Women's Discourse vs. Human Rights in Hindi Women Focused by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | स्त्री विमर्श बनाम मानवाधिकार

Featured Books
Categories
Share

स्त्री विमर्श बनाम मानवाधिकार


मैं हुआ करती थी /एक ठंडी पतली धारा /बहती हुई जंगलों ,पर्वतों और वादियों में /मैंने जाना कि ठहरा हुआ पानी /भीतर से मारा जाता है /जाना कि समुद्र की लहरों से मिलना धाराओं को नयी जिंदगी देना है /न तो लंबा रास्ता न अंधेरे खड्ड न रूक जाने का लालच /रोक सके मुझे बहते जाने में /अब मैं जा मिली हूँ अंतहीन लहरों से /संघर्षों में मेरा अस्तित्व है और मेरा आराम है मेरी मौत |

प्रत्येक विमर्श अपने समय में तर्कों ,अध्ययनों ,मनन और चिंतन की प्रक्रिया से गुजरता है परंतु व्यवहार का विमर्श विचार के विमर्श से अलग ही रहता है|
आज स्त्री विमर्श विश्व के मानवाधिकार से जुड़ गया है ,जिसमें दुनिया भर की स्त्रियाँ शामिल हैं ।इस तरह स्त्री विमर्श मानवाधिकारों का स्त्री विमर्श बन चुका है |
स्त्रियों पर हो रही हिंसा उजागर है ,दृश्य और विदित है |इसके विरोध में सरकारी ,गैर सरकारी संगठन ,एन-जी –ओ सजग और सचेत होकर सभी जगह कार्यरत हैं |
स्त्री हिंसा के कई रूप हैं।हिंसा का एक अदृश्य पक्ष ऐसा भी है जिसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता |स्त्रियाँ स्वयं भी नहीं जानती कि उनके साथ हिंसा हो रही है |भारतीय संस्कृति और भारतीय विचारधारा में स्त्री के स्व, उसके अस्तित्व की अवधारणा ही नहीं है ।स्त्री होने का मूल मंत्र है उत्सर्ग |उसके जीवन की राह निश्चित की गयी है -अनुसरण ,अनुकरण |
महात्मा गांधी ने कहा था कि स्त्रियों को गुलामों की तरह जीना पड़ता है |उन्हें पता ही नहीं होता कि वे गुलामों की तरह जी रही हैं | ‘स्त्री’ अपनी जुबान का ,अपने पैरों का ,अपने मस्तिष्क का उपयोग न करने के लिए वाध्य हैं क्योंकि उसका सब कुछ दूसरों की धरोहर है |औरत के सदगुण,धैर्य ,त्याग, सहनशीलता ,उत्सर्ग भाव ही हिंसा के घटक बन जाते हैं |स्त्री संगीतकार ,चित्रकार ,रंगमंच से जुड़ी हो ,प्रबंधन में इंजीनियर ,डाक्टर हो ,बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ मैनेजमेंट ,मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव के पद पर हो या न्यायविद,शिक्षाविद ,कानूनविद ,विज्ञान और तकनीक में परीक्षित और शिक्षित हो,उसे अपनी रचनाधर्मिता और अपनी ऊंची या साधारण नौकरी छोड़ने पर विवश होना पड़ता है |अगर परिवार विशेष रूप से शादी के बाद पति या परिवार नहीं चाहे |क्या यह मानसिक उत्पीड़न नहीं है ?औरत की पहचान को मिटाना उसके स्व को नष्ट करना सबसे बड़ी हिंसा है ,लेकिन इसे हिंसा नहीं माना जाता |जो स्त्रियाँ स्वावलंबी हैं ,आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हैं ।वे भी शोषण मुक्त नहीं हैं ?उनकी आय उनके घर वाले ले लेते हैं ।साथ ही उनसे घर के पूरे दायित्व भी उठाने की अपेक्षा की जाती है |कारण औरत को दी गयी भूमिका में घर,परिवार ,पति -बच्चों की देखभाल मुख्य है |बदलते समय में उसने घर से बाहर निकलकर एक और भूमिका निभाना शुरू किया है |इस परिवर्तन को समाज और परिवार स्वीकार नहीं कर पा रहा है |यह तब है जब देश की आय का 70 प्रतिशत उत्पादन स्त्रियों द्वारा होता है पर उस पर उनका अधिकार दस प्रतिशत भी नहीं है ।केवल लघु और गृह उद्योगों में 93 प्रतिशत स्त्रियाँ हैं |59 प्रतिशत पुरूषों की तुलना में 54 प्रतिशत स्त्रियाँ कृषि कार्यों में लगी हैं |वे खेतों में 10-12 घंटे काम करती हैं ,खेतों को बीजती ,सींचती,गोड़तीं और फसल काटती ,सभी कुछ करती हैं ,पर जमीन पर उनका कोई अधिकार नहीं है ?जमीन की मिल्कियत रखने –बेचने उत्पादन की बिक्री पर औरतों का अधिकार नहीं |असंख्य परिवार श्रमशील स्त्रियों की कमाई पर पलते हैं पर वे खुद कुपोषण ,रक्त की कमी ,कैलिशयम की कमी के कारण अनेक बीमारियों से जूझती हैं |क्या ये हिंसा नहीं है ?
भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करने पर बवाल यथास्थिति बनाए रखने वाले ही ज्यादा कर रहे हैं |सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की स्त्रियों के प्रवेश का अधिकार स्त्रियों के मौलिक व संवैधानिक अधिकारों के पक्ष में है |
बीजिंग और हुयारों[चीन] में हुए चौथे विश्व महिला सम्मेलन में विभिन्न देशों की लगभग पचास हजार प्रतिनिधि महिलाओं में हिस्सा लिया था |इस सम्मेलन में चर्चा के मुख्य मुद्दे थे –महिलाओं पर हिंसा ,महिला शिक्षा ,महिला स्वास्थ्य और महिलाओं के अधिकार |समान काम और समान वेतन का अधिकार ,राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में महिलाओं की सत्ता |सबसे अधिक चर्चा महिलाओं पर होने वाली हिंसा पर हुई |आश्चर्य की बात अमरीका और यूरोप के देशों की महिलाएं भी हिंसा की शिकार होती हैं |महिलाओं ने एक स्वर में कहा--
हमारा संघर्ष जारी रहे |हमें मानवाधिकार प्राप्त हो |मानवाधिकार का अर्थ औरत का मानव होना है |विश्व को स्त्रियों की आँखों से देखना और काम करना है |मानवता में लोकतान्त्रिक सम्बन्धों का सृजन करना है |मानवाधिकार एक प्रकृति है स्वतंत्र रहने,सम्मान से जीने और मानवता के नाते दूसरों को अधिकार देने और लेने की |मानवाधिकार सामाजिक न्याय व्यवस्था से जुड़ा है |यह एक मूल्य –बोध है जिसमें स्त्रियों के न्याय और समानता के लिए किए गए संघर्ष शामिल हैं |गर्भपात की स्वतन्त्रता ,पैतृक अधिकारों ,यौन-अधिकारों अर्थात यौन विषयों पर निर्णय लेने की स्वतन्त्रता आदि शामिल हैं |
फिलिपायन सूजन मैगनों की एक कवितांश है –
विश्व की औरतों
अपनी शक्ति बढ़ाओ
अपनी जंजीरों को तोड़ो
और हिंसा से मुक्त हो जाओ
ऊंची और स्पष्ट आवाज में
अपने लिए नयी दुनिया की घोषणा करो
जिसमें सब बराबर हों
हमारा सम्मान हो
वर्ण संस्कृति या जाति के भेद से
हमारे अधिकारों का हनन न हो
शांति और स्वतन्त्रता से हमारे सपने और आशाएँ पूर्ण हो |