इस कहानी का शीर्षक भी बिल्कुल इस टाइटल की तरह मजबूत है।
यह कहानी कुछ चुनिंदा लोगों को प्रदर्शित करती है। जिसमे साहस वीरता और धैर्य और सबसे बड़ी बात हिंसा का चिन्ह दाग होते हुए भी वे सदा अहिंसा के बल पर ही जीवन की कठिनाइयों से लड़े। परिवार
उस समय के लाहौर से जुड़े गांव में रहता था। मां बाप एक अच्छे घराने से थे और गांव के सम्मानित किसान और जमीदार थे। जिंदगी की डोर बहुत ऊंची उठ चुकी थी। घर में पशु पालन और खेती किसानी ही एक मात्र व्यवसाय था। जिस पर नींव टिकी थी। अंग्रेजी राज को आए एक अरसा हो गया था। जैसे किसी के घर में चूहे घुसकर आते है और बिल में रहकर मजा लेते है। ऐसे अंग्रेज थे। राजतंत्र तो था ही और ऊपर से अंग्रेजी तानाशाही। सरदार का इलाका जो की सर्वशक्ति का प्रतीक था वह भी उन दिनों अंग्रेजी राज में त्राहिमाम कर रहा था। कई लोग टोलिया बनाते और आजादी का उन्माद लाते तो थे। लेकिन बस कुछ घड़ी के लिए ही। दिन ज्यों त्यों बीत रहे थे। 1857 की क्रांति ने एक मसाल का काम किया। मंगल पांडे तो नही रहे लेकिन कई मंगल और आ गए थे। जिनका खून इतना उफान पर था। की जो भी अंग्रेज उस नदी रूपी खून में जाता वो बह जाता था। उसके बाद और न जाने कितने असंख्य लोग जो गवाह बने एक स्वतंत्र साम्राज्य को समर्पित गाथा का। सरदार किशन सिंह और मां विद्यावती उनकी पत्नी को उन्ही संघर्षों के दौरान एक एक पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। रंजीत सिंह जो उनके भाई थे उस समय वे कारावास काट रहे थे। इधर गांधी अंबेडकर और पटेल , नेहरू जैसे अन्य नेता उस समय काफी चर्चा में थे और सब तरफ केवल अत्याचारों की आग सुलग रही थी। भगत जो धीरे धीरे इस स्वर्ण कलश जैसी धरती पर अपने कदम इन सब को देखते हुए धर रहा था। समय के साथ सबको सीख मिलती गई। और लाजपत राय साहब और तिलक जी के कार्यकाल में इन अंग्रेजी राज के खिलाफ कई आंदोलन चलाए गए। जो की अहम साबित हुए। हर ओर एक व्याप्त ताकत जो जूझ रही थी। भगत समय के साथ बड़ा भी हो रहा था। जब वो मात्र बारह वर्ष का ही था। तब डायर के द्वारा किए गए अनितिक कार्य का गंभीर परिणाम भुगतना पड़ा। जिसकी चिरकालिक गवाही ये देश बना। और भगत भी। यह एक हत्याकांड था। जो जलियावालबाग हत्याकांड बना। कांड के पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है। एक बंद कमरे में की गई मीटिंग और उसका कार्य भर श्री करतार सिंह सराभा को सौंपा गया। करतार सिंह एक कार्यकर्ता के रूप में सम्पूर्ण भारत तो नही परंतु संपूर्ण पंजाब में आजादी की अलख जगाने की शुरवात की।
उन दिनों अंग्रेजी का एक बड़े स्तर पर बोल बाला हुआ करता था। जिस के अंदर कई भारतीय जो लालच के पुजारी थे वो अंग्रेजी के चाटुकार बनते जा रहे थे। भगत ने अब तक की उम्र में देश की परिस्थिति और कई अन्यत्र कांड देखे जो की उसके बालसुलभ मन को भर गई। एक दिन वो अपने पिता के साथ खेतो में गए वहा वही नन्हा मन क्रोध की जलती धार पर बंजर जमीन में बंदूके समझ कर कुछ लकड़ी के टुकड़ों को बोने लगा। अचानक भगत की खोज होने लगी और वो खेतो में बंदूके बोता हुआ मिला। पूछने पर बताया की बंदूके दुश्मन का भोजन बनेंगी। दिन बीते भगत बड़े हो गए बचपन की यादों को लिए। यादें भी ऐसी जो किसी बच्चे के मन को शोभा नहीं देती। जिसको खिलोने मिलने चाहिए थे। वो उस बचपन में बंदूके बो रहा था। भगत अब कॉलेज जाने लगे थे। और एक सभ्य पुरुष लगने लगे थे। अब वह बालक एक जोशीला नौजवान हो गया था। कहते है जवानी अक्सर मोहब्बत की भूमिका होती है। परंतु भगत की जवानी कुछ अलग थी। धीरे धीरे कॉलेज में भगत की भूमिका एक नायक की तरह होने लगी। एक ऐसा नायक जो शांत सहज और सभ्य विचारो का अहिंसात्मकता का पुजारी। भगत ने कई समूह बनाए जो की कई जगहों पर रंगमंच नाटकों के द्वारा दर्शाए गए। भारतीय के मन की जंग को हटाने का काम मंगल पांडे के बाद केवल भगत ने ही किया। भगत किताबे बहुत पढ़ते थे ऐसा सुनने को मिलता है। अंग्रेजी राज के अत्याचार को देखते हुए भगत ने अपने मन को देशभक्ति के रंग में ज्यादा उचित समझा। एक युवा कार्यकर्ता की तरह भगत प्रत्येक जगह जाकर और उनमें एक उन्माद जगाते। लोग भगत को जानने लगे। और उनको सुनने आने लगे। धीरे धीरे भगत की ख्याति उन लोगो तक भी पहुंची जिनको ऐसे व्यक्ति की शख्त जरूरत थी। अगर एक वाक्य में कहूं। तो वो आंधी जिसने चाटुकारों, अंग्रेजो ,और उनसे जुड़े सभी लोगो की नींद उड़ा दी जो सोए हुए थे। भगत वो भगत बना जिसका नाम सुन चाटुकारों और अंग्रेजो को हैरत होती थी। वे कहते थे। ऐसा नाम वाला व्यक्ति ये काम कदापि नहीं। विश्वास नहीं होता। भगत ने घरवालों को घरवाली न खोजने को कहा। और कहा कि उनकी दुल्हन अब ये भारत की माटी में उपजी आजादी है। घरवालों को अचरज होता लेकिन अब भगत को पागल दीवाना कहने के इलावा कोई चारा न था। उसका साहस और धैर्य दोनो समय के साथ प्रकाश वान होता जा रहा था। भगत ने आजाद आजाद को पाने के लिए अपने दोनो प्रिय मित्रो राजगुरु और सुखदेव को भी एक बार के लिए अलविदा कहा था। लेकिन आजाद जी को पाकर वह और प्रभावित हो उठे। और यह देखकर सुखदेव और राजगुरु दोनो भी उन्ही के पास आ गय। गणेश शंकर विद्यार्थी। चंद्रशेखर आजाद तिवारी। भगत सिंह राजगुरु सुखदेव सिंह ,रामप्रसाद बिस्मिल लाहिड़ी , अस्पाक उल्ला खान, ये सबने मिलकर HRA का निर्माण किया। और इस संगठन ने अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी। काकोरी काण्ड के पश्चात,असेंबली बॉम्ब, शायमन कमीशन , भारत छोड़ो,आजादी मार्च जैसे न जाने कितने आंदोलन ने अंग्रेजी राज की नींद उड़ा दी। अंग्रेजो की बौखलाहट ने उनके राज को तबाह कर डाला। अधिकारी की हत्या कर लाला जी की आत्मा को शांति दिलाई। एक दिन अचानक अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद में लड़ते हुए आजाद ने स्वयं को गोली मारली। जिस कारण से आजादी को ज्यादा दिन नहीं रह गए। भगत को और उनके साथियों को पकड़ लिया गया। कैद खाने में डाल दिया गया। लेकिन अब इतनी आग जो भगत और साथियों द्वारा लगा दी गई वो भगत के जेल में रहते भी कम न हुई। अंग्रेजो ने सजा मुक्करर कर दी। और भगत और उनके दोनो साथियों को कुछ दिनों में फांसी देने का हुक्म दे डाला। उनको नही पता था। की फांसी उम्रकैद से आजादी नहीं मरती। भगत ने किसी को कोई सजा माफी के लिए अर्जी नही लगाई। और न किसी को कहा। क्योंकि उनको पता था। की आजादी के लिए बलिदानी जरूरी है। उनके विचार थे की आजादी तलवार की धार पर नही बल्कि विचारो की धार पर मिलती है। अंदर रहते हुए भी भगत सिंह ने न जाने कितने किताब को पढ़ा और न जाने कितने लोगो को प्रेरित किया। राजनेता के कहने पर भी वो जेल से बाहर आने को तैयार ना हुए। मंगल पांडे के बाद ये पहला मां का भगत जो हस्ते हस्ते फांसी को स्वीकार कर गया। भगत को अंदेशे से देखते हुए फांसी के दिन से एक दिन पहले ही तीनों वीर पुत्र को जंगे आजादी का हीरो घोषित कर फांसी आधी रात को दे डाली। आजादी नामक दुल्हन को तो वो नही देख पाया। लेकिन उसका बोया हुआ बीज राष्ट्र को महज कुछ दिनों में आजादी दिला गया। सभी की आंखों में आंसू और क्रोध था। लेकिन मां को भगत के जाने का गम न होकर उसके रहते आजादी न देख पाया। इस बात का गम कचोट गया। ये कहानी नही बल्कि एक महा बलिदान की गाथा है। भगत को मैने कम ही समझा है। इसलिए मैं कौन होता हूं भगत की भक्ति को समझने वाला। उनके कहे विचार उनके गाए जाने वाले गीत आज भी जिंदा है। भगत आज भी जिंदा है। बस जरूरत है उससे जगाने की।
अपील : हृदय की अत्यंत गहराइयों से मैं आप सबके बेटे को राष्ट्र पुत्र की घोसना करने की मांग करता हूं। आप भी मुझमें शामिल हो ऐसी मेरी तमन्ना है।
सहीदो की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले
वतन पर मरने वालो का यही बाकी निशां होगा।
जय हिंद।
राष्ट्र पुत्र को समर्पित।