Koun hai wo in Hindi Horror Stories by Saroj Verma books and stories PDF | कौन है वो..

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कौन है वो..

आज नरोत्तम मिश्र जी कई सालों बाद अपने परिवार के साथ अपने गाँव और अपने पैतृक मकान में अपने परिवार के साथ लौटें हैं,बहुत सालों पहले रिश्ते मेँ कहलाने वाले अपने ताऊ के साथ दुबाई चले गए थे,घर में केवल उनकी माँ और पत्नी थे,पिता बचपन में गुजर चुके थे इसलिए रूपयों की जरूरतों के हिसाब से एक एक करके सारी जायदाद बिक गई थी ,
पड़ोस के एक ताऊ जी दुबाई में रहकर ही कमाई करते थे,इसलिए उन्होंने नरोत्तम से भी दुबाई चलने को कहा,नरोत्तम ने ये बात अपनी अम्मा से कही लेकिन अम्मा नहीं मानी,पर बहुत समझाने पर बाद में अम्मा राजी हो गई,नरोत्तम की पत्नी भी नरोत्तम को बाहर भेजने को राजी ना थी,लेकिन बाद में वो भी राज़ी हो गई और फिर नरोत्तम ने दुबाई जाकर बहुत पैसा कमाया,अम्मा को भेजा,अम्मा भी बहुत खुश हुई, अम्मा तो अब रही नहीं वो उनका अन्तिम संस्कार भी नहीं कर पाएं थे क्योकिं समय से भारत ना पहुँच सकें थे,लेकिन अम्मा की तेहरवीं में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी,अम्मा के जाने के बाद फिर वें कभी भी गाँव नहीं लौटे और दुबई में ही अपने परिवार के साथ बस गए...
उस दिन मकान में पहुँचने के बाद उनकी पत्नी और दोनों बच्चे आते ही सभी लोंग साफ- सफाई में लग गए,बाहर से भी दो तीन नौकरों को इस काम के लिए बुलाया गया,घर का कुआँ शायद माँ ने लकड़ी के तख्तों से बंद करवा दिया था,अकेली रहती होगीं इसलिए कुएँ की जरूरत ना होगी,आँगन में हैंडपंप भी था ,सालों से चला नहीं था इसलिए खराब हो गया था नरोत्तम जी ने पहले उसे ठीक करवाया,
,उस दिन सफाई के बाद उनकी पत्नी और दोनों सहित उन्होंने रात का खाना खाया जो कि गाँव की पक्की सड़क पर स्थित ढ़ाबे से मँगवाया था और फिर सब अपने अपने कमरों में सोने चले गए,रात को अचानक नरोत्तम जी की आँख खुली उन्हें लगा कि कोई उनकी चारपाई के पास रो रहा है,उन्होंने अपनी पत्नी को जगाकर पूछा तो पत्नी गहरी नींद में थी और वो बोली ....
आपने कोई सपना देखा होगा,चुपचाप सो जाइए और मुझे भी सोने दीजिए लेकिन नरोत्तम जी का मन नहीं माना और उन्होंने अपने कमरें का बल्ब जलाकर देखा तो उन्हें वहाँ कोई नहीं दिखा,नरोत्तम जी अपने बिस्तर पर आर सो गए,कुछ देर बाद उन्हें फिर से रोने की आवाज आई,वे फिर उठे तो देखा वहाँ कोई नहीं था,अब वो आँगन में आ गए,कुछ देर वहीं पड़ी लकड़ी की पुरानी कुर्सी पर बैठें रह़े लेकिन उनके सामने जो कुर्सी पड़ी थी अचानक वो खुदबखुद खिसककर उनके पास आ गई।।
नरोत्तम जी डर गए उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि कौन है वो? फिर दीवार पर उन्हें एक छाया सी दिखी,जोकि अम्मा के कमरें की ओर जा रही थी,वो उसके पीछे पीछे अम्मा के कमरें में चले गए और कमरें का बल्ब जलाकर देखा तो अम्मा का सन्दूक खुला पड़ा था,उन्होंने संदूक के पास जाकर देखा तो एक तस्वीर उसमें पड़ी थी जिसे देखकर वें परेशान हो उठे और साथ में बहुत सी चिट्ठियाँ भी उसमें पड़ीं थीं,उन्होंनें एक एक करके वो चिट्ठियांँ खोलकर पड़ी तो उनकी आँखों से आँसू बह निकले।
वो तस्वीर किरन की थी और वें चिट्ठियांँ तो उसे किरन ने लिखीं थीं जब वो दुबई में था लेकिन किरन की चिट्ठियांँ अम्मा के संदूक में कैसें पहुँचीं?इसका मतलब है कि अम्मा ने ये चिट्ठियांँ मुझ तक पहुँचने नहीं दी और जो चिट्ठियांँ अम्मा मुझे लिखती थीं उसमें उन्होंने किरन को बदचलन और आवारा कहा था, मतलब किरन ऐसी नहीं थीं,वो घर से नहीं भागी थी किसी के साथ,वो सब झूठ था और अगर किरन घर से नहीं भागी तो आखिर वो कहाँ गई?
और यही सोचकर वो रोने लगे फिर उन्होंने अम्मा के कमरें का बल्ब बंद किया और फिर से आँगन में आकर कुर्सी पर बैठ गए ,आँगन में काफी अँन्धेरा था,तभी उनके बगल वाली कुर्सी में एक साया आकर बैठ गया,उसे देखते ही नरोत्तम जी डर गए और उससे पूछा....
कौन हो तुम?
नहीं पहचाना! मैं किरन ! वो साया बोला।।
लेकिन तुम यहाँ कैसें? अम्मा ने तो कहा था कि तुम घर से भाग गई थी किसी के साथ,तभी तो दुबई में मैने किसी और से शादी कर ली और वहीं बस गया,नरोत्तम जी बोले।।
फिर किरन का साया बोला....
आपसे फेरे लेने के बाद,भला किसके साथ भागती मैं,आप मेरे पति थे और मैं आपसे बहुत प्यार करती थी,आपके यहाँ से जाने के बाद अम्मा मुझ पर बहुत जुल्म करती थी,उन्हें तो मैं पहले से ही पसंद नहीं थी क्योकिं आपने मुझसे प्रेमविवाह किया था इसलिए,वो तो हमेशा मुझे मारती पीटतीं रहतीं थीं ,मैं आपको चिट्ठियांँ लिखतीं थीं और उनसे डाकघर में डालने को कहती थी लेकिन शायद उन्होंने कभी भी कोई चिट्ठी नहीं डाली और आपके आपके जाने के दो महीने बाद मुझे पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ,तब मुझसे और भी भारी भारी काम करवाने लगीं थीं वों,
एक दिन मैं बहुत बीमार थी और मैनें कोई काम नहीं किया तब अम्मा ने उस दिन मेरे सिर पर लोहें की कढ़ाई फेंककर मारी,मेरा सिर फट गया खून बहने लगा लेकिन अम्मा ने कुछ नही किया मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया,दो चार घंटे बाद खून बहने से मेरे प्राण निकल गए और फिर अम्मा ने मुझे कुएंँ में फेंक दिया,घर में लकड़ी के कुछ तख्ते पड़े थे तो उनसे खुद ही कुएँ को ढ़क दिया और पड़ोसियों से कह दिया कि बहु रात से गायब है अपने आशिक के साथ भाग गई है और खुद दो तीन महीनों के लिए अपने भाई के घर चलीं गई,जब वें लौंटीं तो मैनें भी उन्हें नहीं छोड़ा,मेरी आत्मा ने उनसे अपना बदला ले लिया,
लेकिन उनका तो अन्तिम संस्कार हुआ था इसलिए उनकी आत्मा को मुक्ति मिल गई लेकिन मुझे अभी तक मुक्ति नहीं मिली है और अगर आप कुएंँ से मेरा कंकाल निकलवाकर उसका अन्तिम संस्कार करवा देगें तो शायद मुझे मुक्ति मिल जाएं और इतना कहकर किरन का साया गायब हो गया।।
अब नरोत्तमजी सब समझ चुके थे कि कौन है वो? और अपनी अम्मा के प्रति उनका मन घृणा से भर गया।।
और दीवाली के बाद उन्होंने कुएंँ से लोगों की मदद से किरन का कंकाल निकलवाकर उसका अन्तिम संस्कार करवाया और अपने परिवार से भी किरन के बारें में सबकुछ बता दिया,फिर नरोत्तम जी को किरन का साया कभी भी उस घर में नहीं दिखा।।

समाप्त.....
सरोज वर्मा.....