Sparsh - 5 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | स्पर्श--भाग (५)

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स्पर्श--भाग (५)

सुबह हुई विभावरी नहा-धोकर तैयार हो चुकी थी,मधुसुदन अभी भी अपने कमरें में सोया पड़ा था,फिर दोनों सास-बहु नाश्ते की तैयारी में लग गई,नाश्ता बन गया तब तक मधुसुदन भी तैयार होकर आ चुका था,तो शान्ती बोली....
बहु!चल सबके लिए नाश्ता लगा दें,फिर रसोई साफ करके शाम की पूजा के लिए भी तो खाना बनाना होगा,इसलिए तो मैने नाश्ता थोड़ा हैवी सा बना दिया है,ताकि दोपहर के खाने से छुट्टी मिल जाएं,वैसे भी आज तो बहुत काम है,ऊपर से हम दोनों का निर्जला उपवास,सबको नाश्ता करवाने के बाद तू थोड़ी देर आराम करले,जब काम होगा तो मैं तुझे बुला लूँगी,तुझे इतना काम करने की आदत जो नहीं है ऊपर से आज तेरा पहला करवाचौथ का उपवास है।।
ठीक है माँ! आप ने जैसा कहा है मैं वैसा ही कर लूँगीं,विभावरी बोली।।
और ये क्या? तूने गहने भी नहीं पहने आज,शाम को पूरा श्रृंगार करके तैयार होना,शान्ती बोली।।
जी! माँ! और फिर इतना कहकर विभावरी सबके लिए नाश्ता लगाने लगी,फिर उसने रसोई के सारे काम निपटाएं और अपने कमरें में आराम करने आ गई,कमरें में मधुसुदन पहले से ही बैठा क्योकिं आज उसने अपने आँफिस से छुट्टी ली थी,जैसे ही उसने विभावरी को देखा तो पूछा....
तुम्हारी पीठ का घाव कैसा है?
अभी दर्द है,विभावरी बोली।।
एन्टीसेप्टिक क्रीम लगाई,मधुसुदन ने पूछा।।
जी! मेरा हाथ नहीं पहुँचता,विभावरी बोली।।
लाओ! मैं लगा दूँ,मधुसुदन बोला।।
मधुसुदन ने विभावरी के घाव पर क्रीम लगाई और पूछा....
प्यास तो नहीं लग रही.
नहीं ! विभावरी ने उत्तर दिया।।
ऐसी कोई बात नहीं,व्रत ना रख पाओ तो बता देना,ये सब फालतू की बातें हैं कि पत्नी के भूखा रहने से पति की उम्र बढ़ती है,मधुसुदन बोला।।
नहीं जी! आप ऐसी बातें ना करें,मैं आपके लिए सबकुछ कर सकती हूँ,विभावरी बोली।।
क्यों? मेरे लिए सबकुछ क्यों करोगी तुम?मधुसुदन ने पूछा।।
दादी कहती है कि जो पत्नी अपने पति को प्यार करती है वो उसके लिए कुछ भी कर सकती है,विभावरी बोली।।
इसका मतलब है तुम मुझसे प्यार करती हो,मधुसुदन ने पूछा।।
पता नहीं,विभावरी बोली।।
पता नहीं का क्या मतलब है ?मधुसुदन ने पूछा।।
दादी कहती है कि जो अच्छी लड़की होती है वो अपने पति से ऐसे नहीं कहती कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ,विभावरी बोली।।
तो कैसा कहती है?मधुसुदन ने पूछा।
मुझे नहीं मालूम,विभावरी ने पलकें नीचे करते हुए कहा।।
मैं बताऊँ कि कैसे कहती है?मधुसुदन बोला,
हाँ,बताइए! विभावरी बोली।।
ऐसे कहती है और फिर मधुसुदन ने विभावरी के गाल पर चुम्बन ले लिया....
और विभावरी ने शरमाते हुए अपना चेहरा अपनी हथेलियों में छुपा लिया।।
अरे! तुम तो शरमा गई,मधुसुदन बोला।।
और इतने में ही मधुसुदन की बहन अंजली ने कमरें के बाहर से आवाज़ दी....
भाभी! आप सो तो नहीं गईं,मैं अन्दर आ जाऊँ।।
हाँ....हाँ...अंजलि ! आओ ना! विभावरी बोली।।
अंजली कमरेँ में आ कर बोली....
भाभी! ये चार सेट काँच की चूड़ियाँ लाई हूँ,देखिए ना आपकी साड़ियों में से कौन सी ज्यादा मैच होतीं हैं,जो साड़ी आप पूजा के लिए पहनने वालीं हैं.....
ठीक है मैं साड़ियाँ निकाल लेती हूँ,वैसे मैनें दो साड़ियाँ चुनी थीं जो ज्यादा अच्छी लगेगी वही पहन लूँगी,साड़ियाँ देखकर ही ठीक से पता चलेगा,विभावरी बोली।।
और फिर विभावरी ने जो चूड़ियाँ साड़ी से ज्यादा मैच कर रहीं थीं ,चूड़ियों का वो सेट रख लिया,बाकी के सेट उसने वापस कर दिए।।
चूड़ियों के बाकी सेट लेकर अंजली कमरें से चली गई और फिर विभावरी ने आराम नहीं किया ,वो अपने गहने निकालने लगी, जिन्हें वो पूजा में पहनना चाहती थी,वो अपने ऊपर लगाकर आइने में देखती और जो ना पसंद आता वो साइड मेँ रखती जाती।।
फिर उसने दोनों साड़ियाँ निकालीं,पहली अपने ऊपर डालकर देखी तो उसे मधुसुदन ने पीछे से इशारा करके कहा कि ये अच्छी नही है तो विभावरी ने उसे साइड पर रख दिया फिर उसने दूसरी साड़ी डालकर देखी तो मधुसुदन इशारों में बोला कि ये बहुत अच्छी है।।
विभावरी ने अपने श्रृगांर का सामान एक तरफ रखा ही था कि फिर उसे शान्ती ने आवाज दी....
बहु! आजा ! अब पूजा की तैयारियांँ शुरू करते हैं,
जी! माँ! अभी आई और इतना कहकर विभावरी अपने कमरें से बाहर आकर बोली....
माँ! कहिए ! अब क्या क्या करना है?
हाँ!सब बताती हूँ,तू रसोई में चल मैं आती हूँ शान्ती बोली।।
विभावरी रसोई में चली गई तो शान्ती मधुसुदन के पास जाकर बोली....
क्यों रें? बहु के लिए कुछ उपहार लाया है कि नहीं ।।
उपहार! वो किसलिए? मधुसुदन ने पूछा।
वो इसलिए कि उसका पहला करवाचौथ है,तो तू उसे उपहार नहीं देगा,शान्ती बोली।
मुझे तो पता ही नहीं था इसलिए नहीं लाया,मधुसुदन बोला।।
तो अब खड़ा क्या है? बाजार जाकर उसके लिए कुछ ले आ,शान्ती बोली।।
लेकिन क्या लाऊँ? तुम ही सुझा दो माँ! मधुसुदन बोला।।
मंगलसूत्र ले आ,यही अच्छा रहेगा,शान्ती बोली।।
ठीक है तो मैं अभी बाजार जाता हूँ और इतना कहकर मधुसुदन बाजार जाने को तैयार होने लगा फिर शान्ती रसोई में विभावरी के पास चली आई...
शाम होने की थी और पूजा की सारी तैयारियांँ निपट चुकीं थीं,तब शान्ती विभावरी से बोली...
जा! बहु अब तू जाकर तैयार हो जा फिर कथा भी तो करनी है,चाँद निकलने का समय मैने पूछ लिया है रात आठ बजे तक निकलेगा और सुन जब तैयार हो जाना तो आज सिन्दूर से माँग अपने हाथ से मत भरना मधुसुदन से भरवाना और फिर जब वो तेरी माँग भर दे तो उसके पैर छू लेना।।
ठीक है माँ! मैं ऐसा ही करूँगी और इतना कहकर विभावरी अपने कमरें में आकर हाथ मुँह धोकर तैयार होने में लग गई,अब तो उसे ठीक से साड़ी बाँधनी भी आने लगी थी और फिर जब वो लाल बनारसी साड़ी और सारे गहने पहनकर तैयार हुई तो अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।।
और अब उसे अपनी माँग मधुसुदन से भरवानी बाँकी रह गई थी और उसकी दादी ने कहा था कि कभी भी पति को किसी के सामने बुलाना हो तो खुद मत बुलाना किसी और से कहकर अपने पास बुलवा लेना इसलिए उसने अपनी ननद अंजलि को आवाज दी और कहा कि जरा अपने भइया को बुला दो....
अंजलि ने मधुसुदन से जाकर कहा कि भाभी बुला रहीं हैं।।
मधुसुदन कमरें में आया और उसने विभावरी को इस रूप मेँ देखा तो एक पल को बुत बनकर रह गया,तब विभावरी ने पूछा कि क्या हुआ ? आप शांत क्यों खड़े हैं?
कुछ नहीं बस ऐसे ही तुम्हें देखकर ,तुम बताओ कि क्यों बुलाया था मुझे,मधुसुदन ने पूछा।।
जी! माँ ने कहा है कि माँग में सिन्दूर आपके हाथों से लगवाऊँ,विभावरी बोली।।
और क्या क्या कहा है माँ ने? मधुसुदन ने पूछा।।
जी! बस इतना ही कहा है,विभावरी बोली।।
तो फिर लाओ सिन्दूरदानी तुम्हारी माँग भर दूँ,मधुसुदन बोला।।
और फिर विभावरी ने मधुसुदन के हाथों में सिन्दूर दानी थमा दी फिर मधुसुदन ने विभावरी की माँग में सिन्दूर भरा तो विभावरी ने फौरन ही मधुसुदन के पैर छू लिए,मधुसुदन ने विभावरी के गाल पर चुम्बन लेते हुए कहा...
हमेशा ऐसे ही खुश रहो ।।
विभावरी मुस्कुराते हुए माँ जी और बाबूजी के पैर छूने कमरें से बाहर जाने लगी तो मधुसुदन बोला....
जरा रोको...
जी! कहिए,विभावरी बोली।।
मैं तुम्हारे बालों के लिए मोगरे की लड़ियाँ लाया था लाओ तुम्हारे जूड़े में सजा दूँ,मधुसुदन बोला।।
सच! मुझे तो मोगरे का गजरा बहुत पसंद है,हाँ जल्दी से लगा दीजिए मेरे बालों में और इतना कहकर फिर विभावरी खुश होकर मधुसुदन के हाथों अपने बालों में गजरा लगवाने लगी।।
जब तैयार होकर बाहर निकली तो उसने पहले बाबूजी के पैर छुए फिर शान्ती के पैर छूने उसके कमरें पहुँची जहाँ शान्ती भी पूजा के लिए तैयार हो रही थी फिर विभावरी शान्ती से बोली....
देखिए माँ जी! वो मेरे लिए गजरा लाएं हैं।।
अब शान्ती बेचारी क्या बोलती?बहु की नादानी पर और बेटे की दीवानगी पर मुस्कुरा दी बस,लेकिन मन में सोचा...
नालायक की अभी खबर लेती हूँ,एक गजरे में ही टरका दिया बहु को मैने तो सोने का मंगलसूत्र लाने को कहा था।।
फिर शान्ती मधुसुदन के पास पहुँची और पूछा...
तूने उसे एक गजरे मेँ ही टरका दिया,मंगलसूत्र कहाँ है?
माँ!वो तो बाद के लिए बचाकर रखा है,मधुसुदन थोड़ा शरमाया सा और सिर खुजाते हुए बोला....
हाँ..हाँ...सब समझ गई,बेशरम माँ का का लिहाज भी नहीं करता और फिर शान्ती मधुसुदन के कमरें से चली गई....
शाम को विभावरी के पिताजी सबके लिए उपहार लेकर आएं जो सबके लिए विभावरी की दादी ने भेजे थे,अपने पिता को देखकर विभावरी बहुत खुश हुई,विभावरी के पिता कुछ देर बैठे और फिर चाय पीकर वापस चले गए।।
कुछ देर बाद विभावरी की तीनों ननदे,शान्ती और विभावरी तैयार होकर आ चुके थे,पूजा शुरु हुई,अंजलि ने कथा बाँच दी,अब कथा निपट चुकी थी,तब विभावरी ने सबके पैर छूकर आशीर्वाद लिया और शान्ती ने उसे सोने की अँगूठी के साथ एक साड़ी और श्रृंगार का सामान भेंट किया और आशीर्वाद देते हुए बोली....
तेरा सुहाग हमेशा यूँ ही बना रहें,जल्दी से तेरी गोद हरी हो।।
कथा होते होते चाँद निकलने का समय हो चुका था,सब छत पर पहुँचे, कुछ ही देर में चाँद निकल आया तो शान्ती और विभावरी ने चाँद की पूजा की ,चाँद को अर्घ्य देने के बाद अपने अपने पतियों के पैर छुए और फिर दोनों ने अपनी अपनी पत्नियों को जल पिलाकर उनका व्रत तुड़वाया।।
फिर सबने साथ बैठकर रात का भोजन किया फिर विभावरी की तीनों ननदे बोली...
माँ औ भाभी आप दोनों आराम करो,अब ये सारा काम हम निपटा लेगें,फिर विभावरी अपने कमरें में आराम करने आ पहुँची और जैसे ही अपने गहने उतारने को हुई तो वैसे ही कमरें में मधुसुदन आ पहुँचा और बोला...
पहने रहो ये सब ,बहुत अच्छी लग रही हो,मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया था।।
शरमाते हुए विभावरी बोली...
क्या लाएं है आप मेरे लिए ?
पहले आँखें बंद करो फिर बताता हूँ,मधुसुदन बोला।।
और फिर विभावरी ने आँखें बंद कर लीं और मधुसुदन ने उसके गले में मंगलसूत्र डाल दिया फिर मधुसुदन बोला....
अब आँखें खोलों...
विभावरी ने आँखें खोली और मंगलसूत्र को देखते ही बोली...
बहुत ही सुन्दर है...
फिर मधुसुदन ने विभावरी को अपने आगोश में ले लिया,आज वो विभावरी को पूरी तरह से अपना बनाना चाहता था और विभावरी भी मधुसुदन में समा जाना चाहती थी,पति पत्नी का रिश्ता क्या होता है अब वो समझ चुकी थी......
फिर उस रात मधुसुदन और विभावरी एक हो गए.....
ऐसे ही दिन गुजर रहे थे और फिर एक दिन विभावरी चक्कर खाकर गिर पड़ी, मधुसुदन घबरा गया,उसने फौरन डॉक्टर को टेलीफोन करके बुलाया...
डाक्टर ने विभावरी का चेकअप किया और मधुसुदन से बोली....
बधाई हो....आप पापा बनने वाले हैं....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....