Motorni ka Buddhu - 8 in Hindi Fiction Stories by सीमा बी. books and stories PDF | मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-8)

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मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-8)

मॉटरनी का बुद्धु---(भाग-8)

मॉटरनी के मनाने का अंदाज भी उसकी तरह अनोखा था। न वो गले लगती न किस करती न ही प्यार भरी बातें और सॉरी बोलना तो मनाही थी उसकी जगह"I LOVE YOU" कहा जाता था, पर वो तो ये भी न कह कर कभी कहती, "मॉटर जी मुझे बुखार लग रहा है न छू कर देखो तो कभी कहती सुबह से सर दर्द कर रहा है पर किसी को तो लड़ने से फुर्सत ही नहीं"! वो जानते थे कि नौटंकी होती है उसकी पर फिर भी झट से सर दबाने लगते या फिर माथा छू कर बुखार देखते और गुस्सा वही खत्म होते देख संध्या उनके सीने में बच्चों की तरह छुप जाती। भूपेंद्र जी बस खामोशी से उसको निहारते रहते और भगवान का शुक्रिया अदा करते संध्या को उसकी जिंदगी में लाने के लिए। भूपेंद्र के दोनो भाई नौकरी पर लग गए थे तो दोनो ने अपनी अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली। रमेश की पत्नी रूचि बैंक में नौकरी करती थी और महेश की पत्नी टीचर। अपनी नौकरी के चलते तीनो भाई अलग अलग जगहों पर रह रहे थे। माँ बाबा अकेले हो गए थे, पर खुश थे कि उनके बच्चे तरक्की कर रहे हैं, फिर सभ्यता ने जन्म ले कर उनका परिवार पूरा कर दिया। हालंकि भूपेंद्र चाहता था कि एक बच्चा और होना चाहिए पर संध्या ने मना कर दिया तो भूपेंद्र ने भी उसके फैसले का मान रखा। सभ्यता के पैदा होने से पहले ही संध्या जबरदस्ती माँ बाबा को अपने साथ ले आयी। बाबा ने खेती का हवाला दिया पर उसने खेत बटाई पर देने को मना लिया और दादा दादी बच्चों के साथ ही रहेंगे का फैसला भी सुना दिया। दादा दादी फूले नहीं समाए, वो भी तो यही चाहते थे कि उनका बुढापा अपने पोते पोतियों के साथ बीते। बाकी दोनो बेटो के पास 2-4 दिनो से ज्यादा नहीं रह पाते थे क्योंकि दोनो बहुए नौकरी वाली थी और उनका स्वभाव थोड़ा अलग था, वो सम्मान पूरा करती थीं पर कर्तव्य दिखता था पर अपनापन नहीं। संध्या भी शहरी और पढी लिखी लड़की थी पर वो खुद जाँइट फैमिली की थी तो वो जानती थी की सबको साथ ले कर चलना जरूरी होता है। रमेश और महेश भी अपना पूरा फर्ज निभाते रहे हैं। माँ बाबा के सुख सुविधा के साथ किसी तरीके का समझौता किसी ने नहीं किया। माँ बाबा के आ जाने से घर में रौनक आ गयी थी। संध्या माँ को ज्यादा काम नहीं करने देती थी। बाबा ने भूपेंद्र जी का सब्जी और घर का सामान लाने का काम ये कह कर अपने हाथ में ले लिया कि, "तुम सामान ढंग से नहीं लाते"! उन्होंने भी खुशी खुशी बाबा की हाँ में हाँ मिला दी। बीच बीच में अपने गाँव भी सब हो आते और घर और खेतो को देख चले जाते। गाँव जाते तो सब घेर लेते। माँ बाबा सबसे मिलजुल कर खुश होते। जब सभ्यता 1 साल की हुई तो बाबा के कहने पर उसका जन्मदिन गाँव में मनाया, पूरा परिवार इकट्ठा हुआ। संध्या के मायके से कोई आ नहीं पाया क्योंकि दादी के भाँजे की शादी थी तो सब वहाँ बिजी थे। माँ और बाबा ने गाँव में सब को न्योता दिया और जन्मदिन को धूमधाम से मनाया। संभव को अपनी छोटी बहन से बहुत प्यार था कोई भी उसे छूता तो गुस्सा होने लगता। माँ बाबा कुछ दिन गाँव में ही रहना चाहते थे तो संध्या और भूपेंद्र ने भी उनकी इच्छा का मान रखा। जन्मदिन मनाने के दो दिन बाद वो लोग वापिस आ रहे थे। गाँव में कच्ची सड़क ही थी तब, किनारे एक आम और अमरूद के बगीचा था। भूपेंद्र ने बचपन में अपने दोस्तों के साथ खूब आम और अमरूद तोड़ कर खाए थे जब भी वहाँ से निकलते तो कार अपने आप ही धीरे हो जाती और पल दो पल रूक जाते बचपन के यादें जो ताजा हो जाती थी......उस बगीचे का मालिक उनके दादा के उम्र के थे तो सब बच्चे उन्हें दादा ही कहते थे। उनके ऐसे 4 बगीचे और काफी जमीन थी, तो उनका रसूख तो था ही। कभी वो दिख जाते तो भूपेंद्र और संध्या उन्हें प्रणाम जरूर करते थे। उनके चार बेटे थे चारों ही परले दर्जे के आलसी चार बहुएँ आयी और सारी जमीन का बँटवारा कर लिया और घर के मालिक को घर के बाहर बने चबूतरे पर बैठने की जगह ही मिल पायी, ऐसा सुना तो था पर उन्हें यकीन नहीं हुआ था। उस बार उन्होंने बगीचे के बीचो बीच झोंपड़ी को देख कर कार रोक थी। संध्या और बच्चो को गाड़ी में रूकने को कह वो झोंपड़ी के पास चले गए, वहाँ बूढे बाबा एक कुर्सी पर बैठे थे और झौंपड़ी के अंदर एक चटाई, चादर कंबल और कुछ बरतन रखे थे।किसी को अपने पास आया देख वो सजग हो गए," कौन है रे? बिशनू रोटी लाया है रे"? "नहीं द्ददा मैं हूँ भूपेंद्र....आप यहाँ ऐसे काहे बैठे हो"? "कौन भूपेंदर? शिवराम का बेटा है का"? "हाँ मैं हूँ....द्ददा आप घर काहे नहीं रहते? 4 चाचा होते तुम यहाँ रोटी की बाट देखो हो", भूपेंद्र ने उनके पैर छूते हुए पूछा तो बूढे द्ददा अपने आँसू नहीं रोक पाए....का कहें बिटवा तेरे बाप को तो सब पता है कछु न छिपा, चारों को जीते जी जमीन खेत घर सब दे दिया ये सोच कर कि अब आराम करूँगा, पर जे लोगो ने तो सबसे पहले बूढे बाप को ही घर निकाला दे दिया।अब बहू लोगो का मन हो तो दो बख्त खाने को मिल जाए ना तो भूखे पेट ही रहूँ। गाँव के बच्चे आते जाते कुछ ला देते हैं अपने घर से साहूकार को भिखारी बना दिया मेरे लडको ने अब तो बस अपने दिन काट रहा हूँ"। भूपेंद्र ने घड़ी में देखा बारह बजने को थे और द्ददा बिना कुछ खाए पिए खाने का इंतजार कर रहे थे। कुछ सोच कर बोले," द्ददा मेरे साथ चलोगे"? "क्या करूँगा बेटा तेरे पास जा कर मैं तो किसी काम का भी न रहा"! "अपने पोते पोती के साथ खेलना द्ददा और काम काहे करोगे हमारे होते हुए कह कर हाथ पकड़ कर कार तक ले आए", द्ददा पहले तो हिचकिचाए जो स्वाभाविक था पर फिर उनका हाथ कस कर पकड़ लिया। "द्ददा आपके घर संदेश भिजा दूँ कि आप मेरे साथ जा रहे हो"? " न रहन दे बेटा, किसी के मेरी जरूरत न है"! कार के पास आए तो संध्या पति के साथ बाबा को देख कर हैरान थी, पर हैरानी छुपाते हुए पति का इशारा पाते ही संभव और उसने गाड़ी से उतर कर पैर छुए और द्ददा को आगे बिठाया और खुद बेटी को ले पीछे बैठ गयी। द्ददा ने जी भर कर आशीर्वाद दिया। पूरे रास्ते द्ददा और भूपेंद्र बचपन की बातें करते आए और संध्या मजे से सुन रही थी। एक जगह गाडी रोक कर केले खरीद कर सबसे पहले उन्हें खिलाए।दोनो तरह की भूख उनकी शांत हो गयी थी केलों से पेट की भूख और प्यार से मन की भूख। घर पहुँच कर संध्या ने सबसे पहले दूध मँगवा कर चाय बनायी और घर से लाया खाना गरम करके सबको खिलाया और खुद भी खाया। द्ददा को भूपेंद्र ने बाबा के कपड़े निकाल कर दिए नहा कर पहनने को और उन्हें कुछ देर आराम करने के लिए कहा। बूढा इंसान प्यार का भूखा होता है, संध्या और भूपेंद्र ने 4-5घंटों में जो सम्मान दिया वो उससे संतुष्ट हो कर सो गए।" सुनो तुमने द्ददा के बारे में कुछ पूछा नहीं और मैं तुमसे पूछे बिना अपने साथ ले आया तो तुमने कुछ कहा भी नहीं, संधु तुम नाराज तो नहीं हो न"? "फिर कर दी न तुमने बुद्धु वाली बात? तुम कुछ फैसला बेवजह तो लेते नहीं, द्ददा जी का ध्यान उनकी फैमिली नहीं रखती ये तो मैं उनकी हालत से समझ गयी, वो हमारे साथ रहेंगे तो अच्छा रहेगा उनकी देखभाल की जा सकती है और मुझे भी बच्चों की चिंता नहीं रहेगी, बच्चे उनके साथ मस्त रहेंगे....मॉटर जी "! संध्या हर बार उन्हें हैरान कर देती है और उन्हें वजह मिल जाती है और ज्यादा अपनी बीवी को प्यार करने की......संधु तुम दुनिया की सबसे प्यारी बीवी हो यादों में खोए भूपेंद्र बड़बड़ा दिए और अपनी आवाज सुन खुद ही चौंक गए...! उन्होंने संध्या को कस कर पकड़ा हुआ था, मोबाइल उठा कर टाइम देखा तो सुबह के 4 बज गए थे। "संधु ये तुम्हारी बहुत बुरी आदत है, रात को सोने नहीं देती ठीक से....देखो न 4 बज गए और फिर तुम्हारा अलार्म बजेगा और धक्के मार कर कमरे से निकाल दोगी वॉक पर जाने के लिए, पर सुन ना आज Skip करने का मन कर रहा है वॉक...थोड़ा सो लेता हूँ तुम्हारे साथ फिर उठा देना स्कूल तो जाना है न ", बोल कर भूपेंद्र उसका हाथ पकड़ कर सोने की कोशिश करने लगे।
क्रमश: