नमस्कार दोस्तो....आज मैं आप सब से कुछ कहना चाहती हूं कि कैसे आज भी लड़की का पैदा होना इतनी खुशी की बात नहीं होती है।
जब एक लड़की किसी घर आंगन में जनम लेति है तो ना जाने क्या खुशी से ज्यादा लोगो में ये भाव होता है कि इसका पालन पोषण कैसे होगा, इसकी सुरक्षा के लिए क्या करना होगा, पढाई पर खारचा होगा, शादी मे भी खर्चा होगा ना, और भी बहुत कुछ करना पडेगा।
क्यो लोगो की सोच अभी भी संकीर्ण है, बेटी को लेकर, की बेटी हमारी बेटो से कम आंकी जाती है।
कुछ विचार मेरे मन में आये तो सोचा आपसे साझा करूंगी...सोच रहीं हूँ जेसे बेटियाँ भगवान के आँगन में बडे ही चाव से खेल रहीं हो, तभी एक माँ का बुलावा आया मुझे बेटी के रूप में पाने का, और मेरे मन मे बस यही बाते चल रहीं थीं कि....
वेसे तो भगवान के आंगन में खेल रही थी और भी पारियां, पर जब चुनाव का समय आया तो मैं ही क्यो.....
क्यो बुला लिया आंगन से मुझे ,मैं तो हस्ती मुस्काती खेल रहीं थी....
क्यो मुझे ही मंगा गया उस घर के लिए जिस घर में मेरे लिए जगह नहीं थी.....
बेटी के रूप में मुझे मांगा ही था तो पहले से मेरे रख-रखाव की व्यवस्था की होती....
दुआओ में मांगी हुई नन्ही परी आ तो गई दूसरे आंगन में, गोद में खिलाती मां ने भी बहुत दुलार किया....
पर ना जाने क्यों उदास हो गए सारे पडोसी, कि जेसे पालना हो उन्हीं को मुझे, जेसे जन्मी हो मैं उन्हीं के घर में...
बेटा होता तो संभाल लेता घर परिवार को, जेसे बेटियाँ तो परिवार को चलाना ही नहीं जानती...
परेशान नहीं होना, ये सिर्फ विचार हैं, हकीकत नहीं, पूछना है तो उस माँ से पूछो जो जन्म देते हुए बस यही चाहती है कि उसकी संतान स्वस्थ्य हो, दीर्घायु हो.
अब हर किसी की सोच तो एक जेसी नहीं होती ना दोस्तों...
इसी पर एक कविता मुझे याद आयी..हिन्दी के प्रसिद्ध कवि की पहली पंक्ति को प्रेरणा मानकर मेने कविता लिखी....
अंत मे हसी हसी में मैने बात को संभालने की कोशिस की है पर फिर भी जो गंभीरता कविता में झलकी है, उम्मीद करती हू की वो gambheerta लोगो की सोच में भी आये....
अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगी कि बेटी है, सम्मान की हकदार है, प्यार दीजिए, मान आपको खुद ही मिल जाएगा। कभी इसकी किसी से तुलना न करना, खुले हाथो से स्वागत करना।
सभी को प्यार
धन्यावाद।
शालिनी गौतम