Ek bund Ishq - 15 in Hindi Love Stories by Sujal B. Patel books and stories PDF | एक बूंद इश्क - 15

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एक बूंद इश्क - 15

१५.अतीत


दादाजी और रुद्र अपर्णा के बारे में बातें कर रहे थे। उसी वक्त घर के सभी लोग अपर्णा को घेरे बैठे थे। रणजीत जी कुछ परेशान से दरवाज़े की ओर देखे खड़े थे। उसी वक्त वहां एक औरत आई और उसने कहा, "क्या हम अंदर आ जाएं?"
औरत की आवाज़ सुनकर सब का ध्यान उस तरफ़ गया। कोई भी उन्हें नहीं जानता था। इसलिए सब हैरानी से उन्हें देख रहे थे। लेकिन जैसे ही अपर्णा और दादाजी का ध्यान उस औरत पर पड़ा। दोनों की सांसें ही रुक गई। उन्होंने एक-दूसरे को देखा। तभी रणजीत जी ने कहा, "आइए ना, मैं आपका ही इंतजार कर रहा था।"
रणजीत जी ने ऐसा कहा तो दादाजी को बड़ी हैरानी हुई। वह औरत अंदर आकर बैठ गई। घर के सभी लोग उनकी खातिरदारी में लग गए। अपर्णा सब से नजरें चुराकर ऊपर भाग गई। दादाजी ने रणजीत जी के पास आकर पूछा, "ये औरत यहां क्या कर रही है? तुमने इसे बुलाने से पहले मुझसे एक बार पूछना तक जरूरी नहीं समझा।"
"मुझे कहा पता था। अपर्णा को आप जानते होंगे। वह आपके दोस्त मोहन की पोती निकलेगी और वह आज यहां इस तरह आ जाएगी। वर्ना मैं आपसे पहले ही बात कर लेता। उसका इंटरव्यू भी रुद्र ने लिया था। इसलिए मुझे उसके बारे में कुछ पता नहीं था।" रणजीत जी ने शब्दों को जोड़ते हुए कहा। जैसे वह इसी बात को लेकर कुछ देर पहले परेशान हो रहे थे।
"लेकिन ये औरत कौन है? ये तो तुम जानते ही हो। तो फिर इसे यहां क्यूं बुलाया?" दादाजी ने गुस्सा होकर पूछा।
"ये हमारी कंपनी की नई इन्वेस्टर है। आप भी जानते है। इनका बिजनेस फिल्ड में बहुत बड़ा नाम है। ऐसे में ये खुद हमारी कंपनी में इन्वेस्ट करना चाहती थी। तो ऐसा मौका हम भला कैसे जाने दे सकते है?" रणजीत जी ने दादाजी को समझाते हुए कहा।
दादाजी रिश्तों को ध्यान में रखकर सोच रहे थे और रणजीत जी बिजनेसमैन होकर सोच रहे थे। ऐसे में उन्हें कुछ कहना दादाजी को ठीक नहीं लगा। दादाजी सब के बीच आ गए। उन्होंने अपर्णा को नहीं देखा तो रुद्र के पास आकर पूछा, "अपर्णा बिटिया कहा है?"
"मुझे नहीं पता। अभी तो यही थी।" रुद्र ने चारों ओर नजर दौड़ाते हुए कहा।
"दादाजी! कुछ देर पहले मैंने उन्हें ऊपर जाते हुए देखा था।" अचानक ही स्नेहा ने आकर कहा।
"रुद्र! तुम ऊपर जाकर उसे देखो। उसे अभी तुम्हारी जरूरत है।" दादाजी ने रुद्र के कंधे पर हाथ रखकर कहा। वह कुछ समझ नहीं पाया। फिर भी रूद्र एक बार अपने पापा की बात टाल सकता था। लेकिन उसने दादाजी का कहा कभी टाला नहीं था। इसलिए वह अपर्णा को ढूंढने ऊपर चला आया। उसने ऊपर के सभी कमरों में देखा। अपर्णा उसे कहीं नहीं मिली। आखिर में वह उसे ढूंढता हुआ अपने ही कमरे के पास चला आया। यहां आकर उसने देखा उसके कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद है। उसने दरवाजा खटखटाते हुए कहा, "अपर्णा! तुम अंदर हो क्या?"
रुद्र की आवाज़ से अंदर बैठी अपर्णा घबरा गई। वह कमरें के अंदर पड़े सोफे पर बैठी रो रही थी। जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो रुद्र ने फिर कहा, "अपर्णा! जवाब तो दो। अगर तुम अंदर हो तो प्लीज़ दरवाज़ा खोल दो।"
रुद्र कुछ देर के लिए कमरे के बाहर ही खड़ा रहा। कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला। रुद्र ने देखा तो अपर्णा उसके सामने खड़ी थी। उसकी आंखें लाल हो गई थी। जैसे वह अभी-अभी रोई हो। उसे ऐसे देखकर एक पल के लिए रुद्र के दिल में भी एक चुभन सी महसूस हुई। उसने कमरें के अंदर आकर अपर्णा को बेड पर बिठाया और उसे पानी दिया। लेकिन रूद्र की इस हरकत से अपर्णा फ़िर से रोने लगी।
"अरे यार! प्लीज़ चुप हो जाओ। मैंने कुछ किया क्या? तुम ऐसे यहां क्यूं चली आई और रो क्यूं रही हो? देखो, तुम ऐसे रोते हुए बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती। तुम तो...तुम तो वो नॉन स्टॉप बकैती करते हुए ही अच्छी लगती हो।" रुद्र ने अपर्णा को हंसाने के लिए उसे जो सही लगा वो सब कह दिया। लेकिन अपर्णा का रोना अभी भी चालु ही था। ये देखकर रुद्र को मामला थोड़ा गंभीर लगा। वह उसे समझाने और चुप कराने के लिए उसके पास बैठा और कहा, "कोई बात हो तो तुम मुझे बता सकती हो। लेकिन प्लीज़ ये रोना बंद करों। मुझे अच्छा नहीं लगता तुम्हें ऐसे रोते देखना।"
रुद्र से इतना सुनते ही अपर्णा अचानक से उसके सीने से लगकर रोने लगी। अपर्णा की ऐसी हरकत से कुछ देर के लिए रुद्र की आंखें बंद हो गई। अपर्णा को अपने इतना करीब पाकर उसकी कुछ समझ नहीं आया की वह क्या करे? कमरे का दरवाज़ा भी खुला था। अपर्णा बस रोएं जा रही थी। कुछ बता भी नहीं रही थी। ऐसे में रूद्र को बस एक ही रास्ता सुझा। वह प्यार से अपर्णा के सिर को सहलाकर उसे चुप कराने में लग गया। रुद्र के स्पर्श में अपर्णा ने इतने सालों बाद बेशुमार प्यार और परवाह महसूस की थी। जो आज़ तक उसे अपनी चाची के अलावा किसी से महसूस नहीं हुई थी। लेकिन कुछ ही पल में कुछ याद आते ही अपर्णा रुद्र से अलग हो गई। रुद्र को उसकी हरकत से थोड़ा असहज महसूस हुआ। वह उठकर खड़ा हो गया। फिर वापस से अपर्णा की ओर पानी का गिलास बढा दिया। इस बार अपर्णा ने उसमें से एक घूंट पानी पिया और कहा, "सॉरी! मैं बिना बताएं यहां आ गई।"
"इट्स ओके, लेकिन तुम ऐसे यहां क्यों आ गई? किसी ने कुछ कहा क्या?" रुद्र ने पूछा।
"नीचे जो औरत आई है। वो...वो मेरी मम्मी है।" अपर्णा ने धीरे-से कहा। एक बार फिर उसकी आंखें भर आई। रुद्र को भी सब सुनकर जैसे एक धक्का सा लगा। अभी कुछ देर पहले ही तो दादाजी ने रुद्र को अपर्णा के परिवार के बारे में और अपर्णा ने अपने मम्मी-पापा की वजह से क्या-क्या सहा है? उस बारे में बताया था। ऐसे में उसकी मम्मी आज़ के दिन यहां आ जाएगी। ये किसे पता था? इसलिए रूद्र को सच्चाई जानकर धक्का लगना स्वाभाविक था।


(क्रमशः)

_सुजल पटेल