Motorni ka Buddhu - 16 in Hindi Fiction Stories by सीमा बी. books and stories PDF | मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-16)

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मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-16)

मॉटरनी का बुद्धु---(भाग-16)

भूपेंद्र जी बच्चों के साथ लगभग दौड़ते हुए वहाँ पहुँचे। उस आदमी ने अपना नाम विनायक बताया। संध्या को सर में चोट आयी थी तो उसे ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया। विनायक ने ही पुलिस को फोन करके पहले ही बुला लिया था जिससे हॉस्पिटल वाले कार्यवाही पूरी होने का इंतजार ही न करते रहें। वैसे तो अब कानूनन भी ये हो गया है कि जब ऐसी कोई वारदात हो तो पहले डॉक्टर्स को मरीज का इलाज करना होगा और पुलिस को भी ताकीद की गयी है कि जो घायल की मदद करे उसे बेवजह परेशान न किया जाए। खैर इलाज शुरू हो चुका था। विनायक ने पुलिस और भूपेंद्र को बताया कि मैडम अपनी कार ट्रैफिक की वजह से दूसरी तरफ पार्क करके पैदल ही दूसरी तरफ आ गयी थी, उसने ये साफ साफ देखा क्योंकि वो उससे कुछ किताबें ले कर साथ वाली दुकान से सामान ले कर तुरंत बाहर आ गयी। विनायक की बाजू में ही स्टेशनरी की दुकान है। मैडम सामान ले कर सड़क पार कर रही थी कि एक बाइक तेजी से आई और मैडम को टक्कर मार कर चली गयी। उन्होंने जल्दी से अपने नौकर को दुकान संभालने को कह कर एक ऑटो में डाल कर यहाँ ले आए। विनायक ने औरों की तरह तमाशा का हिस्सा न बन कर संध्या को हॉस्पिटल पहुँचा दिया उसके लिए पुलिस और भूपेंद्र ने शुक्रिया अदा किया। संभव ने दादा दादी और दोनो चाचा को फोन कर दिया। रात हो गयी थी। डॉक्टर ने ईलाज तो शुरू कर ही दिया था। पर वो होश में नहीं आयी थी। बाहर की चोटे ज्यादा नहीं थी पर सिर के अंदरूनी चोटो की वजह से वो बेहोश थी। न्यूरोसर्जन अपना काम कर रहे थे।आनन फानन में सब टेस्ट हो गए थे। सिर में अंदरूनी चोट लगी थी, जिससे सूजन हो गयी थी और खून बहा नहीं पर नसों में जम गया था। भूपेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करें? बच्चों को दादी और बुआ के साथ घर भेज दिया था। डॉक्टर्स ने 72 घंटे बोले थे होश में आने के लिए तो बस इंतजार था कि 72 घंटो के बाद संध्या होश में आ जाएगी। संध्या का परिवार उसे दिल्ली ले जाना चाहता था, पर डॉक्टर्स का कहना था कि अभी पैशेंट को कहीं मत ले जाइए, इंतजार करना ही बेहतर है। भूपेंद्र को भी यही सही लगा। 72 घँटे एक सदी की तरह बीते संध्या के दोनो परिवारों के लिए। संध्या होश में नही आयी पता चला कि वो कोमा में चली गयी है। डूबती साँसो को वेंटीलेटर का सहारा दिया गया। संध्या के पापा को ये डॉक्टरों की नाकामी लग रही थी, वो संध्या को शिफ्ट करने की जिद ले कर बैठ गए। डॉक्टर ने उन्हें कहा, "आप ले जाओ, दिल्ली के बेस्ट न्यूरो सर्जन से मेरी बात हुई है, वो दोस्त हैं मेरे.....आप रिपोर्टस ले जा कर दिखाइए। दूसरे डॉक्टर्स को भी कंसल्ट कीजिए अगर वो कहते हैं कि वो तुरंत ठीक कर देंगे मिसेज सिंह को तो ले जाइए"। भूपेंद्र ने भी कहा,"पापा डॉक्टर ठीक कह रहे हैं, पहले आप संध्या कि रिपोर्टस दिखा लो फिर जहाँ बोलेंगे आप वहीं शिफ्ट कर देंगे। वो दिल्ली चले गए। दो -तीन डॉक्टर्स से सलाह ली सब ने यही कहा कि, "जहाँ भी ले जाया जाएगा ट्रीटमेंट यही होगा पैशेंट का, ये 2*4 दिन में ठीक हो जाए जरूरी नहीं, महीनो और सालों लग सकते हैं और पैशेंट की कोमा में गी जान भी जा सकती है"! ऐसे में इंतजार के सिवा कोई कुछ नहीं कर सकता था। संध्या की हालत इतनी बेहतर जरूर हो गयी थी कि वेंटीलेटर हट गया। सब बारी बारी से आते और कुछ दिन रह कर बच्चों की दैखभाल कर जाते। बुआ और दादी ही थी जो काफी टाइम निकाल गयीं। बच्चों की रूटीन लाइफ भी शुरू हो गयी। एक महीने के बाद भूपेंद्र संध्या को घर ले आए। एक नर्स को रख लिया गया। न्यूरो सर्जन का अपना पर्सनल क्लिनिक भी था जहाँ वो पैशेंटस को देखा करते थो। ज्यादातर भूपेंद्र वहीं संध्या को दिखला लाते। डॉक्टर से भी दोस्ती हो गयी थी तो उन्होंने कहा कि," वो कॉल कर दिया करें उनका जूनियर मिसेज सिंह को देखने आ जाया करेगा वो आपके घर के पास ही रहता है"!बस तब से ये सिलसिला चल रहा है। संध्या के घर आने से वो भी राहत महसूस कर रहे थे, उन्हें लग रहा था कि घर में सब के बीच रहेगी तो संध्या जल्दी ठीक हो जाएगी। घर आने के बाद वो शाम को संध्या के हाथ पैरों की मालिश किया करते जिससे वो जब जागे तो वो किसी भी तरीके से लाचारी महसूस न करे। उसको एक ही पोजीशन में नहीं लेटा रहने देते थे। नर्स को भी कहते थे कि हर दो घंटे में उसकी पोजीशन चेंज करती रहा करे कहीं घाव न हो जाएँ। संध्या के मम्मी पापा आते जाते रहते थे वो बेडसोल न हो जाएँ इसके लिए वो वैसे मैट्रस ले आए थे। संध्या की देखभाल करने के लिए बहुत लोग थे, पर भूपेंद्र सब के लाख कहने के बाद भी दूसरे कमरे में नहीं सोते। वो संध्या के ज्यादा से ज्यादा काम खुद करना चाहते थे, यही तो वचन लिया था शादी के फेरे लेते हुए।विनायक जिसने संध्या को हॉस्पिटल पहुँचाया था, जहाँ भी भूपेंद्र जी दिखते उनसे मैडम का हालचाल जरूर पूछते। संध्या जिन औरतो और बच्चों की मदद किया करती थी वो लोग बिना किसी स्वार्थ के उससे मिलने आते रहते थे। कभी घर के लिए अपने खेतो से सब्जियां ले आती तो कभी मंदिर का प्रसाद। भूपेंद्र जी को संध्या के बीमार होने के बाद पता चला कि उनकी बीवी को कितने लोग जानते हैं और अपना मानते हैं। ऐसे ही एक औरत से बात करके भूपेंद्र ने अपने दोस्त की बात मानकर एक आयुर्वेद तेल से कई महीने मालिश करवायी। डॉक्टर ने तो काफी दिनो के बाद फिजियोथैरेपी के लिए कहा तो भूपेंद्र हँस कर बोले"सर वो तो जब से मैडम घर आयी हैं तब से कर रहा हूँ, वे थैरेपी तो नहीं कह सकता पर उसके हाथ पैरो की मसाज करवा रहा हूँ, जिससे उसकी नर्व्स में Stiffness ना आ जाए"! डॉ. उनकी बात सुन कर हैरान हुए और बोले,"वाह सर आपने तो कमाल ही कर दिया। बहुत अच्छा किया आपने पर मैं सजेस्ट करूँगा कि कुछ दिन फिजियोथैरेपी भी करवा लीजिए"!" ठीक हा डॉ. जैसा आप कहें, किसी को भिजवा दीजिएगा घर, वहीं हो ते अच्छा है"! "ठीक है मैं बोलता हूँ"! डॉक्टर ने दो महीने करवाने को कहा पर भूपेंद्र ने 6महीने करवायी। वो संध्या को पूरा आराम देने की कोशिश में थे।
अलार्म ने भूपेंद्र को फिर यादों से बाहर निकाल लिया, " ओह पता ही नहीं चलता संधु तेरे साथ टाइम का, चल पहले मैं फ्रेश हो कर आता हूँ, तब तक सो ले और 10 मिनट"! जल्दी से फ्रेश हो कर भूपेंद्र बाहर आ गए, सबसे पहले उन्होंने संध्या क गीले तौलिए से हाथ मुँह साफ किए, फिर उसका डायपर चेंज करके दूसरा पाजामा पहना दिया और उपर की टी शर्ट भी बदल दी।
संध्या को घर के बाहर कदम रखना हो तो मेकअप करना जरूरी नही होता था पर कपड़े कायदे से पहने हो इसका वो ध्यान रखती थी। ये सब करते करते संभव भी आ गया। संध्या की व्हील चेयर को पकड़ सभ्यता खडी थी और संभव पापा की हेल्प कर रहा था माँ को चेयर पर बिठाने में। संध्या को बैठा संभव ने बेल्ट लगा दी जिससे संध्या का बैलेंस बना रहे और सभ्यता ने माँ को एक स्टॉल ओढा दिया। फूड पाइप को समेट कुर्सी की बैक पॉकेट में रख लिया। संभव ने कार निकालना चाहा पर भूपेंद्र ने कहा आज ऐसे ले कर चलते हैं कोई परेशानी हुई तो कल से कार में ले चलेंगे।धीरे धीरे चलते हुए वो लोग पार्क पहुँचे, रास्ते में कई जान पहचान के मिल गए जिन्होंने रूक कर संध्या को देखा और हालचाल पूछा।
पार्क में भूपेंद्र जी के सब दोस्त हैरान थे उनको संध्या के साथ देख कर और वो मजे से अपनी संधु को मिलवा रहे थे और हँस रहे थे। राजीव जी बहुत खुश हुए अपने दोस्त के हँसते देख कर और बोले,"यार तू अब भाभी जी के साथ आया करेगा तो हमें भूल मत जाना"! "नहीं यार बिल्कुल नही भूलूँगा और भूलना भी चाहा तो मॉटरनी नहीं भूलने देगी, इसी से सीखा है हर रिश्ते को निभाना"!संभव अपने पापा को सालो बाद खुल कर हँसते और बोलते देख कर बहुत खुश था और उसे तसल्ली हो गयी थी कि पापा ऐसे माँ के साथ खुश ही रहेंगे। हर रोज पार्क आ कर भी भूपेंद्र जी का ध्यान संध्या में अटका रहता था, पर आज तो वो साथ थी तो खुल कर साँस ले रहे थे।
क्रमश: