Udaan - 13 in Hindi Fiction Stories by ArUu books and stories PDF | उड़ान - 13

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उड़ान - 13

काव्या कॉलेज गेट के पास बैठे रो रही थी जबकि बारिश बहुत ही तेज हो रही थी। पर वह आज बहुत दुःखी थी...एक तो वह रुद्र को इतना चाहती थी और दूसरा उसकी फीलिंग्स की कद्र करने की बजाय सबके सामने उसे नीचा दिखाया। उसने मन में ठान लिया की वह अब रुद्र से कभी बात नहीं करेगी। यही फैसला ले वह थोड़ा खुद को शांत करती है। तभी उसका ध्यान जाता है कि इतनी बारिश में भी उसके कपड़े गिले नहीं हुए। वह कुछ सोच के उपर देखती है तो पाती है की अखिल उसके पास छाता लिए खड़ा है। वह उसे देख चौक जाती है। उसे अपने दुःख में ध्यान ही नहीं रहा की अखिल कब से बिना कुछ बोले उसके पास खड़ा है। वह खुद को सहज करती है और अखिल से पूछती है "अखिल तुम अभी तक घर नहीं गए"
अखिल ने उसकी आँशुओ से गीली आँखों में झांक कर देखा और बोला "कब से रोये जा रही हो... तुम्हे इस हाल में अकेला छोड़ कर कैसे जाता... पुरा कॉलेज खाली हो गया... अब रोना बंद करो और में तुम्हें घर छोड़ देता हू... चलो तुम यहाँ खड़ी रहना में अपनी बाइक लेकर आता हूँ। " मुस्कुराते हुए अखिल ने कहा और वह अपनी बाइक लेने चला गया।
काव्या उसे देख सोचने लगी "दोनों दोस्त है... पर कितना फर्क है दोनों में... एक को दुसरो की तकलीफ से कितना फर्क पड़ता है और दूसरे को इसका अहसास तक नहीं है... पता नहीं फिर भी अच्छी कैसे जमती है दोनों की।"
तभी अखिल आता है काव्या छाता लिए बाइक पर बैठे जाती है ताकि दोनों भीगे नहीं। अखिल काव्या को उसके घर के बाहर छोड़ देता है और उसे अपना ख्याल रखने को कह वहा से विदा लेता है।
**"*******"****
काव्या अपने रूम में जा कर ड्रेस चेंज कर लेती है और बालकनी में आ खड़ी हो जाती है। बालकनी से सड़क के उस पार पड़ रहे गार्डन पर उसकी नज़र जा टिकती है। बारिश की वजह से आज पूरा गार्डन सुनसान था। अगर रोज़ का कोई दिन होता तो उसे गार्डन का यू सुनसान होना अच्छा नहीं लगता पर आज उसके दिल में इतनी खामोशी थी कि वह घर से निकल कर सीधा गार्डन के कोने मे रखी उस बेंच पर जा कर बैठे गयी। जहा वह अक्सर उस बुजुर्ग जोड़े को बैठे देखा करती है।
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गार्डन में जा काव्या घंटों तक बारिश में भीगती रही। उसे वक़्त का ख्याल ही ना रहा जब शाम ढल आयी तो उसे अंदाजा हुआ की वह काफी टाइम से बारिश में भीग रही है। वह जल्दी से उठ कर कमरे की तरफ गयी। अपने घर काम करने वाली दीदी को बता दिया कि वह अब सोएगी उसे परेशान ना करे। काम करने वाली दीदी रीता से उसकी अच्छी बनती थी। वैसे तो रीता उससे उम्र में काफी बड़ी थी। पर वह उसे रीता दीदी ही कहती थी। रीता भी बरसों से काव्या के यहाँ काम कर रही थी। काव्या की माँ 7वर्ष की उम्र में ही उसे छोड़ कर चली गयी थी... उसने काव्या के पिता से तलाक ले लिया था। इतने सालों में उसने कभी काव्या से मिलने की कोशिश नहीं की। दोनों के बीच तलाक की वजह तो काव्या नहीं जानती थी पर वह अपने पापा से इतना घुल मिल नहीं पायी थी। पापा काम के चक्कर में कभी उसे वक़्त नहीं दे पाए तो रीता ने ही उसे संभाल। रीता अपनी बच्ची की तरह काव्या से प्यार करती थी। हर रोज़ वह काव्या का पूरा ध्यान रखती पर आज उसे कुछ जरूरी काम आन पड़ा इस चक्कर में उसे काव्या का ध्यान नहीं रहा।
वह काव्या को भीगी देख डर सी गयी। वह उसके पास जा कर कुछ पूछती उससे पहले ही काव्या अपने रूम में चली गयी। काव्या को अहसास हुआ जैसे उसका शरीर तप रहा है। वह बहुत थक गयी थी। जल्दी से ड्रेस चेंज कर वह सो गयी

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रात को 9 बजे वह उठी। उसे ख्याल आया की रीता दीदी खाने पर उसकी राह देख रही होगी। तभी उसने अपने बेड के पास रखी टेबल पर देखा तो वहा खाने की प्लेट पड़ी थी जिसमे उसकी मनपसंद सब्जी और फास्ट फूड भी था। वह हल्का सा मुस्कुराई। पर अगले ही पल भारी मन से बालकनी में चली गयी। उसे महसूस हुआ जैसे वह बुखार से जल रही है। बेमन से बालकनी में खड़ी हो गयी। और सड़क पर आते जाते लोगों को देखने लगी। गले में तेज दर्द हो रहा था। एक तो वह इतना रोई ऊपर से इतनी देर बारिश में भीगने की वजह से उसके गले में दर्द उठ आया। वह रीता दीदी को आवाज़ लगाने लगी ताकि वह उसके लिए काढा बना ले आये पर उसने आवाज़ दी तो उसे लगा उसकी आवाज़ अपने कमरे से ही बाहर नहीं जाएगी। बारिश रुक चुकी थी। काव्या ने पाया की उसकी आवाज़ दर्द की वजह से थोड़ी बदल गयी है। नीचे जाने का मन नहीं था तो वह बालकनी में खड़ी रही।कुछ देर नजर घुमाई तो उसकी नजर उसी बेंच पर जा टिकी जहा वह दिन में बारिश में भीगती रही। वहा कोई शक्स बैठा था।
"इतनी रात गए कौन हो सकता है... नीचे जा के देखना चाहिए"
तभी मन के दूसरे कोने से आवाज़ आयी "छोड़ ना काव्या... क्या करेगी देख के... कोई भी हो तुझे क्या"
वह सोचने लगी की" इतनी रात में कोई शक्स वहा है... हो सकता है उसे भी कोई बहुत गहरा घाव लगा हो... "
यही सोच वह नीचे चल दी।नीचे जाने से पहले उसने अपने चेहरे को ढक दिया था ताकि कोई रीता तक उसकी शिकायत ना पहुँचा दे। उसे रात को अकेले घर से बाहर जाना मना था। तो उसने अपने चेहरे को अच्छे से ढक लिया।
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गार्डन में जा वह बेंच के पास खड़ी हुई। गार्डन के उस हिस्से में अंधेरा था। काव्या ने एक बार देखा तो उसने पाया की बेंच पर बैठा शक्स कोई लड़का है। वह उससे थोड़ी दूर बना बेंच के दूसरे शिरे पर बैठे गयी।
उसने पाया की वह लड़का बहुत उदास है। उसने बिना लड़के की तरफ देखे पूछा" बहुत उदास हो... क्या बात है... कुछ ऐसा हुआ जिन्दगी में जो इतना दर्द दे रहा तुम्हें? काव्या ने बड़े ही विनम्र और अपनेपन से भरे शब्दों में उसे कहा।
काव्या जानती थी की वह लड़का भी किसी बुरे दौर से गुजर रहा है इसलिए उसने अपनेपन से पूछा।
काव्या के पूछने पर वह शक्स टूट सा गया... जितना सैलाब उसने अपने अंदर छुपा रखा था वह सब बाहर आने को आतुर था।
उसने काव्या की तरफ देखे बिना बोला
"तुम्हें पता है ये ऊपर वाला भी जी भर कर मेरी परिक्षा ले रहा... कोई कसर नहीं छोड़ता मेरा दिल दुखाने की..." इतना कह वह शक्स रुका।
काव्या को लगा वह उस शक्स को जानती है... ये आवाज़ तो सुनी सुनी लग रही... अरे ये तो रुद्र की आवाज़ है!
उसने उस शक्स की तरफ देखा... अंधेरा घना था पर काव्या ने हल्की सी रोशनी में रुद्र को पहचान लिया था। वह सोच में पड़ गयी की क्या रुद्र ने उसे पहचान लिया था।
पर तभी उसे ख्याल आया की उसने अपने चेहरे को ढक रखा है और दूसरी तरफ इतना अंधेरा है तो पहचान जाने का तो सवाल ही नहीं उठता। पर क्या वह मेरी आवाज़ भी नहीं पहचान रहा... ओह हाँ मेरा तो गला खराब है और आवाज़ भी बदल गयी है। वह मन ही मन खुश हो रही थी।

उसने दोबारा रुद्र से कहा"देखो इस तरह सारा दुःख अपने तक मत रखो... तुम्हें पता है न दर्द बाटने से कम होते है... चलो अब बताओ क्या हुआ? काव्या ने बड़े प्यार से रुद्र से कहा।
रुद्र ने गीली आँखों से काव्या को देखा... इस बात से अंजान की वह जिस लड़की से बात कर रहा है वह काव्या ही है।

उसने रुआसी आवाज़ में कहा "तुम्हें पता है मैं ऊपर वाले का सबसे फेवरेट खिलौना हूँ। या शायद मुझे बनाया ही खेलने के लिए है... जब में पैदा हुआ ना... उसी वक़्त मेरी माँ चल बसी... पापा के जानकार पण्डित थे उन्होंने बताया की मैं बहुत ही अनलक्की हूँ पैदा होते ही माँ को खा गया... उन्होंने बताया कि मैं ऐसे नक्षत्र में पैदा हुआ हूँ जो परिवार के लिए बहुत नुकसानदायक होते है। पर पापा ने कभी इस बात को नहीं माना। उन्होंने बड़े प्यार से मुझे बड़ा किया। कभी माँ की कमी नही खलने दी। उस पंडित ने ये भी बोला था की 22 साल का होने पर मेरे नक्षत्र मेरे पापा के लिए मुसीबत बन जायेंगे। पर उन्होंने कभी मुझे खुद से दूर नहीं किया। हम दोनों बड़े खुश रह रहे थे। पापा बहुत प्यार करते थे मुझसे। मेरा कॉलेज में एडमिशन हुआ तो पापा बहुत खुश थे। यही कोई 6 माह बाद मेरे चाचा मुझे लेने आये। बोले बेटा 2-4दिन मेरे पास रह लेना फिर वापस आ जाना। पापा ने भी हँस के इज़ाज़त दे दी। चाचा के घर के पास मेरे बचपन का दोस्त अखिल रहता था बचपन से मै चाचा के वहाँ आता जाता रहता तो अखिल मेरा अच्छा दोस्त बन गया। उसने मुझे अपने कॉलेज चलने को कहा। मैंने उसे बहुत समझाया की मै वहाँ पड़ता नहीं तो कैसे चलु पर अखिल जबरदस्ती अपने कॉलेज ले गया। वहाँ मै एक लड़की से मिला... यकीन मानो उसे जब पहली बार देखा... मै उसे बस देखता रह गया। मुझे वह बहुत अच्छी लगी... बहुत ज्यादा अच्छी। मै दोबारा उससे मिलना चाहता था। रात भर में उसकी मासुमियत पर हँसता रहा। मै चाहता था जल्दी से सुबह हो और मै अखिल को बता पाऊ की मै फिर उसके कॉलेज चलूँगा। पर तुम्हें पता है... जब सुबह हुई ना, तो वह बहुत डरावनी थी। दिल्ली से फोन आया की पापा इस दुनिया में नहीं रहे। मै डर गया था.., बहुत ज्यादा डर गया था... मेरे लिए यकीन कर पाना आसान नहीं हुआ। चाचा भी कुछ नहीं बोले पर मैने सुना वो चाची से कह रहे थे की रुद्र बिटवा के ग्रह नक्षत्र भईया को हमसे छीन ले गए
तुम यकीन मानों उस दिन मुझे लगा की में सच में अपने माँ बाबा का कातिल हूँ। दिल्ली जा के बाबा का अंतिम संस्कार कर दिया। वहाँ दिल्ली मे बाबा का बिजनस था पर संभालने वाला कोई नहीं था तो चाचा ने मुझे अपने साथ चलने को कहा। मै बहुत टूट गया था... अकेले रहना नहीं चाहता था तो यहाँ चाचा के पास चला आया और यही पढाई शुरू कर दी।चाचा वैसे भी काम के सिलसिले में घर कम ही रहते है तो मेरा यहाँ होना चाची और छोटी को राहत देता है। पर मै बहुत टूट सा गया हूँ बाबा के जाने के बाद...हँसना तक भूल गया पर तुम जानती हो मेरी कॉलेज की वो लड़की जिससे मै उस दिन मिला और दोबारा मिलना चाहता था वह अब मेरे सामने थी... पर मै उससे दूर भागना चाहता था। मै नहीं चाहता की मै उसकी मौत की वजह बन जाऊ। बहुत चाहता हूँ मै उसे... अपनी जान से ज्यादा.., पर वो पागल समझती नहीं... इतना कोशिश करता हूँ की दूर रह लु उससे पर वह मेरी तरफ खींची चली आती है। मै ये भी जानता हूँ की वो बहुत मोहब्बत करती है मुझसे पर मै अब उसे पा कर उसे खोना नहीं चाहता।"
इतना कह रुद्र अपने आँसू नहीं रोक पाया। काव्या ने जैसे ही उसके कंधे पर हाथ रखा... वह उसके हाथ को थाम रोने लगा। काव्या खुश थी... बहुत खुश पर वह रुद्र को ऐसे दुःखी देख खुद भी रोने लगी। थोड़ी देर रुद्र ने अपने आप को संभाल कर बोला
"आज मैने बहुत दिल दुखाया है उसका... जान बुझ कर... तुम्हें पता है कितना दर्द होता है जब आप जान बुझ कर अपने प्यार को तकलीफ पहुँचाते है... उसे दुःख देते हुए मेरी जान जा रही थी।पता था वो बहुत दुःखी होगी तभी मेने अखिल को उसको घर छोडने को कह गया। पागल है वो में जानता हूँ... अभी भी रो रही होगी वो...।
रुद्र ने जैसे ही अपनी बात खत्म की काव्या ने उसे देखा... बहुत दर्द था रुद्र के चेहरे पर। वह दर्द काव्या साफ महसूस कर सकती थी। वो चाहती कि अभी रुद्र को कस कर गले लगा ले। उसने सोचा नहीं था की रुद्र इज़हार ऐ मोहब्बत इस तरह से करेगा। वह भीगी आँखों से उसे देखे जा रही थी।
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कितना दर्द छुपाया रुद्र ने... कितना गलत सोचती रही मैं रुद्र के बारे में। आज उसे अपनी पसंद पर नाज़ हो रहा था। पर उसे संभाल न पा रही थी इसलिए अफसोस भी हो रहा था।
उसने रुद्र को घर जाने के लिए कहा।
रुद्र भी अपनी बात किसी को बता काफी हल्का महसूस कर रहा था। उसने काव्या को नही पहचाना था।

काव्या ने उसे जाते जाते कहा कि "तुम्हें पता है रुद्र भगवान जब का रास्ता बन्द करता है ना तो उसी वक़्त दूसरा खोल भी देता है। गम देता है ना तो खुशियाँ बेहिसाब देता है। तुम देखना एक दिन सब ठीक हो जायेगा। अच्छे से सो जाना घर जा कर। गुड नाइट।
काव्या के इन शब्दों ने रुद्र को बहुत हिम्मत दी। वह अपने घर की तरफ चल दिया।
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काव्या आज बहुत खुश थी इतने दिनों बाद वो आज सुकून की नींद सोयी।
और सुबह कुछ सोच वह पीहू के घर चल दी।
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