I was a spy of India in Pakistan - Mohanlal Bhaskar in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था- मोहनलाल भास्कर

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मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था- मोहनलाल भास्कर


किसी भी देश की सुरक्षा के लिए यह बेहद ज़रूरी हो जाता है कि सेना के साथ साथ उसकी गुप्तचर संस्थाएँ और देश विदेश में फैला उनका नेटवर्क भी एकदम चुस्त..दुरुस्त और चाकचौबंद हो। जो आने वाले तमाम छोटे बड़े खतरों से देश के हुक्मरानों एवं सुरक्षा एजेंसियों को समय रहते ही आगाह करने के साथ साथ चेता भी सके। साथ ही दुश्मन देश की ताकत में होने वाले इज़ाफ़े..तब्दीलियों तथा कमज़ोरियों का भी सही सही आकलन कर वह भावी तैयारियों के मामले में अपने देश की मदद कर सके।

आज गुप्तचरों से जुड़ी बातें इसलिए कि आज मैं पाकिस्तान में भारत के जासूस रह चुके मोहनलाल भास्कर द्वारा लिखी गयी उनके संस्मरणों की किताब 'मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था' की बात करने वाला हूँ। जिसमें उन्होंने गिरफ्तार हो..पाकिस्तान की विभिन्न जेलों में रह रहे भारतीय/पाकिस्तानी कैदियों की दशा..दुर्दशा के साथ साथ उनकी मौज मस्ती और ऐश के बारे में विस्तार से लिखा है। 22 दिसंबर, 2005 को इनका निधन हो चुका है।

इस किताब में एक तरफ़ जहाँ अपने ही एक साथी की गद्दारी के परिणामस्वरूप जासूसी के आरोप में पकड़े गए लेखक एवं कुछ अन्य भारतीय कैदियों पर पाकिस्तानी सेना के अमानवीय टॉर्चर की बातें नज़र आती हैं। तो वहीं दूसरी तरफ़ इसमें उनमें से कुछ पुलिस वालों एवं जेल के अफ़सरों के सहृदय एवं मानवीय होने की बातें भी नज़र आती हैं। इस किताब में कहीं वहाँ के कट्टरपंथियों का बोलबाला नज़र आता है तो कहीं कुछ के दोस्ताना और सभी धर्मों की इज़्ज़त करने वाले व्यवहार का वर्णन भी पढ़ने को मिलता है।

इस किताब में कहीं लाहौर के तिब्बी बाज़ार, रंगमहल, शाही मोहल्ला और गुलबर्ग जैसे ऊँची सोसाइटियों में पॉलिटिकल सपोर्ट के ज़रिए चल रहे रंडीखाने नज़र आते हैं। तो कहीं सरेआम अवैध हथियार बिकते नज़र आते हैं। कहीं आधे दामों पर दुनिया के हर देश की नकली करैंसी की खरीद फ़रोख़्त होती दिखाई देती है।

इस किताब में कहीं जनरल अय्यूब..याह्या खाँ और ज़ियाउल हक़ जैसे क्रूर अफ़सरों के द्वारा अंजाम दी गयी तख़्तापलट की घटनाओं का पता चलता है तो कहीं इस किताब में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो जैसे अपनी बात..अपने वायदे पे कायम रहने वाले सहृदय पाकिस्तानी नेता भी नज़र आते हैं। इस किताब में कहीं बांग्लादेशियों पर पाकिस्तान के हुए अमानवीय अत्याचार नज़र आते हैं तो कहीं धोखे से वहाँ के प्रमुख नेता, मुजीबुर्रहमान को गिरफ़्तार कर बांग्लादेश देश से पाकिस्तान ले जाए जाने की बात भी तवज्जो हासिल करती नज़र आती है।

इसी किताब में कहीं मार्शल लॉ के दौरान लेखक को फौजियों की अंधाधुंध फायरिंग की बदौलत लाशों से भरी गाड़ियाँ दिखाई दीं। तो कहीं सरेआम सड़कों पर अपनी ही आवाम के प्रति पाकिस्तान के फौजी हुक्मरानों की मनमानी चलती दिखाई दी। इसी किताब में कहीं चलती फिरती अदालतें बतौर सज़ा सड़कों पर ही लोगों को कोड़े मारती और जुर्माने लगाती दिखाई दीं। तो कहीं इसमें दुश्मन देश के जासूसों की टोह में सादे कपड़ों में घूमते मुखबिर और वहाँ की सी.आई.डी दिखाई दी।

इसी किताब के ज़रिए पाकिस्तान के हर बड़े शहर में फैले वेश्यालयों एवं कॉल हाउसेज़ के बारे में पता चलने के साथ साथ वहाँ पर समलैंगिकों के बड़ी तादाद में होने का पता चलता है। तो कहीं डकैतों..स्मगलरों की पुलिस और सेना के बड़े अफ़सरों से साठ गांठ होती दिखाई दी। कहीं जेल वार्डन की मिलीभगत से जेल में फाँसी के कैदियों को कॉलगर्ल्स की सप्लाई होती भी दिखाई दी।

वहाँ की जेलों में जहाँ एक तरफ़ लेखक को जेब तराशने वालों से ले कर तस्कर..डाकू..अफीमची और खूनी तक मिले। तो वहीं दूसरी तरफ़ इसी किताब में कहीं लेखक के दुश्मन देश के जासूस होने की बात का पता चलने पर वह कट्टर पाकिस्तानी कैदियों द्वारा बुरी तरह पीटा जाता दिखाई दिया। कहीं लेखक को वहाँ की जेलों में सरेआम सिगरेट..शराब और अफ़ीम बिकती दिखाई दी तो कहीं सिग्रेट के बचे हुए टोट्टों के लिए भी कुछ कैदी तरसते और उनमें इसके लिए झपटमारी तक भी होती दिखी।

इसी किताब से हमें पता चलता है कि अमानवीय अत्याचारों के तहत कभी लेखक को जबरन बिजली के झटके दिए गए तो कभी उसके जिस्म में भीतर तक मिर्चें ठूस दी गईं। कभी उसे नग्न बर्फ़ पर लिटा कर तो कभी उसे नंगा कर पेड़ की गाँठों वाली मोटी टहनी से बुरी तरह पीटा गया। कभी उसे उलटा लटका निरंतर ऊपर खींचते हुए छह छह फौजियों द्वारा एक साथ इस कदर पीटा गया कि एक वक्त पर मार के सब एहसास भी खत्म होने लगे।

इसी किताब में कहीं लेखक, जानवरों की तरह सीधे मुँह से खाना खाने और चाय पीने के लिए मजबूर किया जाता दिखा तो कहीं पाकिस्तानी सेना के अफ़सर उसे लालच दे कर भारत के ख़िलाफ़ बरगलाते..भड़काते एवं उकसाते दिखाई दिए। कहीं लेखक को इतना ज़्यादा टॉर्चर किया गया कि उसने खुद विक्षिप्तों की सी हालात में इस डर से अपनी दाढ़ी मूछों के बाल खुद ही नोच कर अपने शरीर से अलग कर डाले कि नहीं तो अगले दिन पाकिस्तानी जेल के अफ़सर अपनी इसी धमकी को खुद अंजाम दे देंगे।

इस किताब को पढ़ते वक्त जहाँ एक तरफ़ पाकिस्तानी अफसरों की बर्बरता देख पाठकों के रौंगटे खड़े होने को आते हैं तो वहीं दूसरी तरफ़
किताब में शामिल कुछ रोचक किस्सों को पढ़ कर बरबस चेहरे पर हँसी या फिर राहत स्वरूप मुस्कान तैर जाती है। धाराप्रवाह शैली में लिखी गयी इस रोचक किताब में और भी ऐसा बहुत कुछ है जो पाठक की लगातार उत्सुकता जगाते हुए उसे आगे पढ़ने पर मजबूर कर देता है।


संग्रहणीय क्वालिटी की इस 215 पृष्ठीय रोचक किताब के 13 वें पेपरबैक संस्करण को छापा है राजकमल प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 199/- रुपए जो कि बहुत ही जायज़ है। अमेज़न पर यह किताब किताब डिस्काउंट के बाद मात्र 177/- रुपए में और इसका किंडल वर्ज़न 136/- रुपए में उपलब्ध है। अगर आप किंडल अनलिमिटेड के सब्सक्राइबर हैं तो इसे फ्री में भी पढ़ सकते हैं। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।