two brave friends in Hindi Motivational Stories by Akshika Aggarwal books and stories PDF | दो साहसी दोस्त

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दो साहसी दोस्त


दोस्तो के साथ बिता हुआ समय इतना हसीन होता है अगर जीवन संघर्षो से भरा हो तब भी यह आसान लगता है। जी हां जिंदगी में जितना जीवन साथी होना जरूरी होता है उतना ही एक सच्चा दोस्त होना होना भी जीवन मे जरूरी होता है। यह कहानी है दिल्ली से सटे लाड़ पुर गाँव के सोहम और संजय की। सोहम ठाकुर गाँवके अमीर सरपंच का बेटा था और संजय कश्यप गांव के गरीब किसान का बेटा था दोनो का जन्म एक ही दिन एक ही अस्पताल में हुआ था। पर विधि की विडंबना यह थी कि सोहम नेत्र हीन पैदा हुआ था।यह जानकर सोहम के पिता बनवारी लाल के पैरों तले जमीन निकल गयी उस गाँव मे बहोत छोटा सा अस्पताल था इसलिये उसके पिता उसे शहर ले गए दिल्ली आकर उन्होंने बहोत बड़े डॉक्टर को सोहम को दिखाया डॉक्टर ने बताया के सोहम को जब तक उसे कोई नेत्र दान नही करता तब तक वह देख नही पायेगा। भारी मन से सोहम के पिता उसे गाँव वापिस लेकर आ गए। वह ज्यादा तर सोहम को अपने ही साथ रखते थे। उसकी पढ़ाई उन्होंने अपने घर पर ही करवाई उसके लिए खास अध्यापक बुलाया गया जो उसे ब्रेल लीपी की भाषा में पढ़ना सीखाया करता था उसकी सारी सुख सुविधा का ध्यान वह घर पर ही रखते थे क्योंकि दिखाई ना देने की वजह से वो चीजो से इधर उधर टकरा जाता था और उसे चोट लगने का खतरा ज्यादा था।। माँ अच्छा अच्छा खाना बना सोहम को खिलाती पिता भी उसका पूरा ध्यान रखते थे, पर सोहम अब बडा हो रहा था। वह घर की चार दीवारों से बाहर निकलना चाहता था। वही दूसरी और संजय का जीवन गरीबी और गाँव के खेत मे बीतता था,क्योंकि उसके पिता नही थे संजय के जन्म के वक्त टीबी की बीमारी से उनका निधन हो गया था उसकी गरीब मा ने उसे पाला और 14 वर्ष की उम्र में ही उसको अपने साथ खेत ले जाना शुरू कर दिया था ताकि वह खेतो में काम करना सीख सके। वह कड़कती धूप में काम करता वही दूसरी ओर सोहम हमेशा रक्षात्मक माहौल में रहता था। एक दिन सोहम के पिता गाँव के काम से घर के बाहर गए थे और माँ रसोई में खाना बना रही थी। सोहम बिना कुछ कहे घर के बाहर निकल गया काम मे व्यस्त माता पिता को पता ही नही चला सोहम घर पर नही है। इधर सोहम अपनी छड़ी लिए भटकते भटकते संजय के खेतों में आ गया था संजय वहां काम कर रहा था के उसके खेत मे एक पागल सांड घुस आया सब डर कर इधर उधर भाग रहे थे कि अचानक सांड की नजर लाल रँग की टी शर्ट पहने सोहम पर गयी वह उसकी तरफ बढ़ने लगा खतरे से अनजान सोहम शोर सुन अचरज में पड़ गया कि सब। चिंख क्यों रहे है? सांड बस उसे टक्कर मारने ही वाला था कि तभी संजय ने जोर से उसे एक तरफ को धक्का देकर खुद मौत के मुह में जा पहोंचा। सांड ने अपने पैरो तले संजय के पैरों को रौंद डाला था। सब गाँव वालों ने सरपंच को इस वाक्या की खबर दी वह झट से वह पहोंच गए थे वहाँ और वहाँ जाकर देखा तो सोहम एक किनारे पर गिरा हुआ था गाँव वाले उसे संभाल रहे थे। ओर संजय एक तरफ लेटा हुआ था और उसकी माँ उसके पास बैठी रो रही थी। सरपंच ने दोनों बच्चों कोअपने घर ले जाने को कहा जहां वैद जी को भी बुलाया गया। वैद जी ने सोहम की मरहम पट्टी की और संजय की टांगो की देखकर बताया की अब संजय कभी नही चल पाएगा उसके पैर खराब हो चुके थे। उसकी मां के ऊपर पैरों तले जमीन निकल गईं सिर दुःखो का पहाड़ टूट था। अब उसके पिता ने निश्चय लिया के वह दोनो बच्चो के जीवन का ख्याल रखेंगे और उनका भविष्य बनायेगे। उन्होने दोनो का ख्याल रखा उन्हें पढ़ाने लगे लिखाने लगे। उसकी माँ को अपनी जमीन पर खेती करने के काम पर रख लिया था। जो सुविधाओं का लाभ वह सोहम देते वो ही सब संजय को भी मिलता, सोहम को संजय के रूप में एक बहोत अच्छा दोस्त मिल गया था। वह दोनो साथ खेलते थे खाना खाते थे साथ सोते उठते और बैठते थे दोनों अपनी अपनी कठीन परिस्थितियों का एक साथ सामना करते अब सोहम संजय के सहारे बाहर भी निकलता था संजय उसे बैसाखी के सहारे चल अपने कंधे पर हाथ रख पूरे गांव में घुमाता था दोनो की जिंदगी अब एक हो चुकी थी वह अपना सुख दुःख साथ बाटते थे। दोनो के परिवार अब एक हो चुके थे। दोनो की माँएं दोनो को अच्छा अच्छा खाना खिलाती थी और पिता जीने के नए सलिखे सिखाया करते थे । दोनो की जिंदगी अच्छी गुजार रहे थे दोनो बारवी की परीक्षा पार कर आगे पढ़ने की तैयारी कर रहे थे ।कि एक विकलांग बच्चों की सेवी संस्था उनके गाँव आई उन्होंने उन्हें बताया कि संजय का इलाज जयपुर शहर में संभव है और वह विकलांग के नकली पैरो के सहारे चल सकता है। तो क्या था सोहम ,संजय और उनकी माँ खुशी का ठिकाना ना था। सोहम के पिता भी उसे अपना बेटा मान चुके पिता ने संजय को शहर भेजने का बंदोबस्त किया। संजय सोहम को छोड़कर नही जाना चाहता था। दोनों को जुदा होने का गम सता रहा था। दोनो ने एक दूसरे से जुदा होने का सोच भी नही पा रहे थे। दोनों ने अगले दिन उन दोनों ने सोहम के पिता से बात की वो बोले" पिता जी आपने बच्चपन से हमे अपनी छत्र छाया में रखा हमारी जिंदगी में हमारी रक्षा की हमारे लिए आपका प्रेम व आशीर्वाद बहोत अनमोल है। परंतु हम दोनों बचपन के साथी है। हम हमेशा एक दूसरे का साया बन कर रहे है। एक दूसरे के बिना नही रह सकते कृपया हम दोनों को एक साथ उस संस्था के साथ जयपुर जाने की अनुमति दे।" पहले तो सोहम के पिता नही माने क्योंकि उन्होंने सोहम को कभी अपने आप से दूर नही रखा था उन्होंने पर माँ के समझा ने के बाद कि हो सकता है सोहम की भी आंखो का इलाज हो जाये? इस भरोसे पर भारी मन से उसे भी जयपुर भेज दिया। अगली सुबह वह दोनो जयपुर के लिए निकल गए वह दोनो बस में अपने उज्ज्वल भविष्य की कामना कर रहे थेऔर साथ बेहद खुश
भी थे।कि रास्ते में एक अनहोनी घट गई। उस बस का एक्सीडेंट हो गया यह बात आग की तरह सब न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित होने लगी। सभी घायलों को अस्पताल ले जाया गया सोहम का परिवार औऱ संजय की माँ तुरंत अस्पताल गए। सोहम जब होश में आया तो संजय संजय बोलने लगा उसके पास उसका परिवार और कुछ डॉक्टर खड़े संजय का नाम सुनते ही सब परिवार वाले जोर-जोर से रोने लगे। सोहम घबरा गया उसने अपने पिता से संजय के बारे में पूछा पिता रोते हुए बोले"जब तुम दोनों को यहाँ लाया गया तो संजय की हालत गंभीर थी। बहोत कोशिश के बाद भी डॉक्टर साहब उसे नही बचा पाए। और जाते जाते वो तुम्हें अपनी आँखें दे गया।" यह सुनते ही सोहम टूट गया।औऱ वह जीना नहीं चाहता था संजय की माँ ने सोहम के आँसू पूछे और बोली "हमारा संजय कहीं नही गया है। वह हम सबके दिल मे जिंदा है। और उसकी आंखें तुम्हारे जरिए अब दुनिया देखेगी।
यह सुनकर सोहम को थोड़ा धीरज मिला उसने आंसू पूछे और पढ लिखकर बड़ा अफसर बने की ठानी ताकि वह अपना और संजय का सपना पूरा कर सके एक दिन पढ़ लिख कर इतना बड़ा होगया की छोटे से गाँव के लड़के ने दिल्ली में संजय के नाम की अपनी कंपनी खोली और वह अपनी कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बन गया
आज वह दिल्ली की बहोत बड़ी कंपनी का मालिक है। दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहता है संजय को अपने दिल मे लिये जी रहा है। इस बात को हमेशा याद रखता है कि किस तरह संजय ने दो बार उसे जीवन दान दिया था। इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है दिव्यांग हमेशा दिल से सोचते है और अपने दोस्तो के लिए जान भी हाजिर रखते है। बस जरूरत है तो बस उनकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा ने की।