अभी तक आपने पढ़ा कि अदिति ने अनाथाश्रम में जैसे ही चार-पाँच दिन के छोटे से बच्चे को देखा उसने विजय से कहा मुझे यही बच्चा चाहिए। अनाथाश्रम ने कुछ दिनों के इंतज़ार के बाद उन्हें बच्चा सौंप दिया। वे दोनों उस बच्चे को लेकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर आ गए। इस समय अदिति मातृत्व प्रेम से सराबोर हो रही थी।
वह घर पहुँचे तो विमला ने आरती की थाली लेकर उस बच्चे और अदिति का स्वागत किया। आरती उतारकर वह उन्हें अंदर लेकर आई। सब बच्चे को अपनी- अपनी गोद में ले रहे थे। घर पर उसकी ज़रूरत का सारा सामान आ चुका था।
विमला ने कहा, "अब हमें इस बच्चे का बहुत ख़्याल रखना है। उसे कभी किसी भी चीज की कमी नहीं होने देना।"
सब बहुत ख़ुश थे। घर में उसके आने की ख़ुशी में एक बड़ा सा आयोजन भी रखा गया। जिसमें सभी रिश्तेदारों और दोस्तों को बुलाया गया। आज उसका नामकरण संस्कार था। सबने मिलकर उसका नाम रखा पारस।
धीरे-धीरे समय की रफ़्तार के साथ-साथ पारस भी एक वर्ष का होने वाला था। तभी एक दिन अदिति की तबीयत गड़बड़ लग रही थी। विजय उसे डॉक्टर को दिखाने लेकर गया। डॉक्टर ने अदिति को देखने के बाद कहा, "बहुत ही आश्चर्य की बात है. . .," वह मन ही मन स्वयं ही बुदबुदा रहे थे शायद उन्हें ख़ुद पर विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने बाजू के केबिन से अपनी पत्नी डॉ अर्चना जो कि गायनेक थीं, उन्हें बुलाया और धीरे-धीरे उनसे कुछ कहने लगे।
डॉक्टर अर्चना ने तुरंत ही अदिति को चैक किया। दरअसल वे विजय के फैमिली डॉक्टर थे। अर्चना ने चैक करने के बाद एक राहत भरी साँस लेते हुए अदिति से कहा, "बाहर आ जाओ।"
उसके बाद फिर डॉक्टर अर्चना ने अपने हाथ साबुन से धोते हुए कहा, "आप दोनों के लिए एक बहुत ही बड़ी ख़ुश ख़बर है।"
"क्या हुआ डॉक्टर?"
विजय और अदिति ने जो सपने में भी सोचना बंद कर दिया था, ऐसी ख़बर डॉक्टर ने उन्हें सुनाते हुए कहा, "आप दोनों अपना दिल थाम कर सुनना। अदिति माँ बनने वाली है।"
यह चमत्कार कैसे हो गया, भगवान ही जाने। पिछले दस साल में अब तो कोई उम्मीद ही नहीं बची थी। उस समय अदिति और विजय इस ख़बर को सुनकर ख़ुश होने से ज़्यादा आश्चर्यचकित हो रहे थे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे रिएक्ट करें।
तभी डॉ अर्चना ने उनके हाथों में मिठाई का डब्बा देख लिया और मुस्कुराते हुए कहा, "अदिति मिठाई? क्या तुम जानती थीं?"
"नहीं डॉक्टर, यह मिठाई तो मेरे बेटे के घर आने की ख़ुशी में है।"
"बेटे के . . . कौन-सा बेटा?"
अपने मोबाइल में से पारस की तस्वीर दिखाते हुए उसने कहा, "डॉक्टर यह देखिए हमने इसे अनाथाश्रम से गोद लिया है और देखिए ना इसे आने को अभी वर्ष भी पूरा नहीं हुआ है और इसके क़दम ऐसे शुभ पड़े कि मैं . . . !"
"यह तो बहुत ही ख़ुशी की बात है अदिति। तुम दोनों ने बहुत ही नेक काम किया है शायद इसीलिए भगवान ने तुम्हारी झोली में एक और संतान दे दी।"
उसके बाद डॉ अर्चना ने कुछ दवाइयाँ और बहुत सारी हिदायतें देकर उन्हें कहा, "ऑल द बेस्ट अदिति अपना ख़्याल रखना।"
"डॉक्टर सब ठीक तो है ना?" विजय ने प्रश्न किया।
"फिलहाल तो सब ठीक ही लग रहा है। हर माह चैकअप के लिए आते रहना होगा।"
"ठीक है डॉक्टर थैंक यू," कहते हुए विजय ने अदिति के हाथ से मिठाई का डब्बा लेकर डॉक्टर को दे दिया और कहा, "यह हमारे बड़े बेटे के घर आने की ख़ुशी में है डॉक्टर।"
बाहर निकलते समय अदिति और विजय बहुत ख़ुश थे। उन्होंने एक दूसरे को देखा पर बोल कुछ भी ना पाए। घर जाकर उन्होंने अपनी माँ और पापा जी को यह गुड न्यूज़ सुनाई। यह ऐसी ख़बर थी जिस पर एकदम से यक़ीन करना मुश्किल था।
विमला ने अचरज भरी नज़रों से कहा, "क्या तुम सच कह रही हो?"
"हाँ माँ बिल्कुल सच है।"
सभी की ख़ुशियों का ठिकाना ना रहा।
पारस को चूमते हुए विमला ने कहा, " कितना क़िस्मत वाला है तू। तुझे अकेले ना रहना पड़े इसका इंतज़ाम आते से ही कर दिया। कितने अच्छे क़दम लेकर घर में आया है।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः