Ant -- last part in Hindi Moral Stories by निशा शर्मा books and stories PDF | अंत... एक नई शुरुआत - अंतिम भाग

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अंत... एक नई शुरुआत - अंतिम भाग

आज ईश्वर की कृपा से मेरे पास सबकुछ है । एक बहुत अच्छा और अपनी माँ को बहुत प्यार करने वाला बेटा, सबका सम्मान करने वाली मेरी लाडली बहू और हाँ समीर की माँ भी आज मेरे हर एक फैसले में मेरा साथ देती हैं जो कि अब मेरी सासू माँ बन चुकी हैं और सनी की नये ज़माने वाली भाषा में इस वर्ल्ड की बैस्ट दादी माँ !

उस दिन मैं कितनी बड़ी गलती करने जा रही थी, इस बात का अंदाजा मुझे आज और भी ज्यादा होता है जब मैं मेरी खुशियों को और मेरी वजह से खुश होते हुए लोगों को मेरे चारों तरफ़ देखती हूँ और आज मैं यही बात अपने जैसे और लोगों को भी समझाना चाहती हूँ कि हमें अपनी परेशानियों से डरना नहीं है बल्कि उनका डटकर सामना करना है । संघर्षों से घबराकर हमें सबकुछ खत्म करने की दिशा में अग्रसर होते हुए खुद की ज़िंदगी का अंत नहीं करना है बल्कि हमें इस तरह की परिस्थितियों से हमारे अंदर उपजने वाली नकारात्मकता का अंत करना है और यही अंत हमें एक नई शुरुआत देगा ।

आज मैं अपने बेटे सनी व अपनी बहू शिखा के योगदान तथा अपनी सासू माँ के आशीर्वाद से एक संस्था चला रही हूँ जो कि एक हेल्पलाइन नंबर के साथ मैंने शुरु की है जिसमें मैं ज़िंदगी की तमाम परेशानियों का बस एक ही विकल्प आत्महत्या को मानने वालों को पहले फोन पर ही समझाती हूँ और फिर उन्हें यहाँ पर अपने सामने बिठाकर उनकी पूरी बात सुनने के बाद उन्हें उचित सलाह तथा मदद देने की पूरी कोशिश करती हूँ । इस नेक काम में मेरी बहू शिखा जो कि एक काउंसलर है , वो भी मेरा पूरा सहयोग करती है । मेरी ये एक छोटी सी कोशिश अगर किसी की ईश्वर द्वारा दी गई इस बेशकीमती जान को बचाकर उसे कोई उचित मार्गदर्शन दे सके इससे ज्यादा सुकून भला मुझे और किस काम में मिल सकता है ! हाँ रिटायरमेंट के बाद मैं शाम को दो घंटे अपने ही पुराने घर में भी जाती हूँ जो घर मेरी सासू माँ ने सनी के कहने पर स्वेच्छा से एक अनाथ बच्चों की संस्था को दान कर दिया है , जहाँ पर अब एक अनाथाश्रम बन चुका है । मैं वहाँ बस उन्हीं बच्चों को पढ़ाने जाती हूँ मगर रविवार को मैं वहाँ से अवकाश लेती हूँ और फिर प्रत्येक रविवार को मैं स्मिता मैम से मिलने जाती हूँ जो कि अब काफी वृद्ध हो चुकी हैं । पूजा की बेटी एमबीबीएस कर रही है और रोमा अब शायद घर बसाने के बारे में सोच रही है , भगवान ने चाहा तो रिटायरमेंट से पहले तो वो शादी कर ही लेगी , स्कूल में उसकी सारी अध्यापिका - मित्र उसे यही कहकर छेड़ती हैं । सासू माँ अब ज्यादा चलफिर नहीं पाती हैं और हाँ अब वो बोलती भी बहुत कम ही हैं बस अपने नये फोन पर जो कि उन्हें सनी ने अपने प्रमोशन की खुशी में लाकर दिया था वो बस उस पर ही सारा दिन ब्रह्मकुमारी के वीडियोज देखती व सुनती रहती हैं । हाँ सबसे अहम बात कि अब मैं सबके जन्मदिन की पार्टी में भी जाने लगी हूँ और इसका श्रेय भी मेरी लाडली बहू जो कि सही मायनों में मेरी बेटी है उसी को जाता है । मेरे इस डर को निकालने का काम उसी नें इस घर में आकर सबसे पहले अपना जन्मदिन धूमधाम से मनाकर किया था और फिर उसके बाद तो सनी के साथ ही साथ वो मेरा जन्मदिन भी हर साल बड़ी ही धूमधाम से मनाती है ।

"माँ ! बाहर दो महिलाएं खड़ी हैं वो शायद आपसे ही मिलना चाहती हैं ! मैंने उनसे कहा भी कि वो शिखा से बात कर सकती हैं पर उनका कहना है कि उन्हें उसी महिला से मिलना है जिनसे कि उनकी फोन पर बात हुई थी । ", सनी की इस बात को सुनते ही मैं समझ गई कि ये वो ही माँ - बेटी हैं जिनसे कि मेरी कल देर रात में बात हुई थी । फिर मैंने अपने हाथों को धोकर खाने की प्लेट को ढककर एक तरफ़ रख दिया और मैं सीधे अपने ही नये घर में बने हुए ऑफिस की ओर बढ़ गई ।

अरे, हाँ एक मिनट मैं ये तो बताना ही भूल गई कि मेरी इस छोटी सी संस्था का नाम 'अंत...एक नई शुरुआत' है !

समाप्त ! !

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐