“तुम आज आ रहे हो ना?” नियति ने अतुल ने पूछा।
“मैं अभी नहीं बता सकता, 8 बजे तक इंतजार करो। मैं तुम्हें 8 बजे के बाद बताता हूँ।” अतुल ने कहा।
“क्यों? 8 बजे क्या है? अभी क्यों नहीं?” नियति ने पूछा।
“मैं अभी थोड़ा बिजी हूँ, मैं तुमसे बाद में बात करता हूँ।” अतुल ने कॉल कट कर दिया।
अतुल और नियति दोनों एक ही ऑफिस में काम करते थे। दोनों पहले एक दूसरे को पसंद नहीं करते थे। एक तरफ नियति अतुल को घमंडी समझती थी तो दूसरी तरफ अतुल नियति को खडूस मानता था। एक कॉमन दोस्त की वजह से दोनों ने एकदूसरे से बातचीत शुरू की। जैसे-जैसे दोनों एकदूसरे से बात करते गए वैसे-वैसे दोनों की एकदूसरे के प्रति गलतफहमियां दूर होती गई और प्यार बढ़ने लगा। फिर मिलना जुलना बढ़ गया और एक दूसरे के राज़ भी खुलने लगे।
अतुल के माँ-बाप उसके बचपन में ही लंबी बीमारी के चलते गुज़र गए थे। अतुल की परवरिश उसके नाना और नानी ने की थी। उसके नाना और नानी बहुत अमीर थे और अब उनकी सारी जायदाद का इकलौता वारिस अतुल था। वही दूसरी ओर नियति उच्च मध्यम वर्ग की एक चुलबुली नटखट सी लड़की थी। उसके माता-पिता शहर के नामी डॉक्टर थे। उसकी माँ स्त्री रोग विशेषज्ञ थी वहीं उसके पिता मनोचिकित्सक थे।
अतुल और नियति ने अपने घर में एकदूसरे के बारे में बात कर ली थी। उन दोनों के परिवार को इस रिश्ते से कोई दिक्कत नहीं थी। अतुल की सैलरी काफ़ी अच्छी थी और वो वेल सेटल्ड था। नियति को खुश भी रखता था इससे बढ़कर नियति को और उसके माता-पिता को क्या चाहिए। आज सुबह अतुल और नियति के परिवार वाले दोनों की सगाई करने के लिए मिलने वाले थे। नियति ने सुबह ही अतुल को कॉल कर के बातचीत की और उसके बाद उसके आने का इंतज़ार करने लगी।
काफ़ी वक्त बीत गया पर कोई नहीं आया। नियति ने अतुल को कॉल किया पर उसका फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा था। नियति के पापा ने अतुल के नाना को कॉल किया। उन्होंने बताया कि सभी लोग कब से तैयार बैठे है पर अतुल किसी वजह से उन लोगों को नहीं आने दे रहा था। नियति के पापा ने वजह पूछने के लिए फ़ोन अतुल को देने के लिए कहा पर अतुल ने फ़ोन पर बात करने से मना कर दिया। अब नियति और उसके परिवार को गुस्सा आने लगा कि आखिर ऐसी क्या बात हो गई है अतुल के साथ कि वो किसी से बात भी नहीं करना चाहता। नियति और उसके माता पिता अतुल के घर पूरा माजरा क्या है ये जानने के लिए गए।
“वो अभी तक नहीं आया, तुम लोग यहाँ पर क्यों आ गए?” अतुल ने नियति और उसके माता-पिता के आने पर गुस्से से पूछा।
“क्या मतलब है तुम्हारा? कौन अभी तक नहीं आया?” नियति के पापा ने पूछा।
“तुम सभी लोग यहां से चले जाओ, तुम लोगों को यहां पर नहीं आना चाहिए था।” अतुल ने गुस्से से चीखते हुए कहा।
ऐसा कुछ देर और चला, सभी परेशान हो गए कि आखिर अतुल को हुआ क्या है। नियति के पिता ने नियति और उसकी माँ एवं अतुल के नाना और नानी को अलग कमरे में बुलाया, क्योंकि वो कुछ हद तक समझ गए थे कि आखिर बात क्या है।
“अतुल किसी दिमागी बीमारी से जूझ रहा है।” नियति के पिता ने कहा।
“ये आप क्या कह रहे है? आप दिमाग के डॉक्टर है इसका मतलब ये थोड़े ना है कि सभी दिमाग के मरीज ही हो!” अतुल के नाना ने कहा।
“ऐसा नहीं है मैंने कई मरीज़ों को देखा है, अतुल के लक्षण भी कुछ इसी प्रकार के है।” नियति के पापा ने कहा।
“आप स्योर है पापा?” नियति ने पूछा।
“हां! बिल्कुल। 99% कन्फर्म!” नियति के पापा ने कहा।
सभी लोग सोच में पड़ गए कि अगर ये सच है तो आखिर किया क्या जाए और ऐसा होने की वजह क्या है। नियति के पापा ने अतुल के नाना से एक काम करने को कहा। वो किसी बहाने से अतुल से छोटे से छोटी बात पूछने लगे। अतुल अपने नाना के बहुत करीब था इसलिए वो उससे बातें शेयर करने लगा। दो हफ़्तों बाद अतुल के नाना और नियति के पापा आपस में मिले और अतुल के नाना ने सारी बाते बताई जो इन दो हफ़्तों दरमियान हुई थी। अब नियति के पापा 100% कन्फर्म थे।
उन्होंने अपनी तरफ से कुछ तफतीश की उसके बाद इस नतीजे पर पहुँचे की अतुल को एक ऐसी मानसिक बीमारी थी जिसमें वो किसी और ही कैरेक्टर में जीता था। जब बचपन में उसके माता-पिता चल बसे उसके पश्चात वो अकेला पड़ गया था। उसके नाना और नानी ने उसकी परवरिश में कोई कमी नहीं रखी थी, पर उसके पास या उसके साथ कोई दोस्त नहीं था। हमेशा एक अधूरापन उसके साथ ही रहता था। तब उसने किताबें पढ़ना शुरू किया। वो कोई भी किताब पढ़ता उसके किसी भी किरदार के साथ खुद को कनेक्ट करने लगा, और ऐसी ही ज़िंदगी जीने लगता था। सबसे ज्यादा अगर किसी लेखक ने उसको इफ़ेक्ट किया था वो थे कृष्णमूर्ति जी। उनकी किताबें पढ़कर ही वो बड़ा हुआ था।
कृष्णमूर्ति जी की कहानियां उसके दिल को छू जाती थी, वो खुद को उनकी कहानी के किसी किरदार में ढाल लेता था और उसी तरह से बर्ताव करता था। इस तरह से उसने दोस्त बनाए लोगों से जान पहचान बनाई और अपनी पढ़ाई ख़त्म की। उसे नियति से बात करने की हिम्मत भी कृष्णमूर्ति जी की कहानी से ही आई। उसी वक्त कृष्णमूर्ति जी की नई कहानी मैगज़ीन में आनी शुरू हुई थी। वो उसी मैगज़ीन की कहानी के किरदार के अनुसार बर्ताव कर रहा था। हर हफ़्ते 7 बजे वो मैगज़ीन उसके घर आती थी। जिस दिन नियति के घर उसको अपने रिश्ते के लिए जाना था उस दिन भी मैगज़ीन आने वाला था। मैगज़ीन आया पर उसमें कृष्णमूर्ति जी की कहानी नहीं थी। अतुल व्याकुल हो गया और उसने संपादक को कॉल किया। उन्होंने कहा की अब कृष्णमूर्ति जी की कहानी मैगज़ीन में नहीं आएगी क्योंकि अब वो इस दुनिया में नहीं रहे।
अतुल को लगा जैसे उसकी कहानी अधूरी रह गई। अब आगे क्या करना उसे सूझ नहीं रहा था। नियति के पापा ने अतुल का काउंसलिंग किया। कुछ महीनों की मेहनत और संयम से अच्छे परिणाम आने लगे। अतुल ठीक हो रहा था। काश इस कहानी का अंजाम सुखद होता, पर जैसे ही अतुल ठीक हुआ उसके नाना और नानी का देहांत हो चुका था और इस मुश्किल वक्त में नियति ने भी उसे छोड़ दिया और किसी और से शादी कर ली। आखिर किसी दिमाग के मरीज के साथ वो कैसे शादी कर लेती, यही तो अपना समाज है, क्यों? अतुल का आगे क्या हुआ ये आप लोग ना ही जाने तो अच्छा रहेगा।
सच्ची घटना पर आधारित।
Incident 8 समाप्त 🙏
✍ Anil Patel (Bunny)