मॉटरनी का बुद्धु (भाग-4)
सुबह सुबह वॉक पर जाना भी तो उन्होंने संध्या की वजह से शुरू किया था। वो हमेशा उन्हें आलसी और लापरवाह कह कर चिढाया करती और कई बार चिढ़ भी जाते तो बस उलझ जाते अपनी बीवी से और कहते," तुम्हें मेरी कद्र नहीं है, तुमसे अच्छी तो हमारी पड़ोसन मिस चंचल है, कुँआरी और ऊपर से ब्यूटीफुल भी है.. .....कितने प्यार से अपने घर बुलाती है, वो तो मैं तेरा सोच कर जाता नहीं, वरना वो तो पलके बिछाए बैठी है", कह वो तो नहाने चले गए पर जब बाहर निकले तो बाथरूम के बाहर ही एक बैग तैयार रखा था। जो कह कर गए वो भूल गए थे गायत्री मंत्र का जाप करते करते...."सुनो, ये बैग यहाँ काहे रख दिया भागवान"! " मॉटर जी काहे का क्या मतलब तुम्हारा है, चलो अभी निकलो यहाँ से और जाओ मिस चंचल के घर तुम्हारी जुदाई में सुसाइड न कर ले"! भूपेंद्र जी को बात समझने में दो मिनट लगे पर जब समझे तब तक धर्मपत्नी ने खाली लंचबॉक्स और बैग हाथ में थमा दिए! "अरे मेरी संधु सुन ना मजाक कर रहा था, तेरे बिन नहीं रह सकता, तुझे पता है न इसलिए ज्यादा अकड़ने लगती है"। " हाँ मैं अकड़ती हूँ ,पर तुमने आज गलत बात बोली है उसका हर्जाना तो भरना पड़ेगा", मुँह फुला वो बोली! "जो तू कहती है वही तो करता हूँ, आगे भी करूँगा", उन्होंने हथियार डालते हुए कहा! "कल से सुबह जल्दी उठ कर वॉक पर जाया करोगे, फिर योगा करना है....तभी पीठ दर्द ठीक होगा", बीवी ने सजा सुना दी। तब से वो इस नियम का पालन करते आ रहे हैं। कभी कभी वे भी साथ चल देती। "क्या बात है यार अकेले अकेले इतना कैसे मुस्कुरा रहे हो"? भूपेंद्र जी अपनी दुनिया से बाहर निकल आए तो सामने उनके दोस्त राजीव जी खड़े थे। "कुछ नहीं यार, बस ऐसे ही कुछ याद आ गया पुराना", कहते हुए दोस्त से हाथ मिलाया। दोनो साथ साथ घूमने लगे और आस पास और दुनिया जहान की बातें शुरू हो गयीं....6:15 का अलार्म बजा तो वो अपने दोस्त को कल मिलते हैं, कह कर घर की तरफ चल दिए। पार्क घर से 5-10 मिनट की ही दूरी पर है। समय की पाबंदी संध्या ने सीखा दी थी।पास की दुकान से ब्रेड और दही ले कर वो घर पहुँच गए। ताला खोला तो सभ्यता किचन में थी।" मॉटर जी चाय रख दी है, आप कमरे में जाओ मैं ले कर आती हूँ"। बिल्कुल अपनी माँ की कॉपी, समय की पाबंद। भूपेंद्र जी ने चाय पी और फिर संभव को उठा दिया। माँ के बीमार होने से बच्चे खुद ही अनुशासित हो गए हैं। एक आवाज लगाते ही संभव उठ गया। यही संभव स्कूल जाने के लिए माँ को नचा देता था। बहुत ड्रामे करता था उठने में और माँ ऐसी थी कि प्यार के वक्त प्यार पर जिद करने पर वो गुस्से में गोदी में उठा कर सीधा बाथरूम में ले जा कर खड़ा कर देती। कितना भी चिल्लाता पापा पापा, पर पापा की हिम्मत नहीं होती कि वो उसकी माँ के रोद्र रूप के सामवे कुछ कह पाते, फिर उन्हें भी पता था कि वो बिल्कुल सही करती है सख्त बन कर, खुद तो कभी भी बच्चों के साथ सख्त नहीं हो पाए। संभव उठ गया और लीला काकी भी आ गयी जिससे सभ्यता और भूपेंद्र निश्चिंत हो गए। नर्स के आने के बाद नाश्ता करके वो भी स्कूल चले गए। सभ्यता घर पर ही थी तो बीच बीच में माँ को देख आती। खाने कै लिए फूड पाइप लगा था। बाथरूम के लिए डायपर पहनाने लगे हैं। सब काम अपनी गति से होता रहता है। भूपेंद्र जी को जब भी टाइम मिलता है तो संध्या के आसपास ही उनका मन घूमता रहता है। कितनी बार उनका तबादला हुआ और वो पति पत्नी एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट होते रहे....भूपेंद्र के पीछे पड़ गयी थी संध्या आगे पढते रहने के लिए।आगे M.phill करवा कर ही मानी। TGT से PGT टूचर बना कर ही दम लिया उनकी प्यारी बीवी ने। 11-12 कक्षा को पढाना शुरू किया तब जा कर भूपेंद्र की मैडम जी को तसल्ली हुई। भूपेंद्र जी बैठे बैठे उस पल में वापिस चले गए जब वो पहली बार उस रूम में आई थी जहाँ उनकी पहली नौकरी थी, कम से कम 2 साल और वहाँ बिताने ही थे छोटे से गाँव में पर संध्या को ज्यादा दिक्कत नहीं हुई परिवेश में ढलने में....पर कुछ चीजों के लिए वो बहुत सजग थी......उसे एक कमरा, रसोई और बाथरूम से संतुष्टि नहीं थी। उसने पूरा घर किराए पर लेने के लिए जोर दिया, जिसमें भूपेंद्र जी के माँ बाबा ने भी पूरा साथ दिया। आखिर एक पूरा घर ले लिया। घर को सजाना उसका बहुत पसंद था। शादी के बाद वो मायके 2-3 बार गयी थी पर 2-3 दिन के लिए भूपेंद्र जी के साथ। भूपेंद्र जी स्कूल में पढाने चले जाते और संध्या घर के कामों से फ्री हो कर आस पास के बच्चों को पढाने की कोशिश करती। धीरे धीरे आस पास मॉटर जी की मॉटरनी उनसे ज्यादा फेमस हो गयी थी। आस पास के लोगो को साफ सफाई से रहने की आदत वो डाल रही थी। छोटे छोटे बच्चे जो दिनभर यूँहि घूमा करते थे, उनके घरो में जा जा कर उन्हें प्राइमरी स्कूल में दाखिला दिलवाने को कहती। भूपेंद्र जी भी कमजोर बच्चों को स्कूल में एकस्ट्रा टाइम देते थे। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि बच्चों के माँ बाप के स्कूल में बुलाया जाने लगा था। बच्चो की हर संभव मदद करने में लगे रहते थे भूपेंद्र जी और संध्या अपने आस पास के लोगो को पढना जरूरी है, समझाने में कुछ हद तक कामयाब हो गयी थी। उसी दौरान ही दोनो को पता चला कि वो मम्मी पापा बनने वाले हैं तो वो खुशी से फूले न समाए। पहला बच्चा नाना और दादा के परिवारो में खुशी का कारण बनता ही है। संध्या बहुत खुश रहती थी, क्योंकि उसने पहले ही भूपेंद्र जी से कह दिया था कि वो पहला बच्चा जल्दी पैदा करेंगे। वो भी यही चाहते थे पर उन्हें लगता था कि संध्या को अगर बच्चा देर से चाहिए होगा तो वो उसे मजबूर नहीं करेंगे पर संध्या तो जैसे उनके दिल और दिमाग में ही रची बसी थी पहले से ही। बच्चे के कदमों की आहट एक और खुशी अपने साथ ले कर आयी। भूपेंद्र जी का अपने घर से 40किमी दूर गाँव में तबादला हो गया था। अब उन्हें चिंता नहीं थी, संध्या की तरफ से। वो लोग अपने घर शिफ्ट हो गए। भूपेंद्र जी के लिए दूर तो था....पर उस वक्त संध्या को परिवार की जरूरत थी। संध्या के मम्मी पापा चाहते थे कि डिलिवरी दिल्ली में हो, पर संध्या ने मना कर दिया क्योंकि वो चाहती थी कि इस टाइम वो अपने परिवार में सबके बीच रहना चाहती थी। भूपेंद्र जी के दोनो भाई हर वक्त अपनी भाभी की सेवा में हाजिर रहते। दोनो भाई कॉलेज में भी पढते थे और बाबा की खेतो में मदद भी करते थे। रेगुलर कॉलेज नहीं था दोनो का पर दोनो ही बहुत होशियार थे पढने में और अपने बाबा से ज्यादा अपने बड़े भाई से डर लगता था उन दोनो को....। "May I Come in sir"? आवाज सुन कर वो गाँव से फिर अपने कमरे में लौट आए। मिस्टर गुप्ता खड़े थे जो अंदर आने की इजाजत माँग रहे थे। "आइए गुप्ता सर, बैठिए" कह कर उन्होंने अपने सामने की कुर्सियों की तरफ इशारा किया और गुप्ता सर इशारा पा कर बैठ गए।
क्रमश: