मॉटरनी का बुद्धु...(भाग-5)
"गुप्ता सर कैसे आना हुआ आपका"? भूपेंद्र ने पूछा तो वो बोले," सर मुझे 15 दिन की छुट्टी चाहिए, मेरी वाइफ की तबियत ठीक नहीं है, पर स्कूल में बच्चों के एग्जाम्स हैं और अभी कोर्स बाकी है"। गुप्ता जी बहुत परेशान थे...."गुप्ता जी आप सुचित्रा मैडम से बात कर लीजिए वो एडजस्ट करेगी आपने भी किया था न जब वो शादी मैं गयी थीं"भूपेंद्र जी ने सुझाव दिया पर गुप्ता सर की टैंशन कम होती दिखी नहीं उनके चेहरे से। "सर सुचित्रा मैडम से बात की थी पर वो भी कुछ दिनो की छुट्टी पर जाने का सोच रही हैं तभी मैं परेशान हूँ"। "गुप्ता सर आप अपनी छुट्टी की एप्लीकेशन लाए हैं तो मुझे दे दीजिए साइन कर देता हूँ और अपना टाइम टेबल और पैंडिग कोर्स लिख कर देते जाइए, बाकी मैं मैनेज कर लूँगा। आप अपनी वाइफ को समय दीजिए"। अपने प्रिंसिपल की बात सुन कर गुप्ता सर के चेहरे से टैंशन के बादल हटते देख भूपेंद्र जी को भी अच्छा लगा।गुप्ता जी और सुचित्रा जी 7-8 क्लॉस के दो दो सेक्शन को मैथ्स पढाते हैं। कई बार समस्याएँ इतनी बड़ी होती नहीं जितनी बना दी जाती हैं। सुधा मैडम जो सब टीचर्स के लिए टाइम टेबल बनाती हैं और एग्जामिनेशन इंचार्ज भी हैं उन्हें बुला कर गुप्ता सर की छुट्टी और सुचित्रा मैडम को कंबाइन क्लॉसेस लेने के लिए बता ने को कह दिया। सुधा मैडम के जाते ही वो फिर संध्या के पास पहुँच गए..... संध्या के सपने बड़े बड़े नहीं थे, वो आज में जी कर खुश रहती थी। बच्चे को लेकर वो बहुत एक्साइटेड रहती थी। स्कूल से घर पहुँचने में 4 बज जाते थे और सुबह 6 बजे चल देते थे क्योंकि 40 किमी की दूरी तय करनी होती थी और संध्या मैडम उसे बाइक या स्कूटर भी नहीं चलाने देती थी। उसे बहुत डर लगता था इसलिए वो बस से ही आया जाया करते। वो पूरा दिन किसी न किसी काम में खुद को उलझाए रखती और भूपेंद्र के आते ही सारे काम छोड़ कर बैठ जाती। भूपेंद्र लंच साथ ले कर जाते थे तो आ कर बस फ्रेश हो कर आराम करते थे, वो टाइम संध्या का होता था। दोनो एक दूसरे पर हाथ रख कर लेटे लेचे पूरे दिन की बातें करते और स्कूल की कोई दिक्कत होती तो चुटकियों में उसका हल ढूँढ लेती तो भूपेंद्र जी कहते," तू मेरी अलादीन का चिराग है संधु हमारा बच्चा तेरी तरह होशियार होना चाहिए", वो बच्चों की तरह चिलक कर हँस देती और कहती, "हाँ,पर हाइट तुम पर जानी चाहिए"। भूपेंद्र जी का सबसे छोटा भाई महेश जो काफी शैतान था। वो संध्या को बहुत छेड़ता और कहता, "भाभी हमारे भाई को कम डाँटा करो"। संध्या से पहले भूपेंद्र जी की माँ कहती, " "बहुत सही करती है बहु...काश मैं भी तेरे बाबू को कुछ डाँट डपट कर रखती तो सही रहता"। जिंदगी कितनी आसान और खुशहाल थी और उसमें रंगबिरंगे रंग भर दिए थे संभव ने। डिलीवरी का टाइम नजदीक था, रेगुलर चेकअप कराने के लिए गाड़ी किराए पर ले ली जाती थी, तब गाँव में लोगों के पास कारें होती ही कहाँ थी? बरेली में डॉक्टर को दिखाने गए तो उन्होंने एडमिट होने के लिए कह दिया। वो तो भूपेंद्र की माँ को पहले से ही लग रहा था कि एडमिट कर लेंगे इसलिए वो जरूरी सामान ले आयीं थी। भूपेंद्र और माँ संध्या के पास ही रहे। लेबर पेन से तड़पती संध्या को देख भूपेंद्र भी रो दिए और उनकी माँ हँसते हुए बोली, " बाप बनने वाला है, इतना कमजोर मत हो, अभी तो तुम दोनो का जीवन शुरू हो रहा है"। माँ की बात सुनकर वो बोले, " माँ उसकी तकलीफ देख कर आँसू आना कमजोरी नहीं है आपके बेटे की, पर मैं उसे दर्द में नहीं देख पा रहा हूँ"।"कुछ देर की बात है बेटा फिर तो खुशियाँ आने वाली हैं, हर औरत को इस दर्द से गुजरना पड़ता है फिर हमारी बिटिया तो बहुत बहादुर है"। माँ बेटा अभी बातें ही कर रहे थे, संध्या का तड़पना बंद सा हो गया था और कुछ देर बाद संभव अपनी दादी की गोद में था। गोल मटोल सा बिल्कुल संध्या जैसा दिख रहा था उन्हें पर दादी का कहना था कि वो अपने बाप पर गया है। संध्या का मायका और ससुराल दोनो तरफ खुशी का माहौल था। गाडियाँ भर कर तोहफे आए थे। भूपेंद्र का ध्यान बस अपनी झाँसी की रानी पर था जो डिलीवरी के बाद बिल्कुल कमजोर सी दिख रही थी, पर बहुत खुश थी वो। संध्या के मम्मी पापा ने देखा सबसे अच्छा नर्सिंग होम में दाखिल थी उनकी बेटी। दादा ने जब पहली बार पोते को देखा तो उसके गले में काला धागा डाल दिया। दादा और नाना ने मिलकर पूरे नर्सिंग होम में मिठाई बाँटी। 2 दिन के बाद संध्या की छुट्टी हो गयी। संध्या के मम्मी पापा तो वहीं रह गए थे पर चाचा चाची सब चले गए थे। संध्या के पापा एक नयी कार अपने नाती कै लिए ले कर आए थे। उसको उसी में बिठा कर भूपेंद्र जी के घर पहुँचे। भूपेंद्र जी की बहनो और भाइयों ने पूरा घर सजा रखा था। पालना भी आ गया था और ढेरो खिलौने भी। नाना और दादा ने घर भर दिया था खिलौनों से। संध्या को सब बहुत प्यार करते हैं, ये देख उसके मम्मी पापा बहुत खुश थे। वो लोग नामकरण के लिए सब उपहार ले कर आए थे पर पंडित जी ने बताया कि नामकरण सवा महीने के बाद होगा तो वो लोग वापिस चले गए। जाते जाते कार की चाभी नाती के हाथ में थमाते हुए बोले, " बेटा अब मना मत करना ये हमारे नाती के लिए है", तो भूपेंद्र मना नहीं कर पाए। सर आप अभी बैठेंगे या लॉक कर दूँ, इस बार चपरासी ने पुकारा तो भूपेंद्र जी ने देखा स्कूल की छुट्टी भी हो गयी है और उन्हें पता ही नहीं चला। "हाँ बंद करो ऑफिस फिर चलते हैं" कहते हुए वो बाहर आ गए। लंच बॉक्स उठाया तो याद आया आज भी खाना नहीं खाया, संधु गुस्सा करेगी सोच कर गाड़ी में बैठ खाना खा कर चल दिए। घर पहुँचे तो संभव की बाइक खड़ी थी। अंदर आए तो संभव फोन पर बात कर रहा था," चाचू मेरा सलेक्शन हो गया, पहला इंटरव्यू और मैं सेलेक्ट हो गया", भूपेंद्र जी खुश हो गए। संभव की बात लंबी चलने वाली थी क्योंकि महेश चाचू ही नहीं उसका दोस्त भी है, दोनो जब बातें करने लगते हैं तो बस घंटो लगे रहते हैं.... पापा को देख कर उसने फोन रख दिया और पापा के पैर छू लिए, "खुश रहो बेटा और खूब तरक्की करो"। सभ्यता भी किचन से बाहर आई, हाथो में रसगुल्ले का डिब्बा था। "मॉटर जी इसी बात पर मुँह मीठा करो", कह कर डिब्बा आगे कर दिया। "एक कटोरी में दो बेटा मैं तुम्हारी माँ के साथ खाऊँगा"! "ठीक है पापा, वैसे मैंने सबसे पहले मॉम को खिला दिया है पापा और उनका आशीर्वाद भी ले लिया है", संभव को जवाब उन्हें संतुष्ट कर गया और वो कमरे में फ्रेश होने चले गए। बाहर आए तो एक कटोरी में रसगुल्ले रखे थे, नर्स बाहर चली गयी थी क्योंकि उसके भी जाने का टाइम हो गया था। संध्या के चेहरे और बालों को सहलाते हुए उसके पास रखी चेयर पर बैठ गए। "मॉटरनी खुश है न, हमारा बेटा सलेक्ट हो गया और अब नौकरी करने दूर जाना पडेगा उसे"! चुपचाप सी लेटी अपनी बीवी की तरफ से खुद ही उसकी जगह बोले, "हाँ जाना तो होगा ही, जब तुम्हें और दोनो भैया को माँ बाबा ने नहीं रोका तो हम अपने स्वार्थ के लिए क्यों रोके अपने बच्चों को है न"? "संधु तुम हमेशा इतना सही कैसे सोच लेती हो"? ये सवाल वो हमेशा अपनी झाँसी की रानी से पूछा करते और वो कहती कुछ नहीं बस मुस्कुरा देती, अब तो वो मुस्कुराती भी नहीं।
क्रमश: