो वही हुआ ना जो मैं कह रहा था। पुलिस ने केस को सॉल्व मान लिया है। अब हम निश्चिंत होकर अपना काम कर सकेंगे।"
शुबेंदु चुप रहा। लेकिन रंजन सिंह बड़े उत्साह के साथ बोला,
"अब पुलिस ढीली पड़ जाएगी। हमारे लिए आसान हो जाएगा।"
उसकी बात सुनकर जांबूर एक बार फिर हंसा। रंजन सिंह ने पूछा,
"अब आगे क्या करना है ? वैसे तो अगली अमावस में समय है। लेकिन नई बलि की व्यवस्था में कुछ समय लगेगा।"
"उसकी ज़रूरत नहीं है।"
जांबूर का जवाब सुनकर रंजन सिंह को आश्चर्य हुआ। उसने मुखौटे के पीछे से झांकती उसकी आँखों की तरफ देखा। उनमें एक शैतानी चमक थी। रंजन सिंह ने कहा,
"ज़रूरत नहीं है मतलब ? अभी तो सात अमावस हुई हैं। अनुष्ठान तो ग्यारह अमावस का है।"
"सही कहा तुमने। अनुष्ठान ग्यारह अमावस का ही है। पर अब उन ग्यारह लोगों की बलि चढ़ाई जाएगी जो इस अनुष्ठान में साथ थे। बचे हुए चार अमावस में हम हर अमावस में तीन लोगों की बलि चढ़ाएंगे।"
जांबूर का यह जवाब शुबेंदु के लिए भी चौंकाने वाला था। उसने कहा,
"ऐसा कैसे हो सकता है ? पहली बात तो हमारे पास सिर्फ ग्यारह लोग हैं। तीन के हिसाब से बारह लोगो की ज़रूरत होगी।"
उसकी बात सुनकर जांबूर ने कहा,
"एसपी गुरुनूर कौर इसी काम के लिए हमारे साथ है। उसने हमारा अनुष्ठान खराब करने की कोशिश की थी। अब वह उसे पूरा करने में हमारे काम आएगी।"
शुबेंदु को समझ आ गया कि जांबूर ने ‌एसपी गुरुनूर कौर को जीवित क्यों रखा है। पर अभी भी उसके मन में सवाल था। उसने कहा,
"अब तक सभी एक साथ अनुष्ठान में भाग लेते थे। अब जब उनमें से ही बलि चढ़ाई जाएगी तो क्या वो विरोध नहीं करेंगे ?"
जांबूर एक बार फिर हंसा। उसने कहा,
"उन्हें एकत्र करने का मकसद यही था। अनुष्ठान के अंतिम दौर में उन वयस्क लोगों की बलि दी जानी थी जो ज़ेबूल की आराधना में सम्मिलित रहे हों। इसलिए अंतिम चार अमावस में उनकी बलि दी जाएगी। अब हमारा खेल शुरू होगा।"
यह कहकर जांबूर ने उन लोगों की तरफ देखा। रंजन सिंह ने पूछा,
"कैसा खेल ?"
जांबूर ने शुबेंदु से कहा,
"अब तुम्हारा काम शुरू होगा। तुम्हें उनसे मिलकर यकीन दिलाना होगा कि ज़ेबूल के लिए अपनी बलि चढ़ाने वाले को विशेष शक्तियां प्राप्त होंगी।"
शुबेंदु ने कहा,
"मेरे कहने से वो मान जाएंगे ?"
"तुमने दीपांकर दास को अपने नियंत्रण में कर लिया था। तुम जानते हो कि लोगों को कैसे अपने इशारे पर नचाना है।"
जांबूर ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा। शुबेंदु ने पूछा,
"लेकिन वो सब अलग अलग रहते हैं। उनसे संपर्क करना आसान नहीं होगा।"
"गगन और उसके दोनों साथी तो हमारे पास हैं ही। मैंने व्यवस्था कर ली है। बाकी सबको भी अपने पापा बुला लेंगे। इससे अनुष्ठान को पूरा करना भी आसान होगा।"
जांबूर ने आगे कहा,
"तब तक तुम गगन और उसके दोनों साथियो को तैयार करो।"
यह कहकर जांबूर वहाँ से उठकर चला गया। कमरे में शुबेंदु और रंजन सिंह बचे थे। रंजन सिंह ने महसूस किया कि शुबेंदु शुरू से ही कुछ चिंतित है। उसने शुबेंदु से कहा,
"बात क्या है ? तुम परेशान दिख रहे हो।"
शुबेंदु ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"मुझे लगता है कि जांबूर गलत सोच रहा है।"
"क्या गलत सोच रहा है ?"
"यही कि पुलिस उसके झांसे में आ गई है। वह मुझे बहुत निश्चिंत लग रहा था। यह बहुत खतरनाक साबित हो सकता है।"
रंजन सिंह कुछ सोचकर बोला,
"मुझे तो लगता है कि तुम ज़रूरत से ज़्यादा सोच रहे हो।"
शुबेंदु ने कुछ चिढ़कर कहा,
"मैं ज़रूरत से ज़्यादा नहीं सोच रहा हूँ। तुम लोग कुछ अधिक ही निश्चिंत हो गए हो। अभी तक एसपी गुरुनूर कौर हमारे कब्ज़े में है। ऐसे में पुलिस निश्चिंत कैसे हो सकती है। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने जो बयान दिया है वह एक दिखावा है।"
यह कहकर शुबेंदु भी वहाँ से चला गया।

अपने कमरे में आकर शुबेंदु बिस्तर पर लेट गया। उसके मन में बहुत सारी बातें चल रही थीं। वह जानता था कि पुलिस को दीपांकर दास के साथ साथ उस पर भी शक था। पुलिस केवल दीपांकर दास को ही गिरफ्तार कर पाई थी। वह सोच रहा था कि पुलिस ने दीपांकर दास से पूछताछ की होगी। दीपांकर दास स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बता पाया होगा। अब पुलिस उसे तलाश करने की कोशिश कर रही होगी।
जब जांबूर ने उसे अपना प्लान बताया था तब उसने ‌इस बात का शक जताया था कि दीपांकर दास को अकेले गिरफ्तार करने पर पुलिस उसके बारे में पूछताछ करेगी। तब जांबूर ने उससे कहा था कि वह इस बात को लेकर फिक्र ना करे। दीपांकर दास उन्हें कुछ बता नहीं पाएगा। पुलिस उस तक कभी नहीं पहुँच पाएगी। वैसे भी पुलिस बहुत दबाव में है। दीपांकर दास को गिरफ्तार करके जनता की नज़रों में पुलिस का सम्मान बढ़ेगा। पुलिस भी केस को आगे बढ़ाने की जगह बंद करना ही बेहतर समझेगी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने अखबार वालों को जो कुछ बताया था उससे लग तो ऐसा ही रहा था। फिर भी शुबेंदु के मन में शंका थी।
उसकी शंका का एक कारण वह बात थी जो आज जांबूर ने कही थी। इससे पहले उसने यह नहीं बताया था कि अंतिम चरण में उन वयस्क लोगों की बलि चढ़ाई जाएगी जो अनुष्ठान में शामिल थे। यह नई बात उसे परेशान कर रही थी।
सबसे अधिक डर उसे एसपी गुरुनूर कौर को लेकर लग रहा था। जबसे उसे पुरानी जगह से यहाँ लाया गया था वह बहुत उग्र हो गई थी। कल उसने खाना ले जाने वालों पर हमला किया था। उसके तेवर देखकर शुबेंदु डर गया था। उसने जांबूर से कहा था कि उसका हिसाब जल्दी करे। उसे मारकर लाश ऐसी जगह फिंकवा दे जिससे पुलिस को मिल सके। पुलिस पूरी तरह शांत हो जाए। लेकिन वह तो अमावस पर उसकी बलि देना चाहता था।
अमावस में अभी समय था। शुबेंदु को लग रहा था कि इस बीच पुलिस उसे ढूंढ़ती हुई ना आ जाए या एसपी गुरुनूर कौर कुछ कर ना दे।