Sanskrutiyo ka Anokha Milan - 3 in Hindi Love Stories by Akshika Aggarwal books and stories PDF | संस्कृतियो  का अनोखा मिलन - 3 

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संस्कृतियो  का अनोखा मिलन - 3 



रोनक और एमिली के रिश्ते को 6 महीने बीत गए थे। इस समय में एमिली ने अपने आप में बहुत से बदलाव किए थे। इनका कारण उसका रोनक के लिए प्रेम था। रोनक ने ऐमिली को आपने माता पिता से मिलवाने का निर्णय लिया। उसे पूरा यकीन था कि उसके माता पिता को एमिली में आए बदलाव अच्छे लगेंगे।
रोनक ऐमिली को अपने माता पिता से मिलवाने जयपुर ले जाने वाला था। जहां ऐमिली इस बात को लेकर बहुत उत्साहित थी वहीं रोनक के माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती थी, क्योंकि वह पहले ही जानता था कि उसके माता पिता को इस रिश्ते के लिए मनाना बेहद मुश्किल है। उनके विचार भारतीय संस्कृति एक दम प्रभावित है। वह इस उधेड़बुन में था कि किस तरह अपने रिश्ते के लिए अपने माता पिता से स्वीकृति लेगा। फिर भी रोनक जाने की तैयारी कर रहा था।
जयपुर के लिए निकलने से एक दिन पहले उसके पिता का फोन आया। की घंटी बजी। जैसे ही रोनक ने "खम्बा घणी पिता जी" कहा फ़ोन पर रोनक के पिता की रूवासी आवाज सुनाई दी। रोनक घबरा गया वो बोला"पिताजी क्या हुआ आप घबराए हुए क्यों है? सब ठीक है ना?घर मे कुछ हुआ क्या? उसके पिता जी और टूट गए वह अपने आप को संभाल पाते इसे पहले ही रोनक बोला"पिताजी माँ तो ठीक है?माँ को फ़ोन दीजिए। तभी रोते रोते उसके पिता ने उसको बताया कि उसकी माँ को दिल का दौरा पड़ा है वह जयपुर के हॉस्पिटल में अपनी मौत और जिंदगी की लडाई लड़ रही है। रोनक यह सुन कर सकपका गया।उसके पैरो तले जमीन निकल गयी उसके हाथ से फोन छूट गया। और वह भी रोते रोते जमीन पर गिर गया। तभी ऐमिली ने उसे सम्भाला, उससे पूछा "क्या हुआ? तब रोनक ने उसे अपनी माँ के बारे में बताया, वह उसे सांत्वना देने लगी और उसके साथ पहली फ्लाइट से जयपुर के लिए रवाना हो गई, जैसे ही वह दोनों जयपुर रोनक के शहर पहुंचे उनके घर मे मायूसी का माहौल था। नटवर काका ने गाड़ी से उतरते हुये रोनक को देखा और भावुक आवाज में कहा "कुँवर सा आ गए है।" तो कोइ आरती लेकर दरवाजे पर नही आया वहाँ सन्नाटा छाया हुआ था। पिता हॉस्पिटल में रोनक की माँ के पास थे । घर मे नटवर काका, विथल के अलावा और कोई ना था। राज्य की प्रजा भी अपनी रानी की सलामती के लिए ईष्ट देव के मंदिर में हवन पूजा कर रही थी। राज्य की सड़कों पर रानी सा सलामत रहे के होडिंग्स लगे हुए थे। पलक झपकते ही रोनक और ऐमिली हॉस्पिटल पहुंच गए थे। अंदर का नज़ारा कुछ इस प्रकार था पिता नम आंखों से माँ के पास खड़े थे। बहुत सारे डॉक्टर और नर्स की चिकित्सा में लगे थे। तभी डॉक्टर अवस्थी ने कहा कि हमे सुभद्रा देवी के दिल का ऑपरेशन करना होगा। उनके लिए b ve ग्रुप के रक्त की जरुरत है। जो की इस हॉस्पिटल में मौजूद नही है। सभी घबरा गए , पिता ने सभी मंत्रियों को रक्त की व्यवस्था करने को कहा वह सब व्यवस्था करने में जुट गए। तभी रोनक और ऐमिली पिताजी पास पहुंचे ऐमिली ने पिता के पैर छू कर अपने अंदाज में नमस्ते कहा। रोनक ने भी नम आंखों से भावुक होकर अपने गले से लगा लिया, माँ की यह पीडा उसके लिए असहनीय थी। ऐमिली ने दोनो को धीरज दिया के तभी डॉक्टर अवस्थी ऑपरेशन थिएटर से बाहर आए और बोले " सुभद्रा देवी की सांसें थम रही है अगर खून का इंतज़ाम जल्दी नही किया और ऑपरेशन में देरी की गई तो उनको बचा पाना सम्भव नहीं होगा"तभी सभी मंत्री आये बोले "हम खून की व्यवस्था नही कर पाए। सभी बहुत विचलित थे। सारी स्थिति के बारे में जानकर ऐमिली बोली "my blood group is B I will give the blood. Dr. Please hurry up! Dr. ने सुभद्रा देवी का ऑपरेशन किया। ऑपरेशन से उनकी जान तो बच गई पर उनके चलने फिरने की शक्ति खत्म हो गई। वह बिस्तर पर आ गई। सबके दिल टूट गए थे पर उनकी जान बचाने के लिए सबने ईश्वर और ऐमिली का धन्यवाद किया। ऐमिली ने कहा ये उसका फ़र्ज़ था। रोनक की माँ होश में आते ही रोनक-रोनक पुकार ने लगी रोनक ऐमिली को लेकर माँ के पास गया और बोला मा मैं तुम्हारे पास ही हूँ। ये ऐमिली है इसने आपकी जान बचाई है। सुभद्रा देवी ने रोनक को सीने से लगा लिया और ऐमिली का धन्यवाद किया।
कुछ दिनों के उपचार के बाद सुभद्रा देवी घर आ गई थी इस बार घर के पुराने नोकर नटवर काका ने सबका आरती उतार कर स्वागत किया। अब ऐमिली भी कुछ दिनों तक ऐमिली भी वही रहती थी । वह दिन रात रोनक की माँ की सेवा करती , उनकी दवा का ध्यान रखती, उनके लिए अपने हांथो से खाना बनाती खिलाती, मंदिर और चर्च में उनके लिये दुआएं माँगती रोनक और उसके पिता जब माँ के आसपास नही होते तो उनका पूरा ध्यान रखती अब वह ठीक होने लगी थी ऐमिली भी उस घर का हिस्सा बन ही गयी। रोनक को लगने लगा था कि अब उसके और ऐमिली के रिश्ते के बारे में बात कर सकता है कि उसके पिता उसका रिश्ता नजब गढ़ की राजा की पुत्री के साथ कर देते है।
नजबगढ़ के राजा की पुत्री सुलेखा बेहद सुंदर थी, उसके लंबे लम्बे बाल कजरारे नैन, पतली सुराई जैसे गर्दन और लचक खाती हुई चाल सबको अपनी तरफ आकर्षित कर लेती थी उसकी आवाज बेहद सुरीली थी वह अपने राज्य की उच्चतम स्तर के गायको में से एक थी व्यवहार में से सहनशील , सुशील और विनम्र सुलेखा पहली नजर में ही रोनक के माँ पिता जी को पसंद आ गई थी। वह वैसी ही थी जैसे वो चाह रहे थे। भारतीय मूल की सुशील संस्कारी पूजा पाठ और सबका आदर करने वाली। पढ़ाई में भी अवल थी,संगीत में कई पुरस्कार भी जीते थे। परिवार की परम्परा अनुसार मां पिता जी ने रोनक का रिश्ता उस से बिना पुछे तय कर दिया।
फिर अगली सुबह पिता जी ने रोनक को बुलाया और इस बारे में सूचित किया। रोनक के पैरों तले जमीन निकल गई वह हक्का बक्का रह गया एमिली भी वही खड़ी थी । वह भी थोड़ी देर के लिये सुधबुध खो चुकी थी। दोनो बहुत कुछ कहना चाहते थे रोनक के माता पिता से पर कुछ कह नही पाये।