राहुल जैन आज बहुत नर्वस था। आज उसे चैनल के लिए एक बहुत ही खास इंसान का इंटरव्यू लेना था। वो खास इंसान और कोई नहीं बल्कि डॉक्टर अरमान मेहरा थे। डॉक्टर अरमान मेहरा शहर के नामी गायनेकोलॉजिस्ट थे। इसी साल वो अपने प्रोफेशन से रिटायर हुए थे। उनकी उम्र करीबन 62 साल थी। दूसरी तरफ राहुल जैन एक न्यूज़ चैनल की लिए 3 साल से रिपोर्टिंग करता था। उसके पिता भी उस न्यूज़ चैनल के लिए काम करते थे। राहुल को पहली बार किसी नामी इंसान का इंटरव्यू लेना था, इस वजह से वो नर्वस था। ये इंटरव्यू लाइव स्ट्रीम होने वाला था, इसलिए गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी।
“ऑल ओके?” राहुल ने अपने टीम मेम्बर्स से पूछा।
“यस! अब बस डॉक्टर मेहरा के आने की देर है।”
कुछ क्षण बीतने के बाद डॉक्टर मेहरा अपनी विंटेज कार में आए। आते ही कई लोग उनके आगे पीछे आ गए। सिक्योरिटी वाले ने सबको हटाया और अंदर हॉल में उनको प्रवेश करवाया। साथ में चैनल हेड भी थे। उन्होंने पहले उनको चाय नास्ता करवाया। उसके बाद इंटरव्यू शुरू हुआ।
“नमस्कार मैं राहुल जैन, आप सभी का स्वागत करता हूं एक ऐसे मंच पर जहां हम हर हफ़्ते एक ऐसी व्यक्ति का इंटरव्यू लेते है जिसने इस समाज के लिए अमूल्य योगदान दिया हो। तो आइए आप लोगों की तालियों के बीच स्वागत करते है ऐसी ही शख्सियत का जो आज हमारे साथ है, जिनका नाम है डॉक्टर अरमान मेहरा!”
जैसे ही डॉक्टर मेहरा आए, पूरा हॉल तालियों की आवाज से गूंज उठा।
“आइए बैठिए सर!” राहुल ने कहा, “सबसे पहले तो मैं इस मंच पर आपका स्वागत करना चाहूँगा और आपको इस साल राष्ट्रपति के द्वारा सन्मानित किया गया इसके लिए ढेर सारी बधाइयाँ भी देना चाहूंगा।”
“जी माफी चाहूँगा, पर आप अपना नाम बताएंगे?”
“जी मेरा नाम राहुल जैन है। मेरे पिताजी रमेश जैन एक वरिष्ठ पत्रकार रह चुके है। शायद आप उन्हें पहचानते हो।”
“जी हां! भला मैं उनको कैसे भूल सकता हूं?”
कुछ देर की शांति के बाद राहुल ने पूछा,
“जी! तो क्या आप हमें बताएंगे कि आपने ये सफर कैसे तय किया? जहां तक हमारी रिसर्च है, उससे हमें ये पता चला है कि आपने अपनी पढ़ाई सिर्फ 10वीं तक ही करी है। उसके बाद आप एक हॉस्पिटल में कंपाउंडर थे। धीरे-धीरे आपको प्रेक्टिस होती गई और आप एक डॉक्टर बन गए। जबकि अभी तक आपके पास कोई सर्टिफिकेट नहीं है, क्या ये सच है?”
“जी! सोलह आना सच है!”
“तो क्या आप हमें बताएंगे कि ये कैसे हुआ?”
“जी मैं एक गरीब परिवार में पैदा हुआ था। हमारे घर के पास ही एक क्लिनिक थी। मेरी माँ वहीं पर काम किया करती थी। उसी पैसे से हमारा घर चलता था और मेरी पढ़ाई भी। 10वीं तक पढ़ने के बाद मेरी माँ चल बसी। उसके बाद मैं उसी क्लिनिक में कंपाउंडर की नोकरी करने लगा।”
“उसके बाद क्या हुआ?” राहुल ने पूछा।
“धीरे धीरे मुझे सारी दवाओं की जानकारी होने लगी। मुझे पता लगा के वहां के डॉक्टर कुछ महिलाओं को भ्रमित कर के दवा देते थे और अपना कारोबार चलाते थे।”
“भ्रमित?”
“हां, वो उन लोगों को बच्चे होने की दवा देते थे।”
“क्या? ऐसी तो शायद कोई दवा है ही नहीं!”
“ये तुम अब कह सकते हो, पर इस बात पर भी तुम 100% स्योर नहीं हो। तो सोचो उस टाइम पर लोगों में कितनी अवेरनेस रही होगी?”
राहुल सोच में पड़ गया।
“मुझे पता था ये गलत हो रहा है और मुझे ये हर हाल में रोकना था। धीरे धीरे मैं अपनी जानकारी बढ़ाता गया। पढ़ाई करने के लिए पैसे नहीं थे, पर लायब्रेरी में जाकर किताबें पढ़ने लगा। दूसरे कई डॉक्टरों से भी बहुत कुछ सीखने लगा। एक बार ऐसे ही एक मरीज ने आकर मुझसे दवा ली और नसीब कहो या कुछ और पर वो ठीक हो गया। उसने लोगों को ये बात बताई। इस तरह से मेरी आमदनी बढ़ने लगी। ये बात उस डॉक्टर को पसंद नहीं आई। उसने कई तरीकों से मुझे रोकने की कोशिश की, पर मैं नहीं रुका। आखिरकार उसने वो चाल चली कि मुझे रुकना ही पड़ा। उसने एक नकली महिला दर्दी को मेरे पास भेजा और दवा के रिएक्शन से उसका बच्चा गिर गया ऐसा नाटक किया, जबकि वो गर्भवती ही नहीं थी। इस वजह से मुझे कई लोगों ने आकर पीटा भी। इसके लिए मुझे हवालात की हवा भी खानी पड़ी। एक पत्रकार ने मेरे बारे में इतना बुरा लिखा कि मेरा कैरियर ही चौपट हो गया। पर मैंने हार नहीं मानी। मुझे पढ़ने लिखने का बहुत शोख था। मैंने एक नए अखबार में एक कॉलमिस्ट की जॉब कर ली।”
“उस कॉलम में आप क्या लिखते थे?”
“उस कॉलम में मैं सेक्स से रिलेटेड सारे सवालों का जवाब देता था। उस समय उसका भी भरपूर विरोध हुआ था। क्योंकि ‘सेक्स’ वर्ड सुनते ही सब के दिमाग सुन्न हो जाते है। जबकि सही मायने में किसी को इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी नहीं होती। उस नए अखबार वालों को मसाला चाहिए था और आम पब्लिक को भी, पर मुझे लोगों में जागरूकता लानी थी। धीरे धीरे लोगों के सवाल बदलने लगें और मेरे जवाब भी। उस जमाने में शायद मैं एकलौता ऐसा आदमी था जिसने ये मुहिम शुरू की थी। अब तो हर न्यूज़पेपर में एक कॉलम सेक्स एजुकेशन के बारे में होती ही है। कुछ समय बाद मैं इतना मशहूर हो गया था कि अब कोई मेरा बाल भी बांका नहीं कर सकता था। मेरे पास कोई डिग्री ना होने के बावजूद भी मैं आज एक सफल डॉक्टर हूं।” डॉक्टर मेहरा ने अपनी बात ख़त्म की और लोगों ने तालियां बजाई।
“तो ये थी कहानी मशहूर डॉक्टर और कॉलमिस्ट मेहरा जी की। इसके बाद क्या हुआ ये आप सभी जानते है। इन्होंने मेडिकल रिसर्च और भारत एवं अन्य देशो में अपनी सेवाएं प्रदान की। कई कॉलेज में और यूनिवर्सिटी में इन्होंने लेक्चर भी दिए। इनके इस अमूल्य योगदान के बदले में इनको राष्ट्रपति जी ने भी पुरस्कार से सन्मानित किया है। इसी बात पर मैं ये इंटरव्यू ख़त्म करता हूं पर आप लोगों की तालियां बजती रहनी चाहिए।”
इंटरव्यू खत्म होने के बाद राहुल जैन डॉक्टर मेहरा को जाकर अकेले में मिला।
“सर, थैंक यू! आपको पता नहीं आपके दिए गए इंटरव्यू की वजह से मैं आज कितना पॉपुलर बन जाऊंगा। ये मेरे कैरियर के लिए एक बूस्ट अप होगा।” राहुल ने कहा।
“कोई बात नहीं…! जैसे तुम्हारे पिता की कैरियर को मैंने बूस्ट अप किया था, वैसे तुम्हारा कर दिया।”
“क्या मतलब? मैं समझा नहीं!”
“जिसने मेरे बारे में गलत आर्टिकल लिखा था वो और कोई नहीं तुम्हारे पिताजी थे। उस वक्त वो नया रिपोर्टर था और अखबार वाले एवं डॉक्टर ने उसके इस आर्टिकल के लिए मोटी रकम भी अदा की थी। उस आर्टिकल के बाद ही वो फेमस हो गया। उसकी गाड़ी चल पड़ी। पर आज मुझे ये जानकर खुशी हुई कि तुमने बूस्ट अप के लिए कोई गलत रास्ता नहीं चुना।”
ये कहकर डॉक्टर अपनी विंटेज कार में बैठकर चले गए और राहुल सिर्फ उनको नज़रे झुकाए देखता रह गया।
सच्ची घटना पर आधारित।
Incident 9 समाप्त 🙏
✍ Anil Patel (Bunny)