Sparsh - 4 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | स्पर्श--भाग (४)

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स्पर्श--भाग (४)

मधुसुदन ने विभावरी का सिर सहलाना शुरू किया तो विभावरी सो गई,विभावरी के सो जाने के बाद मधुसुदन भी बिस्तर पर ही उसके बगल में लेट गया,सुबह होने को थी लेकिन आज विभावरी जागी नहीं थी क्योकिं शायद ये सब शराब का असर था,उसी वक्त विभावरी ने करवट ली और मधुसुदन के सीने पर रख दिया,मधुसुदन विभावरी के कोमल स्पर्श से सिहर उठा और उसे अपनी बाँहों में भर लिया और फिर उसने उसके कोमल होठों को अपने होठों से स्पर्श कर लिया....
मधुसुदन की आतुर कामनाएं विभावरी को अपने आगोश में कसती जा रही थीं तभी विभावरी की नींद टूटी और साथ मधुसुदन की खुमारी भी फिर विभावरी बोली....
मैं रातभर आपके बिस्तर पर ही सोई रही,मुझे पता ही नहीं चला,रात को क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं?पार्टी में मेरा सिर चकराने लगा फिर उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं?
मधुसुदन बस विभावरी को ही देखें जा रहा था और उसने मन में सोचा....
एक पल को क्या हो गया था मुझे? मैं और विभावरी को स्पर्श करने जा रहा था...छीः..छीः..मैं अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख पाया,फिर उसने सोचा आखिर मैं एक पुरूष हूँ और फिर विभावरी पराई तो नहीं मेरी पत्नी है,उसे स्पर्श करने में कोई बुराई नहीं लेकिन पता नहीं मेरे स्पर्श करने पर विभावरी क्या प्रतिक्रिया देती ?उसे पति पत्नी के रिश्ते के बारें में कुछ पता भी या नहीं,अच्छा हुआ वो जाग गई,
फिर विभावरी बोली....
आप सच में बहुत अच्छे हैं जो अपने बिस्तर पर मुझे लेटने दिया....
विभावरी की बातें सुनकर मधुसुदन सोचने लगा ,इसके बाप का घर,इसके बाप का बिस्तर और इसके मन में ये हैं ही नहीं कि ये सबकुछ उसका है,मेरा कुछ भी नहीं और एक मैं जो कितना स्वार्थी हूँ अपने स्वार्थवश इससे शादी कर ली।।
तब मधुसुदन ने विभावरी से कहा....
आज से तुम बिस्तर पर ही सोना,फर्श पर नहीं।।
तो क्या आप फर्श पर सोएगें? विभावरी ने पूछा।।
नहीं! मैं भी इसी बिस्तर पर सोऊँगा,मधुसुदन बोला।।
फिर विभावरी कुछ ना बोली....
दिन ऐसे ही बीत रहें थें,अब मधुसुदन विभावरी से इतना ना चिढ़ता,वो कोई गलती करती तो प्यार से समझा देता,अब विभावरी की दादी कभी कभी उसे साइकेट्रिक के पास ले जाती और डाक्टर से कहती कि इसे पति पत्नी के सम्बन्धों के बारें में कुछ कुछ समझाएं।।
डाक्टर बड़े प्यार से विभावरी की बातें सुनती और फिर उसे समझाती,विभावरी भी समझ जाती,डाक्टर की बात सुनकर अब विभावरी हर चीज में निपुण हो रही थी,वो अपनी साज-सज्जा पर भी ध्यान देने लगी थी,मधुसुदन उसे देखता और देखते ही रह जाता लेकिन उसे विभावरी को स्पर्श करने की हिम्मत ना पड़ती,
ऐसे ही देखते ही देखते करवाचौथ आ पहुँचा,तब शान्ती ने विभावरी को एक दिन पहले ही घर बुला लिया,बोली बहु का पहला करवाचौथ है,हमारे घर से ही इस व्रत को करेगी और मधुसुदन विभावरी के संग अपने घर चला आया।।
उस दिन शान्ती ने विभावरी से कहा....
बहु! खाना वाना जल्दी निपटा लो फिर मेंहदी भी तो लगानी है।।
लेकिन मुझे मेंहदी लगानी नहीं आती,विभावरी बोली।।
तब मधुसुदन की छोटी बहन अंजलि बोली....
भाभी! आप चिन्ता मत करो,मै आपकी हथेलियों में मेंहदी रचा दूँगी।।
फिर दिन भर ऐसे ही तैयारियों में बीत गया,शान्ती ने विभावरी के लिए लाल साड़ी और सुहाग का सामान खरीदा फिर रात का खाना निपटने के बाद मेहदीं लगाने की बारी आई.....
विभावरी के दोनों हथेलियों में अंजलि ने सुन्दर सी मेंहदी लगाई,कुछ देर तक सब टी.वी. देखते रहे फिर शान्ती बोली....
चलो भाई! सब अपने अपने कमरें मेँ जाओ सोने का समय हो गया है,सुबह जल्दी उठना होगा,बहु ये रहा सेब और जग भर पानी बारह बजने से पहले ये सेब खा लेना और खूब सारा पानी पी लेना फिर दिनभर पानी नहीं मिलेगा,विभावरी ने घड़ी देखी तो बोली....
अभी तो दस बजे हैं,दो घंटे हैं अभी।।
हाँ! तो जा अपने कमरें में आराम कर ले तब तक,शान्ती बोली।।
और फिर विभावरी अपने कमरें में आ गई तो बाहर ही शान्ती ने मधुसुदन से कहा....
वो तो नादान है भोली है,तू सो मत जाना बारह बजने से पहले उसे सेब खिला देना और ढ़ेर सा पानी पिला देना,तब मधुसुदन बोला...
माँ! मैं अलार्म लगा देता हूँ,उसे उठाकर पानी पिला दूँगा,फिर मधुसुदन अपने बाबूजी से बातें करने में मस्त हो गया,काफी देर बाद वो कमरें में आया अलार्म लगाया और बिस्तर पर आकर लेट गया,तब तक विभावरी सो चुकी थी और आज उसने साडी पहनी थी,क्योकिं वो आज ससुराल में थीं तो उसकी दादी ने समझाया था कि जब ससुराल में रहाकर तो साड़ी पहनाकर।।
मधुसुदन विभावरी के बगल में लेट तो गया लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी,वो बस विभावरी के चेहरे को ही देखें जा रहा था,विभावरी साड़ी में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी,विभावरी के बदन से आती खुशबू उसे बहका रही थी,वो विभावरी को अनी बाँहों में समेटना चाहता था,तभी शायद उसके मन की बात विभावरी ने सुन ली थी और उसने उसकी ओर करवट ली,तभी उसके लम्बे खुले बाल पलटकर विभावरी के चेहरें पर आ गए और फिर विभावरी के चेहरें पड़े बालों को मधुसुदन हटाने लगा।।
चेहरे से बाल हटाने के बाद सामने उसे विभावरी के मद से भरे होंठ दिखें और उसने उन्हें चूम लिया,होठों पर मधुसुदन का स्पर्श पाते ही विभावरी जाग उठी,तब तक मधुसुदन विभावरी को अपने आगोश में ले चुका था,विभावरी ने भी नानुकुर नहीं की और खामोश़ी से मधुसुदन के स्पर्श को महसूस करती रही,तभी एकाएक विभावरी जोर से कराही और उसके आँसू निकल पड़े,विभावरी का कराहना मधुसुदन को ख़ल गया और उसने अपने शरीर में आएं इस बवंडर को वही रोक दिया,उसे लगा शायद विभावरी को उसका स्पर्श अच्छा नहीं लगा।।
तब तक मधुसुदन विभावरी के पास से हट चुका था और करवट लेकर दूसरी ओर मुँह करके लेट चुका था,तभी मधुसुदन से विभावरी बोली.....
सुनिए जी!
हाँ! बोलो,करवट लिए लिए ही मधुसुदन बोला।।
देखिए ना पीठ में दर्द हो रहा है,विभावरी बोली।।
तो मैं क्या करूँ? मधुसुदन खिन्नता से बोला।।
अरे! देखिए ना! बहुत दर्द हो रहा है,विभावरी फिर से बोली।।
तब मधुसुदन उठा और विभावरी की पीठ देखी,उसने देखा कि साड़ी का सेप्टी पिन खुलकर उसकी पीठ पर गहराई में चुभ गया था और खून बह रहा था,तब मधुसुदन को समझ आया कि विभावरी के कराहने की वजह मेरा स्पर्श नहीं ये सेप्टी पिन था फिर मधुसुदन विभावरी पर चिल्लाया.....
जब ये पिन तुम्हें चुभ रहा था तो बोली क्यों नहीं?
मैनें सोचा कहीं आप नाराज हो गए तो,विभावरी बड़े भोलेपन से बोली....
ओहो...तुम सच में बहुत पागल हो और फिर हंँसते हुए मधुसुदन ने विभावरी को अपने गले से लगा लिया,तब तक अलार्म बोल गया....
फिर मधुसुदन ने विभावरी से सेब खाने को और पानी पीने को कहा,उसके बाद उसने उसके घाव पर एण्टीसेप्टिक क्रीम लगाई और उसे अपने सीने से लगा लिया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....