Motorni ka Buddhu - 19 in Hindi Fiction Stories by सीमा बी. books and stories PDF | मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-19)

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मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-19)

मॉटरनी का बुद्धु---(भाग-19)

भूपेंद्र जी संध्या को सीने से लगाए गाना सुनाते सुनाते कब सो गए, उन्हें खुद ही पता नहीं चला। जब अलार्म बजा तब जा कर नींद खुली तो देखा संध्या वैसे ही लेटी उनकी तरफ एकटक देख रही थी। रात जितनी अच्छी और गहरी नींद भूपेंद्र जी को मुद्दतों बाद आयी थी। संध्या को अपनी तरफ अपलक देखते ही भूपेंद्र जी किसी अनहोनी होने के अंदेशे से घबरा गए, उनका हाथ तुरंत संध्या के माथे पर चला गया तो संध्या ने पलके झपकायीं तो उनकी साँस में साँस आयी वो भी क्या करें, इतना कुछ इस बीमारी के लिए पढ़ चुके हैं कि हर वक्त बस वो घबराए से रहते हैं। " संधु गुड मार्निंग", कह कर उसके माथे पर किस कर दिया। उसके सिर के नीचे तकिया रख कर बेड से उठ गए। "संधु मैं फ्रेश हो कर आता हूँ, फिर तुम फ्रेश हो जाना पार्क भी जाना है न", कह कर वो बाथरूम में चले गए। संध्या के मन में उथल पुथल चल रही थी, वो अपने कमरे की एक एक चीज बहुत ध्यान से देख रही थी। वही जाना पहचाना कमरा सारी चीजें वैसे ही रखी हुई थीं....जैसे उसके साथ वक्त भी रूक गया था !! फ्रेश हो कर भूपेंद्र जी आए और संध्या के लिए गीला टॉवल भी ले आए। मुँह को गीले टॉवल से साफ करके उसके हाथों को साफ कर दिया तब तक संभव और सभ्यता भी आ गए। दोनो एक साथ बोले," गुड मार्निंग मॉम, पापा"! हल्की सी मुस्कान थी संध्या के चेहरे और आँखों में......" मॉटर जी आज मॉटरनी जी को आप पार्क नहीं ले जाओगे न आप जाओगे, आज हम चारों बाहर बैठ कर चाय पिएँगे और बातें करेंगे", सभ्यता ने कहा तो संभव ने भी," हाँ ठीक कहा छुटकी ने फिर मुझे परसो जाना भी है तो मजे करते हैं", कहा तो भूपेंद्र जी को उनकी बात माननी ही थी। " अच्छा ठीक है, चलो फिर मॉटरनी को चेयर पर तो बिठाओ", भूपेंद्र जी ने चेयर को पकड़ सीधा करते हुए कहा। संध्या के सामने तीनों इस बात का खास ध्यान रख रहे थे कि कुछ भी ऐसा न बोल दें जो उसे परेशान कर दे..... संध्या तीनो को बाते करते देख सहज हो रही थी, वो अपने हाथों की उँगुलियाँ हिला रही थी, धीरे धीरे वो अपनी पकड़ कुर्सी के हाथों पर बना रही थी। तीनो देख रहे थे पर वो अनदेखा कर रहे थे क्योंकि जैसा डॉ. ने कहा कि न तो उससे कुछ ज्यादा पूछो न ही बताओ....। सभ्यता ने माँ को अपने हाथ से चाय पिलायी। वो धीरे धीरे ऐसे पी रही थी, मानों वो भूल गयी है कि इसको कैसे पीना है। इतने सालों से नलियों से खाना अंदर जाता रहा है तो शायद ऐसा होना स्वाभाविक होता हो, भूपेंद्र जी उसे चुपचाप देख रहे थे। पहले संध्या बच्चों को खिलाती पिलाती थी अब माँ के रोल में बेटी आ गयी है और बेटी माँ बन कर सब काम कर रही है। घर के चारों तरफ हरियाली और ज्यादा हो गयी है, गमलों में फूल खिले हैं और सदाबहार में बहुत सारे फूल लगे होंगे तभी घास पर चाँदनी सी बिखरी है, संध्या का ध्यान अपने चारों तरफ बार बार जा रहा है। संभव अपने फोन से फोटो खींच रहा है....! जब नर्स सुनीता अपने टाइम पर आयी तो वो संध्या को देख कर हैरान हो गयी। "मैडम आप ठीक हैं, ये चमत्कार कब हुआ सर"? संध्या ने उसे देखा और फिर भूपेंद्र जी की तरफ देखने लगी।" संधु ये नर्स हैं सुनीता जो मेरे स्कूल जाने के बाद तुम्हारा ध्यान रखती थी क्योंकि हमारी छुटकी के पेपर थे न "! सुनीता के मन में बहुत सारे सवाल थे पर सभ्यता ने उसे चुप रहने का इशारा करते हुए कहा," सुनीता दीदी बाकी बातें बाद में करते हैं, पहले माँ के नहाने की तैयारी करते हैं"। संध्या को अंदर ला कर उसे बेड पर लिटाने लगे तो उसने "ना" में गर्दन हिला दी! तुम्हें अभी नहीं लेटना? "ठीक है मत लेटो चलो टी वी देखते हैं, जब तक नाश्ता नहीं बन जाता"! नर्स चुपचाप उनके पीछे हॉल में चली गयी तो सभ्यता ने उसे किचन में बुला लिया और सब बता दिया और माँ के सामने एक्सीडेंट से रिलेटिड कोई बात करने से मना कर दिया। भूपेंद्र जी ने अपने स्मार्ट टी वी पर यूट्यूब चला कर उसकी पसंद का गाना चला दिया, "खोया खोया चाँद खुला आसमान", गाना सुनते सुनते संध्या के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गयी। एक के बाद एक अपनी पसंद के गाने सुनते हुए संध्या की हँसी वापिस आ रही थी जो भूपेंद्र जी की धड़कने बढ़ाने के लिए काफी थीं। ये तो कहने की बात ही नहीं कि इस वक्त वो अपनी मॉटरनी के चेहरे में खोए हुए थे। डॉ. साहब के जूनियर के आने से टी वी बंद करना पड़ा। "संधु ये डॉ. साहब हैं, तुमसे मिलने आए हैं", कह कर भूपेंद्र जी ने उन्हें बैठने का इशारा किया। डॉ. ने बी.पी वगैरह चेक किया सब ठीक था। सब कुछ नार्मल ही लग रहा था। हार्टबीट भी ठीक थी, पर डॉ. ने बात करने की कोशिश की पर उसने जवाब नहीं दिया। मैम आप अपना राइट हैंड आगे कीजिए, संध्या ने चुपचाप अपना हाथ आगे कर दिया। उसके बाद डॉक्टर को जो जरूरी सवाल लगे पूछे और संध्या ने बोल कर तो नहीं पर रिस्पांस इशारे से दिया, इस बात की डॉ. को तसल्ली हुई कि ब्रेन कमांडस ले और दे रहा है, पर बोलना क्यों नहीं चाह रहीं ये किसी को समझ नहीं आ रहा था क्योंकि वो चीखी और बच्चों के नाम लिए थे तो इसका मतलब साफ था कि संध्या की आवाज थी। डॉ. ने अपने सीनियर से बात की और बताया कि," देखने में सब ठीक है, पर सर कह रहे हैं कि एक बार इनके कुछ टेस्ट करवा लेते हैं, आप इन्हेॆ हॉस्पिटल ले आइए 2 बजे तक मैं वहीं हूँ, जल्दी हो जाँएगे और रिपोर्टस भी मैं या सर देख कर बता देंगे"। "ठीक है डॉक्टर, जैसा आप कहें", भूपेंद्र जी ने कहा। सभ्यता ने माँ के लिए दलिया बना लिया था और बाकी सबने ब्रेड बटर ही खा लिया। नर्स धीरे धीरे उसे दलिया खिलाने लगी, वो चुपचाप खा रही थी पर कुछ चम्मच खा कर मुँह फेर लिया। "मॉटरनी तुम भी न बच्ची बन जाती हो छोटी से भी छोटी, इतना कम खाने से कैसे काम चलेगा ? चल ये ले ब्रेड बटर खा ले थोड़ा सा, भूपेंद्र जी ने उसे मुँह फेरते देखा तो उसके मुँह में छोटा सा टुकड़ा ब्रेड का डाल दिया पर इस बार उसने बहुत बुरा सा मुँह बनाया और भूपेंद्र जी की तरफ देखा तो जैसे उन्हें कुछ याद आया, " अरे माफ कर दे संधु भूल गया था, अभी रूक मैं आया", कह वो किचन से चीनी ले आए। ब्रेड पर बटर लगा कर उसमें थोडी़ चीनी डाल कर उसे खिलायी तो उसने खा ली।संभव और सभ्यता अपनी माँ की हरकत पर मुस्कुरा दिए। नर्स सुनीता भी मुस्कुराए बिना नहीं रह पायी। फिजियोथेरेपिस्ट के आने का टाइम हो गया था। संध्या को दवाई खिला कर नर्स ने उसे बेड पर लिटा दिया और कहा," आप थोड़ा रेस्ट कर लीजिए, आप अभी कमजोर हैं थक जाएँगी। सचमुच वो थकाम महसूस कर रही थी ,तभी वो चुपचाप लेट गयी। संभव ने फिजियोथैरेपिस्ट को फोन करके पहले ही संध्या की हालत के बारे में बता दिया और कोई भी सवाल पूछे बिना उनको एक्सरसाइज करवाएँ। जैसा उसने कहा उसने ठीक वैसा ही किया! उसने आते ही संध्या के नमस्ते की और अपना काम करना शुरू कर दिया। वो जैसे जैसे कह रहा था संध्या उसकी बात मान रही थी बिना बोले, हाथ हिलाना, कलाई घुमाना जैसे वो कर रहा था, उसे देख देख कर धीरे धीरे कर रही थी। पैरो के पंजों मों भी मूवमेंट हो रही थी। नर्स की मदद से उसने संध्या को खड़ा करने की कोशिश की तो वो खड़ी नहीं रह पायी कुछ सैकिंड भी तो उसने बिना देर किए संध्या को लिटा दिया। वो जब बाहर आए तो भूपेंद्र जी उसके पीछे आ गए," क्या कहते हैं आप? ये जल्दी चलने तो लगेगी न"?" सर आप चिंता मत कीजिए इन्हें कमजोरी है, वरना ये अभी खड़ी हो जातीं, कुछ दिन लगेंगे सही डाइट लेगीं तो पहले जैसे भागने लगेगीं", फिजियोथैरिपिस्ट की बात सुन कर भूपेंद्र जी ने उसे थैंक्यू कहा और पहुँच गए अपनी मॉटरनी के पास...जहाँ दोनो बच्चों ने पहले से ही कब्जा जमा कर रखा था। संभव अपने फोन पर कुछ दिखा रही थी और सभ्यता का ध्यान मॉम पर था। संध्या कभी खुश दिख रही थी तो कभी एकदम उदास हो रही थी, ऐसा होना नार्मल ही तो था...कितने साल बीत गए थे और इन सालों में न जाने इसके परिवार ने क्या क्या सहा होगा यही सोच कर उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे, फिर एकदम उसकी आँखो में आँसू आ गए। भूपेंद्र जी उसके आँसू देख कर तड़प उठे, " ओ पगलिया तू रो मत, सब ठीक है", बच्चे माँ के गले लग गए और भूपेंद्र जी ने उसके आँसू पौंछ दिए और संध्या ने भूपेंद्र जी का हाथ पकड़ लिया और धीरे से बोली," बुद्धु", जिसे सुन बच्चे मुस्कुरा दिए और भूपेंद्र जी ने अपनी गीली आँखो को साफ करते हुए कहा, "किसका बुद्धु"? संध्या की आँखे भी मुस्कुरा दी और होंठ भी। बच्चों ने मॉम पापा की प्राइवेसी का लिहाज करते हुए बाहर जाना ही ठीक समझा। लंच करके संभव और भूपेंद्र जी संध्या के टेस्टस करवाने हॉस्पिटल चले गए। वहां उनके सब जरूरी टेस्ट हो गए। बेशक डॉ. ने उनके टेस्ट पहले करवा दिए पर जो टाइम लगना था वो तो लगा ही। 4-5घंटे लग गए डॉ. से रिपोर्टस के बारे में डिस्कस कर के ही वापिस आए। संध्या के डॉ. ने बताया कि रिपोर्टस नार्मल हैं, घबराने की कोई बात नहीं है। वो शॉक की वजह से चुप हैं, धीरे धीरे बातें करने लगेगीं। भूपेंद्र जी को फिर भी पूरी तसल्ली नहीं हो रही थी उन्होंने उऎश शमय उस हॉस्पिटल में आर्थोपेडिक थे, उन्हें भी संध्या को दिखाया तो उन्होंने भी यही कहा कि, "काफी सालों तक बेड में रही हैं पर उस हिसाब से इन्हें उतनी Stiffness नहीं है नसो में जितनी हो सकती थी। आप चिंता मत करें जल्दी ही चलने फिरने भी लगेंगी, फिर भी आप विटामिन डी का टेस्ट करवा लो"। भूपेंद्र जी कार में पिछली सीट पर संध्या का हाथ पकड़े बैठे थे, संभव उन दोनो को सामने लगे शीशे में देख कर सोच रहा था," पापा बेस्ट पापा हैं दुनिया के, शायद तभी मॉम अपनी Luxurious life को छोड़ कर गाँव में रह पायीं"! तीनों कार में चुपचाप बैठे थे, पर मन ही मन आपस में बातें भी कर रहे थे।
क्रमश: