Gyarah Amavas - 48 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 48

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ग्यारह अमावस - 48



(48)

दीपांकर दास ने ध्यान से उस शख्स को देखा। उसे पहचान कर उसने आश्चर्य से कहा,
"तुम ? यहाँ कैसे आए ?"
उसके सामने शिवराम हेगड़े खड़ा था। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि वह कुछ समझ ही ना पा रहा हो। उसने फर्श पर फैले खून को देखा। उसे उबकाई आ गई। फिर उसकी नज़र सरकटी लाश पर पड़ी। उसके पास ही शैतान वाला मुखौटा पड़ा था। वह डर गया। शिवराम हेगड़े के लिए वहाँ खड़ा होना कठिन हो रहा था। वह कमरे से बाहर निकल गया। दीपांकर दास भी उसके पीछे पीछे बाहर आ गया। वह खुद बहुत परेशान था। उसके मन में बहुत से सवाल घूम रहे थे। उसने शिवराम हेगड़े से कहा,
"तुम तो शांति कुटीर में थे। यहाँ कैसे आ गए ?"
उसके इस तरह सवाल पूछने से शिवराम हेगड़े इस समय कुछ समझ पाने की स्थिति में नहीं था। उसने झल्लाकर कहा,
"मैं तुम्हारे सवालों के जवाब नहीं दे सकता। मैं खुद ही बहुत परेशान हूंँ। मैं कैद में था। अचानक आँख खुलती है तो मैं खुद को इस खंडहर में पाता हूँ। इधर उधर देखते हुए जब उस कमरे में पहुंँचा तो तुम दिखाई पड़े। साथ में वह भयानक दृश्य। मुझसे वहांँ नहीं रुका गया। यहाँ आ गया।"
यह कहकर वह पिछली बातों को याद करने की कोशिश करने लगा‌। बहुत याद करने पर उसे याद आया कि वह अपने कमरे में था। उसे खाना देने वाले आए। उन्होंने खाना देने की जगह उसे पकड़ लिया। फिर एक इंजेक्शन लगाया। उसके बाद उसकी बेहोशी इस जगह पर टूटी। सब याद आने पर उसने दीपांकर दास की तरफ देखा। उसका ध्यान उसके चोंगे की तरफ गया। उसने कहा,
"तुम्हारे पास वह सरकटी लाश पड़ी थी। तुम खून से सने हो। तुम ही वो शैतान हो जो लोगों को मारते हो।"
यह सुनकर दीपांकर दास ने कहा,
"मैं शैतान नहीं हूँ। मैंने कुछ नहीं किया है। मैं खुद नहीं जानता हूँ कि यहाँ कैसे आया ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"
"फिर तुमने ये चोंगा क्यों पहन रखा है ? सरकटी लाश के पास वो शैतानी मुखौटा भी पड़ा था। उस दिन जब मैं तुम्हारा और शुबेंदु का पीछा करते हुए उस मकान में पहुँचा था तब भी तुमने ये चोंगा और शैतान वाला मुखौटा पहन रखा था। तुमने ही मुझे कैद करने के लिए कहा था। पुलिस को तुम दोनों पर शक था। तभी मैं तुम दोनों पर नज़र रखने के लिए शांति कुटीर में रह रहा था। तुम जानते थे कि मैं तुम दोनों पर नज़र रहा हूँ। इसलिए मुझे अपने पीछे आने दिया। उसके बाद मुझे और मेरे साथी सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को कैद कर लिया।"
दीपांकर दास कुछ समझ नहीं पा रहा था कि शिवराम हेगड़े क्या कह रहा है। वह आश्चर्य से उसकी तरफ देख रहा था। उसने कहा,
"मैं नहीं जानता हूँ कि कि ये चोंगा और मुखौटा मैं कैसे पहन लेता हूँ। शुबेंदु ने मुझसे कहा था कि मुझे कुछ हो जाता है। उसके बाद मुझे संभालना मुश्किल होता है। लेकिन मैं अपने होश में कुछ नहीं करता हूंँ।"
शिवराम हेगड़े ने कहा,
"तुम पर शैतान सवार हो जाता है। तुम इतनी बेरहमी से लोगों को मार देते हो। आखिर क्यों ? इसमें तुम्हारा साथी शुबेंदु तुम्हारा साथ देता है।"
"मैं कुछ नहीं जानता हूँ। मैं कैसे और क्यों शैतान बन जाता हूँ। शुबेंदु ने हमेशा मेरा साथ दिया है। लेकिन तुम जिस दिन की बात कह रहे हो उस दिन के बाद से उसका कोई पता नहीं है। मैं ना जाने किसकी कैद में था। उस कैद में भी मैंने एक दो बार अपने आप को इस हालत में पाया था। मेरा यकीन करो। मैं शैतान नहीं हूंँ। बस मेरा अपने आप पर नियंत्रण नहीं रहता है। जाने कैसे वो शैतान मुझ पर पर सवार हो जाता है।"
दीपांकर दास फर्श पर बैठ गया और सर पकड़ कर रोने लगा।

एक गुप्त कमरे में रंजन सिंह, काबूर और जांबूर बैठे थे। मुखौटे के पीछे से झांकती जांबूर की आँखों में शैतानी चमक दिखाई पड़ रही थी। रंजन सिंह ने कहा,
"अब समझ आया कि शिवराम हेगड़े को इतने दिनों तक ज़िंदा क्यों रखा। अब पुलिस को वह दीपांकर दास के साथ उस सरकटी लाश के पास मिलेगा। शिवराम हेगड़े इस बात की गवाही देगा कि वही शैतान है। पुलिस को लगेगा कि शैतान पकड़ा गया। पुलिस शांत हो जाएगी और हम अपना अनुष्ठान जारी रखेंगे।"
जांबूर ने कहा,
"दीपांकर दास शुरू से ही हमारा मोहरा था। शुबेंदु ने उसके दिमाग में भर दिया था कि उस पर कोई शैतान सवार हो जाता है। जो उससे लोगों की हत्या करवाता है। पुलिस के सामने भी वह यही कहेगा।"
यह कहकर उसने पास बैठे काबूर को देखा। काबूर ने अपने चोंगे का हुड हटाया। शुबेंदु का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई पड़ा। उसने कहा,
"मैंने उसकी मानसिक स्थिति का पूरा फायदा उठाया। मैं जो कहता था वह उस पर भरोसा कर लेता था। मैंने उसे यकीन दिला दिया था कि वह बीमार है। वह पूरी तरह से मुझ पर निर्भर हो गया था।"
रंजन सिंह ने जांबूर से कहा,
"एक बात अभी भी साफ नहीं हुई। उस एसपी गुरुनूर कौर को भी क्यों नहीं मार दिया। उसको ज़िंदा रखने का क्या लाभ है।"
जांबूर ने कहा,
"उसका पता भी जल्दी ही चल जाएगा। फिलहाल तो पुलिस उस जगह पर पहुँचने वाली होगी जहाँ उसका सामना दीपांकर दास यानी जांबूर से होगा। मैंने पहले से ही सब तय कर लिया था। अनुष्ठान के बाद सभी को सुरक्षित यहाँ ले आया। दीपांकर दास और शिवराम हेगड़े को बेहोशी की हालत में वहाँ छोड़ दिया। उस जंगल को छोड़ने से पहले चोरी किए गए फोन से पुलिस को कॉल किया। उसके बाद सिम निकाल कर तोड़ दिया। फोन एक गढ्ढे में फेंक दिया।"
रंजन सिंह ने उसके आगे कोई सवाल नहीं किया। जांबूर ने शुबेंदु से कहा कि वह अपने काम में लग जाए। रंजन सिंह को भी साथ में ले ले। अब उसे पुलिस से डरने की ज़रूरत नहीं है।

दीपांकर दास फर्श पर बैठा रो रहा था। शिवराम हेगड़े अजीब सी कश्मकश में था। कभी उसे लगता था कि दीपांकर दास गुनहगार है तो कभी उसके मन में आता कि जो वह कह रहा है सही है। उसका अपने पर नियंत्रण नहीं रहता। एक हैवानियत उस पर सवार हो जाती है जिसके आगे वह मजबूर है। अनिश्चय की स्थिति में वह सोच रहा था कि आगे क्या करे तभी पुलिस ने उस खंडहर में प्रवेश किया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने अपनी गन दीपांकर दास पर तान दी। उसने अपनी टीम को आदेश दिया कि उस जगह की अच्छी तरह तलाशी ले। उसने शिवराम हेगड़े से कहा,
"तुमने हमें फोन करके इस जगह के बारे में बता दिया। लेकिन इतने दिनों से तुम थे कहाँ ? सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह का भी कोई पता नहीं है।"
शिवराम हेगड़े समझ नहीं पा रहा था कि पुलिस अचानक वहाँ कैसे आ गई। जब सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा कि उसने पुलिस को फोन किया था तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने कहा,
"मैंने कोई फोन नहीं किया था। मैं तो इतने दिनों तक किसी अंजान जगह कैद में था। आज इस जगह पर नींद खुली। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह के बारे में तो मैं खुद परेशान था।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को भी आश्चर्य हुआ कि उन्हें फोन करने वाला कौन था। पर इस समय उसके हाथ मुख्य अपराधी लग गया था। इसलिए उसने अपना ध्यान दीपांकर दास पर लगा दिया। उसका गिरेबान पकड़ कर उठाते हुए बोला,
"इतने लोगों की बलि चढ़ाने के बाद बैठकर रो रहा है। तेरे हर एक गुनाह का हिसाब होगा।"
कांस्टेबल मनोज ने आकर बताया कि एक कमरे में फर्श खून से सना है। वहीं एक सरकटी लाश पड़ी है। बाकी की टीम ने बताया कि ऊपर दो कमरे हैं। फिलहाल वहाँ कोई नहीं है। लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ लोग वहाँ रह रहे थे। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने आहते में बंधी रस्सी पर टंगे चोंगों को देखा। उसे याद आया कि ऐसे ही चोंगे उत्तरी पहाड़ी वाले खंडहर में मिले थे। वह कांस्टेबल मनोज के साथ उस कमरे में गया जहाँ बलि दी गई थी। लाश के पास उसे शैतान की मूर्ति दिखाई पड़ी। फर्श पर शैतान वाला मुखौटा था। उसे यहाँ भी लाश का सर नहीं मिला। वह बाहर आया। उसने अपनी टीम से कहा कि खंडहर के आसपास लाश का सर तलाश करने की कोशिश करें। उसके बाद उसने फोरेंसिक टीम को फोन किया।
जंगल में कोई सर नहीं मिला। फॉरेंसिक टीम ने मौके पर पहुँचकर अपना काम शुरू कर दिया। सरकटी लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे दीपांकर दास को गिरफ्तार करके शिवराम हेगड़े के साथ बसरपुर आ गया।
जो मीडिया अबतक पुलिस की नाकामयाबी के लिए उसे निकम्मा ठहरा रही थी वही अब पुलिस की तारीफ कर रही थी। बसरपुर में एक खुशी की लहर थी कि अब डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। बलि देने वाला शैतान पकड़ा जा चुका है। पर जब लोगों को पता चला कि वह शैतान कोई और नहीं दीपांकर दास है तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। लोगों का कहना था कि उन्होंने दीपांकर दास को इतना सम्मान दिया। पर उसने उनकी पीठ में छुरा घोंप दिया। जो लोग ध्यान के लिए शांति कुटीर जाते थे वो सभी अजीब सी सदमे की स्थिति में थे। उनके लिए यह यकीन करना मुश्किल हो रहा था कि शांत और सौम्य दिखने वाले दीपांकर दास की यह सच्चाई हो सकती है।
कुछ लोग अपने तरीके से इस घटनाक्रम पर बोल रहे थे। ये लोग वो थे जिन्हें इस केस के लिए एसपी गुरुनूर कौर के चुनाव पर ऐतराज़ था। जो पहले खुलकर नहीं बोल रहे थे। पर अब उनका कहना था कि गुरुनूर कौर के गायब होने के बाद जब केस एक पुरुष अधिकारी के पास गया तो उसने शैतान को पकड़ कर सफलता प्राप्त कर ली।