Kaithrin aur Naga Sadhuo ki Rahashymayi Duniya - 16 in Hindi Fiction Stories by Santosh Srivastav books and stories PDF | कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 16

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 16

भाग 16

इस बार लॉयेना से विदा लेते हुए कैथरीन का मन भारी था। लॉयेना भी उदास थी। कैथरीन जानती है लॉयेना में बर्दाश्त का जज्बा उससे कम है। वह हर बात मन पर ले लेती है और फिर अवसाद से घिर जाती है। जिंदगी की हर बात हर घटना बर्दाश्त कर लेना नामुमकिन है। लेकिन अगर बर्दाश्त कर लिया तो रूह में फकीरी नजर आती है। जैसे नरोत्तम फकीर हो गया है। सूफी संत हो गया है। उसने ईश्वर में लौ लगा ली है। बाकी सब कुछ उसके लिए बेमानी है। कैथरीन थोड़ी व्यथित हो जाती है खासकर उन बातों से जो उससे जुड़ी हैं। उसके कारण हुई हैं। लॉयेना को लेकर वह इसीलिए परेशान होती है। 

एयरपोर्ट पर लॉयेना से विदा ले वह तेजी से वेटिंग लाउंज में आ गई। दूसरी फ्लाइट अनाउंस हो रही थी। उसने कुर्सी पर बैठकर आँखें मूँद लीं और चिंतन के सागर में गोते लगाने लगी। उसे लगा वह डूब रही है लॉयेना को साथ लेकर। वह तलहटी में उस कोने को तलाश रही है जहाँ वह लॉयेना के साथ बैठकर कुछ पल इत्मीनान से गुजार सके। जाने किन रंगों की बड़ी, छोटी जादुई मछलियाँ उन्हें छू छू कर तैर रही हैं। उस छुअन में जैसे एक प्रश्न है " तुम हमारी दुनिया में क्यों आईं?" उसने आँखें मिचमिचा कर देखा। मछलियों के झुंड में लॉयेना भी है और प्रश्न उसी के मुख से शब्द शब्द उच्चरित हो जल में प्रवाहमान है। 

हाँ उसे नहीं आना चाहिए लॉयेना से मिलने। उसे प्रवीण और लॉयेना से दूर चले जाना चाहिए। वरना दर्द और कचोट के समंदर उमड़ते रहेंगे जिनका कोई किनारा नहीं होगा। "दिल्ली जाने वाली फ्लाइट उड़ान के लिए तैयार है मिस कैथरीन बिलिंग, जहाँ कहीं भी हों तुरंत गेट नंबर 2 पर आ जाएं। "

वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और गेट नंबर 2 की ओर भागी। फ्लाइट में बस उसी का इंतजार था। 

***

दिल्ली के हवाई अड्डे से टैक्सी ले कैथरीन सीधे गेस्ट हाउस पहुँची। आज शाम को ही वह मालवीय नगर जाएगी दीपा से मिलने। नरोत्तम की जिंदगी का यह विशेष अध्याय उसके लिए महत्वपूर्ण है। इसके बिना किताब अधूरी है। मालवीय नगर में घर मिलने में परेशानी नहीं हुई। गेट पर कीरत सिंह के नाम की पीतल की चमकती हुई नेम प्लेट लगी थी जिस पर काले अक्षरों में लिखा था "डीएसपी कीरत सिंह"। गेट के खुलते ही छोटी सी फूलों की बगिया थी। बरामदे में कैक्टस के पौधों के गमले रखे थे। उसने घंटी का बटन दबाया। घंटी ने मंजीरे बजाए जिसे सुनते ही कुत्ते के भौंकने की आवाज आई। 

"नो रॉकी नो"

किसी स्त्री ने दरवाजा खोला- "दीदी कोई आई हैं। "

कहते हुए उसने कैथरीन को ड्राइंग रूम का रास्ता बता दिया। 

" बैठिए दीदी आएंगी अभी। " कहते हुए वह अंदर चली गई। कैथरीन ने बेहद सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाए भव्य ड्रॉइंग रूम का मुआयना किया। दीवारों पर कुछ कलाकृतियां लगी थीं। साथ ही कीरतसिंह की पुलिस वर्दी पहने बड़ी सी तस्वीर, कंधे पर तीन स्टार का बैच था। फोटो पर माला तो नहीं थी पर सामने अगरबत्ती दान था जिसमें कुछ अधजली अगरबत्तियाँ लगी थीं। कोने में मेज पर महात्मा बुद्ध की संगमरमर की मूर्ति रखी थी और उसके सामने फ्रेम में जड़ी नरोत्तम गिरी और घनश्याम गिरी की तस्वीरें थीं। नरोत्तम नीली बुश्शर्ट में बेहद खूबसूरत दिख रहा था। 

पर्दे पर लगी घंटियाँ टुनटुनाईं- "नमस्कार "की आवाज के साथ एक खूबसूरत महिला ने प्रवेश किया। कैथरीन उठ कर खड़ी हो गई। हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए कहा-" मैं कैथरीन बिलिंग फ्रॉम वियना जर्मनी। "

"बैठिए मैं दीपा, कीरत सिंह की पत्नी। "

" मैं यहाँ .......

"रुकिए, पहले कुछ लीजिए चाय, कॉफी। निश्चय ही आप किसी उद्देश्य से आई होंगी। कॉफी मंगवाती हूँ। "

"जी आई डोंट माइंड। "

दीपा ने आवाज दी-" रानी, कॉफ़ी साथ में ढोकले भी ले आना। "

वह कैथरीन से मुखातिब हुई -"ताज़े ही हैं। अभी बनाए। बिट्टू को बहुत पसंद हैं। "

धीरे-धीरे ड्राइंग रूम में और भी लोग आ गए। दीपा परिचय कराने लगी। 

" माताजी हैं, यह बिट्टू रोली की सबसे छोटी बेटी और यह रोली मेरी ननद। "

परिचय कराने के ढंग से लगा कि दीपा का इस घर में काफी दबदबा है। कैथरीन ने विस्तार पूर्वक अपना परिचय दिया और जब नरोत्तम गिरी के बारे में बताया तो माताजी की आँखें छलक आईं-" कैसा है ?कहाँ है मेरा मंगल? अरे, आप तो खूब मिलकर आई हो उससे। बताइए सब। "

रोली ने कैथरीन के दोनों हाथ पकड़ लिए -"प्लीज बताइए मंगल भैया के बारे में। "

"अब वे मंगल नहीं है। न ही आपका बेटा माताजी। पुनर्जन्म हुआ है उनका। अब वे जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर नरोत्तम गिरी हैं। "

सुनकर माताजी रुआंसी हो गईं-" बेटा कैसे नहीं है हमारा। हमने जिस मंगल को पाल पोस कर बड़ा किया वही नरोत्तम हो गया। इसका मतलब यह तो नहीं कि वह हमारा बेटा नहीं है। मुझे ले चलो उसके पास। "

" आप वहाँ नहीं जा सकतीं माताजी। बहुत कठोर नियम है उनके। "

" अरे, हमारी जिंदगी से कठोर तो नहीं होंगे न। मंगल के नागा बनने की सूचना मिलते ही उसके बाबू जी इतने शॉक्ड हुए कि जी न सके। स्वर्ग सिधार गए। मैं ही पत्थर बनी जिंदा रही। उनके जाते ही हम बिखर गए। जैसे-तैसे जिंदगी कट रही थी कि कीरत डाकुओं को पकड़ने के पुलिस ऑपरेशन में मारा गया। हमारी बहू दीपा कोई सुख न देख पाई जीवन का। एक बेटा हुआ वह भी साधु बन गया। "

"जी मैं मिली हूँ विशाल सिंह से। उसी ने यहाँ का पता दिया। अब वह घनश्याम गिरी हो गया है। नरोत्तम ही उसके गुरुजी हैं मगर एक दूसरे से अपने रिश्ते को लेकर अपरिचित हैं। "

सुनकर माताजी अजनबी लेकिन बहुत अपनी सी लगती कैथरीन से लिपट कर रो पड़ीं। देर तक कोई कुछ न बोला। बिट्टू ने ही मौन तोड़ा। जिद करने लगी-" आंटी खाना खा कर जाना। ढेर सारी बातें करनी है आपसे। ममा आपको गाड़ी से गेस्ट हाउस छोड़ देंगी। " कैथरीन इतने प्यार भरे परिवार के बीच खुद को पाकर अभिभूत थी। नरोत्तम का इतना स्नेहिल परिवार और नरोत्तम का नागा होना विरोधाभास की पराकाष्ठा। एक ओर कोमल सुरभित फूलों जैसा प्यारा संसार दूसरी ओर नागा पँथ के दुर्गम रास्ते। उस रात वह दीपा से कुछ न पूछ पाई। पर उसका मोबाइल नंबर ले लिया था ताकि आगे मिलने की योजना बना सके। कैथरीन को गेस्ट हाउस छोड़कर रोली और बिट्टू कनॉट प्लेस स्थित अपने घर चली गईं। 

कैथरीन ने स्नान करके नाइट गाउन पहना और सिगरेट सुलगा कर आराम से बैठकर नरोत्तम गिरी को फोन लगाने लगी। कितनी सारी बातें उसे गोपनीय रखनी पड़ रही हैं नरोत्तम गिरी से। वह हरगिज नहीं बताएगी कि वह उसके घर में उसकी माताजी और दीपा से मिल चुकी है। उनकी बातें बता कर वह नरोत्तम गिरी को डिस्टर्ब नहीं करना चाहती। इसलिए फोन पर केवल यही बताया कि आज का दिन कैसा गुजरा और दिल्ली पहुँचकर कहाँ रुकी है ?

***

दीपा से फोन पर अपॉइंटमेंट तय हो गया। वह कल सारा दिन कैथरीन के साथ गेस्ट हाउस में गुजारने को तैयार हो गई। 

दीपा अपनी बाइक से समय पर आ गई। हल्की नीली साड़ी में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी। लंबे खुले बाल, माथे पर छोटी सी बिंदी और कोई मेकअप नहीं। 

" बैठिए कॉफी मंगवाती हूं। साथ में पनीर पकौड़े। गेस्ट हाउस का बावर्ची बहुत बढ़िया बनाता है। आज उसने लंच में बैंगन का भर्ता, लच्छा पराठा, मलाई कोफ्ते, रायता और पायस बनाया है। लंच हम 2 बजे लेंगे। "

"अरे वाह, आपको भारतीय भोजन के नाम भी याद हो गए और आपकी हिंदी! मुझे लग रहा है कहीं मैं ही बोलने में कोई गलती न कर बैठूँ। "

"मुझे हिंदू माइथोलॉजी से लगाव है। मैंने लगभग सारे हिन्दू आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ लिए हैं। कुछ के लिए तो मैंने संस्कृत भी सीखी है। "

"ओहो गजब, आप जैसी विदुषी महिला के संग मुझे सचमुच आनंद आएगा। कब तक हैं आप यहाँ ?"

"मैं जो किताब लिख रही हूँ उसके पूरे होने तक यही रहुँगी। अंतिम अध्याय लिखना शेष है। "

"कैसी किताब?"

मैं नरोत्तम गिरी पर किताब लिख रही हूँ। किताब तो नागाओं पर केंद्रित है। लेकिन उसके हीरो नरोत्तम है। इसी सिलसिले में आपसे मिलना था। "

दीपा खामोश हो गई। वेटर कॉफी और पकौड़े ले आया था। कॉफी सर्व करते हुए उसने पूछा-

"लंच कितने बजे तैयार करना है मैडम। "

"2 बजे। "

"ओके"

उसके जाने के बाद कैथरीन ने कहा -" लीजिए कॉफी और खुलकर बताइए। अपने और नरोत्तम आई मीन मंगल के बारे में। "

" जरूर बताऊँगी, ताज्जुब नहीं हो रहा है मुझे क्योंकि आप मंगल जी से मिलकर आ रही हैं तो उन्हीं से सब पता किया होगा। सब कुछ बताऊँगी आपको लेकिन उसके पहले यह भी बता देना चाहती हूँ कि मैं उन्हें प्यार नहीं करती थी। उनके प्रति मेरा आकर्षण सिर्फ देह का था। "

चौक पड़ी कैथरीन, इतना कड़वा सच! या नरोत्तम के प्रति एक छलावा जिसकी वजह से उसे घर त्याग कर कठोर जीवन अपनाना पड़ा वही .....वही दीपा! ओह। 

" हम बचपन में साथ-साथ गुल्ली डंडा, कंचे खेलते थे। बड़े हुए तो मेरी शादी कीरत से हो गई। वह तो मुझे बहुत बाद में पता चला कि मंगल जी मुझे प्यार करते थे। उनका प्यार सच्चा था। उन्होंने कभी मुझे पाने की कोशिश नहीं की। क्योंकि मैं पराई हो चुकी थी। उनके जैसा चरित्रवान व्यक्ति दुनिया में होना मुश्किल है। शायद उनकी इसी शालीनता ने मुझे उनकी ओर आकर्षित किया। जबकि कीरत बिल्कुल इसके विपरीत थे। दिन-रात पुलिस की ड्यूटी में खुद को खपा देते। घर लौटते तो खामोशी और आराम। उनके लिए मेरा कोई अस्तित्व नहीं था जबकि कहा ये जाता था कि वे मुझे प्यार करते हैं। पर यह कैसा प्यार? जिसमें मैं सिरे से नदारद। शायद यही वजह थी कि मैं मंगल जी की तरफ आकर्षित हुई। देह का जो सुख कीरत नहीं दे पाए वह मंगल जी से मिले सोच कर मैं आगे बढ़ी थी। उनका बहुत ख्याल रखती थी। मेरा इतना ख्याल रखना आगे बढ़ कर निवेदन करना ही वजह बन गया जो वह घर त्याग कर चले गए। उन्होंने सोचा होगा वह क्यों अपने भाई की गृहस्थी की तबाही का कारण बने। पर गृहस्थी तो तबाह हो ही गई। मेरे प्रति कीरत की उदासीनता बनी रही। जिसे मैं उनके काम की अधिकता समझती रही। शायद यही वजह है कि हमारे एक ही औलाद हुई विशाल। वह भी मंगल जी के चरण चिन्हों पर चल दिया। नागा शब्द हमारे परिवार के लिए अभिशाप बन गया। "

कहते हुए दीपा ने एक आह भरी और ठंडी हो चुकी कॉफी को एक ही साँस में पी गई। 

" ऐसा मत कहिए। नागा होना तो ईश्वरीय वरदान है। जो हम साधारण गृहस्थ हो कर नहीं पा सकते वह और उससे कहीं अधिक नागा होने पर मिलता है। "

"बहुत समय लगा मंगल जी को भुलाने में। या ये कहूँ कि मंगल जी के शून्य को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाने में। आज तक पछतावा है। काश उस दिन मुझसे वह गलती नहीं होती तो हमारा आबाद परिवार यूँ न उजड़ता। पिताजी के स्वर्ग सिधारते ही कीरत का जैसे जिंदगी के प्रति रहा सहा लगाव भी खत्म हो गया। ड्यूटी से लौटकर वे शराब पीते और पिताजी के लिए रोते और मंगल को गालियाँ देते-" भाग गया बुजदिल, अरे असल मर्द वह है जो जिंदगी का सामना करे। न कि पलायन। बहुत कमजोर दिल का निकला तू मंगल। "

रात दो दो बजे तक यही सिलसिला चलता। माताजी बहुत हौसले वाली हैं। अगर वह भी टूट जातीं तो न जाने क्या होता। 

"हाँ, कल की बातों से मैं समझ गई थी उनकी दृढ़ता। "

दीपा ने घड़ी देखी डेढ़ बज गया था-" लंच ऑर्डर कर दीजिए कैथरीन जी। मेरी दवाई का वक्त हो चला है। "

कैथरीन ने तुरंत इंटरकॉम पर लंच ऑर्डर किया। 

"दवा लेती हैं आप ?"

"जी हाँ, कीरत के बाद से हाई ब्लड प्रेशर बना रहता है। समय पर दवा लेनी पड़ती है। नहीं तो हॉस्पिटल में एडमिट होने की नौबत आ जाती है। शुगर की पिछले 15 सालों से मरीज हूँ। " "ओह, जिंदगी के तनाव से उपजी बीमारियाँ आसानी से पीछा नहीं छोड़तीं। आप खुश रहा करिए। "

" कैसे खुश रहूँ। मेरे कारण मंगल जी को वनवास मिला। इतने शौकीन थे वे खाने-पीने, कपड़ों के। विशाल को भी कपड़ों का बहुत शौक था। हमेशा मॉल से ही अपने कपड़े खरीदने की जिद्द करता। दिन भर कुछ न कुछ खाते रहता। फरमाइशें इतनी। 

"ममा आज पिज़्ज़ा बना दो, नूडल्स बना दो, चाऊमीन, कस्टर्ड, समोसे और अब निर्वस्त्र। एक टाइम भोजन। " कहते-कहते दीपा का गला भर आया। 

" लेकिन वह इतनी छोटी उम्र में नागा बना कैसे? किसने उसे नागाओं के बारे में बताया?"

लंच आ चुका था। दीपा बाथरूम जाकर फ्रेश हुई। 

"आइए आप तो शाम तक हैं मेरे साथ। हम पहले खाना खाएंगे। " वेटर ने प्लेटें सर्व कीं। खाने में से भाफ़ उठ रही थी जिसकी खुशबू भूख को उत्तेजित कर रही थी। "सोचा था आइसक्रीम लेंगे खाने के बाद, पर आप तो शुगर....."

पानी का जग रख खाली जग उठाते हुए वेटर ने तुरंत कहा-" शुगर फ्री आइसक्रीम है मैम। केसर पिस्ता की। "

"ठीक है, ले आना। 

वेटर के जाते ही कैथरीन ने दीपा से कहा -"बहुत ट्रेंड होते हैं ये वेटर, कस्टमर को हैंडल करना जानते हैं। "

दीपा ने खाने की प्रशंसा की -"खाना सच में स्वादिष्ट है। "

लंच के बाद दीपा ने दवाइयाँ लीं। 

"आप थोड़ा आराम कर लीजिए। मैं तब तक सिगरेट पी लूँ। धुँए से परहेज तो नहीं आपको। "

"नहीं कीरत पीते थे सिगरेट। लेकिन मंगल जी किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते थे। "

" अब तो चिलम उनकी दिनचर्या में शामिल है। "

दीपा बिस्तर पर करवटें बदलती रही, दस मिनट बाद ही वह सोफे पर आकर बैठ गई -

"आदत नहीं है आराम की और फिर विशाल की चर्चा ने डिस्टर्ब कर दिया है। न पवन की मौसी जानकी देवी आकर मंगल जी के हाल-चाल बतातीं, न विशाल नागा प्रशिक्षण केंद्र जाने की जिद्द ठानता। "

"पवन कौन ?"

"मंगल जी का दोस्त। उसकी मौसी जानकी देवी गोमुख से आगे तपोवन नंदनवन में मंगल से मिली थीं। जब वे दिल्ली आईं तो उन्होंने सारी बातें बताईं। मुझे क्या पता था मेरे जिगर का टुकड़ा सन्यासी हो जाएगा और मैं माया मोह में फँसी रहूँगी। मुझे प्यार करने वाले मंगल जी निर्वस्त्र, सन्यासी हो जाएंगे। ठंड के दिनों में उनके हाथ पैर ठिठुर जाते। माताजी उनके कमरे में अंगारों से भरी गुरसी रख आतीं। हाथ - पैर सेकते हुए ही पढ़ते। अब बर्फीली चोटियों पर कैसे नंगे बदन तप करते होंगे। मैं तो सोचकर ही काँप जाती हूँ। एक बात है कैथरीन जी, जीवन में हमसे प्यार करने वाले की हमें कद्र करनी चाहिए। प्यार से बढ़कर मूल्यवान संसार में कुछ भी नहीं है। " कहते हुए उसने बैग उठा लिया। 

" चलती हूँ। अंधेरा होने से पहले घर पहुँच जाऊँ नहीं तो माता जी घबरा जाती हैं। कल फिर आऊँगी लेकिन लंच के बाद। शायद आपको और कुछ पूछना हो मुझ खलनायिका से। "

कैथरीन ने हँसते हुए उसके दोनों हाथ पकड़ लिए। 

"अच्छा समय बीता। आपको कल नहीं 2 दिन बाद फोन करके बुलाऊँगी। 2 दिन एंबेसी में व्यस्तता रहेगी। "

"ओके गुड नाइट। "

कैथरीन बाइक के ओझल होते तक दीपा को देखती रही। लगा जैसे कहीं कुछ पिघलता हुआ मन में उतर गया है और वह उस पिघले हुए को ग्रहण नहीं कर पा रही है। 

****

व्यस्तता सोच विचार की थी। कैथरीन ने बहुत गहरे आब्जर्ब किया दीपा को। वह साधारण औरत नहीं है। कबूल करती है कि उसे नरोत्तम से प्यार नहीं है। वह जीवन में प्यार को नहीं शरीर को महत्व देती है। जब कीरतसिंह से उसे तृप्ति नहीं मिली। तो वह नरोत्तम की ओर झुकी। यह कैसा दैहिक आकर्षण जिसमें कहीं कोई मोह या लगाव नहीं। देह तृप्ति के लिए वह पति से भी छल करने को तैयार है। ओह नरोत्तम, तुमने कैसी औरत से प्यार किया। अच्छा हुआ तुम उसके चंगुल से निकल भागे। चंगुल से निकलना ही तुम्हारे चरित्र की महानता सिद्ध करता है। प्रथम प्यार, प्रथम छुअन, प्यार का प्रथम एहसास जीवन भर पीछा नहीं छोड़ता है। वह बना रहता है हमारी दिनचर्या में। भले ही हम उसके विषय में नहीं सोचते पर वह मौजूद रहता है हमारे क्रिया कलापों में। पलकों की झपकन में। बरसों बरस..... शायद जीवन के अंत तक। कितनी बहारें आकर गुजर जाती हैं, कितने ही मौसम अपने सौंदर्य या अधिकता की मार से जीवन अस्त-व्यस्त करते हैं। कितनी ही सभ्यताएं विश्व के नक्शे पर बनती मिटती हैं। लेकिन वह प्रथम प्यार के एहसास की चाँदनी सूरज के प्रकाश में, अमावस के अँधेरे में भी खिली रहती है। 

सोचते हुए कैथरीन ने खुद को सवालों से घिरा पाया। अंतरआत्मा से आवाज आई -'फिर तुमने क्यों किया ऐसा ? क्यों प्रवीण को शादी के लिए मजबूर किया? क्यों नहीं तुम उसकी जीवनसंगिनी बनीं। भले ही तुम अपने मन को कितना ही समझाओ पर वह प्रवीण का प्रथम स्पर्श, वो प्रथम चुम्बन, वो प्रथम मिलन कैसे भूल सकती हो तुम? भले ही तुम्हें नरोत्तम के आकर्षण ने अपनी ओर खींचा पर..... शायद यही वजह है कि प्रवीण लॉयेना को खुलकर नहीं अपना सका। कैथरीन ने आँखें मूंद लीं। लगा जैसे लॉयेना सामने खड़ी हो। जैसे उसके उदास चेहरे पर आँसुओं की गीली लड़ियाँ हैं। 

'मुझे मोहरा बनाया कैथ ताकि तुम अपने ढंग से अपनी जिंदगी जी सको और प्रवीण को करीब भी पा सको। निश्चय ही तुम समझ गई थीं कि मेरी जगह कोई दूसरी औरत प्रवीण से शादी करती तो तुमको प्रवीण से दूर जाना होता। भूलना होता उसे। जो तुम्हारे लिए संभव न था। और तुम्हारे लिए संभव न था इसलिए मैं हर गुजरते रोज के साथ प्रवीण को अपने से दूर जाता देखती रही। '

कैथरीन का मन व्याकुल हो उठा। तो क्या वह स्वार्थी है? उसने सिर्फ अपने लिए सोचा और उसकी सोच की अग्नि की आहुति बने प्रवीण और लॉयेना। 

दो रातें उसकी खुद को समझने में गुजरीं। दो रातें उसने व्याकुलता के चरम को पार किया....... डूबकर भी लहरों के थपेड़ों में तट की रेत पर आ गिरी। यह कैसी बेचैनी। ईश्वर मुक्ति दो। 

बड़ी मुश्किल से मन एकाग्र हुआ। वह किताब की आखिरी पायदान पर थी। यह तो तय था कि अब वह दीपा से नहीं मिलेगी। जानने को कुछ शेष न था, समझने को बहुत कुछ था। वैसे भी आद्या हवाई टिकट भेजने को उतारू थी -"ममा आ जाइए। मन नहीं लग रहा आपके बिना। "

लेकिन वह अँतिम अध्याय पूरा किए बिना जा नहीं सकती। कैथरीन को दो महीने दिल्ली में रुकना पड़ा। अँतिम अध्याय पूरा कर उसने दिल्ली के प्रकाशक से बात कर पांडुलिपि उसे सौंप दी। कवर पेज पर नरोत्तम के साथ उसकी तस्वीर छपेगी। बैक कवर में भोजबासा की गुफा के इंप्रेशन में उसका परिचय। अंदर के पृष्ठों में आद्या के बनाए चित्र होंगे। किस पृष्ठ पर कौन सा चित्र होगा यह भी उसने तय किया। प्रकाशक उससे बहुत अधिक प्रभावित हुआ। नागा साधुओं पर लिखी यह पहली पुस्तक थी जिसे प्रकाशित कर रहा था, वह भी एक विदेशी लेखिका के द्वारा लिखी पुस्तक। 

रात उसने नरोत्तम को फोन लगाया -"आना चाहती हूँ तुम्हारे पास। फोटो लेनी है तुम्हारी। किताब का काम पूरा हो गया है। प्रकाशक को पांडुलिपि दे दी है। 

एक ही साँस में कितना कुछ बता दिया कैथरीन ने, लेकिन दीपा से मिलने उसके घर जाने की बात वह छुपा गई। 

"अच्छी खबर सुनाई। हम काशी के प्रशिक्षण केंद्र में हैं। यहीं आ जाओ। "

" काशी मतलब वाराणसी यानी बनारस? घूमना था मुझे। बहाना मिल गया। परसों पहुँच जाऊँगी। "

"बहाना नहीं बुलावा। बाबा विश्वनाथ जब जिसको दर्शन देना चाहते हैं, बुला लेते हैं। "

"मैं भाग्यवान हूँ जो उनके दर्शन करूँगी। साथ में तुम्हारे भी। "

"ईश्वर हमारे साथ है कैथरीन। आ जाओ जल्दी। " कहते हुए नरोत्तम ने फोन रख दिया। 

***

ज्योतिर्लिंग बाबा विश्वनाथ और भैरव बाबा की नगरी वाराणसी जहाँ के कण-कण में शिवजी बसे हैं। पतित पावनी गंगा के 88 घाट, हर घाट का अपना महत्व। स्नान, पूजा समारोह हर घाट पर संपन्न होते हैं। केवल 2 घाट श्मशान घाट के रूप में उपयोग किए जाते हैं। जहाँ नदी किनारे चिताएं जलती हैं और जले, अधजले शव गंगा में बहा दिए जाते हैं। 

आद्या ने गूगल पर सर्च करके बताया है -"ममा आप सूर्योदय के समय नाव से सभी घाट घूम लेना। उस समय बहुत सुंदर माहौल रहता है। "

लेकिन मैं रात का सौंदर्य भी नाव से घूमते हुए देखना चाहती हूँ। गंगा आरती भी देखनी है मुझे। "

फोन पर बात करते हुए ही कैथरीन टैक्सी से जूना अखाड़ा प्रशिक्षण केंद्र जा रही थी। 

सब कुछ नया नया एक भी पहचाना चेहरा नहीं। उसे केंद्र के गेट पर रुक जाने को कहा गया। नरोत्तम गिरी के पास उसने अपना विजिटिंग कार्ड भिजवाया। थोड़ी देर में नरोत्तम गिरी स्वयं उसे लेने आया। 

"वेलकम, स्वागत है कैथरीन। ढूँढने में दिक्कत तो नहीं हुई ?"

कैथरीन मुस्कुराई-" कैसे हो नरोत्तम ?"

एक युवा नागा झट से उसकी अटैची लेकर चला गया। नरोत्तम गिरी के साथ कैथरीन गेट से केंद्र तक का हरा भरा रास्ता पार करने लगी। दोनों तरफ गुलाब ही गुलाब। हर रंग के गुलाब। बड़े-बड़े तीन से पाँच फीट तक के गुलाब के पौधे। "वाह, इतना खूबसूरत उद्यान। "

"इस केंद्र में उद्यान ज्यादा हैं। केंद्र के पीछे सरोवर है। जिसमें सफेद गुलाबी कमलिनी खिलती है। पत्र देखो उसके खूब चौड़े चौड़े। पानी की बूँदे मोती सी दिखती थमी रहती हैं उसपे। रात होते ही बैंगनी रंग की नलिनी खिल जाती है। कमलिनी और नलिनी दोनों बहनें, लेकिन शापित। दोनों एक दूसरे को खिला नहीं देख पातीं। "

कहते हुए नरोत्तम गिरी कैथरीन को एक विशाल कमरे में ले आया। फर्श पर चटाइयाँ बिछी थीं। पश्चिम दिशा में धूनी जल रही थी। बाजू वाले कक्ष में ओम नमः शिवाय का जाप हो रहा था थोड़ी ही देर में चाय नाश्ता लेकर वह युवा आया जो अटैची लेकर आया था। 

"यह महेश गिरी है। केंद्र का सबसे तेज बुद्धि वाला युवा। "

महेश गिरी ने हाथ जोड़े। 

"प्रणाम माता। "

नरोत्तम गिरी ने महेश गिरी से कहा "यह हमारे अखाड़े की पुरानी सदस्य हैं। इनके रहने का प्रबंध पूर्वी कक्ष में कर दो। अटैची वहीं ले जाकर रख दो और महाराज को इनके दोपहर के भोजन के लिए कह दो। "

"जी गुरु जी। "

महेश गिरी के जाते ही कैथरीन धीरे-धीरे चाय के घूँट भरते हुए सिगरेट पीने लगी। 

"मेरे आने से तुम्हारे धर्म कर्म विधियाँ रुक जाती होंगी न?

" नहीं, हम सब संभाल लेते हैं। नागा की एक भी दिन धर्म कर्म और विधियाँ नहीं रुकतीं। मेरे प्रशिक्षण स्थल पर जाने का समय हो गया है। इस बार 400 युवा नागा प्रशिक्षित करने हैं हम 20 प्रशिक्षकों को। वही हमेशा की गिनती यानी मेरे मार्गदर्शन में 20 नागा। तुम भी विश्राम करो आज कहीं मत जाओ। शाम को मिलेंगे। चलो, तुम्हारे कक्ष तक तुम्हें छोड़ दें। "

छोटा सा कक्ष। महेश गिरी अटैची रखकर कैथरीन के भोजन की व्यवस्था देखने चला गया। 

"नरोत्तम इस कक्ष में तीन दिन मेरा निवास रहेगा। तुम अब शाम को मिलोगे। इसलिए किताब के लिए फोटो सेशन शाम को ही करेंगे। कल और परसों वाराणसी घूम कर मैं परसो शाम चली जाऊंगी। "

"ठीक है कैथरीन। शाम को मिलेंगे। तुम चाहो तो विश्राम के बाद उद्यान और सरोवर घूम सकती हो। "

नरोत्तम गिरी के जाते ही कैथरीन ने सिगरेट सुलगाई और आद्या को फोन लगाया। 

" काफी दिन तुम्हें अकेले रहना पड़ा। अब शुक्रवार को हम साथ होंगे। रॉबर्ट कैसा है ?"

"सब ठीक है ममा। बस अब तो आपका बेसब्री से इंतजार है। "

क्या, आद्या के पास पहुँचकर कैथरीन चैन से रह पाएगी? जबकि हिमालय की चोटियों पर नरोत्तम, कन्दराओं, गुफाओं में नरोत्तम, धूनी रमाए नरोत्तम, जंगलों के प्रशिक्षण केंद्रों में नरोत्तम, गंगा के उगते सूरज के सुनहरे तट पर नरोत्तम, बहती संगीत धारा में नरोत्तम, पौष मास की चंद्रिका में झिलमिलाता नरोत्तम, ध्यान मुद्रा में नरोत्तम, संपूर्ण धरती में नरोत्तम, आसमान में नरोत्तम, उसकी आँखों, साँसों और अब तो वियना की सड़कों पर भी नरोत्तम। उसके बाहर अंदर था ही क्या, सिवा नरोत्तम के। वह सरोवर के किनारे बैठी इन्हीं एहसासों में खोई हुई थी कि महेश गिरी ने सूचना दी-

" माता गुरु जी आपको बुला रहे हैं। "

उसने देखा संध्या घिर आई थी और चहचहाते परिंदे घोंसलों में दुबक जाने को आतुर थे। उसने सरोवर के जल में ऊँगलियाँ डुबोईं। एक लहर सिहरकर अन्य लहरों को आमंत्रित करती आगे बढ़ ली। नरोत्तम गिरी के भोजन का वक्त था -" आओ कैथरीन पहले भोजन कर लें फिर फोटो आदि। "

" ओके। "कैथरीन ने भूमि पर बिछे आसन पर बैठते हुए देखा नरोत्तम थका थका सा दिख रहा था। 

" आज प्रशिक्षण केंद्र में ज्यादा काम था क्या ?"

"रोज जैसा ही। अभ्यस्त हैं हम इसके। भोजन आरंभ करें। " कैथरीन ने गर्म परांठे का निवाला सब्जी में डुबोकर मुँह में रखा

"वाह, बहुत टेस्टी। बहुत स्वादिष्ट। "

खाने के बाद दोनों मीटिंग कक्ष के बाहर बरामदे में आ गए। रोशनी मध्यम थी पर कैथरीन का कैमरा पावरफुल। उसने नरोत्तम गिरी की कई तस्वीरें लीं। नरोत्तम गिरी ने भी उसकी तस्वीरें खींची। फिर महेश गिरी ने दोनों की एक साथ कई तस्वीरें खीचीं। फोटो सभी बेहतरीन आई थीं। 

" किताब प्रकाशित होने के बाद प्रकाशक तुम्हें पार्सल से भिजवा देगा। "

हमारा एक जगह कहाँ ठिकाना रहता है। हम तो रमता जोगी। किताब तुम खुद देना हमें। फिर हम चाहे जहाँ हों। "

नरोत्तम गिरी की चमकीली आँखें कैथरीन को आरपार बेंध गईं। उन आँखों में जाने क्या था कि कैथरीन न तो डूब पा रही थी न उबर। 

" कल तुम दिन भर की टैक्सी ले लेना और बाबा विश्वनाथ, भैरव बाबा, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी देख लेना। परसों सुबह - सुबह गंगा के घाटों की सैर कर लेना। "

"काश, तुम चलते साथ में। मैं गंगा का सौंदर्य रात में भी देखना चाहती हूँ। "

"कल रात मणिकर्णिका घाट की सैर कर लेना, बाकी के घाट परसों सुबह। "

"नरोत्तम, जाने कितने ख्वाब दिखा देते हो तुम। ज़िन्दगी उन ख्वाबों में सिमट कर रह जाती है। "

"जिंदगी ख्वाब नहीं हकीकत है। जिस तरह यह पूरी प्रकृति हकीकत है। हम भी तो प्रकृति का हिस्सा ही हैं न। "

"पर मैंने उस हकीकत से परे हटकर तुम्हें किताब में बांध लिया है। हर पन्ने, हर पैराग्राफ, हर वाक्य, हर शब्द में तुम। "

नरोत्तम गिरी के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी। 

"अब हम नागा जीवन की शपथ ले चुके हैं। अब हटेंगे तो पथभ्रष्ट कहलाएंगे। "

"मैं तुम्हें पथभ्रष्ट नहीं होने दूँगी नरोत्तम। प्यार कीमत नहीं माँगता, इतना तय मानो। "

"परसों तुम चली जाओगी। कुछ दिन जरूर विचलित रहूँगा फिर वही साधना, जाप, तप। अब जीवन तो इसी को दे दिया न कैथरीन। "

"काश इन सब बातों में मैं सशरीर तुम्हारे साथ होती। मन से तो हूँ ही हमेशा। "

"तुम मेरे साथ ही हो हमेशा। "कहते हुए नरोत्तम गिरी ने आँखें मूँद लीं। कैथरीन उस तिलिस्म में आकंठ डूबी खुद को भूलने लगी। नरोत्तम गिरी फरिश्ते के रूप में आई कैथरीन को देखता रह गया। जिसने कभी यह नहीं कहा कि तुम मेरे साथ आ जाओ। हमेशा यही कहा कि काश मैं तुम्हारे साथ होती। प्रेम की इस ऊँचाई की तो नरोत्तम गिरी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। 

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