Nafrat se bandha hua pyaar - 30 in Hindi Love Stories by Poonam Sharma books and stories PDF | नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 30

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 24

    નિતુ : ૨૪ (લગ્નની તૈયારી)નિતુ અને હરેશ બન્ને મીઠાઈના બોક્સ લ...

  • ડાન્સિંગ ઓન ધ ગ્રેવ - 4

    જાેકે, પોલીસને શંકા હોવાથી તેમના પર વોચ રાખવામાં આવી હતી. પર...

  • ખજાનો - 22

    " ડોન્ટ વરી યાર..! તે માત્ર બેભાન થયો છે તેને બીજી કોઈ તકલીફ...

  • મમતા - ભાગ 107 - 108

    ️️️️️️️️મમતા :૨ ભાગ : ૧૦૭( મોક્ષા મુંબઈથી પાછી ફરે છે. આરવના...

  • લેખાકૃતી - 1

    લેખ : ૦૧મારો સખા : મૃત્યુજ્યારે હું કોઈના પણ મૃત્યુ નાં સમાચ...

Categories
Share

नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 30

सबिता अक्सर रात को देव से उसके कॉटेज में मिलने लगी थी। दिन में वोह दोनो साइट पर रह कर एक साथ काम करते थे जिससे उनके लोगों में शांति और राहत बनी हुई थी।

एक यूनिट की प्लानिंग लगभग खत्म हो गई थी, बस फाइनल टच बाकी था। सबिता जानती थी की अगर यह प्लांट शुरू हो गया तोह इससे उसके लोगों का कितना फायदा होगा। वोह बहुत खुश थी जिस तरह से काम चल रहा था।

उसको देव सिंघम के साथ काम करने में मजा आने लगा था। देव बहुत ही क्नोलेजेबल था और धैर्य दिखाता था सबिता को समझने में की काम कैसे चल रहा है। पर कभी कभी ऐसा होता था की वोह किसी छोटी से डिसीजन को लेकर यूहीं सबिता से बहस कर जाता था। सबिता तब समझ जाती की जरूर कोई वजह ही होगी उसके ऐसा करने की।

*******

एक रात जब वोह दोनो देव के कॉटेज में थे।
"बताओ, तुम्हे अच्छा लगा?" देव ने सबिता के कान के नज़दीक अपने होंठों को ले जा कर गहरी आवाज़ में कहा।

सबिता बैड पर लेटी हुई थी और देव उसके ऊपर सबिता को बाहों में लिए हुए था।
"मुझे अच्छा लगा!" सबिता ने हांफते हुए कहा। यह सच था। उसे बहुत पसंद था।

"बताओ मुझे, की तुम्हे बहुत पसंद आया क्योंकि तुम जानती हो तुम मेरी हो?" देव ने फिर कहा।

सबिता कराह गई।

"बताओ!" देव ने फिर उसे बोलने को कहा। "बोलो तुम मेरी हो!"

"आआह्ह्हह......." सबिता ने कराहते हुए और मदहोशी में डूबते हुए कहा। "शायद मुझे यह शर्त भी जोड़ना चाहिए थी की मैं जब चाहूं तुम्हारे मुंह पर हाथ रख कर तुम्हारा मुंह बंद करदू।" सबिता ने हाफ्ते हुए कहा।

सबिता ने अपनी गर्दन पर देव के खींचते हुए होंठ महसूस किया जैसे वोह मुस्कुरा रहा हो। सबिता जानती थी की वोह देव को इस दौरान जितनी भी चोटे देती थी वो देव को पसंद आती थी। जब वोह ऐसा करती थी तोह देव और भी ज्यादा जानवर बन जाता था।

देव तब तक नही रुका जब तक उनका मन नही भरा और दोनो अपनी हवस को मिटा कर शांत नही हो गए। देव थक कर सबिता के ऊपर ही गिर गया। उसने रोल करते हुए सबिता को अपने ऊपर ले लिया।

सबिता को थोड़ा वक्त लगा वापिस निर्मल सांस लेने में। सबिता ने अपना चेहरा उठा कर देव के चेहरे की तरफ देखा। "तुम जानते थे ना की सुबह मीटिंग में मैं सही थी, फिर भी तुम मुझसे बहस करते रहे। इसलिए मैं तुमसे गुस्सा थी और गुस्से में मैने तुम्हारे साथ आज वाइल्ड सेक्स किया।" सबिता उसे अपराधी ठहरा रही थी।

देव के चेहरे पर एक मुस्कान बिखर गई। "आह! क्या सच में, तुम वाइल्ड थी।" देव ने कहा।

"तुम मान क्यों नही लेते, इस बार हम दोनो की ही परफॉर्मेंस अच्छी थी।" सबिता ने हताशा में सिर हिलाया लेकिन फिर मुस्कुरा गई। दोनो की ही परफॉर्मेंस शानदार थी और दोनो ही शांत हो चुके थे।

सबिता ने वापिस अपना सिर देव के सीने पर रख दिया। अब दोनो ही चुप चाप अपने अपने खयालों में खोए हुए थे। देव की दिल धड़कन को अपने कानो के नजदीक से सुन रही सबिता खिड़की से हल्का झांकते चांद को देख रहे थी। वोह जानती थी अब उसे जाना होगा, फिर कल उसे अपनी जिमेदारियों को वापिस संभालना है।

जाने के अफसोस से उसने एक आह भरी और उठने लगी। लेकिन देव ने उसे जाने नही दिया और कस कर बाहों में जकड़ लिया।

"मुझे जाना होगा।" सबिता ने प्यार से कहा।

देव ने कुछ नही कहा बस ऐसे ही उसे अपनी बाहों की कैद में जकड़े रखा। देव काफी देर तक उसे निहारता रहा। थोड़ी देर बाद देव ने उसे छोड़ दिया। देव उसे देख रहा था, वोह अपने जगह जगह बिखरे कपड़े उठा रही थी।

"मुझे कल शहर में पहुंचना होगा....एक मीटिंग है.... अचानक ही रख दी गई।" देव ने कहा।

सबिता ने सिर हिला दिया जबकि वोह देव की बात सुनकर निराश हो चुकी थी।

दोनो के काम में इतना बिज़ी रहने के बावजूद भी वोह दोनो एक दूसरे के लिए थोड़ा ही सही पर वक्त निकली ही लेते थे। सबिता जानती थी की देव के और भी बिजनेस हैं जिसमे उसे वक्त देना पड़ता है। और इसी वजह से उसे कई लोगों से मिलने बाहर जाना पड़ता है। सबिता को तोह अंदाज़ा भी नही था की देव कैसे दोनो को बैलेंस कर के चलता है। पर वोह उससे इंप्रेस थी जैसे भी मैनेज करता है लेकिन स्टाइल में।

वोह हमेशा ही कंफर्टेबल लगता है सूट में जब वोह बड़े बड़े लोगों से मिलता है वैसे ही जैसे वोह अपने एम्पलाइज से बातचीत करते वक्त रहता है।

यह आदमी तोह चलता फिरता बिजली है।

सबिता अपना आखरी कपड़ा पहन रही थी और देव अब भी उसे ऐसे ही देख रहा था। जिस तरह से देव बैड पर लेटा हुआ था और उसे देख रहा था, सबिता का मन कर रहा था की बस भाग कर जाए और देव को गले लगा ले और सारी रात बस ऐसे ही गले लगाए रखे।

गले लगाना? ये मेरे दिमाग में कहां से आया?

मैं इस तरह की तोह नही हूं जिसके अंदर ऐसे जज़्बात पैदा हो। शायद नींद की कमी के कारण मेरे मन में ऐसे पागलों जैसे विचार आ रहें हैं। इससे पहले की और ऐसे विचार आते या वोह सच में जाके उससे लिपट जाती उसने जल्दी से कहा, "मैं तुमसे कल साइट पर मिलती हूं।" सबिता न उससे प्यार से कहा और कॉटेज से बाहर निकल गई।

कॉटेज से प्रजापति मेंशन तक जाते वक्त रास्ते में सबिता बस यही महसूस कर रही थी की देव से मिलना बस यूहीं नही है, कुछ और है जो दोनो के बीच बढ़ रहा है। अब देव उसके लिए आर्डिनरी इंसान नही रह गया है।

यह उसके लिए यह सब पहले थ्रिलिंग और एक्साइटिंग था और साथ ही कभी फ्रस्ट्रेटिंग भी। लेकिन बाद में, जब भी वो देव को छोड़ कर जाति थी तोह अजीब सा एहसास होने लगता था, जिस वजह से वोह बहुत कन्फ्यूज्ड हो जाती थी। देव अब उसके लिए एक ड्रग की तरह काम कर रहा था जिसके उसे आदत लगती जा रही थी। वोह जानती थी की इसका अंत सुखद नही है उसके लिए पर फिर भी वोह और चाहत के लिए बार बार आती थी।

पर जिस तरह का आदमी वोह देख रही थी, वोह बस इस लम्हे में जीना चाहती थी बिना कल की फिक्र करे हुए।






















_________________
(पढ़ने के लिए धन्यवाद)
🙏