वसुधा की व्यस्तता बढ़ती ही जा रही थी। अरुण जैसे जैसे बड़ा हो रहा था उसकी शरारतें भी बढ़ती जा रही थी।
वसुधा के घर ना रहने पर तो रागिनी और जयंती उसे संभाल लेती थी, पर वापस घर आने पर वो किसी के पास नहीं रहता। बस उसे वसु के साथ ही रहना होता। थकी होने के बावजूद वसु को उसे संभालना ही होता।
अरुण उसकी प्राथमिकता था। उसे वो किसी भी कीमत पर नजर अंदाज नहीं कर सकती थी। वसु अरुण में ही व्यस्त हो जाती थी। विमल जब भी मार्केट चलने या पिक्चर चलने को बोलता वो मना करती तो विमल टिकटे बेकार होने का बोलता। तो वसुधा कहती, "प्लीज विमल तुम आज रागिनी के साथ चले जाओ। अगली बार मैं जरूर चलने की कोशिश करूंगी।"
अनमने पन में ही विमल रागिनी के साथ जाता। इन सब के साथ ही बढ़ती जा रही थी उसके और विमल के बीच दूरी।
वसुधा को अंदाजा भी नहीं था कि उसकी जिंदगी में क्या तूफान आने वाला है। जब रागिनी पिक्चर जाने के लिए तैयार हो कर निकली तो विमल देखता रह गया। उसे आज पता नहीं क्या बात थी की वो बिल्कुल अलग नजर आ रही थी। मझोले खुले बाल बार बार उड़ कर गालों पर आ रहे थे। जिन्हें बार बार रागिनी पीछे कर रही थी। हल्के नीले सूट में उसकी खूबसूरती बिलकुल अलग ही निखरी निखरी नजर आ रही थी। विमल बस देखता ही रह गया। संकोची तो वो शुरू से ही थी। अब जब दीदी ने कहा था साथ जाने को तो जाना ही था। पहले तो बस मजबूरी में विमल रागिनी को साथ ले कर गया। पर अब उसे अच्छा लग रहा था रागिनी के साथ जाने में। एक ताजगी थी रागिनी में जो विमल को आकर्षित कर रही थी। दोनो ने फिल्म देखी। उसके बाद विमल ने कहा,"रागिनी अब क्या परेशान होगी घर चल के खाना बनाने में। चलो हम तुम खा लेते है और वसु और जयंती के लिए पैक करवा लेंगे।"
रागिनी मना ही करती रही की, कोई परेशानी नहीं है वो बना लेगी खाना। पर विमल नहीं माना। खा कर और बाकी सभी के लिए पैक करवा कर घर चले आए।
विमल को खुश देख वसु को तसल्ली हुई की चलो उसके नही जाने से वो नाराज़ तो नहीं हुआ।
अब पहले की तरह विमल ने वसु से साथ चलने की जिद्द करना छोड़ दिया था। जो भी कोई काम होता वो रागिनी को साथ ले कर चला जाता। उसे अब रागिनी का साथ भाने लगा था। वसु को भी तसल्ली थी की विमल अब उसकी व्यस्तता को समझ रहा है। इस कारण उससे साथ चलने को नहीं कहता। पर विमल के मन के अंदर क्या चल रहा है इसका जरा भी अनुमान वसु को नही था।
एक दिन विमल कॉलेज गया था। वसुधा की भी सुबह की ही शिफ्ट थी। पर एक सहकर्मी के बच्चे की तबीयत खराब थी तो उसने अपनी जगह वसु को नाइट शिफ्ट करने को राजी कर लिया। वसुधा वापस घर चली आई। विमल के एक साथी ने पार्टी दी थी तो वहां पीना पिलाना भी होना था। इस कारण वो कॉलेज से अकेले ही चला गया। क्योंकि घर आने के बाद वसुधा इस तरह की पार्टियों में नहीं जाने देती थी। वसु को नहीं पता था की विमल पार्टी में जायेगा। ना ही विमल को पता था कि वसु ने नाइट शिफ्ट ड्यूटी ली है। रात आठ बजे से ड्यूटी थी। अरुण की सारी तैयारी कर वसु ने रागिनी को समझा दिया। बोली,"तुम मेरी जगह अरुण के साथ सो जाना,और विमल दूसरे कमरे में सो जाये उन्हे बोल देना।" निकलते निकलते साथ ही ये हिदायत भी दे दी की ,"ऐसा कर रागिनी.. अरुण कही ऐसा ना हो की मुझे न देख रोने लगे!! तू मेरा नाइट गाउन पहन कर सोना तो तुझको मुझे ही समझेगा।"
"जी दीदी" अल्पभाषी रागिनी ने समर्थन दे दिया।
वसुधा तो अरुण को सुला कर ही गई थी। जयंती और रागिनी ने खाना खाया। जयंती तो टीवी देखने बैठ गई जब तक विमल नहीं आता। पर रागिनी इस डर से की कही अरुण जाग न जाए। दीदी का गाउन पहन कर अरुण के पास लेट गई। लेटे लेटे कब आंख लग गई पता ही नही चला।
टीवी देख कर जयंती भी अब ऊब रही थी पर विमल नही आया था। इस कारण वही सोफे पर वो भी लेट गई की दरवाजा तो खोलना ही होगा।
रात ग्यारह बजे विमल आया। उनिंदी जयंती ने काफी देर खटखटाने के बाद दरवाजा खोला और बिना उससे कुछ कहे अपने बिस्तर पर जा कर सो गई। विमल ज्यादा तो नहीं पिए था पर हल्का नशा था। वो भी खा कर तो आया हो था। बस कपड़े बदले और बिस्तर में जाकर सो गया। उसने बगल में सोई रागिनी को देखा पर उसे लगा नशे की वजह से उसे ऐसा भ्रम हो रहा है। पर उसे इस भ्रम में भी निकलने का दिल नही किया। वो पास खिसक आया और रागिनी को वसु होने के भ्रम में बाहों में भर लिया। नशे में उसे कुछ होश नहीं था की क्या हो रहा है। रागिनी ने जब अपने कुछ दबाव महसूस किया तो जाग गई। देखा तो विमल उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर चूम रहा है। उसने विमल को खुद से दूर हटाने की कोशिश की। पर वो विमल को अपने से अलग करने की नाकाम कोशिश करती ही रह गई।
विमल के बाहों का घेरा मजबूत होता गया। विमल का स्पर्श रागिनी के तन को बेकाबू करने लगा। एक सीमा के बाद रागिनी ने विरोध करना बंद कर दिया। अपनी इच्छा पूर्ति कर विमल सो गया।
पर रागिनी वो तो जिस भंवर में अनचाहे ही घुस गई थी। उससे। निकलना ना मुमकिन था। जो भी हुआ बेशक उसमे उसकी सहमति नहीं थी,पर उसे जो कुछ भी महसूस हुआ था बिल्कुल नया अनुभव था। कुछ देर इस बारे में रागिनी सोचती रही। पर इस नए अनुभव के सुख ने उसकी अक्ल पर पत्थर डाल दिया। वो सही गलत का अंतर भूल गई। उसे बस याद था तो केवल अभी अभी मिला असीम सुख। बिना विमल को अलग करने को कोशिश किए वो भी उसकी बाहों में सो गई।
होश तब आया जब देर रात अरुण रोने लगा। हड़बड़ा कर रागिनी जागी साथ ही विमल भी जाग गया। बत्ती जलते ही उनकी निगाहे आपस में मिली और शर्मिंदगी से विमल उठ कर किचेन में चला गया अरुण के लिए दूध गरम करके लाने। उसे पश्चाताप हो रहा था खुद के किए पर। साथ ही ये डर भी सता रहा था की कही रागिनी ने वसु को ये सब बता दिया, तब तो जो तूफान आएगा, उसकी कल्पना भी करना मुश्किल था। दूध गर्म कर बोतल में डाल विमल कमरे में आया। रागिनी अरुण को गोद में ले कर चुप करा रही थी। बिना कुछ बोले सर झुकाए विमल ने दूध की बोतल रागिनी को पकड़ा दी। रागिनी बिस्तर पर बैठ अरुण को गोद में लिटा दूध पिलाने लगी। कुछ पल तो विमल खड़ा रहा। फिर वही बिस्तर पर रागिनी के पास बैठ दोनों हाथ जोड़ लिए और गिड़गिड़ा कर बोला,"रागिनी मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई…. सो.. सॉरी.. रागिनी.. सो.. सॉरी…,,
मुझे माफ कर दो। वो.. मैने तुम्हे वसु समझ लिया था। प्लीज मुझे माफ कर दो।" कह कर वीमल रोने लगा।
रागिनी कुछ देर तो चुप रही। विमल बच्चो की भांति रो रहा था। उसे रोता देख रागिनी को बुरा लग रहा था। उसने बिना कुछ बोले तसल्ली के तौर पर अपना हाथ विमल के हाथ पर रख दिया। विमल ने गीली आंखो से रागिनी को देखा। वो दुखी जरूर लग रही, पर नाराज नहीं नजर आ रही थी। विमल "थैंक्स रागिनी" कह वहां से चला गया। दूसरे कमरे में जा कर सो गया।
रागिनी भी फिर से अरुण को सुलाया और वो भी सो गई।
वसु के सुबह घर आने पर क्या रात आए तूफान के बारे में पता चला??? क्या वो इन सब से अनजान ही रही ??? पढ़े अगले भाग में। 🙏🙏🙏