Hulchal - 1 in Hindi Drama by Darshika Humor books and stories PDF | हलचल - पार्ट 1

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हलचल - पार्ट 1

"तुम से वो थी , आज वो है अजनबी
है लिखी जा चुकी बात ये है अनकही,

दर्द से अलग हुई, खौंफ में दफन हुई,
प्यार से रंगी जो थी खून से अलग हुई,

बात वो हो चुकी इस जनम उस जनम,
लौट कर आ रही चाह ये फिर इधर,

रोक, रोक ना सके हुए इस दीदार को,
अब जीतने आ रहे पहले हुई हार को,

दो अलग जो हुए उनके मिलने को लिखी,
तकदीर की रंगते उनके हाथ अब छपी....।"

यह कविता एक कहानी को दर्शाती है जो इसके अगले भागो में दिखाई देगी, ये कहानी मिलने और अलग होने की है।

पार्ट 1

PROMO:-

यह कहानी है अद्वय और आकृति की और उनके मिलने और दोस्ती की। तो आइए मिलते है अद्वय से और उसके परिवार से :-

सबसे पहले मिलते है अद्वय मित्तल से उम्र 16 साल, रंग सामान्य, बाल भूरे और छोटे, आंखे काली और लंबाई ऊँची
बिल्कुल इनके पिता की तरह जिनका नाम है नरेंद्र मित्तल
एक जाने माने बिजनेसमैन और अमीर इंसान पर साथ ही साथ दरियादिल और अच्छे जो एक आलीशान बंगले में रहते है, इसके अलावा परिवार के और सदस्यों में एक है निर्मला जो 35 साल की औरत है, पतली लम्बी और समझदार है इस घर की अच्छे से देखभाल भी करती है और ये अद्वय की बुआ और नरेंद्र की बहन है और इस परिवार में शामिल है एक छोटा मेहमान, जी हाँ अद्वय का छोटा भाई आरव, जिसे अद्वय बहुत प्यार करता है। तो दृश्य शुरू होता है कुछ इस तरह:-
(मित्तल मेंशन CITY CENTER ROAD, CHANDERI BAGH )

सुबह सुबह का दृश्य पंछियों का कलरव और सड़क पर चलती कारो की आवाज़ बादलों में चलती ठंडी हवा और धीरे धीरे फैलता प्रकाश और इन सबके बीच एक घर का दृश्य घर जो घर लगता है, जहां के लोग खुशी से रहते तो है पर अंदर से एक गम भी झेलते है, हाँ उसी घर में आवाज लगाता अधेड़ उम्र का व्यक्ति जो पहले अपनी घड़ी की ओर देख रहा है और फिर ऊपर के कमरे की ओर देखते हुए आवाज़ लगाते हुए कहा रहा है "आदि - आरू कहां रह गए हो, टाइम हो रहा है बेटा जल्दी आओ।" यह कहने के बाद वो व्यक्ति सोफे पर बैठ जाता है। तभी दूसरी और से निर्मला आरती की थाल लिए उस आदमी की ओर बढ़ती है और अपने थाल से आरती और प्रसाद देते हुए कहती है सात बज गए पर ये दोनों भाई अभी तक स्कूल जाने के लिए तैयार नहीं हुए, भैया आज तो आपकी मीटिंग है ना आप काम पर जाओ मै इन्हे देखती हूं। प्रसाद खाकर वो व्यक्ति यानी नरेंद्र गंभीरता से बोलता
है कि "बहना आज तो मैं ही उन दोनों को स्कूल छोड़कर आऊंगा, तुम्हे पता है ना कि आज शारदा की बरसी है वो हमेशा चाहती थी की मैं और वो दोनों अपने बच्चो के साथ रहे,आज वो तो नहीं है पर मैं तो हूँ ना, आज का दिन मेरे लिए स्पेशल है क्योंकि मेरे बच्चे ही है जो मुझे इस दर्द से बाहर निकलने का मौका देते है। अब तुम ही बताओ कि क्या एक दिन मैं अपने लिए नहीं जी सकता क्या?"😟
उनकी बात सुनकर निर्मला बोली " भैया कब तक आप 7 साल पुरानी बातो को लेकर जीते रहोगे, सच तो यही है कि भाभी इस दुनिया में नहीं है। आरव को जन्म देते ही वो गुज़र गई थी, अपने बच्चो से इतना जुड़ाव ठीक नहीं है, वरना वो आपके ऊपर ही डिपेंड हो जाएंगे। आज तो हम है
आगे भी होंगे पर पूरी जिंदगी तो हम उनका हाथ पकड़कर नहीं चल सकते ना, आप प्लीज़ उन्हें इतना ज्यादा लाड प्यार ना दे की वो बिगड़ जाए। ये मेरी सलाह है आप इसे इग्नोर मत करिए क्योंकि इसी पर बच्चो का फ्यूचर टिका है!"😳
अपने माथे पर हाथ फेरकर बात को काटते और अनदेखा हुए नरेंद्र बोले कि "छोड़ो ना ये बाते, अभी बहुत लेट हो रहा है तुम जाकर देखो कि बच्चे तैयार हुए की नहीं?"
निर्मला ने इसके आगे कुछ नहीं कहा और ऊपर के कमरे की ओर चल पड़ी।
TO BE CONTINUED

🌌WRITTEN BY🌌

DARSHIKA★