Motorni ka Buddhu - 3 in Hindi Fiction Stories by सीमा बी. books and stories PDF | मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-3)

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मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-3)

मॉटरनी का बुद्धु (भाग-3)

भूपेंद्र का M.A हो गया और संध्या की B.A...!
दोनो एक दूसरे के टच में रहे। एक दूसरे को बातें बताना उन दोनो को ही अच्छा लग रहा था। भूपेंद्र को टीचर बनना था तो उसने बी.एड में एडमिशन ले लिया उसने संध्या को भी बी.एड करने के लिए मना लिया। अनमने मन से ही सही उसने एडमिशन ले लिया। धीरे धीरे संध्या को भी अच्छा लगने लगा। भूपेंद्र के घर के हालात ज्यादा अच्छे नहीं थे तो उसने अपने दोस्त के कहने पर जूनियर्स को पढाना शुरू कर दिया। उसके अंदर अपने परिवार के लिए कुछ करने की इतनी ललक थी कि वो किसी काम को करने से कतराता नहीं था। इन 3-4 सालों मे वो इतना तो समझ गया था कि संध्या जिस परिवार से है वहाँ तक उसकी पहुँच मुश्किल है। वो आलीशान कोठी में रहती थी, उसे लगने लगा था कि उन दोनो का रिश्ता दोस्ती से आगे बढ नहीं सकता तो धीरे धीरे वो खुद को पीछे हटने के लिए तैयार कर रहा था। बी.एड करके उसकी जल्दी ही नौकरी लग गयी थी और संध्या को न जाने क्या सूझा कि उसने ऐलान कर दिया कि वो नौकरी नहीं करेगी, उसे तो अपनी माँ की तरह होम मेकर बनना है। भूपेंद्र को जब पता चला तो उसने बहुत समझाया कि आगे पढो और पढती रहो, पर वो अपने फैसले से टस से मस नही हुई तो भूपेंद्र ने कहा," ठीक हा अगर दोस्त का कहना नहीं मानना तो अब आगे से नहीं कहा जाएगा", उसने ऐसा कह कर संध्या को इमोशनली ब्लैकमेल करना चाहा पर वो बोली," हाँ आगे से न कहना" और बात आयी गयी हो गयी। संध्या के घरवालों ने लड़के देखने शुरू कर दिए, शादी के लायक तो हो ही गयी थी। भूपेंद्र को जब संध्या ने बताया तो उसका दिल टूट गया, पर ऊपर से बोला," बिल्कुल ठीक है, कुछ करना नहीं तो शादी करके ससुराल जाओ"! "हाँ तो बुद्धु मैं तो तैयार हूँ, कब आ रहे हो शादी करने"? भूपेंद्र को लगा उसने गलत सुना है, उसने दोबारा पूछा तो संध्या ने कहा," तुम ने सही सुना है"! भूपेंद्र को समझ ही नहीं आया कि, "वो क्या कहे, क्या नही"? वो संध्या के मन की बात जानकर बहुत खुश हुआ पर अगले ही पल दोनो के परिवारों के बीच जो स्टेटस की खाई थी, उसको भरना फिलहाल मुमकिन नहीं था। उसने अपना डर संध्या के बताया," तुम चिंता मत करो, बस पहले अपने घर पर बात कर लो, फिर आगे मैं देख लूँगी, उसके आत्मविश्वास से भूपेंद्र को भी हिम्मत मिल गयी। संध्या ने कभी उसे नहीं कहा कि वो अपना गाँव या परिवार को छोड़ कर दिल्ली में बस जाए, बस वो खुद ही डरा करता था कि दिल्ली की लड़की गाँव में कैसे Adjust करेगी..... पर वो बहुत बेफिक्र थी, इसे अपने पर विश्वास था और भूपेंद्र को उसके विश्वास पर विश्वास....। पहली नौकरी बहुत दूर थी उसकी अपने गाँव से बहुत ही पिछड़ा सा गाँव था, टीचर्स नाम को पढाने आते थे बहुधा तो ऐसा होता कि एक साथ ही 15 दिन के साइन बना पीछे मुड़ कर देखा ही नहीं करते थे.....जब उसने संध्या को स्कूल का हाल बताया तो वो तपाक से बोली," तुम वहाँ पढाने गए हो तो बस वही काम करना है, लोग क्या कर रहे हैं उनको मत देखो....मेरे पापा के दामाद बनने वाले हो सरकार के नहीं"! उस दिन उसे संध्या की एक और खूबी पता चली, "अपने काम को इमानदारी से करने की"! वो उसे बताता कि, "गाँव में बहुत मुश्किल से जरूरत का सामान मिलता है, ऐसे कैसे रहा जाएगा संधु"? वो कहती," तुम मुझे Excuse मत दिया करो अपने आलसीपन को छुपाने के लिए....अपने आसपास के लोगो से दोस्ती करो और पता करो कि क्या चीज कहाँ मिलती है, दूर मिलती है तो छुट्टी के दिन पूरे हफ्ते का सामान ला कर रखा करो"! "संधु तुम तो बिल्कुल नकारा समझ लेती हो मुझे...मैं नहीं कर रहा बात"! उसकी बात पर हँसते हुए कहती," तुम नकारा नही हो बस बुद्धु हो"! घर में वो सबसे बड़ा था तो थोड़ा बहुत खाना बना लेता था बाकि जब भी वो संध्या से बात करता तो वो बता देती। मेरी हर छोटी सी छोटी चीज पर उसकी पैनी नजर थी तो मैं उससे कुछ छुपा नहीं पाता था। बात रोज बेशक नहीं होती थी पर उसके साथ होने का एहसास हमेशा रहता। गाँव में सही से घर बनवा कर भूपेंद्र ने अपने घर में संध्या के बारे में बताया तो उन लोगो को भी संध्या के पैसे वाले परिवार से होना शंका में डाल रहा था पर बेटे की खुशी में उन्होंने हाँ कर दी तो वो दोनो बहुत खुश हो गए थे अब बारी संध्या की थी तो उसने सबसे पहले अपने दिल की बात अपनी दादी को बतायी तो बोली, " अगली बार फोन आए तो मेरी बात जरूर कराना फिर तेरे पापा से बात करूँगी"। पहली बार उसकी दादी से बात करने में वो बहुत घबरा रहा था, पर दादी ने बहुत प्यार से बात की तो वो सहज हो गया। उसने सबसे पहले कहा, " दादी चरण स्पर्श करता हूँ", वो बात दादी को अच्छी लग गयी। अपनी पोती के लिए लड़का तो भा गया, पर गाँव में रहना होगा सोच कर उनको चिंता हो रही थी। जब घर के बच्चे अपनी जिद पर अड़ जाएँ तो माँ बाप को झुकना ही पड़ता है। संध्या ने जैसा कहा, वैसा ही किया भी। उसके माँ पापा को भी मानना ही पड़ा। संध्या के मम्मी पापा भूपेंद्र से मिले और बात पक्की करने और उनका घर देखने के बहाने वो गाँव भी गए। लोग उन्हें अच्छे लगे और भूपेंद्र हर लिहाज से उनकी बेटी के लायक था इस बात को इमानदारी से माना भी। संध्या के पापा को रिश्तेदारों ने खूब नसीहते और ताने दिए पर उनके अपने बहन भाई और माँ को रिश्ते से कोई परेशानी नहीं थी तो वो खुश थे, पर संध्या के मम्मी को अपने परिवार वालों से खूब सुनने को मिला तो वो काफी नाराज थी संध्या और उसके पापा से पर शादी तो हो गयी। माहौल जैसा भी था पर भूपेंद्र और संध्या बहुत खुश थे अपनन बिल्कुल सादी सी शादी से।अमीर घर की लड़की की शादी में बस दोनो के परिवार शामिल हुए तो कई कयास लगाए गए, बातें बनी पर शादी हो कर संध्या ससुराल आ गयी। दहेज के नाम पर भूपेंद्र नें बस एक अंगूठी ली और संध्या कपडो़ और गहनो के सिवा कुछ नहीं ला पायी, पर कहते हैं न कि बच्चे अपने माँ बाप को देख कर सीखते हैं। वो भूपेंद्र की दोनो बहनो के लिए और अपनी सास के लिए छोटे छोटे सेट ले कर आयी थी, जो उसने अगले दिन दिए। उसके भाइयों के लिए भी भी गिफ्ट लायी थी। भूपेंद्र को पूरा यकीन हो गया कि उसने सही लड़की को अपना जीवनसाथी बनाया है। पूरे गाँव में भूपेंद्र की शादी और दुल्हन की चर्चा थी। भूपेंद्र के पापा बहुत ही सहज और सरल इंसान थे, वो अपनी गुडिया सी बहु पा कर खुश थे.....मोबाइल में अलार्म बजा तो भूपेंद्र जी यादों से बाहर निकले देखा तो सुबह के 5 बज गए। एक और रात बूत गयी थी संध्या की यादों के साथ बिना सोए। बिस्तर से उठ कर फ्रेश हुए और वॉक पर चल दिए। वॉक पर जाने से पहले, "संधु वॉक पर जा रहा हूँ, अभी तुम सो लो मैं गेट बाहर से लॉक करके जा रहा हूँ", कहना नही भूले। पर पहले की तरह "हम्म ठीक है" कि आवाज नहीं आती तो वो खुद ही संधु का जवाब भी दे देते हैं।
क्रमश: