Chhal - 18 in Hindi Moral Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | छल - Story of love and betrayal - 18

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छल - Story of love and betrayal - 18

आठ महीने बाद…. एक बैंक में |

बैंककर्मी (प्रेरित से) - "कहिए सर, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं" |

प्रेरित (बदले वेश में) - "जी, आपकी ब्रांच में मेरे अंकल मिस्टर रंजन का लॉकर है, उसे ऑपरेट करना था, उनकी मौत काफी साल पहले हो गई थी पर मुझे टाइम नहीं मिला आने का" |

बैंककर्मी - "ओके.. आपके पास उस लॉकर की पासवर्ड की तो होगी "|

प्रेरित - " जी, मेरे पास है" |

बैंककर्मी - "आइए" |

प्रेरित अब अपनी पहचान बदलकर आठ महीने बाद पैसों की तलाश में अपने चाचा के लॉकर को चेक करने आया था, आठ महीने तक, वह एक गांव में चरवाहों के साथ चरवाहा बनकर गुजारता रहा पर उसे अब जीने के लिए कुछ काम और पैसे चाहिए थे, उसने अपने सारे बैंक खाते चेक किए जिनमें करोड़ों रुपए थे, सब खाते खाली और सील थे, अब बस एक यही आखिरी उम्मीद थी प्रेरित के पास, इसलिए प्रेरित ने मजबूरन अपने चाचा रंजन का बैंक लॉकर खोला |

प्रेरित ने लॉकर खोलकर उसमें रखे कुछ पेपर्स निकाले और कुछ बांड जो चाचा जी ने प्रेरित और उसके बच्चे के नाम कर दिए थे और पांच करोड़ का कैश, इसके साथ चाचा जी की दो अंगूठी और चैन |

प्रेरित ये सब देखकर बहुत खुश हुआ और बोला, "चलो मनहूस चाचा किसी काम तो आया" |

प्रेरित सारे पेपर देख ही रहा था कि एक लिफाफा उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गया, प्रेरित ने उसे उठाया और खोलकर देखा और उसे खोलते ही फिर अतीत मे चला गया…..

"ऐसे नाराज नहीं होते बेटा, छोटी-छोटी बातों पर कोई घर छोड़कर जाता है भला, अरे मेरा नहीं अपनी मां का तो ख्याल करो, अपने कारोबार को देखो, ऐसे कैसे चले जाओगे",

मिस्टर रंजन ने प्रेरित को समझाते हुए कहा |
प्रेरित - "हां.. मैं चला जाऊंगा, अगर आप लोग मेरी शादी प्रेरणा से नहीं कराएंगे तो मैं इंडिया से ही बाहर चला जाऊंगा"|

चाचा जी -" अरे मान जाओ ना बेटा… "|

उस दिन मां और चाचा जी शादी के लिए आखिर मान ही गए थे, इसके बावजूद उन्होंने मेरा पासपोर्ट और वीजा कब निकाल लिया पता ही नहीं चला | शायद उन्हें डर था कि मैं कभी उनको छोड़ कर चला जाऊंगा |

प्रेरित की आंखें बीती यादों को सोचकर भर आईं, उसने अपना पासपोर्ट रखा और उस लिफाफे में रखे एक और कागज को खोल कर पढ़ने लगा,

"मेरे प्यारे बेटे प्रेरित, जब तुम ये पत्र पढ़ रहे होगे तो मैं इस दुनिया में नहीं होंगा और यही कारण है कि जो मैं कभी किसी से नहीं बता पाया, आज तुम्हें बताने जा रहा हूं, सभी जानते हैं कि मैंने शादी नहीं करी क्योंकि सेना में युद्ध के दौरान जवानी में ही मैंने अपना एक पैर खो दिया था और नकली पैर के सहारे पूरी उम्र गुजार दी, मैंने शादी करना मुनासिब नहीं समझा क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरी जिंदगी किसी की दया की मोहताज बने, बात सही है लेकिन अधूरी… जब मेरे साथ सेना में यह हादसा हुआ तो तो मैंने अपने एक पैर के साथ अपने बाप बनने की क्षमता भी खो दी थी, या यूं कहो कि मैंने अपना लिंग ही खो दिया था और यही सबसे बड़ी वजह है कि मैं अकेला ही रहा, पर सच मानो बेटा, भाई साहब के जाने के बाद मुझे कभी घर या बेटे की कमी महसूस नहीं हुई और तुम मेरा परिवार बन गए, भाभी ने भी मुझे एक छोटे भाई की तरह प्यार दिया और मेरा परिवार मुझे मिल गया | बेटा तुम सच में दुनिया के सबसे अच्छे बेटे हो और प्रेरणा बहू भी बहुत समझदार है, मैंने सारी प्रॉपर्टी तुम दोनों के नाम कर दी है, बस यह दो अंगूठी, चैन और यह पांच करोड़ जो मेरे प्यारे पोते का है, उसे दे देना जब भी उसे जरूरत हो, तुम्हारा चाचा… रंजन"|