Fir beta kaise kharab hua in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | फ़िर बेटा कैसे ख़राब हुआ

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फ़िर बेटा कैसे ख़राब हुआ

बारह वर्ष का पवन कुछ दिनों से घर में बहुत ही उदास रहने लगा था। दिन भर उछल-कूद करना, अपनी बहन को तंग करना, मस्ती करना, सब कुछ बंद था। अब वह अपनी बहन के साथ बात-बात पर झगड़ा भी करने लगा था।

पवन की मम्मी ने एक दिन उस से पूछा, "पवन बेटा क्या हो गया? क्यों इतने गुमसुम रहते हो? किसी ने कुछ कहा है या किसी ने तुम्हें डांटा है, बताओ पवन?"

“कुछ भी नहीं मम्मी”, कह कर पवन ने बात को टाल दिया।

उसे तनाव में देखकर घर में सभी चिंतित थे कि आख़िर पवन को हुआ क्या है।

एक दिन पवन के पापा ने उसे पास बुला कर, प्यार से समझाते हुए कहा, "पवन बेटा, यदि तुम नहीं बताओगे तो हमें कैसे पता चलेगा कि तुम्हें क्या तकलीफ़ है। परिवार इसीलिए तो होता है बेटा कि हम अपनी तकलीफ़ एक दूसरे को बताएँ और उसका हल निकालें। तुम भी यदि बता दोगे तो जल्दी से सब ठीक हो जाएगा। इस तरह उदास रहना तुम्हारी सेहत के लिए भी तो अच्छा नहीं है।"


पवन की मम्मी ने कहा, "बेटा बिना डरे, निःसंकोच होकर बताओ। हम तुम्हारी मदद ही तो करना चाहते हैं।"

अपने पापा-मम्मी का कहना मान कर पवन ने कहा, "ठीक है, आज मैं आपको सारी बात बताता हूँ। मम्मी-पापा जब मैं बड़ा होऊंगा तो आप दोनों मेरे साथ नहीं रहोगे ना?"

"अरे पवन, तुम यह क्या बोल रहे हो बेटा ?", उसके पापा ने चौंक कर कहा।

"क्यों पापा क्या सिर्फ़ दीदी ही अच्छी हैं, मैं अच्छा नहीं हूँ ?"

"नहीं बेटा, ऐसा आपसे किसने कहा? ऐसी बात आपके दिमाग़ में कैसे और क्यों आई?"

"पापा-मम्मी मैं आप दोनों से बहुत प्यार करता हूँ और आपके बिना कभी नहीं रह सकता। अभी भी नहीं और बड़ा हो जाऊँगा तब भी नहीं," इतना कहते हुए पवन रो पड़ा।

उसकी मम्मी ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा, "बेटा आपसे किसने कहा कि आपको हमारे बिना रहना है?"

"मम्मी उस दिन जब दिव्या आंटी और दिनेश अंकल हमारे घर आए थे तब वह कह रहे थे कि वे अपने बेटे करण के साथ रहने कभी नहीं जाएंगे। वह ऐसा भी कह रहे थे कि करण की पत्नी का व्यवहार उनके साथ बहुत ख़राब है, वह बात-बात पर उन्हें अपमानित करती हैं और अलग रहने के लिए भी कहती हैं। मम्मी अलग रहने के लिए करण अंकल ने नहीं उनकी पत्नी ने कहा था ना। फिर बेटा कैसे ख़राब हुआ मम्मी ? फिर तो करण अंकल की पत्नी ख़राब हुईं और वह तो बेटी हैं ना। सब लोग फिर ऐसा क्यों कहते हैं कि केवल बेटियाँ ही ख़्याल रखती हैं बेटे नहीं?”

छोटे पवन की इन बातों का उसकी मम्मी के पास कोई जवाब नहीं था। उसके पापा ने बात को संभालते हुए कहा, "पवन बेटा ना ही हर लड़का ख़राब होता है और ना ही हर लड़की अच्छी। लेकिन हाँ हर इंसान को हमेशा एक अच्छा इंसान बनने की कोशिश करना चाहिए। लड़का हो या लड़की दोनों इंसान ही तो हैं और माता-पिता का ध्यान रखना दोनों का ही कर्त्तव्य होता है। हमारा पवन तो बहुत अच्छा इंसान बनेगा और हम सब हमेशा साथ-साथ रहेंगे।"

पवन ने ख़ुश होते हुए कहा, "पापा आप मुझे छोड़कर कभी नहीं जाएंगे ना। मैं आपको बहुत अच्छा बेटा बनकर दिखाऊँगा। मैं तो आपका प्यारा बेटा हूँ ना ?"

उसे अपने सीने से लगाते हुए उसके पापा सोच रहे थे कि छोटे बच्चों के समक्ष इस तरह की बातें करना और हमेशा बेटों या लड़कों को दोषारोपित करना कहाँ तक उचित है? यह प्रश्न सोचने पर मज़बूर अवश्य ही करता है।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक