Rab ki likhi jogi - 2 in Hindi Motivational Stories by Damini books and stories PDF | रब की लिखी जोगी - 2

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रब की लिखी जोगी - 2

पार्ट 1

कहानी अब तक:-
आरती माता रानी की मूर्ति के सामने घर के सुख की कामना कर रही है। और बाऊजी अपने सालो पुराने ख्वाबों को पूरा करने का अरमान लिए कोर्ट जा रहे है।
क्या है सबकी किस्मत में इससे सब कोसो दूर है।

दृश्य:-
गुरुद्वारे में आज अच्छा माहौल है। अभी भरी दोपहर नहीं हुई है सुहावना मौसम है। सुबह का माहौल है। सभी अरदास कर रहे है।

इक ओंकार सतनाम करता पुरख
निर्मोह निरवैर अकाल मूरत
अजूनी सभम
गुरु परसाद जप आद सच जुगाद सच
है भी सच नानक होसे भी सच
सोचे सोच न होवई
जे सोची लख वार
चुप्पे चुप न होवई

अरदास करते ही शांति का माहौल छा रहा है। वाहे गुरु की सेवा में कई भगत गुरुद्वारे में सेवा कर रहे है। और इन सब के बीच समरीत है जो कल की बात भूलकर आज खुशियों से सबकी निस्वार्थ सेवा कर रही है।

उसके एक प्रा (भाई) अमनबीर ही है जो उसका खयाल रखते है। सगे ना होकर भी सगे से बढ़कर है।

10 साल पहले:-

जब समरीत दस साल की थी तब उसने अमनबीर को बचाया था। उसके परिवार वाले एक हादसे में गुज़र गएथे। तेरह साल का अमनबीर दुनिया में अकेला ही रह गया था। गुरुद्वारे के पास रब से सवाल करने आया था पर खुद ही सड़क पर जोरो से गिर गया था। लोग तो बस कार के उसके पास होते हुए देख रहे थे पर सिर्फ समरीत ही थी जो उसे बचा पाई थी।
समरीत की कहानी जब अमनबीर ने सुनी तो जाना की दुनिया में सबसे ज्यादा तकलीफ सेहने वाला अकेला वो ही नहीं बल्कि समरीत जैसे कितने ही लोग इन परेशानियों से झूंझते है उनसे बाहर भी निकलते है। बस तब से वो उसका भाई बन गया और उसके गम का साथी भी।

अब आगे:-
समरीत और अमन दोनो ही इस गुरुद्वारे को अपना सब कुछ मानते है। और यहां की प्रगति चाहते है। पर उन दोनों की राहें जुड़ी है बजाज एंड अनेजा के जमीनी विवाद से।
जो जमीन पहले से ही अनेजा और बजाज परिवार के बीच फंसी थी वो एक डीलर ने उनकी गैर मौजूदगी में गुरुद्वारे की संस्था को बेच दिया। आज की तारीख जोड़ेगी समरीत को अपने बिछड़े परिवार से??

पार्ट 2

अब तक आपने पढ़ा:-
किस्मत समरीत को उस चौखट पर घसीट लाई है जो उसकी अपनी है। खुद को अनाथ समझने वाली समरीत को अब जल्द ही अपनो की छाया मिलने को है। और ये देखना भी दिलचस्प है कि उसकी माँ आरती कब तक अपनी तकदीर से मुंह मोड़कर छुपी रह सकती है। आज तकदीर आरती इंदर समरीत सबको एक ही राह पर के अाई है। राह न्यायालय की।।

अब आगे:-

दृश्य १
गुरुद्वारा प्रबंधक संस्थान की बैठक।

एक बड़े कमरे में कुछ समझदार लोग कुर्सी पर बैठे सुबह सुबह बातचीत कर रहे है। और सबकी राय एक ही बात में है कि मंजीत सिंह जाकर कोर्ट में उनकी तरफ से बोले।
और उनका पक्ष रखे। क्योंकि वो सब जानते है कि वो ज़मीन गुरुद्वारे का एक बड़ा हिस्सा बनाने के लिए खरीदी गई थी। पर जबसे वो कब्जे वाली बात उन्हें पता चली तब से उस जमीन पर कुछ भी नहीं बन सका। पर वो भी अपना हक छोड़ने को तैयार नहीं है। उनका मानना है कि ये जमीन उन्हें मिलना वाहे गुरु दी मर्ज़ी थी तो आम आदमी उन्हें वहां पर कुछ बनाने से कैसे रोक सकता है।
पूरी दुनिया के मालिक का क्या इतना हक नहीं की वो कोई ज़मीन का एक टुकड़ा भी ले सके??
मंजीत सिंह एक बड़ा समझदार और बुजुर्ग आदमी है। पूरी जिंदगी उसने गुरुद्वारे की सेवा में निकाल दी। आज वो जाने को तैयार है पर शायद होना तो कुछ और है। शायद समरीत के लिए एक करिश्मा। समरीत भी उनके लिए एक बेटी समान है और अमनबीर बेटे समान। पर अचानक एन मौके पर उनकी तबीयत बिगड़ जाती है और
सवाल उठता है कि कौन जाए कचहरी?? कोई खड़ा होने के लिए नहीं उठता सिवाए अमन और समरीत के?? अब वो भी कोर्ट के रास्ते चल देते है। सभी इसी की तैयारी में है।
आइए अब झलक देखते है दूसरे पक्षों की।
दृश्य २
कोर्टरूम

कोर्ट में मुकदमे कि तैयारी चल रही है, अनेजा और बजाज परिवार के बीच सालो से जिस जमीन पर तनातनी है उसका आज आखिरी फैसला है। इंदर अनेजा अपनी कार में कोर्ट पहुंचने का आधा रास्ता पार कर चुके है। उनके चेहरे पर आत्मविश्वास की पैनी झलक दिख रही है।तो दूसरी तरफ जीतू बजाज को भी पूरा विश्वास है कि वो उसका भांडा फोड़ देगा। उसकी झूठी इज्ज़त की धज्जियां उड़ाने की उसे पूरी खुशी महसूस हो रही है। हालाकि एक समय ऐसा था जब दोनो में गहरी दोस्ती थी पर अपने बाप दादाओं के जमीनी झगडो ने इन मासूम दोस्तो को एक दूसरे का दुश्मन बना दिया। वो तो मर गए पर छोड़ गए उन दोनों के बीच में आग। आग दुश्मनी की।

इस त्रिकोण में कौन जीतता है कौन हारता है ये देखने लायक है????

जारी क्रमशः।।।