Nafrat se bandha hua pyaar - 36 in Hindi Love Stories by Poonam Sharma books and stories PDF | नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 36

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नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 36


सबिता ने आगे बढ़ कर देव का हाथ अपने दोनो हाथों में भर लिया। वोह उसकी गरमाहट महसूस करने लगी।

"देव!" बाहर से आती हुई चिल्लाने की आवाज़ ने ऑपरेशन थिएटर में पसरी हुई शांति को भंग कर दिया।

"मेरा भाई कहां है!"
अभय सिंघम चिल्लाता हुआ ऑपरेशन थिएटर में घुस आया और सामने अपने छोटे भाई को बेहोश पड़े हुए देख कर एक पल रुक गया।

"वोह ठीक है, अभय। तुम शांत हो जाओ," अनिका अपने पति अभय को समझा रही थी।

"क्या हुआ था?" देव ने पूछा। वोह अब सामने देव के साइड में बैठी सबिता को देख रहा था।

"हम नही जानते अभी तक की किसने देव पर गोली चलाई। लेकिन हम जल्द ही उसे पकड़ लेंगे," सबिता ने आराम से जवाब दिया।
सबिता ने सोच लिया था की कहीं से भी उस आदमी को ढूंढ निकालेगी जिसने देव पर गोली चलाई और उसके टुकड़े टुकड़े कर देगी जब तक की वोह खुद मरने की भीख न मांगने लगे।

****

अगले कुछ दिन तक सबिता ही साइट का काम संभालने लगी। उसे बहुत दुख हुआ था जब उस आदमी की लाश मिली थी अगले दिन जिस आदमी ने देव पर गोली चलाई थी। वोह चाहती थी सिंघम्स के हाथों पड़ने से पहले वोह ही उसे गोली मार दे।

शाम को अपना सारा काम निपटा कर सबिता अरुंधती हॉस्पिटल के लिए निकल गई। जहां देव का इलाज चल रहा था। वोह रोज़ ही रात को वहां जाति थी और देव के कमरे में ही रखे बेंच पर सोती थी।

जल्द ही देव को डिस्चार्ज मिल गया और उसे उसके घर शिफ्ट कर दिया गया। उस शाम वोह सिंघम मैंशन के लिए प्रोजेक्ट साइट से निकल गई।

जैसे ही वोह सिंघम मैंशन के सामने पहुंची उसने देखा दो लड़कियां मैंशन के बाहर गार्डन में काम कर रही थी। सबिता उनमें से एक के नजदीक गई और उसे प्यार से ऑर्डर देते हुए कहा, "मुझे देव के कमरे में ले चलो।"

वोह दोनो लड़किया एक दूसरे की शकल देखने लगी। "देव जख्मी है। वोह अभी पूरी तरीके से ठीक नही हुआ है।" उस लड़की ने जवाब दिया।

"मुझे पता है। इसलिए मैं यहां आई हूं उसे देखने। मुझे उसके कमरे में ले चलो।"

वोह लड़की कुछ हिचकिचाने लगी। "मैं अनिका को बुलाती हूं। मैं उन्हे बताती हूं की उनकी बहन यहां आई हुईं हैं," उस लड़की ने हड़बड़ा कर कहा और अंदर मैंशन में चली गई।

दूसरी लड़की वहीं खड़ी सबिता को घूर रही थी। "मैं अनिका से बाद में मिल लूंगी। पहले मुझे देव के पास ले चलो।" सबिता ने दूसरी लड़की से भी प्यार से मांग की।

जब वोह लड़की भी ऐसे ही उसे घूरती रही तोह सबिता ने अपना आपा खो दिया और खुद ही मैंशन में चली गई।

सामने से वोह पहली वाली लड़की वापिस आ रही थी लेकिन उसके साथ अनिका नही थी बल्कि कोई और औरत थी। वोह औरत बिलकुल गुस्से में लग रही थी।

"मीना! इसे देव के पास मत ले जाना।" उस औरत ने उसे लड़की से कहा। वोह औरत सबिता को अजीब नज़रों से देखने लगी। "बाहर निकल जाओ यहां से! हम जानते हैं की तुम हमारे देव से नफरत करती हो। उसे गोली तब लगी थी जब तुम उसके साथ थी। तुम्हे क्या लगता है की हम बेवकूफ हैं जो इतना भी नही समझेंगे?"

सबिता उन्हे शांति से खड़ी देख रही थी। "मुझे नही पता की और बेवकूफ हैं या नहीं, लेकिन तुम ज़रूर हो," सबिता ने कहा।

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई......"

"चुप।" सबिता ने उन्हें बोलने से रोक दिया। "मुझे... देव... के... कमरे... में... लेकर... जाओ...। अभी... के... अभी...।" सबिता ने हर शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा।

वोह औरत सबिता को घूर कर देख रही थी। उसके चेहरे पर गुस्सा और डर दोनो के ही भाव थे। सबिता को उस औरत से चिड़चिड़ाहट होने लगी।

वोह चाहती थी की वोह खुद ही उसे ढूंढ ले। पर इस मैंशन में लगभग सौ कमरे थे। अगर वोह हर एक एक कमरा चैक करने बैठेगी तोह उसे सुबह हो जायेगी देव का कमरा ढूंढते ढूंढते।

इससे पहले की सबिता अपना आपा खोती और गुस्से में उस औरत को कुछ उल्टा सीधा सुनती उसने अनिका और अभय सिंघम को नीचे उतरते देख लिया।

"सबिता," अनिका ने उसे आश्चर्य से पुकारा।

बदले में सबिता अनिका और अभय को देख कर बस हल्का सा मुस्कुरा दी। "मैं यहां बस देव को देखने आई हूं।"

"वोह तब भी सो रहा था जब मैने उसे आखरी बार उसके कमरे में देखा था। पर फिर भी मैं तुम्हे उसके कमरे में लेजा सकती हूं," अनिका ने प्यार से कहा।

उसकी बात सुनकर वोह औरत गुस्से से भड़क उठी। "अनिका। तुम जानती हो देव इसे बिलकुल भी पसंद नही करता। वोह इससे कितनी नफरत करता है। इसी ने पक्का देव पर गोली चलवाई....."

"मालिनी!" अभय सिंघम के एक शब्द चिल्लाने से ही वोह औरत चुप हो गई थी।

सबिता अनिका के पीछे सीढियां चढ़ने लगी। वोह कॉरिडोर से होते हुए एक कमरे के सामने आ कर रुके। सबिता से इंतजार ही नही हो रहा था। उसने झटके से दरवाज़ा खोल दिया और अंदर घुस गई।

सामने सोफे लगे हुए थे। और अंदर की तरफ एक बड़ा सा बेडरूम था जहां देव अपनी आंखें बंद किए हुए लेता हुआ था। देव के पास ही एक बूढ़ी सी औरत बैठी हुई थी जो देव की देखभाल के लिए थी।

"मैं आज रात यहां रुकूंगी। तुम जा सकती हो और कल सुबह वापिस आना।" सबिता ने उस बूढ़ी औरत से कहा।

वोह औरत अचंभित सी हो गई और अनिका की तरफ देखने लगी।

"हां ठीक है, सीतम्मा। मेरी बहन आज रात यहां रुकेगी और देव का ध्यान रखेगी। वोह जब बुलाए तब आ जाना।"

अनिका के आश्वासन पर उस बूढ़ी औरत ने सिर हिला दिया और कमरे से बाहर चली गई।

सबिता उस कुर्सी पर बैठ गई जो देव के साइड में रखी हुई थी जिसपर अभी थोड़ी देर पहले सीतम्मा बैठी हुई थी। सबिता ध्यान से बस देव का चेहरा देख रही थी।

देव का चेहरा बिल्कुल भी हिल नही रहा था वोह शांति से लेटा हुआ था जिस वजह से सबिता की धड़कने तेज़ हो गई और घबराहट बढ़ गई। उसे एहसास हुआ की कितना उसने मिस किया था देव की खुराफाती और शरारती मुस्कुराहट को। वोह चाहती थी की बस देव जल्द से जल्द ठीक हो जाए।

"उसे हल्का सा बुखार है।" सबिता ने पीछे से अनिका की आवाज़ सुनी जो उसी से के रही थी। "उसका शरीर घाव से हुए इन्फेक्शन से लड़ रहा है। उसका फीवर कुछ दिनों में ठीक हो जायेगा।"

सबिता ने अपनी नज़र एक पल के लिए भी देव पर से नही हटाई। उसने सामने पड़े टेबल पर से पानी का बोल उठाया और उसमे रखे कपड़े को निचोड़ कर देव के माथे पर रख दिया। वोह बार बार ऐसा ही कर रही थी ताकि देव का बुखार जल्द ही उतर जाए।

****

अब सबिता हर शाम वहां आने लगी। वोह वहीं देव के कमरे में उसके साथ सारी रात रहती और सुबह चली जाती। हर बार जब भी वोह यहां आती सिंघम मैंशन में, तोह अनिका और अभय उसे अजीब नज़रों से देखते पर इससे सबिता को कोई फर्क नही पड़ता। वोह रोज़ आती और सुबह चली जाती।

एक हफ्ता गुजर गया। सबिता को एक या दो बार ही कुछ सेकंड के लिए ही देव की आंख खुली देखी थी वरना वोह बाकी समय बस सोता रहता दवाइयों को हैवी डोज की वजह से।

आंठवे दिन वोह अचानक चौक कर उठी जब उसे महसूस हुआ की किसी ने उसके गाल पर हाथ रखा हुआ है। वोह उठी और देखा की देव उसे देख रहा था और उसी ने अपना हाथ उसके गाल पर रखा हुआ था। सबिता ने देखा की देव पूरी तरह से होश में लग रहा था। उसकी आंखे चमकती हुई सी लेकिन बेसुध सी लग रहीं थी तेज़ बुखार के कारण।

"हाई बेबी।" देव ने मुस्कुराते हुए कहा।
सबिता ने भी जवाब में मुस्कुरा दिया। "तुम बहुत ही लंबी नींद से जागे हो, सिंघम।" सबिता ने कहा। उसकी आवाज़ नींद की वजह से कुछ अलसाई हुई सी थी। "मुझे कितने सब काम संभालना पड़ा तुम्हारी गैर हाजरी में जो तुमने छोड़े थे और तुम मज़े से दस दिन तक यहां सोते रहे।" सबिता ने शिकायत की और देव मुंह दबा कर हंस पड़ा।

"अब तुम्हे कैसा लग रहा है?" सबिता ने पूछा।

"पहले से ठीक हूं। बस प्यास लगी है।" देव ने जवाब दिया।

इससे पहले की सबिता दूसरी साइड से उठती देव को पानी देने के लिए, देव ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया।
"मैं ले लूंगा," इतना कह कर देव उठ कर बैठ गया।
फिर अपने पास रखी टेबल पर से बॉटल उठा कर थोड़ा सा पानी देव ने पिया।

"मैं अनिका को बुलाती हूं और बताती हूं की तुम जाग गए हो।" सबिता अपना फोन उठा कर उसमे अनिका का नंबर ढूंढने लगी।

देव ने फिर उसे रोक दिया। "नही रुको। मैं ठीक हूं।"
देव पिलो एडजस्ट कर के उससे टेक लगा कर बैठ गया और सबिता को मुस्कुराते हुए निहारने लगा।

सबिता कुछ अनकंफर्टेबल महसूस करने लगी। सबिता जानती थी की वोह देव की बहुत ज्यादा परवाह करती है लेकिन क्या यह परवाह उसकी नज़र में मायने रखता है भी या नही। इन दस दिनों में वोह देव के नज़दीक उसके पास ही सोई थी। और उसने प्रैक्टिकल तरीके से इस रिश्ते के बारे में बहुत सोचा। और हर बार वोह इसी नतीजे पर पहुंची थी की उसकी पहले से ही इतनी कॉम्प्लिकेटेड लाइफ है जो और कॉम्प्लिकेटेड हो जायेगी।
पर इसके बावजूद भी वोह यहां हर बार अगले दिन आ जाती थी।

"मुझे अब चलना चाहिए," सबिता ने कहा। "मैं एक बार अनिका को बुला लेती हूं वोह तुम्हे चैक कर लेगी। वोह सीतम्मा को भी बुला लेगी जो पूरे टाइम तुम्हारा ध्यान रखती थी।"

देव मुस्कुराया और धीरे धीरे अपना हाथ आगे बढ़ा कर सबिता के बालों में चलाने लगा। "हमे यह नाटक करना बंद कर देना चाहिए," देव ने कहा।

"क्या?" सबिता ने आराम से ही पूछा।

"हमे ऐसे बिहेव करना बंद कर देना चाहिए जैसे की हमे एक दूसरे की चिंता है ही नही, जैसे सामने वाला कोई इंपोर्टेंट इंसान नही हो। मुझे तोह पता है की तुम मेरे लिए बहुत इंपोर्टेंट हो।"

"देव....."

देव ने सबिता का हाथ पकड़ लिया और अपने करीब करते हुए उसकी हथेली चूम ली। "कुछ है यहां," देव ने सबिता का हाथ अपने दिल पर रखते हुए कहा। "और यहां," देव ने अब उसका हाथ अपने माथे की तरफ ले जा कर इशारा करते हुए कहा। "जो कहतें हैं की हमे एक दूसरे के साथ रहना चाहिए।"

सबिता ने कुछ नही कहा बस हमेशा की तरह देव से अपनी नज़रे फेर ली। देव ने उसकी चिन पर अपनी उंगली रखी और उसका चेहरा ऊपर किया ताकी उससे नज़रे मिला सके। "तुम्हे पता है मेरे मां और डैड और दादी सभी हमेशा यही कहते थे की मैं अपने इमोशंस को अपने चेहरे पर ले आता हूं। तोह मुझे लगता है की तुम देख पा रही होगी की मैं तुम्हारे बारे में क्या महसूस करता हूं।"

सबिता ने एक गहरी सांस ली और कहा, "मुझे नही पता की तुम मुझे लाइक.....?

देव हसने लगा। "लाइक यू?" देव ने पूछा और फिर उसे अपनी गहरी नजरों से देखने लगा जिससे सबिता की तोह सांस ही अटक गई।
"यह लाइकिंग से कहीं ज्यादा है, सबिता," देव ने कहा। "ये चाहत है। और ये ऐसी चाहत नही है की जो सिर्फ स्वीट या रोमेंटिक हो। एक पल के लिए भी मैं तुम्हारे बिना अपनी जिंदगी नही सोच सकता। अगर ऐसा हुआ तोह मैं टूट जाऊंगा।"

देव ने अपनी दोनो हथेलियों से सबिता का चहरा भर लिया। "बताओ मुझे की तुम्हे एक पल के लिए भी जरा सा भी कोई एहसास नहीं हुआ कुछ मेरे लिए। अगर सच में ऐसा है तोह मैं पीछे हट जाऊंगा।"

सबिता देव का चेहरा बड़े ध्यान से देख रही थी। उसके चेहरे पर उसे साफ दिखाई दे रहा था उम्मीद, इच्छा और सबसे ज्यादा.....चाहत। "मुझे भी महसूस होता है," सबिता ने प्यार से स्वीकार लिया। "तुम्हे खोने का सोच के ही......" उसे शब्द ही नहीं मिल रहे थे अपने दिल की बात देव को बताने के लिए।

देव का चेहरा इतना सुनते ही खुशी से खिल उठा। इस वक्त सबिता जानती थी की वोह अब और नहीं लड़ सकती अपनी फीलिंग्स से। वोह थक गई थी लड़ते लड़ते और अपनी फीलिंग्स को छुपाते छुपाते। क्या यह गलत है वोह करना जो उसका दिल कहता है?

उसने कभी नही सोचा था की उसकी जिंदगी में एक दिन ऐसा आएगा की जिससे सबसे ज्यादा नफरत थी.... वोही... उसका सब कुछ बन जायेगा।

देव ने अपना एक हाथ उठाया और सबिता उससे सट कर लेट गई। देव ने उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसके बाद वोह पूरी रात सिंघम मैंशन में ही देव की बाहों में कस कर चिपके हुए उसके साथ सो गई।

सुरक्षित उसकी बाहों में जिसने सच में उसका दिल चुरा लिया था।











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(पढ़ने के लिए धन्यवाद)
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