Elf in Hindi Motivational Stories by Captain Dharnidhar books and stories PDF | अप्सरा

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अप्सरा

तिलोत्तमा कश्यप और अरिष्टा की कन्या थी जो पूर्वजन्म में ब्राह्मणी थी और जिसे असमय स्नान करने के अपराध में अप्सरा होने का शाप मिला था। एक दूसरी कथा के अनुसार यह कुब्जा नामक स्त्री थी जिसने अपनी तपस्या से वैकुंठ पद प्राप्त किया था। उस समय सुंद और उपसुंद नामक दो राक्षसो ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। वरदान देने के लिए ब्रह्मा जी प्रगट हुए । ब्रह्मा जी को अपनी तपस्या से प्रसन्न जान दोनो बहुत खुश हुए । ब्रह्मा जी से दोनो ने एक स्वर मे कहा । ब्रह्मदेव आप हमे अमर करदे। हमारी मृत्यु ही न हो। ब्रह्मा जी ने कहा, हे दैत्यो ! जो जन्मा है उसे मरना होगा। अतः आप कोई ओर वरदान मांगलो । दोनो राक्षस भाई थे । इनके शरीर दो थे, परन्तु आचार विचार दोनो के एक ही थे । दोनो राक्षस एक साथ रहते थे । सोना उठना बैठना सब एक साथ होता था । दोनो का आपस मे प्रेम इतना था कि वे एक दूसरे के वगैर रह नही सकते थे ।दोनो ने विचार किया कि हमे हमारे सिवाय कोई ओर नही मार सके,यही वरदान दे दीजिए ब्रह्मा महाराज ! ब्रह्मा जी एवमस्तु कह कर अन्तर्ध्यान हो गये । अब दोनो राक्षस मौत के खौफ से बेखौफ हो गये । दोनो राक्षसो का अत्याचार बहुत बढ़ता गया । इसलिये उनके संहार के लिए ब्रह्मा ने विश्व की उत्तम वस्तुओं से तिल-तिल सौंदर्य लेकर एक अपूर्व सुंदरी की रचना की (इसी से इसकातिलोत्तमा नाम पड़ा)।
उस तिलोत्तमा को ब्रह्मा जी ने आदेश दिया । हे सुंदरी तुम देवो के हित के लिए अपने रूप सौन्दर्य से इन दोनो दैत्यो के संहार का कारण बनो । तिलोत्तमा ने स्वीकार किया और कहा ब्रह्मदेव मै यत्न करूंगी । तिलोत्मा इठलाती हुई बलखाती हुई उन दैत्यो को अपने काम कटाक्ष से देखते हुए उनके समीप से निकली । दोनो दैत्य उस रूप सुन्दरी के रूप को देखकर मोहित हो गये । दोनो दैत्य तिलोत्तमा को पाने के लिए लालायित हो गये । तिलोत्तमा के समीप जाकर उसका बड़े प्रेम से मधुर शब्दो से स्वागत कर परिचय लेने लगे । अप्सरा ने कहा हे महाबली मेरा परिचय मेरा रूप है मुझे स्वयं ब्रह्मा जी ने अद्वितीय रूप दिया है और कहा है मेरा वरण जो करेगा वह अजेय होगा,उससे काल भी डरेगा । ऐसा कहकर उन दैत्यो के हृष्ट-पुष्ट शरीर की प्रशंसा करने लगी । सुंद उपसुंद ने कहा हे रूप की देवी हम दोनो भ्राता ही अजेय है हम अमर है हमे कोई मार नही सकता आप हम दोनो से विवाह कर लो । तिलोत्तमा बोली मेरा प्रण है मै विवाह तो किसी एक यौद्धा से ही करूंगी आप दोनो मे कोई एक ही मुझे पा सकता है । दोनो आपस मे बतलाने लगे सुंद इससे मै विवाह कर लेता हूँ । उपसुंद कहने लगा भैया इससे विवाह मै करूंगा । तिलोत्तमा बोली आपमे कौन वीर है यह निर्णय कर लो । मेरे पास अधिक समय नही है । मै किसी ओर यौद्धा का वरण करने चली जाऊंगी । दोनों राक्षस उसे पाने के लिये आपस में लड़ने लगे और दोनों एक दूसरे के द्वारा मारे गए।
अतः कहानी से शिक्षा मिलती है हमारी सुख भोग की इच्छाए सहोदर भाई से द्वेष का कारण बनती है । स्त्री कोई वस्तु नही जिसका उपभोग किया जाये । स्त्री किसी एक की पत्नी बन कर रहे तो श्रेष्ठ है । नही तो विवाद होगा । यही कहानी पांडवो को वेदव्यास जी ने सुनाई थी जब वे द्रोपदी को ब्याह कर लाये थे । और कहा था । हे पाण्डु पुत्रो द्रोपदी विवाद का कारण न बने । द्रोपदी एक एक वर्ष किसी एक की पत्नीवत रहे,तो तुम भाईयो झगड़ा नही होगा । एकता बनी रहेगी । वर्ना तुम खुद ही आपस मे लड़कर नष्ट हो जाओगे ।
✍कैप्टन