Choutha Nakshatra - 7 in Hindi Fiction Stories by Kandarp books and stories PDF | चौथा नक्षत्र - 7

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चौथा नक्षत्र - 7

अध्याय 7

मधुलिका की ससुराल

त्रिलोचन पांडे की पत्नी .......सुरभि और सौरभ की माँ...... मधुलिका । मधुलिका के ससुर दीनानाथ जी की काशी के ब्राह्मण समाज में काफी इज्जत थी और दबदबा भी अच्छा खासा था । उनके कई पुरखे समाज के सम्मानित पदों पर रह चुके थे । वह स्वयं भी समाज की कई समितियों की शोभा समय समय पर बढ़ा चुके थे ।ज्योतिष के तो वह गूढ़ ज्ञाता थे ।लोग कहते थे कि उनकी जिह्वा पर शारद का वास है । उनकी विद्वत्ता और ज्ञान की तरह ही उनका रोबीला व्यक्तित्व भी सुप्रसिद्ध था ।

उनके व्यक्तित्व की ऊष्णता का भार अगर कोई उठा सकता था तो वह स्वयं उनकी धर्मपत्नी ही थीं । धर्म -कर्म और पूजा- पाठ में वह दीनानाथ जी से चार कदम आगे थीं । सुबह सवेरे दीनानाथ जी के उठने से पहले वह उठ जाती थीं। ब्रह्म मुहूर्त में ही पूरे घर में स्वयं झाड़ू लगाकर साफ-सफाई कर लेती ।उसके बाद स्नान कर वह पूजा की तैयारियों में लग जातीं । पौष की कड़कड़ाती सर्दी हो या भादों की झमाझम बरसात ,उनका यह नियम एक दिन भी नहीं टूटता था ।दीनानाथ जी स्नानादि से निवृत हो कर पूजाघर में आते तब तक वह सब तैयारियां कर लेतीं । आरती के पात्र, ,आचमनी का लोटा , पूजा के थाल, घंटियां आदि सभी कुछ धो माँज कर एकदम चमक देतीं । उसके बाद वह रसोई घर में चली जातीं ।दिन भर दीनानाथ जी अपने जजमानों की समस्याओं, समाज की गतिविधियों और पत्रा-कुंडली में व्यस्त रहते और शाम ढलने तक घर आते ।जब वह घर पहुँचते तब तक उनकी पत्नी संध्या आरती की तैयारी कर रही होतीं ।

दीनानाथ जी के पुश्तैनी खेत-खलिहान का सारा जिम्मा उनकी धर्म पत्नी ने ही उठा रखा था । गाँव से हरिया आकर खेतों का सारा हाल सुना जाता । गुड़ाई, रोपाई, सिंचाई का सारा निर्णय वह स्वयं लेती थीं ।उस घर की चारदीवारी के अंदर से ही वह खेत-खलिहान की छोटी बड़ी सभी समस्याओं का निपटारा बड़ी कुशलता से कर देतीं।

दीनानाथ जी के उस पुश्तैनी घर में वर्ष भर किसी न किसी पूजा पाठ का आयोजन होता ही रहता था । महाशिवरात्रि में रुद्राभिषेक हो या सुंदरकांड का पाठ । तुलसी विवाह ,कृष्ण जन्म या फिर नवरात्र का पाठ । हर पूजा का आयोजन उनकी धर्म पत्नी ही करतीं । दीनानाथ जी का घर अक्सर ब्राह्मण समाज के प्रबुद्ध लोगों से सुशोभित रहता । घर के बीचों बीच बने आंगन में ही आये दिन वेद वेदांतों पर चर्चा होती ।पंचाग और मुहूर्त के समय को लेकर मंथन होता रहता ।

मधुलिका ब्याह कर इसी आंगन से प्रवेश कर ससुराल आई थी । इस आंगन की गरिमा उसने भली भांति समझ ली थी । इस घर की सारी व्यवस्था उसने बखूबी समझ ली थी और अधिकतर संभाल भी ली थी । किन्तु इस घर की आबो हवा उसके मायके से सर्वथा भिन्न थी ।दीनानाथ जी की पत्नी पर्दा करने के मामले में एकदम सख्त थीं ।इस उम्र में भी उनका खुद का पल्लू कभी सर के नींचे नही गया था ।बहू को भी उन्होंने अपने सख्त अनुशासन में ढालना शुरू कर दिया ।घर की महिलाओं के अलावा किसी के द्वारा मधुलिका का मुख दर्शन अब असंभव था । दीनानाथ जी का अपनी सुसंस्कृत और सुशिक्षित बहू पर अगाध स्नेह था किंतु रीतियों में उनका विस्वास और भी अधिक दृढ़ था । शादी से पहले तितली की तरह दौडती भागती दुपट्टा लहराती मधुलिका ससुराल में कैद होकर रह गयी थी । सास का कठोर अंकुश उसके उन्मुक्त स्वभाव को कुंठित किये जा रहा था ।


विवाह के बाद एक स्त्री का एकमेव कार्य कुल के लिए एक कुल दीपक देना मान लिया जाता है ।शादी के कुछ समय बाद मधुलिका को भी उठते बैठते इसी बात के लिए टोका जाने लगा । विवाह को एक वर्ष हो गया था । मधुलिका की सास चिंतित होने लगी थी । टोका टाकी ने उलाहनों और कुछ समय पश्चात हल्के तानो का रूप ले लिया था। मधुलिका का मन कसमसा कर रह जाता ।

लेकिन शायद ईश्वर से उसका यह दुख और देखा न गया । सवा साल होते होते उसके पैर भारी हो गए ।दीनानाथ जी के घर में खुशियां सातवें आसमान को पार कर गयी थीं । अब मधुलिका का विशेष ध्यान रखा आने लगा और नौ महीने बाद दीनानाथ जी के घर में एक कुल दीपक आ गया । किन्तु छह महीने बाद ही एक और खबर आई ।

मधुलिका की सास का तो दिल ही बैठ गया था लेकिन मधुलिक मन ही मन बहुत खुश थी । त्रिलोचन पांडे जिस विद्यालय में कार्यरत थे उसने उन्हें कानपुर तबादला दे दिया था ।

डॉक्टर रूपानी के ओ.पी.डी. रूम के एग्जामिनेशन बेड पर लेटी हुई सुरभि धीरे धीरे होश में आ गयी थी । होश में आते ही उसका दिल जोर जोर से बजने लगा था । एक अजीब से बैचैनी उसके दिल को बैठाने लगी थी । उसका मन किया कि जैसे वह फिर से उसी बेहोशी में वापस चली जाय कि जैसे उसे होश आये ही न । लेकिन वह होश में आ गयी थी । वास्तविकता उसके सामने खड़ी उसे घूर रही थी ।वह वास्तविकता जिसे उसका मन मानना नही चाह रहा था ।जिससे वह मुँह चुरा ले लेना चाहती थी ।


तो क्या सच में..... ? क्या सच में ऐसा होगा ? क्या पिताजी की कही बात सच हो जायेगी ? उनकी शापनुमा भविष्य वाणी क्या अपना सत्य सिद्ध कर देगी ।नही ...नही ....वह कसमसा उठी । क्या उसका विश्वास मिथ्या हो जाएगा ? क्या कमल की सोच गलत साबित होगीं ? उसकी आँखों के सामने कमल का मासूमियत भरा मुस्कुराता हुआ चेहरा आ गया । वह और अधिक बैचैन हो उठी ।

प्लीज़ काम डाउन मिसेस सक्सेना ।

डॉक्टर रूपानी ने तसल्ली देने वाले स्वर में पास आकर कहा । किन्तु क्या उसे तसल्ली दी जा सकती थी ? उसका मन इस सत्य को स्वीकार नही कर पा रहा था । मन पर अब उसका नियंत्रण खो चुका था । किन्तु यह नियंत्रण क्या आज उसने खोया था ? क्या इससे पहले कभी भी उसने यह नियंत्रण नही खोया था ।

रीम कालेज की सीढ़ियों पर उतरते हुए सुरभि ठिठक गयी । उसने पीछे मुड़ कर देखा । मुग्धा और चित्र न जाने किस बात पर हँस हँस कर दुहरी हुई जा रही थीं ।कैंटीन जाने की जल्दी में वह उन दोनों से आगे निकल आयी थी ।

अरे चलो न जल्दी । क्या है यह ?

उसने लगभग खीजते हुए उन दोनों को आवाज लगाई थी ।

कालेज शुरू हुए पंद्रह दिन हो गए थे । हमेशा पहला लेक्चर दूबे सर का ही होता था । एक तो सी प्रोगरामिंग जैसा सब्जेक्ट ...जरा सा मिस हुआ नही की आगे का सब सर के ऊपर से और दूसरा पंचुअलिटी में दूबे सर कामत सर के शिष्य थे ।सी.ऐस. डिपार्टमेंट में एच. .डी. कामत सर के बाद सीनिअर वही थे । उनका लेक्चर मिस नही किया जा सकता था । घर से जल्दी निकलने के चक्कर में सुरभि आधा पेट खा कर ही निकल पड़ती थी । उस पर चित्रा समय से पहले आकर अपनी एक्टिवा दरवाजे पर लगा देती और टी टी कर हॉर्न बजाने लगती ।

---------- क्रमशः

------ कंदर्प

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कहानी को प्यार देने के लिए ढेर सारा प्यार ।