मॉटरनी का बुद्धु---(भाग-18)
संभव हर वीकैंड पर आ रहा था। सभ्यता के पेपर भी शुरू हो गए थे। डॉ. ने फिजियोथेरेपिस्ट को समझा कर भेज दिया था तो रोज संध्या का सैशन हो रहा था। नर्स सुनिता की देखरेख में हो रहा था तो भूपेंद्र जी स्कूल में थोड़े रिलैक्स रहते। गर्मियों की छुट्टियाँ नजदीक थी ...... पूरा एक महीना चलते रहे सभ्यता के पेपर इस दौरान संभव नहीं आया क्योंकि वो सभ्यता को डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था पर फोन पर बातों का सिलिसला चल रहा था। संभव धीरे धीरे ऑफिस के माहौल में एडजस्ट हो रहा था, पर इसका मतलब ये भी नहीं था कि उसे घर की चिंता नहीं थी। अकेला तो वो MBA करते हुए भी रहा था, पर मॉम के सपने को पूरा करने का जुनून जो था तो बस पढता रहता। अब ऑफिस से आकर दोनो दोस्त मिलजुल कर बना कर खा लेते। आखिर सभ्यता के पेपर खत्म हो ही गए और भूपेंद्र जी की भी छुट्टियाँ हो गयीं। संभव को ऑफिस में बहुत काम था तो 3 महीने तक वीकैंड पर नहीं आ पाया। भूपेंद्र जी ने कुछ दिन के लिए सभ्यता को दिल्ली भेजना चाहा पर उसने मना कर दिया बोली,"मॉटर जी हम मॉम के ठीक होने के बाद जाँएगे वैसे भी भाई तो बिजी ही रहेंगे तो वहाँ जा कर क्या करूँगी"? भूपेंद्र जी चुप हो गए। अब सारा दिन सभ्यता और भूपेंद्र जी संध्या के साथ बिताते। उसे कुछ देर हॉल में बिठाते और टी वी चला देते। सुबह टहलने के बाद कुछ देर घर के पेड पौधो के पास चाइम बिता लिया करते!! बहुत दिनो के बाद एक दिन अचानक संभव एक हफ्ते की छुट्टी ले कर घर आ गया। ये सरप्राइज सबको खुश कर गया। सारा दिन चारों बैठे कभी पुरानी बातें याद करके खुश होते...चारों इसलिए क्योंकि संध्या भी तो सुनती सब थी, ये बात अलग थी कि उसका खुश होना पता नहीं चलता था। बस एक शाम सभ्यता ने बाहर जाने का प्रोग्राम बनाया। "बच्चो तुम दोनो बाहर घूम आओ मैं और तुम्हारी माँ घर पर ही ठीक हैं, भूपेंद्र जी ने कहा तो संभव बोला," पापा सब चलेंगे मॉम भी साथ जाएँगी आप चलो न बस एक चक्कर काट कर आ जाँएगें"। "ठीक है चलो और कुछ घर का सामान भी लाना है वो भी ले आएँगे", संभव की बात तो वो न टालते हुए बोले। चारो चल दिए। संभव कार चला रहा था और सभ्यता आगे बैठी थी। पिछली सीट पर भूपेंद्र जी संध्या को संभाल कर बैठे थे। बच्चों ने आइसक्रीम खायी और वापिसी आते हुए रात का खाना पैक करवा लिया। कार जैसे ही उनके परमानेंट राशन वाली दुकान के पास पहुँची तो भूपेंद्र ने उसे कार रोकने को कहा। संभव कार से उतर कर सामान लेने निकलने लगा तो भूपेंद्र जी ने उसे रोक दिया और खुद उतर गए। संभव पीछे अपनी मॉम के पास आकर बैठ गया। भूपेंद्र जी दुकान से सामान ले रहे थे। तभी अचानक टायरो के घसीटने की जोरदार आवाज आयी जैसे बहुत मुश्किल से ब्रेक लगा और फिर 2-3 बार कुछ टकराने की आवाज आयी.....भूपेंद्र जी घबरा गए, पर अपनी कार को सलामत देख उन्हें चैन तो मिला पर झट से नजरे उधर चली गयीं जहाँ भीड़ इकट्ठा थी सडक के उस पार, वो कुछ सोचते कि संभव के चीखने की आवाज सुन वो कुछ समझ न सके और तुरंत कार के पास पहुँचे.....कार का शीशा नीचे था, संभव और सभ्यता मॉम मॉम चिल्ला रहे थे। भूपेंद्र ने गाड़ी का दरवाजा जल्दी से खोला और देखा तो एक पल को जैसे वो साँस लेना भूल गए," संधु, ओ संधु", कार के आस पास कुछ लोग इकट्ठा होने लगे। भूपेंद्र जी को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें? भीड़ देख पुलिस वाला आया और बोला," क्या हुआ? सब ठीक है न? भीड़ काहे किए हो"? पुलिस वाले की आवाज सुन सबको होश आया। "कार में संध्या जिसे संभव ने पकड़ रखा था कुछ देर पहले वो लेटी थी, उसकी आँखे खुली थी और भूपेंद्र जी उसको बुत बने निहार रहे थे"। राशन वाले का नौकर इनका सामान लिए खड़ा था। भूपेंद्र जी ने डिक्की में सामान रखवाया और कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गए। "पापा सामने वाली सड़क पर एक कार ने अचानक ब्रेक लगायी शायद वो किसी औरत के अचानक सामने आ जाने से रूका था, फिर उसके पीछे की गाड़ियाँ अचानक रूकने से वो भिड़ गयी हैं, गनीमत है चोट नहीं लगी और वो औरत बच गयी, पापा जब जोर की आवाज आई तो मॉम 'नही' कह कर चीखी थी और आपको और हम दोनो के नाम लेने लगी, भाई खुशी के मारे इतनी जोर से चिल्ला दिए कि समझ ही नहीं आया", सभ्यता खुशी के मारे रोए जा रही थी और बोलती जा रही थी। पीछे संध्या डरी हुई कस कर संभव को पकड़ कर लेटी थी। भूपेंद्र जी ने तुरंत कार को संध्या के डॉक्टर के प्राइवेट क्लिनिक की तरफ घूमा दी। कुछ ही देर में डॉ. के सामने बैठे थे और संभव ने पूरी बात उन्हें बता दी। पहले से बैठे पैशेंटस को डॉ. ने 10 मिनट वेट करने के लिए कहा। संध्या को चेक कर रहे थे। उसकी आँखे खुली थी, पर डर उसके चेहरे पर तब भी था। मिसेज सिंह बिल्कुल ठीक हैं, पर अभी आराम की जरूरत है, ये शॉक्ड हैं शायद आज के इंसीडेंट ने इन्हें एक्सीडेंट की याद दिला दी है। आप इन्हें घर ले जाएँ, कोई परेशानी हो तो फोन कर दिजिएगा। बाकी कल मैं डॉ को सुबह भेज दूँगा इनका चेकअप करने के लिए। भूपेंद्र जी को तो लगा था कि कहीं डॉ. संध्या को एडमिट करने को न कह दे पर जब डॉ. ने कहा कि," घबराने की बात नहीं है बस जो दवा लिख रहा हूँ वो दे दिजिएगा और इन्हें आराम करने दिजिएगा। इनसे ज्यादा बात ना करें तो अच्छा होगा"। सब वापिस घर आ गए। संध्या चुपचाप पिछली सीट पर भूपेंद्र जी के कंधे पर सिर टिका लेटी थी और भूपेंद्र जी एकटक उसको देखे जा रही थी। संध्या की आँखे खुली थीं। घर पहुँचने तक संध्या शायद थकान की वजह से सो गयी थी बहुत सालो बाद वो इतनी देर कार में बैठी थी, ऊपर से कमजोरी। सभ्यता और संभव ने व्हील चेयर बाहर निकाल कर संध्या को बिठा दिया। भूपेंद्र जी तो उसकी बंद आँखे देख कर घबरा रहे थे, पर अपना डर छिपा कर वो संध्या की बेल्ट लगाने लगे तो उसने आँखे खोल ली। भूपेंद्र जी की जान में जान आ गयी। वो उसे सीधा कमरे में ले गए। सभ्यता ने संध्या के हाथ पैर साफ करके उसके कपड़े बदल दिए। संध्या उठने की कोशिश कर रही थी पर सभ्यता ने उसे रोक दिया," मॉम आप अभी लेटे रहो। कुछ दिन आराम करो फिर हम सब मिल कर खूब मजे करेंगे", सभ्यता ने माँ की हथेलियों को अपनी हथेलियों से सहलाते हुए कहा तो संध्या ने भी हिलने की कोशिश नहीं की। संध्या चुपचाप सभ्यता को देख रही थी तभी संभव भी अंदर आ गया और संध्या के पैरो की तरफ बैठ गया। "मॉम हम सब को पता था कि आप ठीक हो जाओगी, देखो मॉम छुटकी कितनी बड़ी हो गयी है न"? संभव ने कहा ! संध्या का ध्यान अपने दोनो बच्चों पर था। वो बस उन्हें अपलक निहारे जा रही थी। भूपेंद्र जी अपनी स्टडी टेबल के पास कुर्सी पर बैठे बच्चों और संध्या की तरफ देख रहे थे। भगवान ने उनकी सुन ली और वो दिन भी दिखा दिया जिसका इंतजार सालों से उठते बैठते, जागते और सोते कर रहे थे। संध्या को सब याद था पर वो कुछ बोल नहीं रही थी, बस बच्चों को देख कर उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। संभव ने जल्दी से अपनी माँ के आँसू पौछ दिए और संध्या के पैर दबाने लगा। " बच्चों चलो पहले खाना लगा लो, भूख लगी है अब तुम्हारी माँ यहीं हैै बाद में बातें कर लेना"। बच्चे बाहर चले गए और कमरे में रह गए भूपेंद्र और संध्या। भूपेंद्र ने संध्या के पैरो को चादर से ढक दिए और उसका माथा सहलाने लगे,"अब कैसी है मेरी मॉटरनी"? संध्या के चेहरे पर कई भाव एक साथ आ गए! " संधु कुछ दिन की बात और है, फिर देख सारे काम खुद करोगी, बस अब तुम खूब आराम करो और खाओ पीओ, बहुत दिन से लिक्विड खा खा कर तू बोर हो गयी है न ? आज तू दूध पी ले, फिर कल से सब खाना "! संध्या ने पलके झपका कर अपनी सहमति दी तो भूपेंद्र जी खुश हो गए। "पापा आप खाना खा लो फिर मॉम के लिए दूध लाती हूँ", सभ्यता खाने की प्लेट ले आयी थी और पानी लिए पीछे संभव आ गया। भूपेंद्र खाना खाते हुए संध्या से धीरे धीरे बातें करते रहे और संध्या आज आँखे खोल कर उन्हें सुन रही थी। खाना खा कर संध्या को दूध पिला कर सभ्यता और संभव गुडनाइट बोल कर अपने कमरे में चले गए। भूपेंद्र जी ने संध्या का डायपर चेंज करना चाहा तो संध्या की आँखो में आँसू आ गए। उसकी आँथो में आँसू देख कर भूपेंद्र जी तड़प उठे," पगलिया ये तो कुछ दिन की बात है न, रोते नहीं है कह तर डायपर बदल कर उसके पैरो पर चादर डाल दी। संध्या को यही आदत तो थी, चादर से सिर्फ अपने पैर ढका करती थी। भूपेंद्र जी आज अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रहे थे, अपने हाथ को सीधा रख कर संध्या का सिर अपनी बाजू पर रख लिया और उसे सीने से लगा लिया। "संधु बहुत अकेला हो गया था तेरे बिना, पर अब तू ठीक हो गयी है न तो लग रहा है मेरी साँसे फिर से चलने लगी हैं, तुम्हें बहुत तकलीफ हुई है न बस अब और कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा बस यूँ हमेशा साथ रहना"! बहुत दिनो के बाद संध्या और वो एक दूसरे की आँखो में ही एकटक देख रहे थे और भूपेंद्र जी उसे गाना सुनाने लगे,
" तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है,अँधेरों से मिल रही रोशनी है।
कुछ नहीं तो कोई गम नही है,
हर एक बेबसी बन गयी चाँदनी है।
क्रमश: