Choutha Nakshatra - 8 in Hindi Fiction Stories by Kandarp books and stories PDF | चौथा नक्षत्र - 8

The Author
Featured Books
Categories
Share

चौथा नक्षत्र - 8

अध्याय 8

( कनेर का पेड़ )

सुरभि की आवाज सुनकर चित्रा और मुग्धा नें सुरभी की ओर देखा और फिर वह दोनों एक दूसरे को देख कर हँस पड़ी । सुरभि की खीज बढ़ती जा रही थी । ‘छोड़ो इन दोनों को ...यह दोनों तो आते आते साल लगा देंगी ‘ उसने मन ही मन सोचा और तेजी से कैंटीन की ओर बढ़ गयी ।

“अरे सुरभि रुको यार ....हम दोनों आ रहे हैं ।”

पीछे से चित्रा का तेज स्वर वह सुन रही थी लेकिन उसके पैर नही रुके । कुछ तो उन दोनों की कछुआ चल से पैदा हुई खीज और कुछ पेट मरोड़ती भूख की वजह से उसका गुस्सा बढ गया था । लेकिन कैंटीन के सामने पहुँचते ही उसके पैर रुक गए ।कैंटीन की सफेद इमारत से सटे हरी घास के लान में कमल बैठा था ।

लान के बीचों बीच कनेर का एक बड़ा सा पेड़ था । पीले ट्यूब नुमा फूलों से सजा वह पेड़ इस वक्त कमल का शरणदाता बना हुआ था । कमल इसी कनेर की छाया में पालथी मार कर घास पर बैठा था ।

इन पंद्रह दिनों में अक्सर कैंटीन आते जाते सुरभि ने गौर किया था कि एक पीली -सफेद कुतिया और उसके चार पिल्ले कैंटीन के आस-पास घूमते रहते थे । पिल्लों को पैदा हुए अभी ज्यादा दिन नही हुए थे और वह कैंटीन आने जाने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए थे । लेकिन पिल्लोंं की माँ को यह पसंद न था ।

कमल इस समय उन पिल्लों से घिरा हुआ था । एक पिल्ले को उसने अपनी गोद में उठा लिया था और सहला रहा था । पिल्ला उसकी गोद में शांत लेटा हुआ था । बाकी तीनो पिल्ले भी कमल की गोद में चढ़ने की कोशिश में थे । चित्रा का कजन भी उसके पास ही बैठा था । उसकी पीठ कमल की पीठ से सटी हुई थी और मुँह दूसरी ओर था । अभी अभी उसने एक बर्गर कैंटीन से लिया था जिसे वह खा रहा था । उस का नाम विजय था ।

सुरभि की जिज्ञासा बढ़ने लगी । कमल की आँखों में स्नेह था । उसकी हथेलियों से निकलता प्रेम का स्पर्श वह देख पा रही थी । सुरभि को लगा जैसे कमल अपने ह्रदय का सारा प्यार उन जीवों पर उड़ेल देना चाहता था। वह एकटक कमल को देख रही थी । वह उसे आकर्षित कर रहा था । उसकी स्नेह भरी आँखे सुरभि के मन का एक महीन सा धागा पकड़ कर अपनी ओर खींच रही थीं । सुरभि के पैर अपने आप कनेर के पेड़ की ओर बढ़ गए ।

वह कमल के काफी करीब आ गयी थी । कमल का सारा ध्यान अपने गोद में बैठे और आस-पास फुदकते पिल्लों पर ही था ।

अरे बाप रे ...भाग कमल ..।”

अचानक विजय चिल्ला पड़ा । न जाने कैसे अचानक ही से पीली-सफेद कुतिया बड़ी आक्रामक मुद्रा में भौंकती हुई आ गयी थी । उसे इंसानो का अपने बच्चों के पास आना अच्छा नही लग रहा था । कुतिया कमल के काफी पास आ गयी थी ।हड़बड़ा कर कमल नें पिल्ले को अपनी गोद से उतार दिया ।पिल्लों से दूर जाने की हड़बड़ी में उसे यह भान न रहा की कोई उसके बिल्कुल पास खड़ा है । संभलते-संभलते भी कमल की सुडौल चौड़ी छाती सुरभि के कोमल बदन से टकरा गयी ।सुरभि अचानक हुई इस मुठभेड़ के लिए तैयार न थी । पीछे हटते हुए उसके कदम लड़खड़ा गए । वह लगभग गिरने ही वाली थी लेकिन कमल की दो मजबूत बलिष्ठ भुजाओं ने पीले रेशमी साटन में कसी उसकी नाजुक कमर को कस कर थाम लिया । घुँघराले काले बालों का एक गुच्छा उसके चम्पई गालों पर बिखर गया । मर्दाने कोलोन की हल्की सी महक उसकी सांसों में घुलने लगी । यह महक उसके लिए बिल्कुल नई थी । उसकी पलकें मुंद गयी थीं । कमल की धड़कनें बढ़ने लगी थीं । कमल के सीने में बढ़ती धड़कनों को वह अपने बदन पर महसूस कर सकती थी ।कमल की साँसों की रफ्तार बढ़ती जा रही थी । उसकी साँसों की आवाजाही भी वह अपने सुर्ख होठो पर महसूस कर पा रही थी । उसकी कमर पर कसा हुआ कमल की बाँहों का मजबूत घेरा मानो गरम हो गया था। उसे लगा जैसे कमल ने उसका सारा भार अपनी दोनो भुजाओं में उठा लिया हो । उसे लगा जैसे वह बहुत हल्की हो गयी है । उसके पैर कांपने लगे थे । लड़खड़ाने से बचने के लिये उसने अपनी उंगलियां कमल के कंधों पर रख दी ।

यह क्या अहसास था ? क्यों वह मुंदी हुई पलकें खोलना नही चाह रही थी ? क्यों वह कमल के थरथराते दिल की धड़कन महसूस करते रहना चाहती थी ? क्यों वह उन बांहों के घेरे को तोड़ना नही चाह्ती थी ? ....क्यों ?

ओ माई गॉड ...यह डॉगी ....कितने बार तुम्हे कहा है इसके पिल्ले से दूर रहो

विजय कुतिया को देखता हुआ बोलता जा रहा था । कुतिया अपने पिल्लों को सुरक्षित पा कर शांत हो गयी थी और थोड़ा दूर चली गयी थी ।

हड़बड़ा कर सुरभि ने कमल के कंधे से अपना हाँथ हटा लिया ।

-------- क्रमशः

----- कंदर्प

*************************************************

कहानी को प्यार देने के लिए धन्यवाद