बरसात होकर बन्द हो चुकी थी । इस ठंडे माहौल में भी गौरव पसीने से लथपथ डरते हुए ज्यों ज्यों आगे बढ़ता जा रहा था । वैसे वैसे उस वीरान जगह का माहौल और भी रहस्यमयी होता जा रहा था । सूखे पत्तों की चर चर , उल्लू और झींगुरों की आवाज़ वातावरण को और भी भयावह बना रही थी । शाम ढलने को थी । घनी झाड़ियों में से सूर्य का प्रकाश शने: शने: लुप्त होते हुए अंधकार गहराता जा रहा था । दूर दूर तक ना इंसान ना इंसान की जात । हिम्मत जुटाकर वह चलता रहा ।
वापिस जाने के लिए भी उसमे हिम्मत नही बची थी । रास्ता भी भूल चुका था । कँपते हुए एक पेड़ के नीचे खड़ा होकर ईश्वर का नाम जपने लगा । उसने चारों तरफ नज़रे घुमाई तो सिर्फ हवा में झूमते लंबे लंबे पेड़ों की डरावनी आकृतियाँ और उनके ऊपर उड़ते हुए चमगादडों का झुंड ही दिखाई दे रहा था । काफी देर तक वहीं खड़े खड़े तमाम विचारों के सागर में गोते लगाता रहा । उसने घड़ी पर नज़र डाली तो शाम के 7 बज़ चुके थे । मोबाइल की बैटरी भी आधी हो चुकी थी। उसने फ़्लैश लाइट जलाकर आगे बढ़ने का सोचा। क्योंकि यदि ज्यादा देर यही खड़ा रहा तो किसी जंगली जानवर का खतरा भी था , और बारिश भी होने के आसार थे । आसमान पर घने बादलों का डेरा था , बिजली भी चमक रही थी ।
हिम्मत कर जैसे तैसे आगे बढ़ने लगा । उसके सारे शरीर मे रौंगटे खड़े हो चुके थे । अनजान आशंका से ग्रस्त वो दिशाहीन बस बढ़ता जा रहा था । इतने में बूंदा बांदी फिर शिरू हो गई । गौरव जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए किसी आश्रय की तलाश में उस बियावान जंगल मे जिंदगी को खोज रहा था । शायद कोई मिल जाये जो उसे इस जंगल से बाहर निकाल सके । पर जैसे वहाँ कोई जिंदगी थी ही नही उसके अलावा । उस बियावान जंगल मे अंधकार धीरे धीरे अपने भयावह अस्तित्व को प्राप्त हो रहा था । बरसात और अंधेरे के कारण देख पाना भी मुश्किल हो रहा था । काफी देर तक यूँ दिशाहीन चलते चलते उसे मोबाइल की रौशनी में एक पगडंडी सा उबड़ खाबड़ रास्ता दिखाई दिया । जैसे बरसों उस रास्ते से कोई गुज़रा ही ना हो। इसलिए वो रास्ता सिर्फ अब सांकेतिक रूप में रह गया था । गौरव को कुछ उम्मीद बंधी । अनहोनी आशंकाओं से ग्रसित वो अपनी सारी हिम्मत बटोरकर उस रास्ते पर भगवान का नाम लेकर आगे बढ़ गया । कुछ देर बाद उसे पुराना सा मकान दिखा जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका था । किस्से कहानियों और फिल्मों में उसने बहुत ऐसे खंडहरों को देखा था । गौरव अंदर तक डर गया । पर इस बरसात में उसे कोई चारा भी नही दिखाई दिया । खुले आसमान के नीचे रहने से अच्छा उस खंडहर में ही शरण ले ली जाए यही सोचकर वो डगमगाते कदमो से उस तरफ बढ़ चला । जैसे ही वो उस खंडहर के पास पहुँचा पुराना सा बड़ा जंग लगकर खद चुका दरवाज़ा जिसपर पेड़ पौधों की लंबी लम्बी लटाएँ लिपटी हुई थीं। ऐसा लगता था एक अरसे से उसे खोला ही नही गया हो । लेकिन नीचे से दरवाज़ा ज़मीन से इतना उपर तो था कि गौरव जैसा इंसान उसके नीचे से आसानी से झुककर निकल सकता था । एक बार तो वो भी रुककर सोच में पड़ गया कि अंदर जाए या ना जाये। पानी भी तेज हो चुका था । चमकती बिजली की रोशनी में वो पुराना मकान उसे भयभीत कर रहा था ।
गौरव ने सोचा कि यदि वो अंदर गया और कुछ ऐसा वैसा हुआ तो वो दौड़कर जल्दी बाहर भी नही आ पायेगा । लेकिन जब पलटकर पीछे बाहर का अति डरावना अंधकामय दृश्य देखा तो उसे अंदर जाने में ही भलाई दिखी । उस सुनसान माहौल में वो अंदर उस खंडहर के प्रांगण में पहुंच गया । बड़ी बड़ी झाड़ियां और ना ना प्रकार के कीड़े मकौडों की आवाज़ ने पहले ही उस वातावरण को डरावना बना रखा था । झाड़ियों के बीच से होता हुआ वो उस मकान के नज़दीक पहुंच गया । उस मकान के बाहर बड़े बड़े खम्बे और खिड़कियों के बाहर इतनी जगह थी कि वो बारिश से बचकर वही बैठ सकता था । क्योंकि मकान के अंदर जाना उसे उचित नही लगा । एक कोना ढूंढकर उसे साफ कर वहीं खम्बे से टिककर बैठ गया ।
भीषण बरसात और लगातार चमक रही बिज़ली के बीच जंगल के बीचों बीच एक सुनसान खंडहर मकान में एक दम अकेले बैठा हुआ वो आशंकाओं से भयभीत होने लगा । यदि उसे कुछ हो गया तो उसके परिवार को कौन देखेगा । उसके छोटे भाई बहनों और माँ का क्या होगा । आखिर क्यों आज वो सबके मना करने के बाद भी निकल आया । जिंदगी में पहली बार उसे अपने निर्णय पर आज जितना अफसोस नही हुआ होगा । एक साथ मन मे कई सवाल उमड़ घुमड़ रहे थे । अपनी माँ और भाई-बहनों का चेहरा रहरहकर उसके सामने आ रहा था ।
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गौरव दो भाई और दो बहनों में सबसे बड़ा था । पिताजी की मृत्यु बहुत पहले हो चुकी थी । सारे परिवार की जिम्मेदारी सर माथे उठाये इस जीवजगत में संघर्षों की कड़ियाँ जोड़ मंज़िल को पाने का सपना उसकी आंखों में भी हिलोरे ले रहा था । प्रोपेर्टी डीलिंग का व्यवसाय करने वाले गौरव ने पूरी ईमानदारी से अपना काम करते हुए इस बिज़नेस की पारंपरिक छवि को ध्वस्त कर दिया था । जहाँ ये बिज़नेस झूठ मक्कारी धोखा फरेब आदि के लिए फेमस था , वहीं वो इस दल दल में उतरकर भी स्वयम को सभी बुराइयों से बचाता हुआ सिर्फ अपना काम द्वारा अपनी छवि गढ़ रहा था । औरों से उसे कोई मतलब नही था । दो पैसे भले कम मिलें पर किसी के साथ अन्याय करना धोखा देना उसकी फितरत में नही था । शायद इसीलिए इतने सालों तक इस बिज़नेस में होते हुए भी वो ज्यादा बैंक बैलेंस नही बना पाया था ।
उसकी ईमानदारी से जलने वालों की भी कमी नही थी । क्योंकि जो उसके साथ काम करते थे वो उसकी ईमानदारी के चलते कुपोषण का शिकार जो हो रहे थे । गौरव के आगे किसी की हिम्मत नही पड़ती थी कि उसे कुछ बोले । पर पीठ पीछे ताने बाने बुनने का सिलसिला चलना अब आम बात थी ।
अपनी कार्यकुशलता और दूसरों से बेहतर संवाद स्थापित कर उसने अब तक कई सफल सौदे अंजाम दिए थे । अपने ऑफिस मे बेठे बैठे बहन की शादी की चिंता उसे खाये जा रही थी । रिश्तेदार भी अब उसपर बहन की शादी का दबाव डाल रहे थे । लड़के वालों के भी एक से बढ़कर एक बहुत रिश्ते आ रहे थे । पर उसे असल चिंता जो थी वो पैसे की । क्योंकि आज के ज़माने में वो भी शहर में बिना सैकड़ा मारे शादी होना असम्भव था । और भी कई खर्चे होते हैं । सभी दृष्टिकोण से सोचना पड़ता है । सारी बातों का ख्याल रखना पड़ता है , कहीं ज़माना ये ना कह दे कि पिता नही थे तो भाई ने अपना फर्ज सही से नही निभाया । इन्हीं सब विचारों में उलझा हुआ वो टेबिल पर पेपर वेट को इधर से उधर घुमाने लगा , तभी उसका दोस्त निशांत वहाँ आया । वो गौरव से छोटा था , पर दुनियादारी में किसी से कम नही था । गौरव को अपना बड़ा भाई मानता था । एक तरह से गौरव का दायां हाथ था । गौरव भी उसपर आंख बंद कर विश्वास करता था । अपनी हर समस्या हर परेशानी वो उससे साझा करता था । उस दिन भी जब निशांत ने उसे ऑफिस में इस तरह विचारमग्न किसी गम्भीर चिंता में देखा तो पूछ बैठा....
"" क्या बात है भैया , किस सोच में इतना खून सुखा रहे हैं ???""
"" अरे निस्सू आओ आओ । कुछ नही बस आने वाले वक्त को लेकर खुद से कुछ सवाल कर रहा था । """" गौरव कुर्सी पर पीछे टिकते हुए निशांत से बोला । (वो निशांत को प्यार से निस्सू बोलता था )
"" मतलब , खुद से सवाल ???...में कुछ समझा नही भैया !!!!!"""
"" बहुत से ऐसे सवाल हैं निस्सू जिनका उत्तर खोज रहा हूँ। और देखो हर उत्तर में पैसा बीच मे आ ही जाता है । और बस में उसके आगे निरुत्तर हो जाता हूँ । कोई रास्ता नही दिखता । """
"" आज बड़े दार्शनिक अंदाज़ में बातें कर रहे हैं भैया । क्या हुआ किसी ने कुछ कहा क्या ???""""
"" कौन क्या कहेगा निस्सू , बस वक़्त ही सब अहसास कराता रहता है। गुड़िया बड़ी हो गई है। उसकी पढ़ाई भी पूरी हो गई । एक भाई को ऐसे में आखिर और क्या चिंता हो सकती है । उसकी शादी की ही चिंता कर रहा था । आये दिन तमाम लड़के वालों के फोन आते हैं। सबको रिश्ता मंजूर भी हो जाता है । पर में उनको कोई जवाब नही दे पाता । बात पैसे पर आकर रुक जाती है ।""' गौरव ठंडी सांस छोड़ते हुए बोला ।
""" क्या किसी ने दहेज़ की मांग की भैया ???"""
""अरे नही नही , बात सिर्फ दहेज़ की नही । वो तो मुझसे जितना बन पड़ेगा उतना करूंगा ही । किसी के बोलने की जरूरत नही । पर शादी में और भी बहुत से खर्चे होते हैं । चारों तरफ देखना पड़ता है । वरना दुनिया कहेगी की पिता नही थे तो एक भाई ने कुछ नही किया ।"""
"" अब भैया यदि में आपसे कुछ बोलूं तो आप फिर मुझे डांटने लगोगे । में कोई बेईमानी करने को नही बोलता । पर इतनी ईमानदारी भी अच्छी नही । या तो आपको इस बिज़नेस में आना ही नही था । कोई नॉकरी कर लेते , या कोई दूसरा काम । अब इस काम मे थोड़ी बहुत ऊंच नीच तो चलती रहती है । कई अच्छे बड़े सौदे तो आपने ही गंवा दिए , वरना आज आपको इतना सोचना नही पड़ता । आपके ही साथ कई लोगो ने यही काम शिरू किया और आज वो लोग कहाँ पहुंच गए और आप कहाँ हैं । पूरी तरह ईमानदारी सिर्फ हिंदी फिल्मों में ही अच्छी लगती है । असल जिंदगी में नही ।"" निशांत अपना दृष्टिकोण रखते हुए बोला ।
"" में ये सब नही कर सकता । मेरी अंतरात्मा कभी गवारा नही करेगी । और जिस काम को करने में आपका मन नही कहे उसे कभी नही करना चाहिए । वरना इंसान ना घर का रहता है ना घाट का । ना वो जैसा है वैसा रह पाता है , ना जो बनने की सोचे वो भी नही बन पाता । और फिर लोगों की बद्दुआ लेकर मुझे पैसा नही कमाना । जो लोग आज मुझपर यकीन करते हैं वो भी मुंह मोड़ लेंगे । पर तुम ये बातें कभी नही समझ पाओगे निस्सू बेटा । बहुत हिम्मत और धैर्य चाहिए इन सब के लिए ।
"" ठीक है भैया , में कुछ नही कहूंगा अब इस बारे में । ऐसा नही की में आपकी बात आपके विचारों का सम्मान नही करता । एक आप ही तो हैं जिनसे में हर बात कह सकता हूँ । ""
"" तुम चिंता मत करो निस्सू , जिसने मुझे यहाँ तक लाया है वही आगे भी रास्ता दिखायेगा । मुझे अपने मालिक अपने उस ईश्वर पर पूरा भरोसा है । वो अपने इस भक्त को कभी समाज के सामने शर्मिंदा नही होने देगा । देखना सब अच्छे से हो जायेगा । में तुमसे अपनी परेशानी कह रहा हूँ इसका मतलब ये नही की में हार गया । पर मन मे चिंता तो आ ही जाती है । आखिर हम हैं तो इंसान ही ।
""" गौरव अपने केबिन में लगी भगवान महादेव की फ़ोटो को देखते हुए बोला ।
"" हाँ भैया ये तो है । सुना मेने भी है जिसका कोई नही उसका खुदा है यारों , ये में नही कहता किताबों में लिखा है यारों । """....निशांत मुस्कुराते हुए चुटकी लेता है ।
"" बेटा तूने तो अभी सिर्फ सुना ही है । पर मैने तो अनुभव किया है । वो हमेशा मेरे साथ ही जबतक मे सच्चाई के साथ हूँ । चल अब घर चलते हैं । बहुत वक़्त हो गया । घर पर सब इंतज़ार कर रहे होंगे ।
"" इतना कहते ही दोनो उठकर खड़े हो जाते हैं । गौरव आफिस बन्द करके निशांत के साथ घर की और चल देता है ।
रात का खाना खाने के बाद जैसे ही वो अपने रूम में आता है तो माँ उसके पास आती है।
"" बेटा फिर क्या सोचा है तुमने । आज फिर कुछ लड़के वालों के फोन आये थे । में क्या जवाब देती । सभी रिश्ते अच्छे घरों के है बेटा । उसमे से 2-1 तो तेरे चाचाजी को भी पसन्द है । बोल रहे थे जितना जल्दी हो सकते किसी एक को फाइनल कर दो। ""
"" गौरव माँ की बात का क्या उत्तर देता । सिर्फ इतना बोला ...
"" माँ में आपकी चिंता समझता हूँ । पर अभी थोड़ा और टाइम चाहिए मुझे । इतने से पैसों से क्या होगा । ""
"" अरे बेटा तेरे चाचा कह रहे थे कि गौरव मेरा भी कुछ लगता है । आज भाईसाहब नही तो क्या, क्या में कुछ नही लगता उसका । उनके पास पैसा भी है । कीमत समय की है मेरे लाल । अभी उनसे ले लेते हैं । फिर तू धीरे धीरे चुकाता रहना । """
"" नही माँ उनके पहले से ही बहुत एहसान हैं हमपर । हमसबके लिए कितना किआ है उन्होंने । मुझे बिज़नेस शिरू करने में भी उन्होंने मदद की थी । अभी वही पूरा नही कर पाया , अब और ले लूँ.. नही नही माँ मुझे अच्छा नही लगेगा । चाचाजी एक अच्छे इंसान हैं । पर उनकी अपने परिवार के प्रति भी जिम्मेदारियाँ हैं । में अपने उन भाई बहनों का हक़ नही मार सकता । आप चिंता मत करें में कुछ ना कुछ कर लूंगा। बस कुछ महीनों की तो बात है । ""
"" ठीक है बेटा , मुझे तुझपर पूरा विश्वास है । मेरा बेटा जो भी निर्णय लेगा ठीक ही लेगा । "" ये कहकर माँ अपने कमरे में चली गई ।
गौरव वहीं बैठा बैठा एक बार फिर सोच के सागर में डूब गया । और सोचते सोचते पता नही कब उसकी आंख लग जाती है ।
कुछ दिनों बाद गौरव एक दिन अपने ऑफिस में बैठे बैठे कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा होता है ।तभी कुछ लोग उससे मिलने आते हैं। उनको देखकर गौरव नमस्ते कर बैठने का ईशारा करता है।
"" नमस्ते गौरव जी , मेरा नाम भवानी शंकर है और ये मेरे मित्र अजीत कुमार हैं। हमारी आपसे कुछ दिन पहले फोन पर बात हुई थी । क्षमा चाहते हैं आपको आज आने का सूचित नही कर पाए। दरअसल हम किसी काम से शहर आये थे , सोचा क्यों ना आज ही आपसे भी मिल लिया जाए । और किस्मत देखिए आप मिल भी गए । ""
"" हाँ हाँ याद आया, उस दिन आपसे बात हुई थी। में बाद में जीवन की उलझनों के चलते भूल ही गया । आप किसी प्रॉपर्टी को बेचने के सिलसिले में बात करना चाह रहे थे । कहिये में आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?""" गौरव ने मुस्कुराते हुए कहा ।
"" मदद क्या गौरव जी , आपके पास भला कोई किस काम से आयेगा प्रॉपर्टी खरीदने या बेचने ही ना । मार्किट में आपकी ईमानदारी और कार्यकुशलता के बहुत चर्चे सुने थे । इसलिए हम सबसे पहले आप ही के पास आए हैं । में पुश्तेनी हवेली "नीलकमल " खुरवाई में रहता हूँ । अब वो और अपनी ज़मीन बेचकर गांव छोड़ना चाहता हूँ । उसी के सम्बंध में आपसे मिलने का इक्छुक था । मेरे दो बेटे हैं । एक तो विदेश में सेटल हो चुका हैं । दूसरे की अच्छी खासी नॉकरी है । नागपुर में वो भी सेटल है। मेरी बीवी का देहांत कुछ महीनों पहले हो चुका है। अब अकेले गांव में मन नही लगता , सोचा छोटे बेटे के पास चला जाऊं । वो भी काफी दिनों से मुझे अपने पास बुला रहा है । इसलिए जाने से पहले अपने खुरवाई वाली प्रोपर्टी का सौदा करना चाहता हूँ । जिंदगी का कोई भरोसा नही । जितना जल्दी सब निपट जाए उतना अच्छा । और तो कोई प्रॉपर्टी ब्रोकर्स मुझे नही जमा सिवा आपके । जब आपके बारे में सुना तो आपके पास चला आया । अब आप ही कोई पार्टी बताइए जो मेरे उस फॉर्म हाउस के अच्छे दाम दे सके । """....भवानीशंकर जी गौरव से बोले ।
"" जी मे कोशिश करूंगा । आप उसकी फ़ोटो , डिटेल्स और सारे कागज़ात की जेराक्स मुझे दे दीजिए । ताकि में आगे काम कर सकूं । और एक दिन टाइम निकालकर में देखने आऊंगा प्रोपर्टी । "" गौरव ने कहा ।
"" जी मे साथ ही लाया हूँ । जल्द से जल्द इसका निपटारा करना चाहता हूँ । """ उन्होंने बेग में से एक फाइल निकाली और गौरव की और बढ़ा दी ।
"" जी बहुत अच्छा , में आज रात ही सब कागज़ात चेक करके ,आगे की कार्यवाही के बारे में आपको बताता हूँ ।"""
गौरव ने सारे कागज़ात अच्छे से चेक किये । सभी कागज़ात ठीक लग रहे थे । उसने फोन पर भवानीशंकर जी से बात कर प्रॉपर्टी देखने की इक्छा ज़ाहिर की । भवानीशंकर जी ने कहा ।
"" आप दो दिन बाद आ जाइये । में अभी बाहर हूँ , तब तक मे भी पहुंच जाऊँगा । ""
"" जी बहुत अच्छा । में परसों आता हूँ फिर । "" कहकर गौरव ने फोन रख दिया । उसे ये सौदा फायदे का लगा । प्रॉपर्टी अच्छी खासी थी इसलिए कमाई होने के भी तगड़े आसार थे ।
वो दिन भी आ गया जब गौरव वो प्रॉपर्टी देखने जाने वाला था । उसने निशांत को पहले ही बता दिया था इस बारे में । दोनो साथ ही जाने वाले थे । उसने नियत समय पर निशांत उर्फ निस्सु को फोन किया । पर निशांत की तबियत खराब होने की वजह से वो साथ जाने में असमर्थ था । गौरव ने ज्यादा जोर भी नही दिया । उसे आराम करने का बोल वो अकेले ही जाने की तैयारी करने लगा । तभी उसकी माँ कमरे में आती है ।
"" बेटा एक बात कहूँ , आज कहीं मत जा । सुबह से अपशकुन हो रहे हैं । मेरा मन बहुत घबरा रहा है । ये सौदा मुझे पता नही क्यो ठीक नही लगता । जबसे तूने इसका जिक्र किया तबसे कुछ ना कुछ अपशकुन हो रहे हैं घर मे । "" माँ चिंता भरे लहजे में बोली ।
"" अरे मेरी भोली माँ । आज के ज़माने में भी तुम अपशकुन जैसे तकियानुसी विचारों में पड़ी हो । कुछ नही होगा मुझे । ये सौदा मेरे लिए बहुत मायने रखता है । यदि ये सही से हो गया तो फिर अपनी गुड़िया की शादी धूमधाम से कर सकूंगा । किसी के आगे हाथ नही फैलाने पड़ेंगे । तू बिल्कुल भी चिंता मत कर । में शाम तक वापिस भी आ जाऊंगा । "" गौरव माँ को समझाते हुए बोला । और अपनी गाड़ी से खुरवाई रवाना हो गया ।
चलते चलते उसे काफी टाइम हो गया पर गाँव का कुछ पता नही । जिस किसी से भी उसने पूछा तो सबने उस गाँव का नाम ही नही सुना था वहाँ । गौरव के आश्चर्य का ठिकाना नही रहा । उसने भवानीशंकर जी को फोन किया । उन्होंने उसे फोन पर रास्ता समझाते हुए बोले कि आप अभी जहाँ है वहाँ से थोड़ा और आगे आइए , एक पेट्रिल पम्प मिलेगा उसी के बगल से अंदर एक रास्ता जाता है बिना किसी से पूछे सीधे उस रास्ते पर आगे बढ़ते जाइये । आप कुछ देर में पहुँच जाएंगे ।
गौरव ने ऐसा ही किया । कुछ देर में ही वो खुरवाई गाँव पहुंच गया । उसने फोन कर भवानीशंकर को अपने आने की सूचना देनी चाही । पर जब उसने फोन लगाया तो सामने एक टेप बजा ।
' ये नम्बर गलत है । कृपया दोबारा नबंर की जांच कर लें ।' बार बार लगाने पर भी वही ।
"" कमाल है अभी कुछ देर पहले तो बात हुई थी । और अब ये नम्बर ही गलत बताया जा रहा है । चलो गाँव वालों से उनके घर का पता पूछ लेता हूँ । ""
यही सोचकर उसने जब गाँव वालों से भवानीशंकर जी की हवेली ' नीलकमल ' का पता पूछा तो लोग खामोश से खड़े उसे देखते रहे । कोई कुछ नही बोला । गौरव ने फिर पूछा । अब भी सब उसे अजीब नज़रों से ही घूरे जा रहे थे । अब गौरव को हैरानी होने लगी । आखिर ये इन लोगों को हुआ क्या , कोई कुछ बोल क्यो नही रहा । सभी बस मुझे ऐसे देखे जा रहे हैं जैसे में इनकी लड़की भगा के ले गया हूँ । वो आगे बढ़ता है । गाँव मे जो कोई भी मिलता है वो उसे उसी तरह खूंखार नज़र से देखे जा रहा था । गौरव के आश्चर्य का ठिकाना नही था । वो फिर से भवानीशंकर को फोन करता है । फिर वही साउंड टेप चलता है । ' आपने जो नम्बर डायल किआ है कृपया उसकी जांच कर लें । ये नम्बर गलत है ।' गौरव को कुछ भी समझ नही आ रहा था । जबकि इसी नम्बर पर तो उसकी पहले भी कई बार बात हो चुकी थी । और अब क्या हुआ ।
वो पूरे गाँव मे अनजान की भांति घूम रहा था । पर वो पूरा गाँव ही उसे अजीब सा लग रहा था । सभी के चेहरे रहस्यमयी थे । कोई किसी से भी बात नही कर रहा था । सभी खामोश बैठे थे । गौरव मन मे सोचता है कि ऐसा कैसा अजीब गाँव है । पूरे गांव में एक अनंत सन्नाटा सा पसरा था । तभी उसकी नज़र दूर पीपल के पेड़ के नीचे बैठे एक साधु जैसे व्यक्ति पर पड़ती है । जो उसी को देखे जा रहे थे । वो उनके पास जाकर वही सब पूछता है । और गाँव के लोगो के अजीब व्यवहार के बारे में भी बताता है । वो साधु बाबा पहले तो उसे सर से पैर तक निहारते हैं । फिर गर्दन घुमाते हुए अजीब तरीके से मुस्कुराते हैं । और अजीब सी मोटी आवाज़ में बोलते हैं । उन्हें बोलता देख गौरव सोचता है चलो कोई तो बोला ।
"" जैसे आये हो वैसे लौट जाओ । वो हवेली नही मौत का घर है । ये पूरा गाँव ही मौत का घर है । यहाँ सभी मुर्दे रहते हैं । भवानीशंकर बरसों पहले मर चुका हैं । उनकी आत्मा मकान के कागज़ लेकर ना जाने कितने लोगों के पास जा चुकी हैं । और उल्टे पांव वापिस लौट जाइये । ""
गौरव उनकी बात सुनकर हैरान रह जाता है ।
"" ये क्या कह रहे हैं आप वो मर चुके हैं । अरे अभी कुछ दिन पहले तो वो मुझसे मिलने शहर आये थे । अपने एक मित्र अजीत कुमार के साथ । और आप बोल रहे हो वो मर गए । आखिर ये गाँव है क्या चीज़ । बड़ा अजीब गाँव है । ""
तभी वो साधु दोबारा बोला ।
"" जब वो तुझसे मिलने आया तो तूने उसके पैरों ओर गौर नही किया । उसके पैर उल्टे थे । एकदम उल्टे ।""
अब तो गौरव के आश्चर्य का ठिकाना नही रहता ।
"" क्या बकवास है । आखिर किसी के पैर उल्टे कैसे हो सकते हैं ।"" गौरव झल्लाया ।
"" हम्म्म्म , लगता है तुझे यकीन नही । ये देख मेरे पैर । जैसे ये उल्टे हैं ।"" इतना कहते ही साधु ने अपने उल्टे पंजे उसके सामने कर दिए ।
अब तो गौरव को काटो तो खून नही । उसकी आंखें ही फटने को आतुर थीं । सच मे उस साधु के पैर उल्टे ही थे ।
साधु भयंकर हंसी हंसे जा रहा था । तभी उसने अपने दोनो हाथों से अपनी मुंडी को निकाल के अपनी ही गोद मे रख लिया । वो मुंडी उसकी गोद मे भयंकर डरवाने अंदाज़ में अट्टहास किये जा रही थी । गौरव ये देख डर की सारी सीमाएं तोड़ते हुए वहाँ से बेहताशा भागता है । भागते भागते उसकी नज़र बाकी सभी गाँव वालों पर पड़ती है । अब वो उनके पैरों पर भी नज़र डालता है । घोर आश्चर्य !!!!!!!! ... उन सभी के पाँव उल्टे ही रहते हैं । और वो गौरव को देखते हुए अजीब तरह से पागलों के जैसे हंसते रहते हैं । गौरव उन लोगों के बीच से बुरी तरह भागता है । तभी बिजली चमकती है । और काले बादल आसमान को अपने आगोश में ले लेते हैं । वो दिशाहीन भागता ही जा रहा था । बस भागता जा रहा था । बरसात होने लगती है । लेकिन उसे कोई होश नही था । उसके कदम तो जिधर हो रास्ता दिखा वही भागते गए ।
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उस पुराने खँडहर में खम्बे से टिके बैठे गौरव की तन्द्रा अचानक टूटती है । उसके कपड़े भी जगह जगह कंटीली झाड़ियों में उलझकर फट गए थे । वो खुद बुरी तरह घायल अवस्था मे वहां निढाल सा पड़ा हुआ था । उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे । भूख से भी उसका बुरा हाल था । सुबह से घर से निकला था । और पूरे दिन में आज उसके साथ ना जाने क्या क्या घटित हुआ था । पहले वो इन सब बातों पर कभी भी यकीन नही करता था । पर किस्मत ने कितने खतरनाक ढंग से उसे यकीन दिलाया था । उसे ये सब सपने जैसे लग रहा था पर थी हकीकत । यही सच था। वो अभी ये सब सोच ही रहा होता है कि तभी उस हवेली का दरवाज़ा चरमराते हुए खुलता है । वो डरकर पीछे मुड़कर देखता है ।
पीछे मुड़कर देखते ही उसकी और हालत खराब हो जाती है । दरवाजे पर भवानीशंकर और उनके दोस्त अजीत कुमार खड़े थे ।
"" आप बहुत लेट हो गए आने में । हमलोग कबसे आपका इंतजार कर रहे थे । आइए अंदर आइए । ""
गौरव के दिमाग की सारी नसे फ़टी जा रहीं थीं । अब ये क्या नई मुसीबत है । ये लोग इस जगह सुनसान बियावान जंगल मे क्या कर रहे हैं । रहस्य पर रहस्य की परतें चढ़तीं जा रहीं थीं । गौरव उनको देखकर कंपकंपाते हुए खड़ा होता है । उसमें अब और दम नही बचा था । वो डरते हुए थरथराते हुए बोला ।
"" भवानीशंकर जी आप !!!!! ये क्या मज़ाक है । में आज दिनभर से भयंकर रूप से परेशान हो रहा हूँ । आपको कितने फोन किये । नम्बर गलत आया । जबकि मेने पहले भी उसी नम्बर पर आपसे कई बार बात की । और में उस भूतिया गाँव भी गया था । जहां का पता आपने दिया था । वहाँ तो ससससस सभी लोग बड़े अजीब से ज्ज्ज्ज्ज् जैसे कोई जिंदा ही ना हो । सबके पपपप पैर उल्टे थे । मममम मुझे कककक कुछ समझ नही आ रहा आप मेरे दिमाग के साथ क्या खेल खेल रहे हैं । मममम में पागल हो जाऊंगा । "" गौरव दोनो हाथों से सर पकड़ते हुए बोला ।
दरवाजे पर खड़े हुए भवानीशंकर और अजीत कुमार उसकी बात सुनकर मुस्कुराने लगते हैं ।
"" हम क्षमा चाहते हैं । दरअसल यही वो हवेली नीलकमल है । ऊपर देखिए नाम भी लिखा है । ""
गौरव अँधेरे में जेसे ही ऊपर देखता है । चमकती बिजली की रौशनी में कुछ पलों के लिए वो नाम दृष्टिगत होता है । बड़े बड़े लेकिन उबड़ खाबड़ अक्षरों में ' नीलकमल ' लिखा रहता है । जैसे वो नाम लिखे बरसों हो गए हों । और ये हवेली भी बरसों पुरानी उजाड़ ही लग रही थी । उसका दिमाग अब विचार शून्य हो चुका था । वो कुछ भी कह पाने समझ पाने में अक्षम होता जा रहा था ।
तभी भवानीशंकर दोबारा बोले ।
""आइए पहले अंदर आइए । बाकी की बात अंदर करते हैं । ""
गौरव अब भी उन्हें आश्चर्य से देखे जा रहा था । वो डरते डरते हुए उनके पीछे पीछे अंदर गया । अंदर जाकर तो उसके आश्चर्य का और भी ठिकाना नही रहता । पूरी तरह उजाड़ बर्बाद अंदर से वो हवेली और भी डरावनी थी । चमगादडों के झुंड के झुंड इधर उधर उड़ रहे थे । खुद उसके शरीर से कई जाले उलझ गए थे ।
"" भवानीशंकर जी ये सब क्या है । आप यहाँ रहते हैं । इस भूत बंगले में । वो उल्टे पैरों वाले लोगों का गाँव और ये अजीब सुनसान हवेली । ये सब क्या रहस्य है । ""
उसकी बात सुनते ही वो दोनो पीछे पलटकर देखते हैं । और बुरी तरह हंसने लगते हैं ।
"" क्या उन लोगों के पांव ऐसे थे । "" कहते ही भवानीशंकर और अजीत कुमार अपने पांव दिखाते हैं । उनके पाँव भी उल्टे थे । और पांव के पंजे लंबे लंबे किसी वनमानुष की तरह ।
उन दोनों के चेहरे धीरे धीरे भयानक रूप ले लेते हैं । भवानीशंकर की गर्दन तो लंबी होते होते ऊपर छत तक पहुंच जाती हैं । उधर अजीत कुमार की गर्दन चारों दिशाओं में गोल गोल घूमने लगती है । दोनो बुरी तह हंसे जा रहे थे । हवेली उनकी भयानक चीखों से गुंजायमान हो उठती है । गौरव से ये आवाज असहनीय थी । वो कानों पर हाथ रख लेता है ।
तभी भवानीशंकर की गर्दन वापिस छोटी होने लगती है । और वो पहले जैसी हो जाती है । अब उनके हाथ लंबे होकर गौरव की तरफ बढ़ते हैं । दोनो हाथों में लंबे लंबे भालू की तरह घने घने बाल और बेतरतीब नाखून । ये सब देखकर गौरव की साँस अटक जाती है । भवानीशंकर के लंबे हाथ उसी की तरफ बढ़ने लगते हैं । गौरव के पाँव में अब भागने की तो क्या खड़े रहने की भी ताकत नही बची थी । वो दीवार से सटकर पीछे हटने लगता है। तभी दीवार में से दो हाथ निकलकर उसे जकड़ लेते हैं । गौरव की बस जान ही नही निकल रही थी बाकी सब हो चुका था । दीवार से निकले हाथों की पकड़ और भी मजबूत होती जाती है । गौरव की हड्डियां कड़कड़ाने लगती हैं । दम घुटने लगता है ।
डर और विस्मय की सारी सीमाएं टूट चुकी थी ।
तभी एक सफेद रौशनी जैसी चमकती है । और एक पूर्णतः सफेद कपड़ो में एक खूबसूरत लड़की तेज़ी से पता नही किधर से वहाँ आती है । और गौरव का हाथ पकड़ के उसे उन जकड़नों से आज़ाद कराके अपने साथ ले जाती है । गौरव उस ख़ूबसूरत लड़की को देखता ही रहता है । उसके पास से एक दिव्य खुशबू सुगन्ध उसे जैसे मनमोहित कर रही थी । उस लड़की के सानिध्य में आने से अब गौरव का दर्द भी कम होने लगता है । वो तो सबकुछ भूलकर जैसे उसी में खो सा जाता है । उसे रास्ते का भी ख्याल नही रहता । वो बस उसका हाथ पकड़े उसके पीछे पीछे खींचा चला जाता है । उसका सारा दर्द तकलीफ पल भर में खत्म हो जातीं हैं । उसे एक सुखद दिव्य एहसास होने लगता है । कुछ दूर चलने के बाद मुख्य सड़क आ जाती है । वो दिव्य अप्सरा जैसी बेहद खूबसूरत लड़की मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखती है । वो उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर अपनी झोली में से एक पानी की झागल निकालती है । और उसे देती है । गौरव तो जैसे उसके जादू में खोया खोया वो झागल का पूरा पानी पीता चला जाता है ।
आश्चर्य वो जल इतना शीतल इतना मीठा था । गौरव ने आजतक वैसा जल कभी नही पिया था । वो दिव्य जल पीते ही उसमें एक नई स्फूर्ति आ जाती है । वो उससे उसका नाम पूछता है । वो लड़की बड़ी मीठी सुरीली आवाज में बोलती है ।
"" काजल ""
गौरव उसकी तरफ देखते हुए पूरा जल पी जाता है । और झागल को नीचे रखने के लिए जैसे ही झुकता है तभी उसकी नज़र उस लड़की के पैरों पर पड़ती है । उसके भी वैसे ही उल्टे पैर देख कर वो वही बेहोश होकर लुढ़क जाता है ।
जब गौरव की आँख खुलती है तो वो खुद को एक अस्पताल में पाता है । उसके पास में माँ उसके सर पर हाथ फेरते हुए बैठी रहती है । सामने निशांत खड़ा था । उसे होश आया देखकर वो डॉक्टर को बुलाता है । डॉक्टर आकर उसे चेक करते हैं । और बोलते हैं ।
"" कैसे हैं अब आप , पूरे 24 घण्टो में अब जाकर होश आया है आपको । आपकी माताजी जबसे ही आपके पास बैठीं हैं । आपके शरीर पर कई छोटे बड़े घाव थे । और आपके कपड़े भी फटे हुये थे । क्या हुआ था आपके साथ ???...""
डॉक्टर की बात सुनकर गौरव को हैरानी होती है । उसे वो सब घटनाएं याद आने लगती हैं । वो लोगों के उल्टे पाँव । वो भयानक शक्लें । वो मुर्दा लोग । और वो दिव्य अप्सरा सी दिखने वाली लड़की । तभी जैसे उसे कुछ याद आता है । वो फ़ौरन डॉक्टर से पूछता है ।
"" मुझे यहाँ लाया कौन ???""
"" एक लड़की थी । खुद का नाम काजल बता रही थी । उसी ने आपको यहाँ लाकर एडमिट किआ । पेपर्स पर साइन भी किये । ये देखिए । ""
गौरव पेपर पर नज़र डालता है तो सच मे उसपर काजल नाम के साईंन हुए रहते हैं । उसका आश्चर्य अभी लगता है खत्म होने वाला नही था । क्योंकि निशांत और माँ उससे बोलते हैं ।
"" उसी लड़की का फोन हमारे पास आया था बेटा । उसी ने तेरा बताया कि तू यहॉं इस अस्पताल में भर्ती है । अपना नाम काजल बता रही थी । उसकी आवाज़ बड़ी सुरीली थी । "" माँ के मुँह से ये सब सुनकर गौरव के मन मे कई सवाल उमड़ने घुमड़ने लगते हैं ।
आखिर वो रहस्यमय खूबसूरत लड़की कौन थी जिसने उसे उन दुर्दांत खतरनाक आत्माओं से बचाया था । पर उसके पैर भी तो उल्टे ही थे । लेकिन उसने मुझे कोई भी नुकसान नही पहुंचाया । बल्कि उन भयानक लोगों से मेरी रक्षा की । तो क्या आत्माएं अच्छी भी होतीं हैं ?????
गौरव माँ से उसका नम्बर मांगता है । जिससे उस लड़की ने उनको फोन कर उसकी सूचना दी थी । माँ और निशांत मोबाइल में वो नम्बर ढूंढते हैं । ओर आश्चर्य लिस्ट में वो नम्बर कही भी नही था ।
गौरव के लिए ये सब घटनाएं एक रहस्य ही बनी हुई थी । किस तरह वो उनसबमे फंसता है फिर वो खूबसूरत लड़की आकर उसे बचाती है ।
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अपने ऑफिस में बैठा हुआ वो उन्हीं घटनाओं के बारे में सोचता रहता है । तभी निशांत वहाँ आता है । बड़ी हैरानी से वो उसे वो बात बताता है जो गौरव जानना चाहता था ।
"" भैया मेने पता किया , खुरवाई नाम का एक गाँव आज से लगभग 100 साल पहले हुआ करता था । लेकिन एक विपदा में पूरा गाँव उजड़ गया । रातों रात वहाँ रहने वाले सभी लोग एकसाथ मार दिए गए थे। उस गाँव के मुखिया का नाम भवानीशंकर था । जो बड़ा स्वार्थी और अत्याचारी था । कहते हैं उसने अपने एक दोस्त जिसका नाम अजीत कुमार था उसके साथ मिलकर अंग्रेज़ो की सहायता से पूरे गांव वालों के साथ विश्वासघात किया था । मनमाना लगान वसूलना और तरह तरह से अत्याचार करना ही उसका काम था । उस वक़्त उसी गाँव के एक बहाददुर लड़के जिसका नाम सूर्या था वो भवानीशंकर के अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाता था । पर उसे उस भवानीशंकर की लड़की काजल से प्यार हो गया था । जो भवानीशंकर को बिल्कुल भी पसंद नही था । वो सूर्या का दुश्मन बन बैठा था । जब काजल ने उसकी बात नही मानी और सूर्या से मिलना बंद नही किया तो भवानीशंकर ने अपनी ही लड़की काजल को ही मार डाला । ये बात जब सूर्या को पता चली तो उसने भवानीशंकर से भयंकर प्रतिशोध लिया । और हवेली नीलकमल में आग लगा दी , जिसमे भवानीशंकर और उसका दोस्त अजीत कुमार भी भस्म हो गए ।
बाद में इस बात का बदला अंग्रजों ने पूरे गांव से लिया । और भीषण कत्लेआम मचाया । रातों रात पूरे गांव को गोलियों से भून डाला । सभी लोग मारे गए । कोई नही बचा ।
गौरव बड़े गौर से सारी कहानी सुनता रहता है । पर उसे ये समझ नही आता कि आखिर ये सब उसी के साथ क्यों हुआ ???
रात को बिस्तर पर लेटे लेटे यही सोचते हुए उसकी नींद लग जाती है । तभी कोई जैसे उसके सर पर हाथ फेरता है । वो आंख खोलकर देखता है तो वही खूबसूरत लड़की काजल थी । जो उससे बोल रही थी ।
"" तुम यही सोच रहे होना कि ये सब तुम्हारे साथ ही क्यो हुआ । तो सुनो । तुम सूर्या का ही पुनर्जन्म हो । तुम मेरे सूर्या हो । मेरे सूर्या । और में तुमको कभी भी कुछ भी नही होने दूंगी । ""
अचानक गौरव की आँख खुलती है । देखा तो आसपास कोई नही था ।
समाप्त
लेखक - अतुल कुमार शर्मा " कुमार "