श्री अखिलेश मिश्र जी की दृष्टि से..
डॉ प्रणव भारती का 'गवाक्ष'
बहुमुखी प्रतिभा की धनी, बहुआयामी वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार डॉ. प्रणव भारती जी का उपन्यास ‘गवाक्ष’ एक विशिष्ट, स्व-निर्मित श्रेणी में आता है, जिसमें ‘साइंस-फिक्शन’ की काल्पनिकता भी है, आधुनिक समाज के असंतोषजनक, विकृत यथार्थ के चित्रण की बेबाकी भी, भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता और जीवन-दर्शन का निरुपण भी और समाज के नैतिक परिष्कार, शिवेतर क्षतये’ के लिए सतत प्रयास भी।
गवाक्ष के कथानक को एक सूत्र में बाँधे रखने वाला पात्र ‘कॉस्मॉस’, जो यमराज द्वरा प्रथ्वी से ‘सत्य’ ले आने के लिए भेजा गया दूत है, अलौकिक अवम कालपनिक होते हुए भी मनवीय एवं बालसुलभ कौतूहलपूर्ण है। पृथ्वी पर सत्य की खोज में सत्य-नामक प्राणियों को ढूँढ़ने में और उन्हें अपने साथ मृत्युलोक से ले चलने के प्रयास में लिप्त हो जाता है। सत्य नामधारी अनेक व्यक्तियों से कॉस्मॉस के संवाद होते हैं- सत्यव्रत गौड़, मंत्री शिक्षण विभाग, सत्यनिधि-महिला नृत्य एवं संगीत कलाकार, आचार्य श्री सत्य शिरोमणि, आध्यात्मिक पीठ के सर्वोच्च अधिकारी, उनकी पत्नी सत्या और पुत्र सत्यपुत्र, दर्शन के महान विद्वान प्रोफेसर सत्यविद्य श्रेष्ठी और उनकी शिष्या सत्याक्षरा और उसका भाई सत्यनिष्ठ एवं पिता सत्यालंकार भी सत्यनामी पात्र हैं गवाक्ष के।
कॉस्मॉस को सबसे कुछ न कुछ सत्य का लाभ होता है। किंतु सबसे केवल आंशिक सत्य ही मिलता है, जैसा सात अंधे व्यक्तियों के द्वारा हाथी के विभिन्न अंगों के वर्णन से। एक दृष्टि से कॉस्मॉस प्रत्येक मनुष्य का, हम सबका प्रतीक है। पृथ्वी पर आने के मूल उद्देश्य से अनभिज्ञ , सत्य की जगह सत्य नामक प्राणी और देह की खोज में इधर-उधर भटक रहे हैं। क्षणिक संवेदनाओं से प्रभावित एवं आंशिक सत्याभास से ही संतुष्ट हो सांसारिक चक्र में धँसते चले जाते हैं। वस्तुतः सुख-शांति, सत्य, ज्ञान की प्राप्ति के लिए बहिर्मुखी नहीं अपितु अंतर्मुखी अनुसंधान और साधना की आवश्यकता होती है- “हर कार्य के लिए साधना करनी पड़ती है, साधना यानी स्वयं को साध लेना, स्वयं को तैयार करना।
---श्री अखिलेश मिश्र
अपर सचिव, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार