Metro ka mara in Hindi Love Stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | मेट्रो का मारा

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मेट्रो का मारा

-मेट्रो का मारा

यशवंत कोठारी

योजना आयोग के सदस्य ने फ़रमाया है की चार दिवारी को मेट्रो की जरूरत नहीं है ,हमसब भी काफी समय से यहीं कह रहे हैं मगर सारकार सुनती ही नहीं है.सारकार ने अपने फायदे केलिए इस विश्व प्रसिद्द शहर की विरासत को नष्ट कर दिया है.लाखो पर्यटको ने आना बंद कर दिया है.

इस खुबसूरत शहर को किसी की नज़र लग गई है .सुबह सुबह ही कवि कुलशिरोमणि सायंकालीन आचमन का प्रातकालीन सेवन कर बडबडा रहे थे. पूछने पर बताया –मेट्रो ने इस आबाद शहर को बर्बाद कर दिया है . शहर कहीं से भी रहने लायक नहीं रह गया है.शहर में कहीं से घुसो, सब रस्ते बंद, कहीं से निक्लो , यातायात जाम, अतिक्रमण की भेट चढ़ गया है शहर.चांदपोल से बड़ी चोपड जाना मुश्किल ,बड़ी चोपड से छोटी चोपड़ का रास्ता बंद. सड़के ख़राब, रस्ते जाम व्यापर बंद ,राहगीर परेशां , पैदल यात्री के लिए कोई जगह नहीं , यातायात पुलिस के साथ साथ सिविल पुलिस भी आपकी खातिर दारी करने को तेयार, शाम को सब की हिस्सेदारी.सच में शहर का सत्यानाश कर दिया है मेट्रो के इस ढोल धमाके ने, चाँद पोल से चला रही है लेकिन सवारियां नहीं है फिर भी मेट्रो को आगे ले गए , इस पुराने सुंदर शहर का सत्यानाश करने पर उतारू है सरकार .कवि जी अपने मन का गुबार निकल कर चलते बने.कवि तो चले गए हैं मगर एक सवाल छोड़ गए. मैं बेठा ठला चिंतन कर ता रहा.

वास्तव में शहर का कोई धनि धोरी है ही नहीं ,विदेशी मेहमान सरगा सूली जाना चाहते हैं ,नहीं जा सकते , हवामहल, जंतर मन्तर, सिटी पेलेस ,नहीं जा सकते .आमेर जाना मुश्किल ,चारदीवारी को भी जगह चाहिए, मगर सरकार अतिक्रमण ,अवेध कब्जों से बेजार हैं . क्या करे कुछ समझ में नहीं आता. हर तरफ मेट्रो की कृपा, सेकुरिटी वाले तुरंत सिट्टी बजाते हैं , बहस करने पर पुलिस का डर, चालन का डर.

मेट्रो शहर के जी का जंजाल बन कर रह गया है .पता नही विकास की कितनी कीमत देनी पड़ेगी , यह विकास हें या विनाश ? क्या विकास की परिभाषा यही हे की एक तीनसो साल पुराने शहर को खंडहर में बदल दो.मेने विदेशों में भी डाउन टाउन देखे है , हेरिटेज को पूरा बचा कर रखते हें , तीन तीन लेयर की मेट्रो चलती हे लेकिन शहर का सोंदर्य बना रखा है , कहीं से भी आपको नहीं लगता की शहर के साथ छेड़ छाड़ हुई है लेकिन यहाँ पुराना शहर ढूँढना पड़ता है .बंगलोर, लखनऊ , इलाहबाद में भी मेट्रो बन रही हैं ,मगर ऐसा सत्य नाश वहां भी नहीं हो रहा हें, सुनो केरा सुनो क्या मेरी अवाज तुम तक पहुँच ती है , आने वाली पीढियां तुम से पूछेगी जवाब मांगेगी तुम क्या जवाब दोगे?

इस मेट्रो को चांदपोल से आगे शहर की रिंग पर बनाया जा सकता था , मगर कोन सुने, सब को अपने अपने कमीश न की चिंता हें .यातायात वाले शहर को एक प्रयोगशला समझते हें , जग मन किया रास्ता बंद , जब मन किया रास्ता खुला , जब मन किया रूट बदला. चारदीवारी में लाखो लोगों की साँस अटकी रहती हें, घर से गया बच्चा कब आएगा?कायदे कानून केवल गरीब गुरबो के लिए हें सफ़ेद हाथियों के लिए नहीं .रोज काम पर जाने वाले दुखी हें ,रिक्शा बंद , ऑटो वाले नाराज, जनता दुखी पर मेट्रो चलेगी.

मेट्रो से पाइप लाइने टूट जाती है , घरो में पानी नहीं आरहा है बिजली बंद है , मंदिर हटा दिए गए हैं ,ठाकुरजी की सेवा पूजा बंद हैं , ये केसी दूसरी काशी है मेरे भाई .

मेट्रो को शहर की सवारी न आज मिले न कल . पचास साल बाद शायद कुछ हो जाये, तब तक इस मेट्रो को लाल सलाम . ooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo.

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