Bawra Mann in Hindi Moral Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | बावरा मन

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बावरा मन

आजकल रश्मि कुछ उदास,कुछ उखड़ी सी,कुछ व्यथित रहने लगी है,वैसे देखा जाय तो कोई विशेष समस्या भी नहीं है,बल्कि सब कुछ पहले से काफ़ी बेहतर हो गया है।गृहस्थ जीवन का संघर्ष भी लगभग नगण्य हो गया है।अब जिंदगी में थोड़ा उतार-चढ़ाव तो चलता रहता है जो इतना मुश्किल भी नहीं है जिसे वह अपने पति के सहयोग से सम्हाल न सके।लेकिन मन बड़ा अजीबोगरीब शै है,कब विचलित होकर बेबात ही नैनों से नीर बहाने को बाध्य कर दे,ज्ञात ही नहीं होता।

कभी-कभी महसूस होता है कि वह अवसादग्रस्त हो रही है।पति से अपनी मनःस्थिति का ज़िक्र करना नहीं चाहती,ऐसा नहीं है कि वे उसपर ध्यान नहीं देंगे,लेकिन वह जानती है कि किसी भी शारिरिक परेशानी की बात करने पर हमेशा की तरह कह देंगे कि डॉक्टर को दिखा लो।आखिर शिक्षित हूँ न,कोई अनपढ़ -गंवार नहीं, मुझे भला किसी के साथ की क्या आवश्यकता, बैंक-बाजार सारे काम जब मैं स्वयं करती हूँ तो डॉक्टर के पास जाने में क्या समस्या है।

32 साल के वैवाहिक जीवन में तमाम उतार- चढ़ाव देखे हैं।पति में वैसे कोई ऐब नहीं है, वे ध्यान भी पर्याप्त रखते हैं हमेशा,प्यार में भी कोई कमी नहीं है, खाने-पीने में भी कोई नखड़े नहीं हैं लेकिन जो वे कह दें बस वही सही होता है, शायद यह हमारे जमाने के पुरुषों का सामान्य व्यवहार है,ऐसा उसका मानना है,इसलिए वह इसके साथ सामंजस्य स्थापित कर चुकी है।पति के अति क्रोध से वह बेहद व्यथित रहती थी, उसे समझ ही नहीं आता था कि वे कब,किस बात पर नाराज़ हो जाएं,बात को बढ़ने से रोकने की खातिर वह खामोश होती चली गई, अब तो यह खामोशी उसका स्वभाव ही बन चुका है।वे तो अपनी भड़ास क्रोधित होकर निकाल लेते हैं लेकिन वह मन की व्यथा को जब्त करते-करते शायद थक गई है।

ख्वाहिशें बहुत बड़ी कभी नहीं रहीं उसकी।एक छोटा सा दो कमरों का ही सही जिसे वह अपनी मर्ज़ी से सजा-सँवार सके,घर की तमन्ना थी,वह भी पूरी नहीं हो सकी।ऐसा नहीं था कि धनाभाव था,बस पति का विचार था कि पहले बच्चों को व्यवस्थित करके अपने बारे में सोचेंगे।अब बेटे को 2 बीएचके फ्लैट दिलाने का विचार है।रश्मि ने कई बार समझाने का प्रयास किया कि अपनी जिम्मेदारियों के साथ कभी-कभी अपनी कुछ ख्वाहिशों की पूर्ति के बारे में भी सोचते रहना चाहिए क्योंकि जिंदगी का क्या भरोसा कब धोखा दे दे।

बच्चे बाहर जा चुके हैं अपने शिक्षा-नौकरी के लिए,वे अपनी दुनिया में रम गए हैं।पति अपने व्यवसाय में हमेशा की तरह व्यस्त हैं।रश्मि की कभी आदत नहीं रही आसपड़ोस में अनावश्यक बात-चीत में समय व्यर्थ करने की,इसलिए विशेष परिचय क्षेत्र भी नहीं है, बस पुरानी कुछ बाल सखियों से ही फ़ोन-वाट्सप पर वार्तालाप हो जाती है।अब रश्मि स्वयं को निरर्थक एवं उपेक्षित महसूस करने लगी है।उसे सिर्फ पैसे नहीं चाहिए,अब शेष जिंदगी के लिए थोड़ा समय चाहिए पति का।

अभी जब बेटा अपनी दोस्त के साथ देहरादून गया था तो रश्मि को बताते हुए कहा था कि माँ,वो बहुत दिन से शिकायत कर रही थी कि कहीं घुमने नहीं गए काफ़ी दिनों से,इसलिए जा रहे हैं, वरना आप तो जानती हैं कि मुझे समय नहीं मिलता।सुनकर एक बार मन में कसक तो उठी थी कि हमारी पच्चीसवीं मैरिज एनिवर्सरी पर हमारे साथ बिताने के लिए दो दिन नहीं निकल सके,जबकि तब वह अभी पढ़ाई कर रहा था, पति ने भी अपना सारा क्रोध रश्मि पर निकाल दिया था, जिससे मुद्दत से जिस समय का इंतजार उसने किया था,उसके गिड़गिड़ाने के बावजूद दोनों पिता-पुत्र ने उपहार में आँसू प्रदान कर बर्बाद कर दिया था।

अब शेष जीवन का हर व्यतीत होता दिवस व्यथित करने लगा है, स्थगित ख्वाहिशें मन के दरवाजे पर अक्सर दस्तक देकर याद दिलाने लगी हैं कि अब कुछ तो हमारे बारे में सोच लो,इंतज़ार लम्बा होता जा रहा है, सब्र का बांध टूटने लगा है, बेचैनी बढ़ती जा रही है,बावरा मन अब व्याकुल रहने लगा है, मन के नियंत्रण की बागडोर अब छूटने लगी है।उफ़, यह व्यग्र मन।

रश्मि अक्सर यह सोचती है कि क्या ऐसा सिर्फ़ उसके साथ ही हो रहा है या औरों के साथ भी होता है।आप सबको पता हो तो बताना।

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