"कौन.. कौन है वहां?", हल्का ज़ोर से बोलता हुआ ध्रुव जब वहां पहुंचा तो कुछ हिलता सा देख, वो एकदम से चिल्लाया, "आ.. आ।"
"क्या हुआ.. ?", अपना खुले बालों को पीछे करते हुए निया बोली।
"फिर मज़ाक कर रहे हो मेरे साथ?", निया चिड़ते हुए बोली।
"मज़ाक.. तुम्हें किसी ने बताया है वैसे? तुम ना बड़ी सुंदर हो।"
"हहह..??"
"पर मेहरबानी कर के, ऐसे बाल खोल के अंधेरे में मत बैठा करो।", ध्रुव निया के सामने हाथ जोड़ते हुए बोला।
मुस्करा करके, बड़ी सी सांस छोड़ कर हंसती हुई निया, अपने बाल बांधती है।
"क्या बात है? आज बिना किसी बहस के ही बात मान गई?", ध्रुव ने चिड़ाते हुए पूछा।
"मैं सब कुछ बिना बेहस के ही मान जाती हूं, बस एक ही बात है, जिसे मैं ऐसे नहीं मानूंगी।"
"अच्छा। तुम्हें याद भी है, की उस दिन आधी नींदों में तुम मुझे क्या कह रही थी?"
"क्या?"
"पहली बारिश के खिलाफ़ यू. न चलो, हमे शांति चाहिए।"
"कुछ भी।", अपना सिर नीचे की तरफ़ झुकाते हुए निया बोली।
"कुछ भी नहीं यही बोला था तुमने। अच्छा.. एक बात बताओ, क्या हुआ फिर तुम्हारे उस अंकित का, मान गया?"
"नहीं।"
"तो इसलिए तुम यहां बैठी हो?"
"नहीं।"
"फिर?"
"आज यहां, मैं अपने लिए बैठी हूं।"
"मतलब.."
"अंकित ने कहा, की वो मुझे कभी पसंद ही नहीं करता था। वो हमेशा से किसी और को पसंद करता था।"
"क्या?? तो फिर तुम्हारे..."
"मुझे नहीं पता, पर तुम्हें पता है, मैंने क्या किया फिर?"
"थप्पड़ मारा।", खुश भरी आंखों से ध्रुव निया को बोला।
"वही तो अफ़सोस है ना।"
"तुमने सही में उसे थप्पड़ मारा?", ध्रुव हैरानी से बोला।
"ना.. वो फिर भी ठीक रहता। पर मैंने तो उससे पूछा, की जब हम साथ थे, तब तो कभी प्यार किया होगा ना तुमने।"
"क्यों? तुम उससे इतना प्यार करती थी?"
"पता नहीं, पर अब मुझे खुद पे बहुत गुस्सा आ रहा है, की ऐसे कैसे कर सकती हूं मैं।"
"और अंकित.."
"उसका तो नाम ही मत लो, उसका चैप्टर, मेरे लिए क्लोज है अब।", निया बोली।
"अ.अ.. चलो फिर क्लोज चैप्टर के नाम, पिज़्ज़ा पार्टी हो जाए?"
"नहीं, आज मन नहीं है, फिर कभी। अभी मैं सच में सोने चलती हूं।", निया मुस्कराते हुए बोली।
"ठीक है, फिर बाय, गुड नाईट।"
गुड नाइट, बोल कर निया भी अपने घर में चली जाती है।
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कई बार घंटी बजने की आवाज़ आई, तो रिया बेमनी होकर उठी और बाहर आई।
"तू.. तू क्या कर रहा है यहां?", रिया अपनी आँखें मालती हुई बोली।
"फटाफट आ जाओ तैयार होकर दोनो, हम बाहर चल रहे है।"
"क्या? कहां? क्यों? पागल हो गया है, इतनी सुबह सुबह क्या क्या बोले जा रहा है।", रिया ने हल्का चिड़ते हुए बोला।
"अरे बाहर चल रहे है, घूमने,तू तैयार हो बस।", फ्लैट ये बोल कर अपने जा ना फ्लैट की तरफ़ बढ़ गया।
"चलना पड़ेगा क्या?", रिया ये बोलते बोलते अंदर चली गई।
"उठ.. उठ निया, तैयार हो जा फटाफट", निया को इशारा करते हुए वो बोली।
"क्यों? मूवी तो दोपहर की है ना?, फिर अभी से क्यों?"
"हां.. पता नहीं, ये ध्रुव कह रहा है, की कहीं जाना है।"
"हहमम..", ये बोल कर निया दोबारा सोई ही थी, की ध्रुव का कॉल आ गया। "हां.. उठ गई, आ रही हूं बस", निया उठ के आती हुई बोली।
कुछ देर बाद निया और रिया दोनो तैयार होकर बाहर निकले तो देखा, की कुनाल और ध्रुव भी बाहर आ चुके थे, और उनका इंतजार कर रहे थे।
"मैं उसे भी बुला लेता हूं ना।", ध्रुव से हां सुनने की आस में कुनाल बोला।
"नहीं.. बस हम चारो ही चलेंगे।", ध्रुव ने कुनाल को साफ़ साफ़ समझाते हुए कहा।
"पर क्यों?"
"मुझे दिक्कत है, कमिटेड लोगो से।"
"यार.."
"हम बोर हो जाएंगे फिर, तुम दो और हम बाकी अकेले.. तू समझा कर ना।"
"अकेले?? तुम तीन लोग हो.. पर ठीक है, छोड़, वैसे भी वो अभी सो रही होगी शायद। अच्छा, ये तो बता की जा कहा रहे है हम?"
"हम.. चल के खुद ही देख लियो।", ध्रुव खुश होते हुए बोला।
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"वाह.. ये कितना अच्छा लग रहा है।", कैब से उतर कर, हरे भरे पार्क में जातें हुए रिया और निया बोले।
"वाह.. लग तो बहुत सुंदर रहा है, पर है क्या ये?"
"ये..", पार्क के पास लगे बोर्ड पे नाम दिखाते हुए ध्रुव बोला।
"पता है, अक्सर हम मुश्किल जवाब ढूंढते ढूंढते, आसान सवालों को भूल जाते है। ये जगह, बस उन्हीं सवालों के लिए ही, हमारे खुद के लिए है, ये जगह।", ध्रुव बाकी तीनों की तरफ़ देखते हुए खुशी से बोलता है।
"क्या बोले जा रहा है", कुनाल मुंह बनाते हुए बोला और वो सब निकल लिए आगे घूमने।
हरे हरे पेड़ पौधों के बीच से आती सूरज की हल्की रोशनी से चमकते हुए एक छोटे से झरने पे चारों की नजरें ऐसी टिकी की उनका आगे जाने का मन ही नहीं किया।
उधर ही पास में जगह देखते हुए, काली टॉप और ब्लू जींस पहनी निया वहां बैठ कर, ध्यान से झरने को देखने लगी, मानो जैसे आज अपनी सारी परेशानियां इसी पानी के साथ बहा देना चाहती हो। वही रिया, भी उसके पीछे बैठ कर सुकून की सांस लेती है। और कुनाल अपने ख्यालों में खोया हुआ, फोटो खींचता हुआ, अपनी मैडम को याद कर रहा था। ध्रुव भी वहीं कहीं पास जाकर यूं बैठा, की झरने के साथ साथ निया भी साफ़ साफ़ दिख रही थी।
"पता है.. झरने का पानी यहां तक आ रहा है।", अपने हाथ पे पड़ी पानी की बूंद का अहसास होते ही वो बोली।
"ये झरने का नहीं.. बारिश का पानी है", निया की बात का जवाब देते हुए ध्रुव बोला ही था, की हल्की हल्की शुरू हुई बौछार एक दम से बड़ गई, और वो सारे दूसरी ओर भागे।