Galti ka ehsas in Hindi Motivational Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | ग़लती का एहसास 

Featured Books
Categories
Share

ग़लती का एहसास 

9 वर्ष की रूहानी और रोहन दोनों जुड़वाँ भाई-बहन थे। शक्ल-सूरत तो काफ़ी मिलती थी किंतु दोनों का स्वभाव एक दूसरे से एकदम अलग था। रोहन हद से ज़्यादा शरारती था, जबकि रूहानी बहुत ही शांत और समझदार थी। रोहन हमेशा कुत्ते, बिल्ली और पक्षियों को सताता रहता था। ऐसा करने में उसे बहुत आनंद की अनुभूति होती थी, बहुत मज़ा आता था। कभी किसी को पत्थर मारता, कभी किसी की पूंछ खींच देता, कभी पक्षियों को चिल्ला कर, डरा कर भगा देता। उसकी यह आदत उसकी बहन रूहानी को बिल्कुल पसंद नहीं थी। वह हमेशा उसे मना करती थी, समझाती भी थी किंतु रोहन को कभी यह एहसास ही नहीं होता था कि वह कितनी बड़ी ग़लती कर रहा है।

धीरे-धीरे रोहन की इस हरकत के विषय में उसकी क्लास में भी सभी बच्चों को पता चल गया। उसी की क्लास में था युवान, पढ़ने में बहुत अच्छा और रूहानी की तरह समझदार भी। युवान पशु-पक्षियों से बहुत प्यार करता था। रोहन की इस आदत के विषय में पता चलने पर एक दिन उसने रोहन से कहा, "रोहन तुम इतने निर्दयी कैसे हो सकते हो? तुम पशु पक्षियों को क्यों परेशान करते हो? ऐसा कर के तुम्हें क्या मिलता है?"

रोहन ने कहा, "ऐ युवान जा अपना काम कर, भाषण मत दे। मैं तुझे तो परेशान नहीं कर रहा ना फिर तू क्यों चिंता कर रहा है?"

युवान और रोहन के बीच इससे पहले कभी कोई झगड़ा, कोई विवाद नहीं हुआ था। दोनों में कभी-कभी बातचीत भी हो जाया करती थी परंतु अब रोहन की इन्हीं हरकतों के कारण उनके बीच मनमुटाव होने लगा।

एक दिन युवान ने रूहानी से कहा, "रूहानी तू क्यों अपने भाई को मना नहीं करती? तेरे पापा-मम्मी से उसकी शिकायत क्यों नहीं करती? क्या उन्हें यह सब मालूम है?"

रूहानी ने कहा, "युवान मैं हमेशा उसे मना करती हूँ, समझाती भी हूँ लेकिन उसे सुनना ही नहीं है। मैंने एक बार मम्मी से उसकी शिकायत की थी। तब उसे बहुत डाँट पड़ी थी और मम्मी ने कहा था कि यदि अब दोबारा यह शिकायत आएगी तो रोहन तुम्हारी पिटाई होगी। उसे मार ना पड़े इसलिए मैं बार-बार उसकी शिकायत नहीं करती। मम्मी कुत्ते के लिए रोटी बाहर रखकर जब अंदर चली जाती हैं तो कई बार रोहन रोटी उठाकर कुत्ते को दिखाता है और वह जैसे ही नज़दीक आता है वह रोटी उठाकर दूर फेंक देता है। कितनी बार कुत्ते की पूंछ खींच कर छुप जाता है। प्यारी-प्यारी गोरैया जब दाना चुगने आती है तो डरा कर उन्हें भगा देता है। उनके लिए भरा हुआ पानी फेंक देता है। मुझे समझ नहीं आता रोहन को कैसे समझाऊँ?"

युवान और उसके दोस्तों को यह सब सुनकर बहुत दुःख हुआ। उन्होंने मिलकर यह निर्णय लिया कि अब वे रोहन की इस गंदी आदत को छुड़ा कर ही रहेंगे।

रूहानी ने ख़ुश होते हुए कहा, "हाँ इस काम में मैं भी तुम सबका साथ दूँगी। मैं भी तो यही चाहती हूँ कि वह जानवरों को तंग करना छोड़ दे।"

अब सभी मित्रों ने मिलकर एक योजना बनाई कि अब से वे भी रोहन को तंग करेंगे। उसके साथ शरारत करेंगे ताकि उसे इस बात का एहसास हो कि कोई परेशान करता है तो कैसा लगता है? कितना दुःख होता है। वे सब जब क्लास से बाहर निकलते तब भीड़ में धीरे से कोई रोहन को पीछे से एक चपत लगा देता। रोहन मुड़कर देखता, किसने मारा? तब कोई जवाब नहीं देता। कभी-कभी काग़ज़ की छोटी-छोटी बॉल बनाकर उसे निशाना बनाया जाता। कभी उसकी कुर्सी पर एक काग़ज़ चिपका देते जिस पर लिखा होता बुद्धू। यहाँ तक कि उसका टिफिन भी छुपा देते थे।

रोहन परेशान रहने लगा। क्लास में कोई भी उससे अच्छी तरह बात नहीं करता था। यहाँ तक कि रूहानी भी अपने भाई का नहीं, दोस्तों का साथ दे रही थी। यह बात रोहन महसूस कर रहा था। वह अपनी बहन से नाराज़ रहने लगा लेकिन रूहानी तो अपने भाई को सुधारना चाहती थी। रोहन की नाराज़गी की तरफ़ उसने ध्यान नहीं दिया।

एक दिन परेशान होकर रोहन ने युवान से कहा, "युवान बहुत हो गया, अब देख मैं क्या करता हूँ?"

"क्या करेगा रोहन तू?"

"मैं जाकर प्रिंसिपल मैडम से तुम सबकी शिकायत करूंगा।"

"हाँ जा ना कर शिकायत, हम भी मैडम को बताएंगे कि तू जानवरों को कितना परेशान करता है।"

यह बात सुनकर रोहन डर गया।

तभी रूहानी ने कहा, "रोहन तू सुधर जा, वरना मैं तेरी यह सारी शरारत पापा को बता दूँगी।"

रोहन जानता था रूहानी सिर्फ़ धमकी देती है, कभी सच में शिकायत नहीं करती।

नवरात्रि का समय था रूहानी और उसकी मम्मी को गरबा करने का बहुत शौक था। रूहानी को उसकी मम्मी तैयार कर रही थीं। तभी उन्होंने रोहन से कहा, "रोहन बेटा चलो जल्दी से तैयार हो जाओ। गरबा ख़त्म होने के बाद घर आने में देर हो जाएगी।"

"नहीं मम्मी मैं नहीं आऊँगा, मैं वहाँ बोर हो जाऊँगा। आप लोग जाओ मुझे बहुत नींद आ रही है।"

उसके पापा ने पूछा, "रोहन बेटा तुम्हें अकेले डर नहीं लगेगा?"

"नहीं पापा अब मैं बड़ा हो गया हूँ, डरने की क्या बात है? मैं तो अपने घर के अंदर ही हूँ ना।"

"ठीक है रोहन, तो तुम आराम से सो जाओ। मोबाइल तुम्हारे पास ही रखो, कुछ भी ज़रूरत हो तो फ़ोन कर लेना।"

"जी पापा"

"हम बाहर से ताला लगा कर चले जाएँगे।"

"ठीक है पापा,” कह कर रोहन कमरे में सोने चला गया।

रूहानी अपने पापा-मम्मी के साथ गरबा महोत्सव में चली गई। नवरात्रि का यह त्यौहार तो सभी को बहुत पसंद होता है। सभी भक्ति भाव में डूबे होते हैं और गरबा करने के शौकीन अपने आप को घर पर रोक नहीं पाते।

रोहन की सोसाइटी आज काफ़ी सुनसान थी। रात के लगभग एक बज रहे थे। तभी दो अंजान व्यक्ति चौकीदार को सोता देखकर सोसाइटी में घुस आए। वह रोहन के घर के दरवाज़े पर लगा ताला तोड़ने की कोशिश कर ही रहे थे कि सोसाइटी के वह ही कुत्ते जिन्हें रोहन की मम्मी रोज़ रोटी खिलाती थीं, उन कुत्तों को पता चल गया। उन्होंने ज़ोर-ज़ोर से भौंकना शुरू कर दिया। कुत्तों की आवाज़ सुनकर चौकीदार उठ खड़ा हुआ। वह अपना डंडा लेकर उस तरफ़ आने लगा जिस तरफ़ कुत्ते भौंक रहे थे।

चोरों पर नज़र पड़ते ही चौकीदार ने शोर मचाया तो कुछ लोग उठ कर बाहर आ गए। चोर डर कर भागने की कोशिश कर रहे थे। तभी भागते हुए चोरों के पीछे कुत्ते लपके और उन पर झूम कर उन्हें गिरा दिया।

अब तक रोहन भी जाग चुका था, छिपकर खिड़की से वह ये सब देख रहा था। वह बहुत ही डरा हुआ था। इसी समय रोहन के पापा-मम्मी भी वापस आ गए। अपने घर के सामने इतनी भीड़ देख कर वे घबरा गए। अब तक पुलिस को भी किसी ने ख़बर कर दी थी। इसलिए पुलिस भी वहाँ मौजूद थी और चोरों को अपनी हिरासत में ले चुकी थी। रोहन के पापा ने जल्दी से दरवाज़ा खोला और रोहन के पास गए। रोहन छिपकर खड़ा हुआ था। अपने पापा को देख कर वह उनसे चिपक गया और रोने लगा।

उसके पापा ने उसे समझाते हुए कहा, "रोहन डरने की कोई बात नहीं है, पुलिस ने चोरों को पकड़ लिया है। आओ हम बाहर चल कर सब पता लगाते हैं।"

रोहन को अपने साथ लेकर वह बाहर आए।

तब चौकीदार ने उन्हें बताया, "साहब हमारी सोसाइटी में आप सभी लोगों की कृपा से पल रहे इन कुत्तों ने आज अपनी रोटी का कर्ज़ चुका दिया, अपनी वफादारी दिखा दी। यदि आज उनकी आवाज़ मुझ तक नहीं आती तो मैं...,” इतना कहकर चौकीदार चुप हो गया।

"क्यों चौकीदार तुम सो रहे थे क्या?"

"जी साहब आँख लग गई थी, मुझे माफ़ कर दीजिए।"

रोहन को आज इस बात का एहसास हो रहा था कि जिन कुत्तों को वह परेशान करता है, उनकी रोटी दूर फेंक देता है। यहाँ तक कि उनके लिए रखे हुए पानी को भी जानबूझकर गिरा देता है। उन्हीं कुत्तों ने आज उसका घर और उसे बचा लिया। अगर वह नहीं होते तो चोर अंदर घुस कर सब कुछ ले लेते, शायद उसे पीटते भी।

रूहानी ने अपने भाई का हाथ पकड़ कर कहा, "रोहन तू ठीक तो है ना! देख आज हमारे दोस्तों ने चोरों को भगा दिया।"

रोहन रूहानी से नज़र ना मिला पाया।

रूहानी ने भी समझदारी दिखाते हुए रोहन को ऐसी कोई बात नहीं कही जिसे सुनकर उसे दुःख हो। रूहानी समझ रही थी कि आज की यह घटना रोहन का ह्रदय परिवर्तन अवश्य करेगी। सभी ने सोसाइटी के कुत्तों की बहुत तारीफ की, फिर सब अपने-अपने घर चले गए।

रोहन सुबह जब उठा तो मम्मी से बोला, "मम्मी आज से कुत्तों को बिस्किट और रोटी मैं खिलाऊँगा।"

"ठीक है बेटा यह तो बहुत ही अच्छी बात है।"

स्कूल जाने से पहले रोहन रोटियाँ और साथ ही कुछ बिस्किट भी लेकर बाहर गया। वह कुत्तों को खिला रहा था। तभी रूहानी यूनिफॉर्म पहनकर बाहर आई। रोहन को इस तरह कुत्तों को बिस्किट खिलाता देख उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।

रूहानी ने युवान और अपने सभी मित्रों को जब यह बात बताई तो सब रोहन का बदला हुआ रूप देख कर बहुत ख़ुश हो गए। उसके बाद सब रोहन के फिर से बहुत अच्छे मित्र बन गए। उसे परेशान करना भी बंद हो गया। रोहन भी समझ गया कि उसके दोस्त उसे परेशान क्यों कर रहे थे। उसने सभी मित्रों से माफ़ी मांगी और कहा, "मैं बहुत बड़ी ग़लती कर रहा था। मुझे यह सब करके बहुत मज़ा आता था। जब तुम लोगों ने मेरी ग़लती का एहसास दिलाने के लिए मुझे परेशान करना शुरू किया तब भी मैं अपनी मनमानी करता रहा। लेकिन अब उनकी वफादारी देख कर मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो रहा है। अब मैं ज़िन्दगी में कभी भी किसी को परेशान नहीं करूंगा।"

युवान और रूहानी की बनाई योजना वैसे तो रोहन के ऊपर असर नहीं कर पाई थी परंतु ऐसा लगता है बच्चों की भावनाओं की माँ दुर्गा ने भी क़दर की। वे जो चाहते थे वह काम पूरा अवश्य ही हो गया।
एक दिन रोहन खिड़की से बाहर देख रहा था। तब उसे एक चिड़िया का घोंसला दिखाई दिया। जिसमें से चूज़े बार-बार बाहर झांक रहे थे। उनकी माँ ज़मीन पर आती, दाना चुगती और चोंच में भरकर ऊपर ले जाकर अपने बच्चों को खिलाती। वह बार-बार ऐसा कर रही थी। यह दृश्य देख कर रोहन को बहुत अच्छा लग रहा था। वह सोच रहा था कि इस तरह दाना चुगती हुई चिड़िया को उसने ना जाने कितनी बार उड़ाया है, डराया है, भगाया है। आज रोहन को स्वयं पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि उसने ये क्या किया, क्यों किया? वह उठा और जाकर चावल के कुछ दाने लाकर चिड़िया के लिए डालने लगा। चिड़िया उतरकर चावल के वह दाने चोंच में भरकर ले जा रही थी और बच्चों को खिला रही थी।

रोहन ख़ुश होकर यह दृश्य देख रहा था। जो ग़लती उससे हो चुकी थी वह वापस तो नहीं हो सकती थी लेकिन आगे से वह हमेशा पशु-पक्षियों का ख़्याल रखेगा यह उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था। रोहन अपनी आँखों से बहते पानी को रोक नहीं पा रहा था।

तब रूहानी ने आकर देखा कि उसके भाई की आँखों में आँसू हैं तो उसने पूछा, "रोहन तू रो क्यों रहा है?"

रोहन ने रूहानी के गले लग कर कहा, "थैंक यू रूहानी तुम लोगों ने मुझे इस तरह का पाप करने से बचा लिया। वह देख चूज़े कैसे घोंसले से बाहर निकलकर अपनी माँ का रास्ता देख रहे हैं कि माँ कब दाना लाएगी और उन्हें खिलाएगी। लेकिन मैंने हमेशा।"

"छोड़ ना रोहन..."

"नहीं रूहानी मेरी वज़ह से वह चूज़े भी कई बार भूखे सो गए होंगे। क्या भगवान जी मुझे माफ़ करेंगे या सज़ा देंगे?"

बच्चों की बातें सुनकर उनकी मम्मी वहाँ आ गई और कहा, "बेटा जब ग़लतियाँ हो जाती हैं और हम उन्हें सुधार लेते हैं तो वही हमारी समझदारी और हमारी जीत होती है। लेकिन ग़लती का एहसास होने के बाद भी यदि हम नहीं सुधरते तो वह ग़लती माफ़ी के काबिल नहीं होती। यदि हम अपनी ग़लती से शिक्षा लेकर जीवन में आगे बढ़ें तब तो भगवान भी हमें माफ़ कर देता है।"

रोहन अपनी मम्मी की बातें सुनकर ख़ुश हो गया। उसके बाद पशु-पक्षियों को परेशान करने वाला रोहन उनका सबसे बड़ा शुभचिंतक और मित्र बन गया।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक