Samjhota pyar ka dusara naam - 5 in Hindi Women Focused by Neerja Pandey books and stories PDF | समझौता प्यार का दूसरा नाम - 5

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समझौता प्यार का दूसरा नाम - 5

अवधेश जी विमल को वहां से चले जाने को कहते है। विमल भी बिना किसी अगर मगर के वहां से चला जाना ही उचित समझता है। वो इतनी बड़ी बात एक लड़की के पिता से कहने के बाद उन्हें कुछ वक्त सोचने समझने के लिए देना चाहता है। अवधेश जी वसु और पत्नी के साथ वसु के कमरे पर आ गए। सभी ने चेंज किया और रात के खाने की तैयारी होने लगी। वसुधा ने मां को कुछ भी करने से मना कर किचेन में जाने को मना लिया। बोली,"मां तुम गांव में तो करती ही हो अब यहां तो आराम कर लो।" बेटी के प्यार भरे मनुहार को मान वो किचेन से बाहर आ आराम करने लगी। वसुधा ने पिता के पसंद का खाना बनाया था। अवधेश जी को कद्दू की सब्जी पूरी संग बहुत पसंद थी। और साथ में सिवई भी हो तो मजा ही आ जाए। ऐसा खाना तो त्योहारों पर ही नसीब होता था उन्हें। पर अब बेटी वसु कमाती थी। पिता को सारे सुख देना चाहती थी। खाना बना कर वसुधा बाहर आई उन्हे खाना देने । देखा तो एक अजीब सा सन्नाटा पसरा था । मां बैठी थी और पास ही पापा भी बैठे थे। पर वो सिर पर हाथ रक्खे ऐसे उदास बैठे थे जैसे कोई तूफान आकर चला गया हो। और उस तूफान ने उनका सब कुछ उजाड़ दिया हो। दोनो ऐसे खामोश बैठे थे जैसे कुछ कहने सुनने के लिए बचा ही ना हो। इस तरह चिंता में दुखी मां पापा को देख वसु डर गई। डरते डरते वसु ने थाली पापा सामने रक्खा और मंद स्वर में बोली,"पापा खाना…"
अवधेश जी ने सर उठा कर देखा की वसुधा थाली लिए खड़ी थी। उसका चेहरा बता रहा था की अपने पापा के दुख से वो भी खुश नहीं हैं। उसे भी पछतावा है। वो खाना तो नहीं चाहते थे पर वसुधा ने इतने मन से सब कुछ उनकी पसंद का बनाया था। अगर वो नहीं खायेंगे तो जाहिर है कोई नहीं खायेगा। अन्न का अपमान वो कर नहीं सकते थे। "रख दे" उन्होंने वसु से कहा। वसु का उत्साह बढ़ा । वो झट से लोटे में पानी भर कर पापा का हाथ धुलाने आ गई। अवधेश जी ने हाथ धुला और थाली लेकर हाथ जोड़ा फिर खाने की शुरुआत की। उन्होंने मन ही मन फैसला किया की डांटने और नाराज होने से बात बिगड़ सकती है। अब जो भी करना है प्यार से ही करना होगा।
यही सब सोच कर उन्होंने रुष्ट स्वर में ही सही लेकिन वसुधा को भी अपना और अपनी मां का खाना लेकर आने को कहा। झट पट वसुधा दोनो थाली लगा लाई। खामोशी से तीनों ने अपना अपना खाना खत्म किया। अवधेश जी सोने लेट गए,पर नींद उनकी आंखों से कोसो दूर थी। सुबह जाना भी था। रात भर सोचते रहे फिर एक फैसला लिया कि वो एक कोशिश करेंगे बेटी को समझाने की।
सुबह जाने से पहले उन्होंने वसुधा को अपने पास बिठा कर
जैसे ही समझाना शुरू किया, वो रोने लगी, "पापा विश्वास करो मैं आपको कभी भी दुखी नहीं करूंगी।"
अब जाते वक्त लाडली बेटी को वो रोते नहीं देख सकते थे। "बस बेटा बस रोना नहीं" कह कर गले लगा लिया।
वो जाने को तैयार हो पत्नी सहित बाहर निकले।
विमल जिद्द का बड़ा ही पक्का था। वो अनुमान लगा चुका था की अवधेश जी आज या कल में तो जायेंगे ही।
उसका अंदाजा इतना सटीक लगा की उसे बिलकुल भी इंतजार नहीं करना पड़ा। एक ऑटो ले कर वो निगाह रख रहा था की जैसे भी हो उसे वसुधा के पापा के आगे खुद को अच्छा साबित करना है। उसे पहुंचे कुछ मिनट ही हुए थे कि अवधेश जी बाहर निकले।
निकलते ही निगाह पड़ी विमल एक ऑटो के साथ खड़ा था। उन्हें देखते ही आगे बढ़ कर उनके पांव छुए और झोला, बैग लेकर बिना उनसे पूछे ऑटो में रख दिया और बोला "हां अंकल कहां चलना है?" नाराज तो बहुत हुए मन ही मन अवधेश जी पर खून का घूंट पी लिया। अब जाते वक्त मकान मालिक और आस पास के लोगों के सामने कोई तमाशा नहीं करना चाहते थे। इस लिए चुप ही रहना ठीक समझा। कठोर नजरों से वसुधा को घूरा और बोले,"तू अंदर जा वसु... हम चले जायेंगे।"
"जी पापा" कह वसुधा मां के गले लग गई और पापा को हाथ हिला कर टाटा किया। भर आई आंखो को पोछती हुई जल्दी से अन्दर चली गई।
अवधेश जी के गांव बस ही जाती थी। वो अनमने मन से पत्नी सहित ऑटो में बैठ गए। बस स्टॉप चलने को बोला। पर विमल उन्हे बस स्टॉप ना ले जाकर अपने नए बन रहे घर की ओर ले कर चल पड़ा। जले भुने से अवधेश जी बैठे रहे। वो बड़े ही उत्साह से उन्हें लेकर निर्माण रत मकान के अंदर ले गया। वसुधा की मां को तो "आइए मां जी आइए" कह कर हाथ थाम कर अंदर ले गया। ये आज का लड़का इतना बड़ा घर बनवा सकता है! ये तो उन्होंने सोचा भी नहीं था। बड़े बड़े कमरे,बड़ा सा लॉन देख कर वो हैरान थे। पूरा घर दिखा कर वसुधा की मां से पूछ बैठा,"कैसा लगा मां जी?"
सीधी साधी वसुधा की मां बस इतना ही बोली,"बहुत अच्छा बेटा! बहुत अच्छा!!"
इसके बाद कमल उन्हे बस स्टॉप बस पर बिठा आया। लाख मना करने के बाद भी उनके टिकट खरीद कर उन्हें दे दिया। साथ में कुछ फल भी दे दिए।
जाते जाते अवधेश जी से बोला,"अंकल आप चिंता मत करो मैं वसुधा से मिलने नहीं जाऊंगा। फिर जब आप आयेंगे तभी मैं भी आऊंगा। प्रॉमिस" कह अंगूठा दिखा हंसता हुआ चला गया।
विमल का व्यक्तित्व ऐसा था की कोई भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। लाख नाराज हो अवधेश जी पर उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। अवधेश जी मन में संशय ले कर अपने गांव चल पड़े।
वसुधा की मां ने उसके जाते ही कहा,"भला लड़का है।"
अवधेश जी ने पत्नी को घूरते हुए कहा,"बड़ा जानती हो!!!! भला लड़का है,हूं .. ह..।"
पति की नाराजगी से वो चुप हो गई।
घर आकर अवदेश जी ने पूरी एड़ी चोटी का जोर लगा कर बेटी वसुधा के लिए वर ढूंढना शुरू कर दिया। जो भी जहां भी बताता, उसे पता करने जाते। किसी में कुछ कमी दिखती,किसी में कुछ। और जो रिश्ता पसंद आता उनको इतना ज्यादा दहेज चाहिए होता की,वो उनके बस की बात नहीं थी। एक रिश्ता पसंद आया,पर उनकी शर्त थी की लड़की घरेलू होनी चाहिए। अगर अवधेश जी बेटी की नौकरी छुड़वा दे तो वो शादी को तैयार थे। पर इतनी तपस्या कर बेटी को काबिल बनाया था क्या घर बिठाने के लिए…? इन सब में पूरा साल निकल गया। कही भी रिश्ता तय नहीं हो पा रहा था। जैसे ही कही योग्य वर के बारे में सुनते। हर बार एक उम्मीद से खोज बीन शुरू होती पर लास्ट में बात नहीं बन पाती तो अवधेश जी झुंझला उठते। कुछ रकम भी वसुधा के वेतन से अवधेश जी ने जोड़ ली थी,पर वसु जब घर आई तो हठ करके एक छोटा घर बनवाने की शुरुआत कर दी। बोली,"पापा हम कुल तीन ही तो जन है। बड़ा घर क्या होगा आप पहले छोटा सा घर बनवाओ। शादी तो बाद में होती रहेगी। आखिर कर अवधेश जी को बेटी की बात माननी ही पड़ी। समय बीतता जा रहा था पर वसुधा की शादी नहीं हो पा रही थी। वो तो गांव की जमीन बेच कर लड़के वालों की मांग पूरी करने को तैयार थे। पर वसुधा हर बार रोक देती। अपनी कमाई भी घर बनवाने में खर्च कर दी। अवधेश जी और उनकी पत्नी को लगने लगा था कि शायद वो शादी करना चाहती ही नहीं थी। वजह शायद विमल था। उसके साथ शादी को पापा तैयार नहीं होंगे। और किसी दूसरे के संग वो रह नही पाएगी। पापा को ये आभास हो गया था।
तंग आकर वो एक फैसला लेते है और वसुधा की मां के संग वसु के पास चल देते है। इस तरह अचानक मां पापा को देख कर वसुधा खुश होने के साथ हैरान भी हो गई। उसकी ड्यूटी थी। उन्हे देखकर उसने छुट्टी ले ली। अवधेश जी उसे चौका देना चाहते थे। वो खुशी की चमक बेटी के चेहरे पर देखना चाहते थे। बेटी के हाथ का पसंदीदा खाना खाकर वो आराम करने लेट गए। शाम को वसु से समान लेने बाजार जाने को बोल कर बाहर निकल गए।
घर से निकल कर वो सीधा विमल के प्लॉट पर पहुंच गए। अब तक उसका आलीशान मकान बन चुका था। जिसमें वो अकेला ही रहता था। अचानक वसुधा के पापा को देख कर वो समझ नहीं पाया की ये अचानक कैसे आ गए? उन्हे सम्मान सहित अंदर ले आया और खुद अपने हाथो से चाय बनाकर पिलाई। उसका सुसज्जित घर देख कर अवधेश जी हैरान थे। उनके लिए डाइनिंग टेबल और सोफा सेट साथ ही पूरे घर में बिछी कालीन। सब चीजे नई थी। साथ में फ्रीज आदि देख कर तो वो समझ भी नहीं पाए की ये सब क्या चीज है? चाय पी कर वो कुछ कहना चाहते थे पर जबान साथ नहीं दे रही थी। विमल ने शायद उनकी हिचकिचाहट समझ ली बोला,"अंकल कोई परेशानी है? कोई दिक्कत हो हो बताइए,मैं क्या आपकी कुछ मदद कर सकता हूं? "
वो असमंजस में था उन्हें आने को लेकर। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी ये तो उसे पता था,पर उसे ये भी पता था की वो स्वाभिमानी अवधेश जी उससे कोई मदद मांगेगे ये संभव नहीं था।
उसके सोच पर विराम लगाते हुए अवधेश जी ने गला साफ किया और झिझिकते हुए कहा,"तुम बेटा उस दिन
पार्क में मुझसे कुछ कह रहे थे। क्या अब भी वही विचार है?"
विमल जैसे कोई सपना देख रहा हो उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि वसुधा के पापा खुद उससे उसके सामने बैठ कर उससे पूछ रहे है! अपनी खुशी को समेटते हुए हर्ष से बोला,"अंकल आज ही नही मेरा विचार दस साल बाद भी वही रहेगा। बस आपका आशीर्वाद चाहिए। उठ कर अवधेश जी के पैर छू लिए।
फिर घर की ओर देख कर बोला,"अंकल ये सब मैने वसु के लिए ही बनवाया है।अब उसकी प्रतीक्षा कर रहा हूं।
मेरे लिए तो एक कमरा ही बहुत था। अब आपका आशीर्वाद होगा तो ये मकान भी घर बन जायेगा।"
अवधेश जी बोले,"तो फिर चलो घर वसु और उसकी मां को भी इस खबर से चौका दिया जाए। विमल ने इस बीच मोटर साइकिल भी ले ली थी। जल्दी से घर में ताला बंद कर अवधेश जी को अपनी बाइक पे बिठा वसुधा के कमरे की ओर चल पड़ा।
रास्ते में बाइक रोक कुछ मिठाईयां और समोसे लिए और अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण सफर पर चल पड़ा।
अचानक पापा और विमल को साथ देख वसु सिहर गई।
क्या फिर विमल ने कोई हरकत कर दी। अब तो पापा उसे नहीं बख्शेंगे। इस डर से वो अंदर कमरे में चली गई। अंदर आकर बैठने के बाद विमल खुद ही प्लेट लेकर मिठाई समोसे निकाल कर अवधेश जी और वसुधा की मां को दिया। वो मना ही करती रह गई की "रहने दो मैं निकल कर लाती हूं। कोई शोर शराबा न सुन वसुधा को थोड़ा सा सब्र हुआ कि सब ठीक ठाक है। वसु के लिए उसके पापा ने मां से अंदर ही सारी चीजे भिजवा दी। विमल की तरह वो भी हैरान थी! पापा क्या करना चाहते है। फिर वसुधा की मां से बोले,"वसु की मां अपनी वसु की शादी मैने विमल से करने का फैसला किया है। वसु बिटिया से पूछ लो उसे कोई ऐतराज हो तो अभी ही बता दे। नहीं तो बाद में मुझे दोष दे।"
अंदर बैठी वसुधा सब कुछ सुन रही थी। उसके दिल ने इतनी खुशी की कभी कल्पना भी नहीं की थी। ये शब्द जैसे उसके दिल को अंदर तक भिगो जा रहे थे। पापा ऐसा भी फैसला ले सकते है ये तो उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी। वो कहते है ना ‘बिन मांगे मोती मिले’ यही कहावत वसुधा पे चरितार्थ हो रही थी। खुशी से आंसू गालों को गीला कर रहे थे।
मां अंदर आई । उनके बिना कुछ कहे ही वसुधा उठी और गले लग गई। वो उनसे लिपट कर अपने दिल का हाल बता देना चाहती थी। आंखे बरस रही थी और होठ हंस रहे थे। इस स्थिति में उसके चेहरे को देख मां डर सी गई। आंखे फेर ली। इतना रूप !! कही मेरी बेटी को मेरी ही नजर न लग जाए।
सब कुछ ठीक लग रहा था वसु के मां पापा को। बस एक बात ही साल थी उन्हें, कि विमल का कोई परिवार नहीं है। जो है उन्हे वो किसी भी हालत में अपनी शादी में बुलाने को तैयार नहीं था। कहता आप सब ही अब मेरा परिवार हो, मुझे और किसी की जरूरत नहीं।
बिना देर किए अवधेश जी ने अपने घर से खास खास लोगों को बुलाया और मंदिर में शादी कर दी। ऐसा तो हो नहीं सकता था कि वसु दीदी की शादी हो और रागिनी, जयंती ना आएं। वो बेहद उत्साहित थी अपने जीजा जी से मिलने को। वो भी आई और विमल को देख कर प्रसन्न हो उठी। इतना सुंदर और इतना पैसे वाला पति उनकी दीदी का पति था। विमल भी रागिनी और जयंती से मिल कर बहुत खुश था। जब उसने जयंती को छेड़ते हुए कहा,"अरे !! जयंती तुम तो अपनी दीदी से भी सुंदर हो" तो जयंती शरमा गई। इंदु इतना सुन विमल को घूरने लगी। वसुधा की चाची ने विमल को जवाब में छेड़ा बोली,"अरे!!! दामाद जी अभी तो फेरे ही हुए हैं और पत्नी को छोड़ साली को ताकने लगे। गलत बात।" उनके इस चुहल पर सभी हंस पड़े। सादे समारोह में शादी हो गई। वसुधा अपना कमरा छोड़ कर विमल के घर विदा हो गई। उसका घर देख कर रागिनी और जयंती के मुंह खुले के खुले रह गए। इतना सुंदर और बड़ा घर उन्होंने कभी नहीं देखा था। गांव में तो छोटे छोटे कच्चे घर ही होते थे।
अपनी लाडली बेटी को विदा कर अवधेश जी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए। उन्होंने गांव जाने से पहले कमरा खाली कर दिया। इसके बाद सभी घर वालो के साथ गांव चले गए।

अगले भाग में पढ़े.. वसुधा की गृहस्ती आगे किस ओर जाती है? क्या उसे विमल के साथ एक सुखी जीवन मिलता है?