Gyarah Amavas - 51 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 51

Featured Books
  • શ્રાપિત પ્રેમ - 18

    વિભા એ એક બાળકને જન્મ આપ્યો છે અને તેનો જન્મ ઓપરેશનથી થયો છે...

  • ખજાનો - 84

    જોનીની હિંમત અને બહાદુરીની દાદ આપતા સૌ કોઈ તેને થંબ બતાવી વે...

  • લવ યુ યાર - ભાગ 69

    સાંવરીએ મનોમન નક્કી કરી લીધું કે, હું મારા મીતને એકલો નહીં પ...

  • નિતુ - પ્રકરણ 51

    નિતુ : ૫૧ (ધ ગેમ ઇજ ઓન) નિતુ અને કરુણા બીજા દિવસથી જાણે કશું...

  • હું અને મારા અહસાસ - 108

    બ્રહ્માંડના હૃદયમાંથી નફરતને નાબૂદ કરતા રહો. ચાલો પ્રેમની જ્...

Categories
Share

ग्यारह अमावस - 51



(51)

सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ध्यान से उसकी हरकतों को देख रहा था। वह समझने की कोशिश कर रहा था कि दीपांकर दास यह सब जानबूझ कर गुमराह करने के लिए तो नहीं कर रहा है। हांलांकि उसे अनुभव हो रहा था कि जो कुछ वह कह रहा है सच हो सकता है। उसकी परेशानी बनावटी नहीं है। फिर भी वह पूरी तरह से उसे शक के दायरे से बाहर नहीं रखना चाहता था। उसने कहा,
"शुबेंदु साये की तरह तुम्हारे साथ रहता था। फिर भी तुम उसके बारे में कुछ कह नहीं पा रहे हो। शुबेंदु उस दिन तुम्हारे साथ शांति कुटीर से निकला था। तुम बताओ वो कहाँ है ?"
दीपांकर दास ने कहा,
"मुझे नहीं पता। उस दिन रास्ते में मैं बेहोश हो गया था। जब होश आया तो अपने आप को एक कमरे में बंद पाया। तब भी मैंने चोंगा और मुखौटा पहन रखा था। शुबेंदु के बारे में मुझे कुछ नहीं पता।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कुछ ‌सोचकर पूछा,
"तुम पहले भी कभी बेहोश होते थे ?"
"हाँ..…. पहले भी कई बार बेहोश होता था‌। जब होश आता था तो उसी तरह चोंगा और मुखौटा पहने रहता था।"
"ऐसा क्या किसी खास समय पर होता था ?"
दीपांकर दास ने कुछ सोचकर कहा,
"महीने में एक बार होता था।"
जो कुछ दीपांकर दास कह रहा था वह इस बात की तरफ इशारा कर रहा था कि वह एक साज़िश का शिकार था। पर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे पूरी तरह उस पर भरोसा भी नहीं कर पा रहा था। दीपांकर दास ने बिना किसी हिचकिचाहट के पाँच लड़कों के कत्ल की बात स्वीकार की थी। पर बलि चढ़ाए जाने का ज़िम्मा नहीं ले रहा था। वह अपने ऊपर किसी शैतान के सवार हो जाने की बात कर रहा था। क्या सच है यह जानना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। उसे आहना के दोषी के कत्ल की याद आई। उसके कत्ल का तरीका वैसा ही था जैसे उन पाँच लड़कों में से एक का कत्ल किया गया था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"तुम्हें याद है कि शांति कुटीर में अहाना नाम की एक लड़की आई थी। उसके साथ भी तुम्हारी बेटी की तरह ही अत्याचार हुआ था।"
दीपांकर दास ने कहा,
"हाँ याद है। वह बच्ची बहुत सहमी हुई सी थी। वह ध्यान करने की स्थिति में नहीं थी। इसलिए उसे वापस भेज दिया था।"
"तुम्हें मालूम है कि उसके गुनहगार का भी उसी तरह कत्ल हुआ था जैसे तुमने उन पाँच लड़कों में से एक रंजीत सिन्हा का किया था। उसका गुप्तांग भी काट दिया गया था।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की बात सुनकर दीपांकर दास को आश्चर्य हुआ। उसने कहा,
"मैंने तो ऐसा कुछ नहीं सुना। मुझे कुछ नहीं मालूम है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"तुमने उस आदमी का कत्ल नहीं करवाया था ?"
"नहीं.... मैंने तो बस उस बच्ची के पिता से कहा था कि वो उस हैवान को ऐसे ही ना छोड़े। पुलिस में उसके गुनाह की शिकायत दर्ज़ कराए।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे कुछ और पूछना चाहता था तभी उसका फोन बजा। एसीपी मंदार पात्रा का फोन था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने लॉकअप बंद करने का आदेश दिया और वहाँ से चला गया।

सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के जाने के बाद दीपांकर दास फिर उसी तरह आँखें बंद करके बैठ गया। वह शुबेंदु के बारे में सोच रहा था। शुबेंदु हर समय उसके साथ रहता था। शांति कुटीर के उसके ‌निजी कक्ष में भी वह बिना किसी रोक टोक के आ सकता था। शांति कुटीर पर ही नहीं दीपांकर दास पर भी उसका नियंत्रण था। दीपांकर दास ने उसका नियंत्रण स्वीकार कर लिया था।
उन पाँच लड़कों की हत्या करने के बाद दीपांकर दास के मन का गुस्सा तो निकल गया था लेकिन वह मानसिक रूप से अशांत हो गया था। अपने घर लौटकर उसने शुबेंदु से कहा था,
"मैंने उन्माद में उन पाँचों लड़कों की हत्या तो कर दी पर अब मेरी अंतरात्मा मुझे कचोट रही है। उन्हें मारने का मुझे हक नहीं था। मुझे कानून को मजबूर करना चाहिए था कि उन लड़कों को उनके किए की सज़ा दे।"
उसकी बात सुनकर शुबेंदु ने कहा,
"तुम फिर कायर जैसी बात करने लगे। कितना समझाया था तुम्हें कि अपनी बेटी का बदला लेना गलत नहीं है।"
दीपांकर दास के चेहरे पर छाए अपराधबोध को देखकर उसने आगे समझाया,
"तुमने जो कुछ किया है उसके लिए तुम ज़िम्मेदार नहीं हो। कुमुदिनी के साथ जो हुआ था उसका गुस्सा तुम्हारे अंदर था। उसी गुस्से ने तुमसे यह करवाया है। तुमने वो किया जो तुम्हारे भीतर बैठा वह पिता करवा रहा था जो अपनी बेटी के साथ हुए अत्याचार से दुखी और सिस्टम से नाराज़ था। जब कुमुदिनी को न्याय नहीं मिला तो उसे खूंखार बनना पड़ा। कानून के भरोसे बैठकर तुम अपनी बच्ची को न्याय नहीं दिला सकते थे। तुमने जो किया उससे कुमुदिनी की आत्मा को शांति मिली होगी।"
शुबेंदु ने दीपांकर दास को समझाया कि वह अपने मन में कोई बोझ ना रखे। पर दीपांकर दास के मन में अपराधबोध था। वही अपराधबोध उसके मन में डर पैदा कर रहा था। उस रात वह बेचैन रहा था। जब पुलिस को उन पाँच लड़कों की लाशें मिलीं तो वह बुरी तरह घबरा गया था। उस स्थिति में शुबेंदु ने उससे कहा कि वह उस पर भरोसा करे। वह उसे मुसीबत से उबार लेगा। दीपांकर दास ने उस पर भरोसा करके खुद को उसके हवाले कर दिया था।
शुबेंदु उसे बंगाल से दूर कर्नाटक के कोटागिरी ले गया। वहाँ उसके गुरु का आश्रम था। वहाँ दीपांकर दास ने ध्यान की विशेष तकनीक सीखी। उस दौरान उसने पाया कि शुबेंदु का उस पर बहुत अधिक प्रभाव हो गया है। वह कोई भी काम शुबेंदु की इच्छा के बिना नहीं करता है। उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं रह गई है। शुबेंदु जो कहता था वहीं उसे सही लगता था। यह जानते हुए भी कि वह शुबेंदु का गुलाम बनता जा रहा है वह उससे उबरने का कोई प्रयास भी नहीं करता था। उसे लगता था कि शुबेंदु के संरक्षण में रहना ही सुरक्षित है।
शुबेंदु का गुरु एक ऐसे समुदाय का मुखिया था जो शैतानों के देवता की पूजा करता था। उनके जाने के बाद शुबेंदु भी शैतानों के देवता की पूजा करने लगा। वह अक्सर मध्यरात्रि के बाद आश्रम के तहखाने में जाकर शैतानों के देवता की आराधना करता था। शुबेंदु उसे भी साथ ले जाता था। उस तहखाने में एक विचित्र सी मूर्ती थी। शुबेंदु उसे ज़ेबूल कहता था। उसके सामने नतमस्तक होता था। उसका मानना था कि शैतानों का देवता ज़ेबूल उसकी हर मुराद पुरी करेगा। शुबेंदु के प्रभाव में वह भी ज़ेबूल के सामने नतमस्तक होता था।
लॉकअप में बैठा दीपांकर दास याद कर रहा था कि जब भी उसने खुद को काले चोंगे पहने शैतान के मुखौटे में खून से सना हुआ पाया ज़ेबूल की मूर्ति उसके आसपास थी। वह परेशान हो गया। उसे लगने लगा कि क्या वह सचमुच ज़ेबूल का उपासक बन गया था। उसे खुश करने के लिए बच्चों की बलि चढ़ाता था। लेकिन उसका मन यह मानने को तैयार नहीं था कि वह किसी लालच में ऐसा जघन्य अपराध कर सकता है। जो उसके सामने था वह अलग था और जो उसका मन कह रहा था वो अलग। इससे वह और अधिक परेशान हो गया था। उसी परेशानी में उसने अपने दिल में रह रही लिपा से सवाल किया,
"लिपा तुम तो मेरे भीतर रहती हो। क्या तुम्हारा बाबा इतना नृशंस है कि बच्चों की बलि चढ़ाए ?"
वह बार बार यह सवाल दोहराने लगा। कुछ क्षणों बाद उसे अपनी गर्दन पर लिपा की बाहें महसूस हुईं। उसे लगा जैसे कि लिपा उसके कंधे से झूलते हुए कह रही है कि मेरे बाबा एक अच्छे इंसान हैं। वह बिना किसी कारण किसी की हत्या नहीं कर सकते हैं। आपने जो हत्याएं की थीं वो मुझे शांति दिलाने के लिए की थीं। उसके दिल में बसी लिपा ने उसे निर्दोष बताया था। उसे अपने मन में शांति का अनुभव हो रहा था।
अब उसके मन में आ रहा था कि जो कुछ उसके साथ घट रहा था उसका कारण क्या है। उसे सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की बात याद आई। उसने पूछा था कि उसके साथ जो हो रहा है कहीं उसके पीछे शुबेंदु तो नहीं। जबसे शुबेंदु गायब हुआ था उसके मन में कई बार यह बात आई थी कि आखिर वो कहाँ चला गया। उसने इतने दिनों में उसकी कोई खबर भी नहीं ली। तब उसके मन में आया था कि उसे कैद करके रखने वाले ने उसे भी कहीं कैद करके रखा होगा। इसलिए वह अक्सर उसके बारे में पूछता रहता था।
अब उसे लग रहा था कि उसके साथ होने वाली गड़बड़ियों के पीछे शुबेंदु का हाथ हो सकता है। उसने उसके दिमाग पर कब्ज़ा कर रखा था। वो उससे जो चाहे करवा सकता था। शुबेंदु ही उसे बसरपुर लेकर आया था। यहाँ आकर उसने शांति कुटीर में ध्यान केंद्र स्थापित किया। सबसे कहा कि वह भवन दीपांकर दास के किसी रिश्तेदार का है जो उसकी मृत्यु के बाद उसे मिल गया है।
जब बसरपुर में सरकटी लाशें मिलने लगीं तो उसने उसे यकीन दिलाया कि उस पर शैतान सवार हो जाता है जो उससे यह करवा रहा है। वह और अधिक डर गया था और उसकी हर बात मानने लगा था। एसपी गुरुनूर कौर जब इस केस के लिए खासतौर पर बसरपुर भेजी गई तो शुबेंदु ने उससे कहा कि वह बस उसकी बात माने। बाकी सब वह संभाल लेगा।