मॉटरनी का बुद्धु---(भाग-17)
संध्या के साथ घूम कर भूपेंद्र जी खुश थे और फ्रेश भी फील कर रहे थे। संभव पापा को खुश देख कर खुश था। संडे था तो भूपेंद्र जी घर पर ही थे, फिर उनके दोनो भाई भी परिवार के साथ आ रहे थे। सभ्यता ने काकी को सब बता दिया था। काकी अपने साथ अपनी बेटी को भी ले आयी थी। दोनो ने मिल कर रसोई संभाल ली। बीच में भूपेंद्र जी ने उसे घर पर पढने के लिए भेज दिया। कढाही पनीर भी बनना था तो वो काकी नहीं बना सकती थी सो भूपेंद्र जी ने कहा कि वो बना लेंगे। पास्ता और पिज्जा का सब सामान वो ले ही आए थे। संध्या ये सब बनाती रहती थी और भूपेंद्र जी उसकी मदद करने आते तो संध्या उन्हें झट से काम बता देती। भूपेंद्र जी संध्या के होते हुए भी रात के खाने की पूरी तैयारी वो कराते और सुबह सुबह कई बार सब्जियाँ भी काट देते तो संध्या खुश हो जाती। संध्या ने ही भूपेंद्र जी को कढाही पनीर बनाना सिखाया था और उसके बाद उन्होंने संध्या के सामने कई बार बनाया भी और मजाक में कहते," संधु तू बहुत अच्छी टीचर बन सकती थी, बहुत बढिया तरीका है तेरा सिखाने का", वो झट से कहती, "हाँ मॉटर जी तुम्हारी संधु को बुद्धु को पढाने की प्रैक्टिस जो हो गयी है और बस हा हा हा करके हँस देती"। बस ऐसे ही हँसते खेलते भूपेंद्र को उसने सब कुछ बनाना सीखा ही दिया था। नाश्ता करके संभव को भूपेंद्र जी ने पिज्जा और पास्ता के लिए सब्जियाँ काटने को कहा और काकी से मॉजरीला चीज कद्दूकस करवा लिया। कढाही पनीर के लिए शिमला मिर्च, प्याज वगैरह खुद ही काट लिए थे। लीला उन्हे काम करते देख रही थी और हप सामान पकड़ाती जा रही थी। कढाही पनीर बना कर बाहर आ गए और उबले राजमा को तड़का लीला काकी ने लगा दिया। साथ में दही बड़े बनाने की तैयारी हो रही थी। फोन किया तो वो लोग रास्ते में थे। भूपेंद्र जी कमरे में चले गए। नर्स और सभ्यता ने मिल कर संध्या के नहला दिया था और उसे सलवार सूट पहना दिया था। नर्स ने दवाइयाँ ड्रिप से दे दी और वो अपने साथ लायी मैग्जीन पढने बैठ गयी और करती भी क्या....यही रूटीन था उसका। वैसे तो ज्यादातर संडे को भूपेंद्र जी उसे आने को मना कर देते थे क्योंकि वो घर पर होते थे पर आज घर में सब आने वाले थे तो उन्हें आने को कह दिया। नर्स को मैगजीन पढते देख भूपेंद्र जी ने कहा," मैं थोड़ी देर आराम करने का सोच रहा हूँ, आप बाहर हॉल में टीवी देख लीजिए" वो भी मुस्कुराते हुए चली गयी। बेड पर लेटे तो संध्या की तरफ देख कर मुस्कुरा दिए," आज कैसा लगा इतने दिनो बाद बाहर जा कर? पार्क पहले से ज्यादा अच्छा और साफ हो गया है न संधु"? उसके बालों औ माथे को सहलाते हुए उनकी आँख लग गयी। बच्चों के शोर ने उन्हें उठा दिया। वो उठ कर बाहर चले आए तो देखा सब आ गए हैं..... नर्स मेहमानों को देख अंदर चली गयी। सबसे बड़ा सरप्राइज तो संभव और सभ्यता के लिए ये था कि दोनो बुआ भी आयी हैं। भूपेंद्र जी ने ही दोनो बहनो को फोन करके बुला लिया था। बुआ के बच्चे नहीं आए थे। बस बुआ और फूफा ही आए थे। पूरा घर कुछ ही मिनटो में खुशी और कहकहो से चहकने लगा। पहले सब बच्चे अपनी ताई जी से मिलने गए। फिर बड़े भी बारी बारी देखने गए। भूपेंद्र जी संध्या को सब बताते जा रहे थे कि कौन कौन आया है ? कौन उसके पैर छू रहा है और सबको संध्या की तरफ से आशीर्वाद भी दे रहे थे। भाई को ऐसे खुशी खुशी संध्या से बातें करते देख सबकी आँखे भर आयीं। उनका भाई नहीं बदला, रत्तीभर भी नहीं। सब बाहर आ गए। सब घर से नाश्ता करके आए थे तो पहले सबको चाय पिलायी फिर सभ्यता और छोटी बुआ दोनो पिज्जा और पास्ता बनाने चली गयी। पास्ता उबला रखा था बस उसमें सब्जियों और बाकी चीज वगैरह मिलाना था। उधर काकी ने भी चावल चढा दिए। एक चाची सलाद काटने लग गयी तो दूसरी टेबल लगाने चल दी। बड़ी बहन और दोनो भाइयों के साथ भूपेंद्र जी बातों में लग गए। संभव और छोटे बहन भाई खेल कूद और पढाई की बातों में बिजी थे। पहले सबको पास्ता खिलाया और फिर एक एक करके पिज्जा भी बन कर आने लगे। बच्चो को पसंद का खाना मिल गया और साथ में कोल्डड्रिंक्स भी तो बस बातों को ब्रेक लगा कर सब खा रहे थे और टी वी देख रहे थे। बड़ों को भी टेस्ट करवाया गया, सब सभ्यता की तारीफ कर रहे थे तो भूपेंद्र जी खुश हो रहे थे। भूपेंद्र जी ने जब बताया कि संध्या पहले से ठीक है तो खुश होने की एक और वजह मिल गयी। नर्स के लिए खाना अंदर पहुँचा दिया गया। काकी ने चपाती सेंकनी शुरू कर दी, जिसमें छोटी चाची हेल्प कर रही थी और बड़ी चाची सबको परोस रही थी। बच्चों का खाना हो गया तो सब संभव के कमरे में चले गए। काफी दिनो बाद सब एक साथ खाना खा रहे थे तो सबके चेहरे पर खुशी थी। खाना खाने के बाद सबके लिए मीठे में आइसक्रीम थी। पूरा दिन हँसी खुशी में बीत गया। रात को सब अपने अपने घर पहुँचना चाहते थे। संभव के लिए दोनो बुआ, मठरी लड्डू और भी न जाने क्या क्या बना कर ले आयी थी कि वो वहाँ नाश्ते में चाय के साथ खा लिया करेगा। दोनो भाई संभव के लिए शर्ट, लैपटॉप बैग और काफी सारे मेवे ले आए थे। संभव भूपेंद्र जी के परिवार का सबसे बड़ा बच्चा था तो सबका प्यारा और लाड़ला को है ही। सभ्यता भी बहुत लाडली है सबकी...... छोटी बुआ की खास कर। दोनो में दोस्ती भी बहुत है, वो सभ्यता का बहुत ध्यान रखती हैं। सब घर जा कर डिनर न बनाएँ, इसलिए भूपेंद्र जी ने लीला काकी से दाल और सब्जी बनाने को कहा तो दोनो भाइयों ने मना कर दिया और कहा कि," वो लोग रास्ते से पैक करा लेंगे क्यों इन्हें परेशान करना"!.....तो भूपेंद्र जी ने भी "ठीक है" कह दिया। दोनो बहनो को भूपेंद्र जी एक एक साड़ी और कैश दे कर विदा किया। "भाई ये जरूरी तो नहीं, भाभी एक बार ठीक हो जाएँ तो हम माँग कर ले लेंगी"! " तुम्हारी भाभी जल्दी ठीक हो जाएगी तब वो खुद मार्किट से ले कर आएगी, अभी तो उसकी ला कर रखी साडियों में से ही दे रहा हूँ, तुम लोग तो जानती हो कि उसे अपने पास साड़ी सूट तुम लोगो के लिए पहले से ही ला कर रखने की आदत थी"!भाभी से प्यार दोनो ननदो को था क्योंकि संध्या ने उन्हें ननद की जगह हमेशा अपनी बहने ही समझा था। सब लोग चले गए और घर में फिर रह गए चार लोग। सबने इतना खा लिया था कि रात को खाने का किसी का मन नहीॆ था। सब्जी, चपाती और चावल रखे थे, कुछ काकी को भी दिया और कुछ खुद रख लिया था सभ्यता ने ये सोच कर की कहीं रात को किसी को भूख न लग जाए। सारा दिन काम करते करते सभ्यता सोने चली गयीऔर संभव तो पहले ही सो गया था। भूपेंद्र जी भी अपने कमरे में इजी चेयर पर बैठे एक किताब पढ रहे थे। बीच बीच में संध्या की तरफ देख लेते। संध्या को बिंदी लगाना पसंद था ,पर उसे एलर्जी हो जाती थी तो भूपेंद्र उसे मना करता, पर वो कहाँ कहना माना करती थी ! सो लगा लेती फिर जब खारिश होने लगती तो उतर जाती। एक रात सोती संध्या के माथे पर उन्होंने कुमकुम से गोल और बड़ी बिंदी लगा दी। उसकी नीॆद इतनी कच्ची थी कि छूते ही उठ गयी तब भूपेंद्र जी ने उसे छोटा शीशा दे कर दिखाया और कहा, "ऐसे लगाया करो अब तुम बिंदी, बहुत अच्छी लग रही हो तुम"! तब से संध्या ने वैसे ही लगानी शुरू कर दी, पर कुमकुम के निशान भूपेंद्र जी के कपड़ो पर लगभग रोज ही लग जाया करते..... वो तुनक कर कहती "अब मैं क्या करूँ, तुमने जैसे कहा वैसा ही तो करती हूँ", वो हँस देते क्योंकि उन्हे तो वो निशान भी बहुत प्यारे थे।भूपेंद्र जी उठे और ड्रैसिंग से कुमकुम ला कर संध्या के माथे पर बहुत समय बाद बिंदी सजा दी। वो इतना उलझे रहे कि उन्होंने संध्या के सूने माथे पर भी ध्यान नहीं दिया था। "अब नहीं भूलूँगा संधु", कह कर उसे अपने सीने से लगा लिया। सालो बाद उनके कुरते पर एक बार फिर कुमकुम लग गया था जिसे देख वो मुस्कुरा दिए। अगले कुछ दिन माँ बेटा और संभव रोज पार्क जा रहे थे, फिर संभव का दिल्ली जाने का टाइम आ गया। संभव को छोड़ने महेश गया था। उसे उसके नाना नानी के घर छोड़ कर वो वापिस आ गया। संभव के जाने से सभ्यता बहुत उदास थी पर खुश भी थी कि भाई की नौकरी लग गयी। भूपेंद्र जी और संध्या रोज पार्क जाते हैं तो संध्या की दोस्ती वहाँ पर कई औरतो से भूपेंद्र जी ने करवा दी है तो रोज उनके पास कुछ मिनट बैठ कर हालचाल पूछ कर चली जाती हैं। पार्क में एक कोने में बैठ कर भूपेंद्र जी आने जाने वाले लोगो के बारे में संध्या को बताते और रोज किसी न किसी औरत के बारे में बोल कर उसे चिढाते और हँसते। पार्क में "लवबर्डस" के नाम से मशहूर हो रहे थे मॉटरनी और उनके बुद्धु। कईयों ने तो उन दोनो की फोटो ली और विडियों भी बना लिया जब वो संध्या को गाना सुना रहे थे," तेरी आँखो के सिवा इस दुनिया में रखा क्या है"! राजीव जी और बाकी सब दोस्त भूपेंद्र जी को खुश देख कर खुश होते और उनकी बीवियाँ कहती," कुछ सीखो भाई साहब से प्यार क्या होता है"? सब आ आ कर भूपेंद्र जी को बताते और वो ठहाके लगा कर हँसने लगते। संभव बस नाना के पास 2 दिन ही रूका फिर उसने अपने एक कलीग के साथ फ्लैट किराए पर ले लिया। संभव के मामा ने ही दिलवा दिया था। संभव की बात इन सबको माननी ही पड़ी। पापा और सभ्यता से रोज दिन में दो बार बात कर लिया करता था तो उसे अच्छा लगता। संभव कई बार अपनी मॉम के लिए मैसेज रिकार्ड करके भेज देता जिसे भूपेंद्र जी संध्या को सुनाते रहते। सब कुछ तो सही हो रहा था पर न जाने क्यों संध्या कुछ बोलती ही नहीं काश आँखे ही खोल दे और सबको देखे, ये ख्याल कई बार भूपेंद्र जी को आता फिर खुद को ही हौंसला देते कि सब जल्दी ठीक होगा।
क्रमश: