महक उदास मन भीगी आँखो से सड़क के उस पार टूटे -फूटे खपरैल के घर की ओर निहारते हुए उन एहसासों को तक रही थी जिसे अन्जाना दुश्मन मन में घुस कर उससे छीन कर ले गया था |
"अरे मम्मी बचाओ! दूर हटो डॉगी कहींके ! भागो यहाँ से !" पार्क में खेलते हुए महक एक पिल्ल से डर कर चिल्लाने लगी | वो उसके कदमो के साथ दौड़ता हुआ उसके पैरों को छूने की कोशिश कर रहा था| "मम्मी ये काट लेगा!" वो पार्क के बेंच पर चढ़ कर लगातार चिल्ला चिल्ला कर पिल्ले को भगाती जा रही थी | उस पिल्ले के जाने का इंतज़ार करते हुए वो काफी देर तक डर कर बेंच पर खड़ी रही | तभी लगभग उस के उम्र की हलके भूरे बाल, सावला रंग और साधारण सी फ्रॉक मेँ एक लड़की ने झट से उस पिल्ले को गोद में उठा लिया | "अरे ये तो छोटा सा पिल्ला है, साथ में खेलता है काटेगा नहीं" "सच में?" महक की जान में जान आगयी| डरी सहमी हुई वो धीरे से बेंच से उतर आयी| "हाँ इसको छुओ कितना मुलायम है"| उसने धीरे से हाथ बढाकर उस पिल्ले को छुआ| वो बिलकुल नरम रुई जैसा था| "इसका परिवार यहीं पार्क के कोने में रहता है" वो बात को आगे बढ़ाते हुए बोली| अब महक को एक दिलचस्प खेल के साथ एक निडर साथी और महत्पूर्ण जानकारियों को अपने अंदर समेटे हुए एक बहुत अच्छी दोस्त मिल गयी थी| वो ज़ोया थी | ज़ोया पार्क के पास वाली आबादी में रहती थी | कुल मिलाकर उसके परिवार में उसको मिलकर तीन सदस्य थे| एक छोटा सा गोल मटोल भाई जो अभी बोलना सीख ही रहा था, एक बुआ जो भैय्या-भाभी के स्वर्गवास के बाद दोनों बच्चो की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधो पर ले ली थी और नुक्कड़ पर चाय का स्टाल चला कर परवरिश कर रही थीं | ज़ोया अपने मुहल्ले के सरकारी स्कूल की होनहार छात्रा थी | महक अब कभी पिल्ले के परिवार की जानकारी लेने के लिए उत्सुकता दिखती तो कभी पार्क में ऊँचे से नीम के पेड़ पर बने चिड़िया के घोसले के बारे में जानना चाहती | "वह जो दो टहनियों के बीच चिड़िया का घोसला है न उसमे चिड़िया के दो बच्चे कल ही अंडा तोड़ कर निकले हैं |ज़ोया बताती जा रही थी और महक के लिए उसकी सारी बातें अचम्भे में डालने वाली थीं आखिर कहाँ से मिलता है ज़ोया को इतना ज्ञान ? कौन बताता होगा ज़ोया को इन जानवरों और परिंदों के बारे में ? आज लगातार तीसरा दिन था महक पार्क में खेलने नहीं आई थी ।दोनों को एक दूसरे से रोज़ मिलने और खूब ढेर सारी बातें करने की आदत हो चुकी थी । अब ज़ोया महक के पार्क में न आने की वजह जानने के लिए फिक्रमंद होने लगी थी । उसके आहिस्ता -आहिस्ता संकोच के साथ बढ़ते हुए क़दम महक के आलीशान बंगले पर ठिठक गए । पता नहीं ये वर्दी वाले अंकल कुछ बताएंगे या नहीं ? वो अभी सोंच ही रही थी कि किसी कि पतली मीठी आवाज़ से वो चौंक गई ।क्या आप ज़ोया हैं बेटे? हलकी पीली सारी उसी से मैच करती हुई माथे पर छोटी सी बिंदी लगाए एक प्यारी सी महिला उससे पुछा ।घबराते हुए ज़ोया ने सिर्फ हाँ में सर हिला दिया ।ज़ोया कि घबराहट भांपते हुए महिला ने मुस्कुराते हुए अपने पीछे आने का इशारा कर अंदर दाखिल हो गईं।महक ! देखो तो कौन आया है तुम्हारी दोस्त ज़ोया । वो महक कि मम्मी थीं ,शायद महक ने सभी को उसके बारे में इतना विस्तार से बताया होगा कि उस कि मम्मी को देखते ही पहचान गई थीं । ज़ोया का नाम सुनते ही तीन दिन से बुखार में पस्त महक में जान पड़ गई थी । सच में बचपन कितना मासूम होता है अमीर - गरीब, ऊंच -नीच रंग भेद से परे अहसासों कि दुनियां जहाँ फैसलों कि ज़िम्मेदारी दिल पर होती है ।दोनों कि दोस्ती बिलकुल परियो कि खूबसूरत कहानी जैसी थी । अब ज़ोया का उसके पास रोज़ आना- जाना होने लगा उसकी तबियत दिन ब दिन बेहतर होती गई ।महक तुमने दवाई ले ली या मै दे दूँ ? महक तुमने खाना खाया या में ला दूँ ? महक तुमने स्कूल का काम पूरा किया या मै मदद करूँ ? वो अब उस घर का हिस्सा बन चुकी थी ।उस घर में मम्मी , दादी सभी के दिल में ज़ोया अपनी प्यारी छवि बना चुकी थी । ज़ोया बेटा मेरा चश्मा नहीं मिल रहा है क्या तुम मुझे रामायण का पाठ सुना दोगी? पूजाघर से आती दादी की आवाज़ पर "जी दादी " कहकर उनको रामायण का पाठ सुनाना , मम्मी को अकेले काम करते देख झट से उनके काम में हाथ बटाना । घर में महक से ज़्यादा बाऱ ज़ोया की पुकार होने लगी शायद महक अपने मन में चुभन सी महसूस करने लगी या शायद वो अपने साम्राज्य को छिनता हुआ सा महसूस करने लगी थी जिसने महक के मन में ईर्ष्या को पैदा कर दिया वो घर में अपने वजूद को बचने के लिए और ज़ोया को अपने घर से दूर करने के लिए कभी कांच का गिलास तोड़ कर उसका इल्ज़ाम ज़ोया को देती तो कभी कॉपी फाड़ कर सबकी नज़रो में ज़ोया को गिराने की कोशिश करना । मम्मी ! कल जो कुर्सी पर च्विंगम लगी थी न जिस पर आप बैठने वाली थीं वो ज़ोया ने लगाया था, आपकी साडी ख़राब हो जाती तो ? अरे नहीं बेटा गलती से लग गई होगी । अपनी कोशिशें नाकाम होती देख कर वो तिलमिला जाती । आज सुबह दादी ने ज़ोया से रामायण का पाठ सुनने के लिए जल्दी बुलाया था। वो दादी के साथ सात बजे से ही पूजाघर में थी ।पड़ोस के शर्मा जी ने पूरे घर के लोगों को भोज पर बुलाया था ।दादी ज़ोया को भी अपने साथ भोज में ले जाना चाहती थी लेकिन महक को बिल्कुल नागवार लग रहा था उसका दादी के साथ भोज में जाना । महक की ईर्ष्या ने बेकाबू होकर दिमाग पर भी क़ब्ज़ा कर लिया अब वो किसी भी कीमत पर ज़ोया से पीछा छुड़ाना चाहती थी । ज़ोया पूजाघर से निकल कर मम्मी की मदद करने लगी । आज वो बहुत खुश थी क्योंकि वो अपने बाबा -अम्मा के देहांत होने के बाद पहली बाऱ परिवार के साथ कहीं जा रही थी । अपनी ही धुन में मस्त जोया की ख़ुशी एक चीख के साथ पीड़ा में उस समय बदल गई जब फर्श पर पड़े हुए पानी में उसका पैर पड़ते ही फिसल कर धड़ाम की आवाज़ के साथ वो ज़मीन पर आ गिरी अरे अम्मा ! मेरा पैर ,वो दर्द से कराह रही थी पर महक के चेहरे पर मुस्कुराहट थी । दादी जो छड़ी के सहारे से ही चला करती थीं ज़ोया की चीख सुनकर लड़खड़ाते क़दमों से उस की तरफ भागी । अरे !! बेचारी बिन माँ की बच्ची को क्या हुआ कैसे गिर गई हे भगवान ! महक की ये मुस्कराहट मुस्कराहट उसका ज़्यादा देर तक साथ नहीं दे सकी जब उसकी कराह सुनकर मम्मी रसोई से भागती हुई आईं । क्या हुआ बेटा कहाँ चोट लगी हे भगवन में क्या मुंह दिखाउंगी बच्ची के घर वालो को ? मम्मी और दादी के अल्फ़ाज़ों से महक की मुस्कराहट पछतावे में बदल गई उनकी बातें उसके मन पर जमी कड़वाहट पर मनो पानी डालने जैसा काम कर रही थी उसे अपने गलत होने का एहसास हो गया था । डॉक्टर ने ज़ोया को एक महीने का बेड रेस्ट बताया था इस लिए वो महक के घर चार दिन से नहीं आई थी । महक के घर में सभी उदास थे । हंसी ठहाकों की जगह ख़ामोशी ने ले ली थी । दादी बार - बार अपना चश्मा टटोल कर लगाती और रामायण का पाठ बिना किए उतार कर रख देतीं । रमेश काका! ये पनीर की सब्ज़ी ज़ोया को बहुत पसंद है उसको जल्दी से दे आइये हाँ और ये बोल दीजियेगा मम्मी ने बोला है गरम - गरम खा लेगी । बालकनी में खड़ी महक के कानो में मम्मी की आवाज़ ने उसे पश्चाताप करने के लिए उम्मीद का दरवाज़ा खोल दिए था । अब महक की बारी थी मन के एहसासों का सम्मान करते हुए अपनी प्यारी दोस्ती को संजोने की । मम्मी ! काका के साथ मै जाउंगी । ज्यों - ज्यों महक ज़ोया की तरफ बढ़ती जा रही थी उसके मन का बोझ हल्का होता जा रहा था ।